श्रद्धांजलि : जयन्ती देवी

ओमप्रकाश भट्ट

जयन्ती देवी का जन्म आज से 82 साल पहले गोपेश्वर गाँव के सामान्य कृषक परिवार में श्रीमती जानकी देवी और श्री शेर सिंह जी के घर में हुआ था। आठ भाई बहिनों में एक श्रीमती जयन्ती देवी थीं इनकी शादी बारह साल की उम्र में पौड़ी जिले के व्यासघाट के समीप स्थित रड़ूवा गाँव के श्री नैनसिंह से हुई थी। जहाँ वह शादी के बाद केवल एक बार ही जा सकी। ससुराल जाते ही जयन्ती देवी के पति नौकरी के लिए मैदान में चले गए और वह वापस अपने मायके लौट आयी थी। शादी के कुछ ही माह के बाद बीमारी से इनके पति की मौत हो गई। गाँव में महिलाओं और समाज के काम में बढ़ चढ़ कर हिस्सेदारी कर उन्होंने बाल विधवा होने का गम कभी जाहिर होने नहीं दिया। हर समय हंसते रहने का उनका जज्बा इनकी बीमारी के बाद भी मृत्युपर्यन्त बना हुआ है। जो आज भी दूसरों के लिए मिसाल बनी है। वे निरंतर सामाजिक कार्यों में बढ़चढ़कर हिस्सा लेती रहीं।


सातवें दशक में जब उत्तराखण्ड खासकर चमोली जिले में सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविघियों में महिलाओं की भागीदारी बढ़ने की जो शुरूआत हुई तो उसका श्रेय श्रीमती जयन्ती देवी और उनकी जैसी महिलाओं को ही जाता है।
सातवे दशक के उत्तरार्ध में गोपेश्वर में स्व़ श्रीमती श्यामा देवी के नेतृत्व में महिलाओं ने नशाबंदी और वन आंदोलनों की जो अलख जगाई उसमें जयन्ती देवी बढ़-चढ़ कर आगे रही।
शराबबंदी के लिए स्थानीय स्तर पर महिलाओं और ग्रामीणों को संगठित करने का काम किया। इसके लिए वे अपने गाँव से बाहर गई अपितु जिले के अनेक गाँवों में भी महिला शक्ति को संगठित करने के लिए गई। 1969 में चमोली के शराबबंदी आंदोलन में प्रमुख भूमिका में रही। वे शराबबंदी के लिए टिहरी के अनेक गांवों में भी लोकशक्ति जागरण में जुटी टिहरी में शराबंबदी आंदोलन में जिसमें इस जिले से सैकड़ों महिलाये गई थी के साथ 1970 शराबबंदी के लिए जेल जाने वाले प्रमुख महिला आंदोलनकारियों में एक थी। जयन्ती देवी और उनकी साथियों की पहल से 1970 में इन जिलों में पूर्ण शराबबंदी लागू हुई थी।
शराबबंदी के साथ सामाजिक समरसता के कार्यो में भी ये लगातार भाग लेती रही।
चिपकों आंदोलन में स्व़ श्रीमती श्यामा देवी,पार्वती देवी, जूठूली देवी इन्द्रिरा देवी जेसी महिलाओं के साथ जयन्ती देवी कंधे से कंधा मिला कर साथ देती रही। इसमें अपनी निरंतर सक्रिय भागीदारी के साथ-साथ वह अन्य महिलाओं को भी प्रेरित करती रहीं।
मण्डल का आंदोलन हो या गोपेश्वर में वन आंदोलन के लिए प्रदर्शन सबमें जयन्ती देवी का योगदान बढ़-चढ़ कर रहा। चिपकों आंदोलन को सफल बनाने के लिए मण्डल के जंगल को छोड़ कर जब साईमन कम्पनी को फाटा-रामपुर के जंगलों में पेड़ अलाट किए गए तो दशोली ग्राम स्वराज्य मंडल के मंत्री श्री शिशुपाल सिंह कुंवर तथा श्री अनुसूया प्रसाद भट्ट के साथ श्रीमती जयन्ती देवी और उनकी पांच सहयोगी भी रामपुर पफाटा के जंगलों में पेड़ों को हलाल होने से बचाने के लिए डटे रहे। और तभी वापस लौटे जब वहां से पेड़ काटने का सौदा रद्द हुआ।
श्रीमती जयन्ती देवी का व्यक्तित्व एक आन्दोलनकारी का था और उनकी सोच में समग्रता थी इसलिये उन्होंने उत्तराखण्ड के सांस्कृतिक विकास की सोच को भी बल दिया।
सांस्कृतिकारोहर की रक्षा के लिए बदरीनाथ में चले बदरीनाथ मन्दिर बचाओं आंदोलन में भी इन्होंने बढ़चड़ कर भाग लिया और अंतत: नारायण दत्त तिवारी कमेटी की सिपफारिसों के बाद मन्दिर के स्वरूप को यथावत बनाये रखने में कामयाब रही।
आज जयन्ती देवी हमारे बीच नहीं है। बाल विधवा का जीवन गुजारने वाली जयन्ती देवी 82-83 वर्ष की उम्र में पक्षाघात से पीड़ित रहीं। अपने जीवन के अंतिम क्षणों में भी आंदोलन और पुराने दिनों की याद करते ही उनके चेहरे की रौनक लौट आती थी। वे कहती थीं दुबारा शक्ति मिली तो फिर से आंदोलन में जुटूंगी। उनके इस जज्बे को नमन।
Jayanti Devi

उत्तरा के फेसबुक पेज को लाइक करें : Uttara Mahila Patrika
पत्रिका की आर्थिक सहायता के लिये : यहाँ क्लिक करें