महिला हिंसा के मुद्दे
बसंती पाठक
एक लम्बे समय से हम लोग महिलाओं से संबंधित मुद्दों पर कार्यरत हैं। इस दौरान अनेक मामले संगठन के पास आये। महिला हिंसा का हर मामला अपने आप में विद्रूप होता है क्योंकि अगर किसी मासूम पर अमानवीयता होती है तो उसका पूरा व्यक्तित्व खंडित हो जाता है।
कई बार सोचते थे कि हम कितने मामले अंजाम तक पहुँचा सके और कितने नहीं, लेकिन अब लगता है यह सोच ठीक नहीं है। कई मुद्दे जो हमने उठाये और जिनमें अपराधी बच निकलने में कामयाब रहे, उन्हें हम अपनी असफलता नहीं कह सकते क्योंकि ग्रामीण क्षेत्र में महिला हिंसा का एक मामला उठने और पुलिस या न्यायालय तक पहुँचने से ही उसकी अनूगूँज दूर-दूर तक जाती है और महिला के अधिकारों और अस्मिता पर एक नई दृष्टि जाती है, जिसमें कहीं न कहीं समाज की जड़ता को झटका लगता है। जिन मामलों में हम अपराधी को सजा दिलाने में कामयाब रहे, हम उन्हें अपनी बड़ी सफलता कह सकें, ऐसा भी नहीं है। क्योंकि समाज तो सतह के नीचे वैसा का वैसा ही है। यह जमीन ही ऐसी है कि उसमें महिला हिंसा के बीज गहराई में पड़े हैं, जो जरा सा खाद-पानी मिले तो फूट कर बाहर आ जाते हैं। अत: यह संघर्ष एक सतत प्रक्रिया है।
महिला हिंसा या महिला उत्पीड़न की घटनायें जिस प्रकार आये दिन सामने आ रही हैं, उससे सरकारी महकमों की उदासीनता, महिला विषयक मुद्दों पर कार्यरत संस्थाओं और व्यापक रूप में समाज में व्याप्त पुरुषवादी मानसिकता सभी सवालों के घेरे में आते हैं और महिलावादी मुद्दों को निपटाने के लिये नई सोच की जरूरत की ओर इशारा तो करते ही हैं।
जिन इलाकों में ग्रामीण महिलाओं के बीच लगातार काम हो रहा है, बेशक वहाँ महिलायें पहले से कहीं ज्यादा जागरूक और संगठित हैं। वे अपनी बात बहुत कायदे से रखती हैं और तर्कसंगत तरीके से बोलती हैं मगर फिर भी समाज महिलाओं की बराबरी की बात एक चुटकुले की तरह लेता है। समाज महिलाओं को कलैण्डर या मूर्ति में देवी मान कर पूज सकता है मगर दिन-रात की दुनिया में एकदम उलट व्यवहार करने से नहीं चूकता।
कुछ घटनाओं के माध्यम से इन बातों की व्याख्या की जा सकती है।
पहली घटना रामगढ़ ब्लॉक के भटेलिया क्षेत्र की है। एक लड़की- जिसका नाम कुछ भी हो सकता है (राधा, गीता, मीता, सीमा, कमला) से कृष्णा नाम का दुकानदार शारीरिक संबंध बना लेता है और यह चलता रहता है। तभी पता लगता है कि लड़की गर्भवती हो गयी है। कृष्णा शादीशुदा है। वह लड़की का गर्भपात करवा देता है। लड़की उससे जब कहती है कि तुम तो कहते थे कि तुम मुझसे शादी करोगे तो गर्भपात क्यों करवाया तो कृष्णा का जवाब होता है ‘तू मुझे लड़का दे दे, मैं तुझसे शादी कर लूंगा।’
मगर लड़की कुछ माह बाद फिर गर्भवती हो जाती है कृष्णा उसे बहला फुसलाकर हल्द्वानी ले जाकर उसे एक अन्य महिला किरन को सौंप देता है जो उसका गर्भपात करवा देती है। कृष्णा किरन से कहता है कि मैं इस लड़की से तंग आ गया हूँ तो किरन उसे दिल्ली भिजवा कर अनैतिक व्यापार में धकेलने का षडयंत्र रचती है। लड़की को इसकी भनक लग जाती है और वह भागकर अपने गांव आ जाती है और अपने हक के लिये संघर्ष करना चाहती है।
संघर्ष की दिशा में पहले कदम के रूप में पुलिस थाने जाकर जहाँ वह कृष्णा के खिलाफ एफ़आई़आऱ दर्ज कराना चाहती है। मगर यहीं पर उसे अहसास होता है कि उसकी राह काँटों भरी है। पुलिस वाले उसको हल्के में लेते हैं और कहते हैं, जाओ महिला समाख्या वालों के पास …. ऐसे मामले वे ही निपटाते हैं।
