स्त्रियों को बताया गया

Poem Devesh Path Sariya
बी. मोहन जोशी की पेंटिग

-देवेश पथ सारिया

स्त्रियों को बताया गया-
‘नर और मादा एक ही गाड़ी के दो पहिए हैं’
उन्होंने पूछा कि अगल-बगल के
या आगे-पीछे के
और उन्हें जवाब मिला कि विन्यास बदलता रहता है
(Poem Devesh Path Sariya)

ढुलमुल जवाब देकर टाला गया उन्हें
हर बार यह पूछने पर
कि उनकी जगह कहां है
उनकी जड़ें किस जमीन या दलदल में हैं

यदि खरी उतर पाईं वे
पुराने जमाने में
गृहकार्य में दक्षता जैसी कसौटी पर
और नए जमाने में
एक अदद डिग्री एप्रेन की तरह लपेट रसोई बनाने पर
और हर दौर में रंग, रूप की शाश्वत अपेक्षा पर
तब उन्हें ‘ईश्वर की सबसे सुन्दर कृति’ कह नवाजा गया

ईश्वर की सबसे सुंदर कृति के हिस्से में आया
उसकी विराट दुनिया का बस एक कोना
भले वह गरीब की झोपड़ी हो
या किसी राजा का अंत:पुर

संतान को जीवन देने पर उन्हें कह दिया गया
स्वयं ईश्वर ही
और उन्हें नसीहत दी गयी
कि कदाचित् वे जन्म न दे डालें
अपनी जैसी दूसरी ईश्वर को
(Poem Devesh Path Sariya)

इक्कीसवीं सदी के तीसरे दशक के मुहाने पर खड़े
भारतवर्ष के समाज का एक हिस्सा
बनाता रहा मजाक अनुवांशिकी के नियमों का
जिनके अनुसार
पुरुष के गुणसूत्र से तय होता है
संतान का लिंग

गर्भाधान से पहले, गर्भधारण के पश्चात्
कोशिशें होती रहीं
कि जड़ी-बूटी, टोने-टोटके से शिशु ‘वारिस’ ही हो
वही एक्स-वाई क्रोमोसोम का समुच्चय
वारिस की परिभाषा समाज की संकीर्ण ही रही

कोशिशें गर्भस्थ शिशु का रंग उजला करने की भी हुईं
भर गर्मी में भी खोपरे का गर्म तासीर वाला बीज
या ऐसा ही कुछ और
प्रसूता को खिलाकर

चहारदीवारी के परिदृश्य में
वे गृहिणी होने की उपादेयता सिद्घ करने का प्रयास करती रहीं
और होती रहीं असफल

सबसे निचले आर्थिक स्तर पर
वे मजदूरी पर गयीं
तो ठेकेदार ने कानून की धज्जियां उड़ा
उनकी मजदूरी में से पुरुषों की तुलना में
ज्यादा चुंगी काटी

सबसे ऊंचे मंचों पर भी
वे थोड़ा ही आगे बढ़ पाईं हाशिए से
यदि उन्हें मिल भी पाई
किसी पृष्ठ की पंक्तियों पर
बीच की जगह
तो नीचे वाली पंक्तियों में

हॉलीवुड तक में
उन्हें कम मिला पारिश्रमिक
और बालीवुड में तो कहा गया-
‘‘पैसे लो कम और चमको पुरुषों से अधिक
यहां तुम सुंदर दिखने और नाचने भर के लिए हो’’

ग्रास, हार्ड और क्ले
टेनिस के हर कोर्ट पर
उन्होंने पसीने की बाल्टियां भर दी
तीन पुरुष टेनिस खिलाड़ी
अधिकतम ग्रैंड स्लैम जीतने की दौड़ में थे
‘‘ग्रेटेस्ट ऑफ आल टाइम (GOAT)’’ के काल्पनिक तमगे की चाह में
तमाम पुरुषों से अधिक ग्रैंड स्लैम जीतकर भी
कम रही महिला खिलाड़ियों की इनामी राशि
और कभी नहीं माना गया उन्हें GOAT का दावेदार

