साहित्य

कविताएँ

योजक चिह्न दिव्या सुना है मैंनेघास के लिएजंगल जातीऔरतों कोकिस्सोंकहानियों मेंलेकिनदेखती आ रही हूँअपनी माँ कोकई बरसों सेनौकरी...

कुँए में कूद-कहानी

रश्मि बड़थ्वाल यशी बेटा, वह घर तुम्हारे योग्य नहीं है। मैं एक हफ्ते से लगातार उन लोगों के...

न जाने कैसे

मधु जोशी सुनीति को अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हुआ। कैसी अर्थहीन बात कही है राधिका ने।...

‘हे ब्वारी’ की संघर्ष गाथा

चन्द्रकला उत्तराखण्ड आन्दोलन के भावनात्मक, सामाजिक, राजनीतिक पक्ष और राजनैतिक पार्टियों की सत्ता लिप्सा और नेताओं के छल-प्रपंच,...

ये क्षणिकायें नहीं

सुजाता तीन साल का हिमांशु गोद में मचल रहा था। माँ का बार-बार रोना अब उसे बिल्कुल भी...

कविताएँ : गढ़ती-बनती औरत

प्रीति आर्या देखें वे लोग भी जराबदल के नजर का चश्माजिन्हें औरत दिखती हैकमाऊकामकाजीआत्मनिर्भरऔर…!स्वतन्त्रनहीं जानतेन ही मानतेउसे भी...

कहानी: छतरियाँ

कमल कुमार ”यहाँ से र्सिकट हाउस पन्द्रह-बीस किलोमीटर होगा। आपको आने-जाने में परेशानी होगी।” विप्लव ने कहा था।...

कविताएं

ज्योत्सना मिलन माँमैं ठीक-ठाक नहीं बता सकतीकैसी होती होगी माँजहाँ-जहाँ भीउसे खोजावह नहीं थीहोता थाएक अंधेरा खोखलबचपन मेंमाँ...