महिला समाख्या के कार्यकर्ता उसे नैनीताल लाते हैं। जिलाधिकारी नैनीताल मामले को समझकर पूरा सहयोग करती हैं। वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक अपने विभाग को मुस्तैदी से कार्य करने को कहते हैं और नतीजा भी सामने आता है। कृष्णा गिरफ्तार हो जाता है। किरन भी एक दिन बाद हिरासत में ले ली जाती है।
मगर इसके बाद असली खेल शुरू होता है लड़की पर भावनात्मक दबाव बनाने का, कि देख ऐसा मत कर हमारा घर टूट जायेगा। बात नहीं बनने पर उसे धमकी दी जाती है कि अगर वह नहीं मानी तो उसके घरवालों को मार डाला जायेगा।
अन्तत: लड़की को नारी निकेतन भेज दिया गया। घटना ने एक दूसरा मोड़ यह लिया कि लड़की की माँ ने इस घटना से क्षुब्ध होकर, अपनी लाचार स्थिति के कारण या सामाजिक दबाव में यह लिखकर दे दिया कि इस लड़की से उसका कोई संबंध नहीं रहा। लड़की का पिता है नहीं। इसलिये वह और बेसहारा हो गयी।
अब लड़की पर दबाव बढ़ने लगे कि वह समझौता करे पर वह समझौता न करने की बात पर अड़ी रही। अपराधी तीन महीने से जेल में पड़ा था तो उसके परिवार की छटपटाहट और बढ़ी। कुछ समय पहले सुनने में आया कि लड़की ने दो लाख रुपयों में समझौता कर लिया है। क्या लड़की कायर, दगाबाज और मौकापरस्त है। शायद नहीं, हमारी न्याय व्यवस्था व पुलिस प्रशासन अपराध के शिकार व्यक्ति में सुरक्षा का भाव तो नहीं जगाता, उल्टे इसकी थकाऊ प्रक्रियायें व्यक्ति को तोड़ कर रख देती हैं। तब इस तरह के समझौते होते हैं।
लड़की के ऊपर गाँव के रिश्ते-नातेदारों की ओर से लगातार दबाव पड़ रहे थे कि बात खत्म करे। एक गरीब लड़की जिसकी माँ मजदूरी करती है और जिसके दो छोटे-छोटे भाई हैं, वह इस बेरहम व्यवस्था के खिलाफ कब तक और कहाँ तक लड़े। 20 नवम्बर को जब लड़की अदालत पहुँचती है तो उसके उस दिन के बयान और पूर्व में धारा 164 के तहत मजिस्ट्रेट के सम्मुख दर्ज कराये बयानों में कोई फर्क नहीं होता मगर वह कहती है कि वह समझौता करना चाहती है क्योंकि वह अपने परिवार की सुरक्षा को लेकर आंशकित है।
issues of violence against women
दूसरी घटना नैनीताल जिले के भीड़ापानी क्षेत्र की है जहाँ 11 वर्ष की नाबालिग लड़की से बलात्कार हुआ। इस बच्ची की माँ मजदूरी करके अपना परिवार चलाती है। माँ के घर आने तक वह बिटिया छोटे-मोटे काम निपटा देती थी, पर आज वह उठने की स्थिति में नहीं थी। माँ ने बार-बार पूछा कि क्या हुआ, किसी ने मारा-पीटा तो नहीं तो बच्ची ने माँ के आगे रोते-रोते सारी घटना बयान कर दी। बलात्कारी गिरफ्तार हुआ। उसे हिरासत में भेज दिया गया। इस गांव में महिला संगठन सक्रिय हैं इसलिये महिलाओं ने तय किया और दबाव बनाया कि गांव का कोई भी व्यक्ति इस अपराधी की जमानत नहीं देगा। जमानत आज तक भी नहीं हुई है।
अपराधी व्यक्ति का भतीजा बच्ची की माँ को डराने धमकाने लगा और समझौते के लिए दबाव बनाने लगा मगर जागरूक महिलाओं ने उसके खिलाफ एफ़आई़आऱ दर्ज कराई और उससे सरेआम माफी मंगवाई।
बच्ची की हालत बिगड़ने से उसे हल्द्वानी अस्पताल में भर्ती कराया गया, मगर उसकी शारीरिक, मानसिक तकलीफ बढ़ती गयी। थोड़ी राहत होने पर उसे रामनगर के पास महिला शिक्षण केन्द्र भेज दिया गया। जहाँ उसकी उम्र की अन्य बच्चियाँ पढ़ाई कर रही हैं। सोचा, उसका मन लगेगा, माहौल बदलने से वह बेहतर महसूस करेगी मगर बच्ची के पेट में दर्द, खून आना चलता रहा। उसे कई बार दौरे पड़ने लगे। बेहोश होने पर वह अपने साथ हुई घटना के समय की हरकतें करने लगती। बाद में डॉ. सुशीला तिवारी मेडिकल कालेज के मनोचिकित्सक की दवा से उसे थोड़ा आराम हुआ। माँ पर अनेक दबाव पड़ रहे हैं। बयानों का सिलसिला जारी है। अपराधी अभी जेल में है।