उन्होंने सोचा
कि पहिए के बदलते क्रम के साथ
बदलता होगा समय भी
क्योंकि उन्हें यकीन नहीं रह गया था
कर्म के अनुकूल प्रारब्ध पर
उन्होंने मानी एक संभावना
कि महत्व तय करने को
उछाला जाता होगा कोई सिक्का
जिसे गिरना चाहिए
गणित के प्रायिकता के सिद्घांत से
पचास फीसदी मौकों पर
उनके भी पक्ष में
(Poem Devesh Path Sariya)

किंतु
नियति का कृत्रिम इतिहास
यहां भी मुस्तैद खड़ा था
दुनिया के हर कोने की टकसालों ने
सिक्के के दोनों ओर
पुरुष को ही गढ़ा था

जब परखी जा रही होती है सुंदरता
एक सौंदर्य प्रतियोगिता में पूछा गया प्रश्न-
आपके लिए सफलता का मतलब क्या है?
और जैसा कि होता है
नकली मुस्कुराहट ओढ़े
उस सुंदरी ने दिया एक नकली-सा जवाब
और तमाम इसी तरह के सवाल-जवाबों के बीच
चुन ली गई एक विजेता

उस प्रश्न के हो सकते थे उत्तर और भी कई
अधिक ईमानदार और जमीनी
जैसे, अगर आप प्रसन्न हैं, तो आप सफल हैं
(जवाब जो जन लेनन ने स्कूल में दिया था)
आप जो भी काम करते हों
मयस्सर हो आपको दो जून की रोटी, छत और बिस्तर
इतने में भी आप खुश रह सकते हैं

यदि आप फूलों से करते हैं उत्कट प्रेम
बीज से अंकुर फूटना यदि आपके लिए सृष्टि का सुन्दरतम दृश्य है
तो आप बागवान या किसान होकर हो सकते हैं सफल

जवाब जैसा कि एक पत्रकार को
मुजफ्फरपुर की तीसरी कक्षा की छात्रा
फलक परवीन ने दिया था
कि वह बड़ी होकर ‘अच्छी’ बनना चाहती है
जन लेनन से कमतर नहीं था फलक का जवाब

मेरी अपनी देखी सबसे सुन्दर स्त्री
ब्रेल लिपि में अपना पाठ पढ़ रही
वह बच्ची थी
जिसे विज्ञान समझाते हुए
आवाज सामान्य रखने की कोशिश करता
मैं रो रहा था
इससे अनभिज्ञ वह
सुन-सीख रही थी
विज्ञान

पर सरल रेखीय नहीं होता
सौंदर्य प्रतियोगिताओं का विज्ञान
नहीं चाहतीं प्रायोजक कंपनियाँ
एक बागवान की ख़ुशहाली का जिक्र
निष्कलुष बने रहने की ललक
विधाता के अन्याय के बावजूद
ब्रेल लिपि में जीवन सीखती एक बच्ची की मुस्कान
ना ही उनका सच्चा मंतव्य होता है
स्त्री मन की थाह पाना

बहुराष्ट्रीय कंपनियां चाहती हैं
गरीबी में जिये जाते गरीब
मरते हुए किसान
ताकि गरीबी और विफलता का डर
रख सके बाजार को जीवित

जब बनावटी प्रश्नोत्तरों और नकली आभा से
परखी जा रही होती है सुंदरता
तब सबसे सुंदर स्त्रियाँ
कर रही होती हैं
जद्दोजहद डिंब तोड़ देने की
प्रतीक्षा पंख उग आने की
कामना उड़ पाने की
(Poem Devesh Path Sariya)

सौन्दर्य के मंच पर
कोकून से बाहर आने की प्रक्रिया सुनिए
इंद्रधनुषी परों वाली उड़ती तितलियों की

और एकतरफा क्यों हो कोई संवाद
पूछने दीजिए
इन तमाम सुन्दर स्त्रियों को
उनके हिस्से के सवाल
(Poem Devesh Path Sariya)

देवेश पथ सारिया

उत्तरा के फेसबुक पेज को लाइक करें : Uttara Mahila Patrika