हमारी दुनिया

सरपंच ने घूंघट छोड़ा

हरियाणा की घानी मियाँ खान ग्राम पंचायत की 32 वर्षीय सरपंच सुषमा भादू ने अपने मुँह पर घूँघट डालना छोड़ दिया है क्योंकि यह उसके कामकाज में बाधक बन रहा था। एक दिन उसने अपने पति भगवानदास को विनम्रतापूर्वक सूचित किया कि उसे घूँघट डालने पर काम करने में दिक्कत होती है। घूँघट छोड़ने के लगभग एक सप्ताह बाद 22 जुलाई 2012 को उसने सार्वजनिक रूप से 25 निकटवर्ती गाँवों की महिला पंचायत सदस्यों, छात्राओं एवं आँगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के एक सम्मेलन में घूँघट छोड़ने की घोषणा की। उसने कहा: ”घूँघट डालने से मुझे अपने परिवार और गाँव के कार्यों को पूरी तरह से करने में परेशानी होती है। यह एक व्यक्ति के रूप में मेरी पहचान छीन लेता है।” सुषमा की इस घोषणा के तत्काल बाद अनेक महिलाएँ खड़ी हो गईं और उन्होंने अपने मुँह से घूँघट हटा दिए। दरअसल, सुषमा ने उस समाज की महिलाओं की दुखती रग पर हाथ दिया था, जिसमें महिलाओं के लिए घूँघट ओढ़ना अनिवार्य है।

महिला पंचायत प्रतिनिधि की नाक काटी

बिहार के खगरिया जिले के कैनजारी गाँव में पाँच व्यक्तियों ने एक निर्वाचित महिला पंचायत प्रतिनिधि नुनु देवी को डायन बताकर उसकी नाक काट दी। उन्होंने 30 अक्टूबर को 70 वर्षीय इस दलित महिला पर जादू-टोना करने का आरोप लगाकर उसकी पिटाई की और हाल ही में उसके बेटे की मौत के लिए उसे दोषी ठहराया। उसके बाद उसकी नाक काट दी। गम्भीर रूप से घायल नुनु देवी को बेलदार के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया है। पीड़िता के बयान के आधार पर पाँच लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है। सभी आरोपी अपराध करने के बाद फरार हो गये।

ग्राम पंचायतों में शराबबन्दी की पहल

बोलियावास मध्य प्रदेश के नीमच जिले में स्थित छोटा-सा गाँव है। इसी तरह तुम्ड़ाव्दा मध्य प्रदेश के ही मंदसौर जिले का एक और गाँव है। ये दोनों गाँव देशी शराब की खपत के लिए पंजाब के संगरूर में स्थित चांगल गाँव की तरह मशहूर हैं। इन गाँवों में खूब पैसा है, क्योंकि पहले दो गाँवों में चिकित्सकीय इस्तेमाल के लिए अफीम उगाई जाती है, जबकि पंजाब के गाँव में गेहूँ की बंपर पैदावार होती है। संगरूर के आसपास कई छोटे-मोटे गाँव हैं और चांगल ऐसे 72 गाँवों में से एक गाँव है, जिनमें पिछले दो साल से शराब की बिक्री निषिद्ध है। इसी तरह मध्य प्रदेश के इन दोनों गाँवों ने भी शराबबन्दी लागू करने में सफलता हासिल की है। देश में ऐसे सैकड़ों छोटे-मोटे इलाके या गाँव-खेड़े हैं, जिन्होंने शराब माफिया के खिलाफ लड़ते हुए यह सफलता प्राप्त की। हालांकि ऐसे सभी मामलों में देखा गया कि स्थानीय महिलाओं ने ही शराब माफिया से टकराने का हौसला दिखाया। बहरहाल, 12000 ग्राम पंचायतों में से 72 का आँकड़ा भले ही बहुत छोटा लगे, लेकिन इन गाँवों की महिलाओं ने अपने इलाके में शराब को पूर्णत: प्रतिबंधित करने का निर्णय लिया और उसमें सफलता भी प्राप्त की। इन महिलाओं ने साइंटिफिक अवेयरनेस प्रोग्राम और पीपुल फॉर ट्रांसपेरेंसी जैसे एनजीओ की मदद ली, जिन्होंने गाँव की महिलाओं को शराब के अत्यधिक उपभोग से जुड़े खतरों के बारे में बताया, जिसने पंचायत को अपने अधिकार का इस्तेमाल कर शराब की दुकानों को हटाने के लिए बाध्य कर दिया। उनके प्रयासों को काफी सराहा जा रहा है।

