मानव सभ्यता के इतिहास से बहनें गायब हैं

Article by Ashok Pande

वर्जीनिया वूल्फ का एक दिलचस्प निबंध है जिसमें वे कल्पना करती हैं कि अगर विलियम शेक्सपीयर की जूडिथ नाम की एक अति प्रतिभाशाली बहन होती तो क्या होता। न उसे अपने भाई की तरह स्कूल जाने को मिलता न उसके माँ-बाप किताबों के प्रति उसकी रुचि को प्रोत्साहित करते। वे उम्मीद करते कि समय रहते किसी इज्जतदार खानदान में उसकी शादी हो जाय। इसके बावजूद अगर जूडिथ अभिनेत्री या नाटक-लेखिका बनने की जिद पर अड़ी रहती तो उसे घर से भाग कर लन्दन जाना पड़ता जहाँ लोग उसका मजाक उड़ाते और उसे बताते कि थियेटर पुरुषों के अलावा कोई नहीं कर सकता। बाद में यह भी हो सकता था  कि वह झूठी सहानुभूति दिखा रहे किसी आदमी की मदद लेने को तैयार हो जाती। नतीजा यह होता कि वह आदमी उसे अपनी वासना का शिकार बनाता और वह गर्भवती होकर खुदकशी कर लेती।    
(Article by Ashok Pande)

वर्जीनिया वूल्फ आगे लिखती हैं कि अगर जूडिथ के पास अपने भाई विलियम जैसी असाधारण प्रतिभा भी होती और वह किसी तरह सोलहवीं शताब्दी के लन्दन में अकेली रहने लायक ताकत और संसाधन जोड़ भी लेती तो उसका लेखन बीसियों जटिलताओं से भर गया होता और उसे बेनाम रहकर अपनी किताबें छपानी पड़तीं क्योंकि उस समय के इंग्लैण्ड में प्रतिभावान पुरुष लेखकों तक को भी अपनी किताबें छपाने में बड़े पापड़ बेलने पड़ते थे।

अव्वल तो प्रतिभाशाली बहनों को अपने हाथ आजमाने का मौका ही नहीं मिला और अगर किस्मत से कुछ समय को परिस्थितियां उनके अनुकूल रही भी तो उनके काम के दुनिया की निगाह में आते ही उन्हें सौ दरवाजों के पीछे धकेल दिया गया।
(Article by Ashok Pande)

शेक्सपीयर की काल्पनिक बहन जूडिथ जैसी एक वास्तविक बहन का एक किस्सा संगीत से जुड़ा हुआ है।

संगीत के भगवान माने जाने वाले वूल्फगैंग अमाडियस मोत्सार्ट का विएना में एक तीन सौ बरस पुराना ऐतिहासिक अपार्टमेन्ट है- मोत्सार्टहाउस। इस घर की एक दीवार पर एक फैमिली पोटे्रट टंगा हुआ है। 1780 के बने इस पोटे्रट में वूल्फगैंग अमाडियस मोत्सार्ट, उनकी बहन मारिया आना और उनके पिता लियोपोल्ड देखे जा सकते हैं। पृष्ठभूमि में उनकी दिवंगत माँ आना मारिया का चित्र दिखाई देता है़ दोनों भाई-बहन एक साथ मिलकर हार्प्सीकर्ड बजा रहे हैं।

30 जुलाई 1751 को आस्ट्रिया के साल्सबर्ग में जन्मी मारिया आना अपने भाई वूल्फगैंग अमाडियस से पांच साल बड़ी थीं। पिता लियोपोल्ड की ट्रेनिंग ने उन्हें बहुत बचपन में ही अपने भाई की तरह चाइल्ड प्रोडिजी बना दिया। पिता की देखरेख में दोनों बच्चे यूरोप के तमाम शहरों में घूम कर अपनी कला का प्रदर्शन करते और सुनने वालों को सम्मोहित कर लेते। उन्हें विज्ञापनों में ‘चमत्कारी बच्चे’ कह कर प्रचारित किया जाता था़ नतीजतन बहुत छोटी आयु में दोनों बच्चे समूचे यूरोप में विख्यात हो गए। 1764-65 में वे अठारह माह लन्दन में रहकर परफार्म करते रहे़ उस समय छपने वाले रिव्यूज में मारिया आना को बहुत प्रशंसा मिली और उन्हें अपने भाई से कहीं ज्यादा मेहनताना मिला करता था।

18 साल की होते ही मारिया आना का जीवन पूरी तरह बदल गया. जब तक वह छोटी बच्ची थी उसका गाना-बजाना ठीक था लेकिन वयस्क हो जाने के बाद ऐसा करना उसकी और उसके परिवार की इज्जत के लिए शर्म की बात थी़ इसके बाद उन्हें साल्सबर्ग में रहने को विवश होना पड़ा जबकि पिता ने छोटे भाई को लेकर यात्राओं पर जाने का सिलसिला बनाए रखा।
(Article by Ashok Pande)

मारिया आना का जीवन बहुत सारे ऐसे दुखों और त्रासदियों से भरा है जिन्हें हम आपने आसपास दिखाई देने वाली मौसियों, बुआओं, माँओं और बहनों के जीवनों में रोजमर्रा घटता हुआ देखने के आदी हो चुके हैं।