कम्पनियों की जिम्मेदारी है सुरक्षा

मुम्बई हाईकोर्ट ने कहा है कि कम्पनियों को अपने यहाँ देर रात तक काम करने वाली महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करनी चाहिए। जस्टिस वी.एम. कनाडे और जस्टिस पी.डी. कोडे की पीठ ने पुणे में बीपीओ कर्मी की 2007 में दुष्कर्म के बाद हत्या के मामले में सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की। इस मामले में निचली अदालत ने दोनों आरोपियों पुरुषोत्तम बोराडे और प्रदीप कोकाडे को मौत की सजा सुनाई है।
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छात्र संघ के सभी पदों पर छात्राएँ

हरिद्वार के गुरुकुल कांगड़ी जैसे प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय में छात्राएँ मताधिकार से वंचित हैं लेकिन इसके ठीक उलट चंद्रकुँवर बत्र्वाल राजकीय महाविद्यालय पोखरी (चमोली) में इस वर्ष इतिहास रचा गया है। यहाँ छात्राओं ने पहली बार चुनावों में हिस्सा लेने का फैसला किया तो छात्रों ने उनके लिये मैदान खाली कर दिया। महाविद्यालय में छात्राओं की संख्या ज्यादा है। इसी के मद्देनजर छात्रों ने अपनी उम्मीदवारी यह कह कर खारिज कर दी कि बहुसंख्यक होने के नाते छात्राओं को ही अगुवाई का अधिकार मिलना चाहिए। छात्रसंघ के चुनाव में पर्चा भरने से पहले विद्यार्थियों की संयुक्त बैठक हुई। इसमें भी छात्राओं की संख्या ज्यादा रही। एक पद पर एक उम्मीदवारी घोषित कर छात्राओं ने निर्विरोध चुनाव जीत लिया।

बेटियों के नाम पर पौधे

पाली जिला प्रशासन ने एक अनूठी पहल की है। प्रशासन ने जिलेभर में 7501 पौधे लगाए हैं। ये सब पौधे नवजात बेटियों के नाम पर लगाए गए हैं। हर पौधे पर बेटी के नाम से टैग लगाया गया है। इसी तरह किन्नर अब बेटी के जन्म पर भी बधाई गीत गाएंगे। पाली जिला प्रशासन के आग्रह पर किन्नरों ने यह बीड़ा उठाया है। किन्नर समुदाय की मुखिया ने कहा कि वे अब बालिका बचाओ अभियान में विशेष भूमिका निभाएंगी। अब वे ढोलक बाजों के साथ गाना बजाकर कन्या के महत्व की बात करेंगी।

पंचायत में महिला को मारे गये जूते

फिर एक महिला पंचायत के नादिरशाही फैसले की शिकार हो गई। लगभग 300 लोगों के सामने महिला को अपमानित किया गया। पंचायत सदस्यों ने महिला के चरित्र पर सवाल खड़े करते हुए उसे जूते मारे। महिला का आरोप है कि दबंगों ने न सिर्फ उसके साथ मारपीट की वरन् उसे बचाने आये उसके 12 साल के बेटे को भी नहीं बख्शा। पटरी थाना क्षेत्र की एक बस्ती में रहने वलाी चालीस वर्षीय महिला के पति का देहान्त हो चुका है और वह मजदूरी करके अपने बच्चों का पालन पोषण करती है। ग्रामीणों  का आरोप था कि उसके गाँव के ही एक युवक से सम्बन्ध हैं। इस पर गुर्जर बस्ती में पंचायत बुलाई गई। पंचों की राय थी कि महिला युवक से शादी कर ले। लेकिन महिला ने ऐतराज जताया। महिला की नाफरमानी वहाँ मौजूद लोगों को नागवार गुजरी। जिस कारण उसे सरेआम प्रताड़ित होना पड़ा।

गुजरात के मेहसाना में लिंगानुपात सबसे कम

गुजरात के मेहसाना में बालक-बालिका अनुपात भारत में सबसे कम है। 1000 लड़कों पर केवल 700 लड़कियाँ। वर्ष 2011 की जनगणना में यह तथ्य उभरकर आया है कि यहाँ 0-6 आयु वर्ग में लड़कियों की संख्या लड़कों के अनुपात में सबसे कम है। हरियाणा के सोनीपत और बहादुरगढ़ में यह अनुपात 784/ 1000, रोहतक में 793/1000 और गुजरात में 790/1000 है। सोशल एक्टिविस्ट प्रकाश मोदी जो यंग सिटीजन ग्रुप के सदस्य हैं, के अनुसार मेहसाना में भ्रूण परीक्षण क्लीनिक आम हैं और लड़का-लड़की भेदभाव चरम पर है। जिला प्रशासन की कोशिशों के बावजूद भ्रूण हत्या जारी है। यहाँ के जिलाधिकारी राजकुमार बेनीवाल ने 10 रजिस्टर्ड सोनोग्राफी मशीनों में से 7 को भ्रूण परीक्षण करने के लिए सील कर दिया था तथा गर्भवती महिलाओं से लिखित में अपील की कि वे लड़का-लड़की भेदभाव को खत्म करें और उन्हें आगाह किया कि भ्रूण परीक्षण एक अपराध है। इसके बावजूद स्थितियाँ ज्यादा नहीं बदली हैं।

बेटी ने पहनी पिता की पगड़ी

राजस्थान के बूँदी जिले में एक छोटे से गाँव बीचड़ी में पारिवारिक विरोध के बीच अपने पिता दिवंगत रार्मंसह कमाणा के बारहवें की रस्म निभाते हुए उनकी बेटी डॉ. त्रिशला ने पिता की पगड़ी पहनी। यहाँ समाज में परम्परा है कि पिता की मौत के बाद पुत्र या पुत्र के न होने पर भतीजा पगड़ी पहनता है। लेकिन स्व. रामसिंह कमाणा की पत्नी 61 वर्षीया अमृता सिंह ने प्रशासन की मौजूदगी में अपने पति की पगड़ी पुत्री को पहनाई। त्रिशला आईआईटी कानपुर से पीएचडी है तथा बंगलुरु में एक बहुराष्ट्रीय कम्पनी फ्रास्ट एंड सुलेवन में एशिया हेड है। त्रिशला की माँ अमृता सिंह ने कहा कि जब हमारी बेटियाँ नासा में जा सकती हैं तो पिता की पगड़ी क्यों नहीं पहन सकतीं। कुछ लोग इस फैसले से नाराज हैं लेकिन किसी न किसी को तो यह पहल करनी ही थी। इस परिवार ने मृत्युभोज के स्थान पर गाँव में लड़कियों के लिए एक स्कूल खोलने का फैसला किया है।

जननी एक्सप्रेस की शुरूआत

राजस्थान सरकार ने गर्भवती महिलाओं व नवजात शिशुओं के लिए 2 अक्टूबर से जननी एक्सप्रेस एंबुलेंस सेवा की शुरूआत की है। यह सेवा निशुल्क होगी। इस सेवा का फायदा 104 नम्बर डायल करके उठाया जा सकता है। यह टोल फ्री नम्बर है। जननी एक्सप्रेस सुरक्षित प्रसव हेतु राजकीय चिकित्सालयों में गर्भवती महिलाओं को पहुँचाएंगी तथा 30 दिन तक के नवजात बीमार शिशुओं को भी अस्पताल तक पहुँचाने का काम करेगी। इसके अलावा इलाज के बाद प्रसूताओं तथा नवजात शिशुओं को चिकित्सालय से घर तक भी पहुँचाया जाएगा।
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प्रस्तुति: कमल नेगी
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