पिता का आदेश उसके लिए पत्थर की लकीर था और वह किसी भी तरह का प्रतिवाद कर सकने की हालत में नहीं थी़ उसे फ्रांज नाम का एक आदमी पसंद आया। पिता ने यह कह कर फ्रांज का शादी का प्रस्ताव मंजूर नहीं किया कि वह आर्थिक रूप से उनकी हैसियत का नहीं था। भाई वूल्फगैंग ने बहुत कोशिश की कि उसकी बहन अपनी पसंद के लिए प्रतिवाद करे लेकिन उसने ऐसा करने से इनकार कर दिया। अंतत: 32 साल की आयु में उसका विवाह एक मजिस्ट्रेट से हुआ जिसकी दो पिछली बीवियां मर चुकी थीं और जिनसे उसके पांच बच्चे पहले से थे़ मारिया आना ने इन बच्चों की परवरिश भी की और खुद भी उसके तीन बच्चे हुए़

जज साहब का इंतकाल 1801 में हुआ जिसके बाद वे अपने पिता के घर साल्सबर्ग लौट आईं। उनके साथ उनके चार सौतेले और तीन अपने बच्चे भी आए। जीवनयापन के लिए वे म्यूजिक टीचर बन गईं। अपने जीवन के अंतिम वर्षों में उनकी आँखों की ज्योति जाती रही और वे  29 अक्टूबर 1829 को 78 की आयु में परलोक सिधारीं।

उनके जीवन की एक उल्लेखनीय घटना उनके पहले पुत्र के जन्म से जुड़ी हुई है़ इस बच्चे को जन्म देने के लिए वे अपने मायके आ गयी थीं। 1785 में जन्मे इस बेटे का नामकरण दादाजी के नाम पर लियोपोल्ड किया गया। जब मारिया आना अपनी ससुराल गईं तो अपने पिता के आग्रह पर बच्चे को मायके छोड़ गईं, उनके पिता इस बच्चे को भी संगीत की महाप्रतिभा के रूप में विकसित करना चाहते थे। 1787 में उनकी मौत तक उनकी इस इच्छा का पालन किया गया और दो साल की उम्र तक बच्चा अपनी माँ से अलग रहा।

यह कदाचित संभव था कि मारिया आना की कहानी समय की गर्द तले दबी रहती अगर मारिया आना ने सैकड़ों व्यक्तिगत और पारिवारिक पत्रों का अपना संग्रह बहुत हिफाजत से सम्हाल कर न रखा होता और उन्हें 35 की आयु में गुजर गए अपने भाई की विधवा कांस्टेंस को न सौंपा होता। इनमें से ज्यादातर उनके पिता और भाई के लिखे हुए हैं लेकिन मारिया आना के लिखे अमूल्य पत्रों में उसकी प्रतिभा, उसकी क्षमता, उसके सपने, उसकी ताकत, उसकी शालीनता और उसका संघर्ष- सब कुछ दर्ज है़ आज भी ये पत्र किसी राष्ट्रीय खजाने की तरह देखे जाते हैं।
(Article by Ashok Pande)

18 की आयु में अपने ऊपर जबरन लाद दिए गए रिटायरमेंट के बावजूद उसने संगीत रचना नहीं छोड़ा- उसने अपनी बनाई कम्पोजीशन्स अपनी भाई और पिता को लगातार भेजीं- भाई उन्हें सुन्दर बताता हुआ अपनी बहन की तारीफ करता नहीं अघाता। पिता कभी कुछ प्रतिक्रया नहीं देते।  

मारिया आना का कम्पोज किया हुआ कोई भी संगीत अब बचा हुआ नहीं है। संभवत: उसने उसे किसी और को दिखाया ही नहीं, हो सकता है उसने उसे अपने हाथों नष्ट कर दिया हो। हो सकता है वह अब भी कहीं मिल जाए़ हो तो यह भी सकता है कि वह हमारे सामने हो और हम पिछले दो सौ सालों से उसे उसके भाई का रचा मान रहे हों। इनमें से कोई भी चीज सच हो सकती है।

उस समय में औरतों का संगीत कम्पोज या परफार्म करना अच्छा नहीं माना जाता था़ यह सब तब था जब उसका भाई कहता था कि उसकी बहन जैसा कीबोर्ड कोई नहीं बजाता़ पिता सार्वजनिक रूप से अपनी बेटी को यूरोप के सबसे कुशल संगीतकारों में गिनते थे़  

हमें कभी पता नहीं चलेगा उस मारिया आना ने क्या-क्या रचा होगा जिसके जीनियस को अपने भाई प्रतिभा की छाया में गुम हो जाने को मजबूर कर दिया गया़ समाज की खोखल परम्पराओं को बनाए रखने की गरज से उस स्त्री के हाथों को रसोई-गुसलखाने में महदूद कर दिया गया़ उन हाथों को पियानो के ऊपर चलना था और सारी मानवता के वास्ते अमर संगीत रचना था।

हमारे इतिहास से बहनें वाकई गायब हैं.
(Article by Ashok Pande)

अशोक पांडे की फेसबुक वाल से

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