तीसरा मामला नैनीताल जिले के रामगढ़ ब्लॉक के दुबखड़ गाँव का है। यहाँ एक परिवार है, जिसमें पति-पत्नी अलग-अलग रहते हैं। बच्चे माँ के साथ रहते हैं। माँ थोड़ी खेतीबाड़ी और मजदूरी कर घर चलाती है। बाप निकम्मा और गिरे चरित्र का व्यक्ति है। वह कभी कभार अपने बच्चों से मिलने आता है।
एक दिन वह घर आया और अपनी 14-15 साल की बड़ी बच्ची से खूब अच्छी तरह बोला कि बेटा तुझे नैनीताल घुमाकर लाता हूँ। तुझे चीज दिलाऊँगा वगैरा-वगैरा और बच्ची को लेकर चला गया। माँ जब घर लौटी तो उसे भनक लगी कि उसका पति लड़की को बेचने की तैयारी कर रहा है। उसने महिला समाख्या कार्यकर्ताओं से बात की। ये सब लोग सक्रिय हो गये और लड़की के बाप को भवाली में एक कमरे में, जहाँ उसने पहली रात तीन व्यक्तियों के साथ उसे ठहराया था, पकड़ लिया। लड़की ने बताया कि रात में इन लोगों ने शराब पी और उसके साथ छेड़छाड़ की। लड़की के चेहरे पर इसके सबूत भी मौजूद थे। पुलिस बुलाई गई, तीनों व्यक्ति गिरफ्तार हो गये और मामला अदालत में पहुँच गया।
कुछ समय बाद लड़की के परिवार के साथ-साथ समाख्या कार्यकर्ताओं पर दबाव पड़ने लगा कि मामले को रफादफा करो। अपराधियों ने पैसे के दम पर प्रभावशाली वकील किये और समाज के कुछ रसूखदार लोगों से मध्यस्थता करवाने में जोर लगा दिया। पता लगा कि मामले में जेल गया एक व्यक्ति नापतौल विभाग में अधिकारी है। उसकी नौकरी खतरे में है। उसने अपना पूरा जोर लगाना शुरू कर दिया। नेताओं-छुटभय्यों के फोन आने लगे। जिसकी बच्ची को लेकर यह सारा प्रकरण चला, उस गरीब महिला पर कैसे-कैसे दबाव डलवाये गये होंगे, सोचा ही जा सकता है।
आखिर एक दिन हमें खबर मिली कि लड़की और उसकी माँ बयान दर्ज कराने कोर्ट आने वाली हैं और विरोधी पक्ष के वकील अन्य वकीलों के साथ मिलकर उनको घेरने वाले हैं। हमारे कार्यकर्ता पूरी तरह तैयारी से कोर्ट गये। समझौता हो इस पर हमें कोई आपत्ति नहीं थी मगर यह एकतरफा ना हो इस पर हम नजर रख रहे थे। विरोधी पक्ष के वकील और उनके कुछ मित्र वकील हमारे संगठन की मौजूदगी से चिढ़ गये और हमारे कार्यकर्ताओं का उपहास करने लगे या ऊलजुलूल बोलकर उन्हें हताश करने की कोशिश में लग गये। इस बीच समझौता पत्र तैयार कर लिया गया। वकीलों ने लड़की की माँ से कहा कि वह बयान दे कि मामला कुछ नहीं था। महिला समाख्या ने इसे तूल दिया है। पर धन्य है वह गरीब महिला जिसने मजबूती से कहा कि मैं आपकी और बातें मान सकती हूँ मगर यह बात नहीं मान सकती कि मुझे समाख्या ने भड़काया। उल्टे ये तो वे लोग हैं, जिन्होंने मेरी कदम-कदम पर मदद की।
लड़की की माँ के बयान दर्ज हुए और समझौता नहीं हो पाया। हालांकि समझौते के लिये फिर जोर शोर से विरोधी पक्ष सक्रिय हो गया है। इस बीच हमारी कार्यकर्ता पुष्पा पानू की गवाही थी तो विरोधी पक्ष के मुख्य वकील ने कोर्ट के बाहर उससे कहा- लगता है आप हमारी दीवाली खराब कर के रहेंगी।‘‘
issues of violence against women
हर साल अनेकानेक मुद्दे हमारे संगठनों तक पहुँचते हैं। इन मुद्दों में महिलाओं के साथ अलग-अलग किस्म के अपराध सामने आते हैं। पति द्वारा मारपीट, सास-ससुर द्वारा प्रताड़ना, शारीरिक शोषण, लड़कियों को बहला-फुसला कर भगा ले जाना, बेच देना आदि-आदि। इन सब मामलों में संगठन से जुड़ी महिलायें पूरी सामथ्र्य से संघर्ष करती हैं कि पीड़िता को न्याय मिले मगर कुछ सामान्य नकारात्मक पहलू जो हमारे सामने आते है, वे इस प्रकार हैं-
- यह माना जाता है कि महिला को अपनी सुरक्षा पर ध्यान देना चाहिये। महिलाओं को पुरुषों से ज्यादा मेल-मिलाप नहीं रखना चाहिये वरना नतीजा भुगतना पड़ेगा क्योंकि पुरुष तो होते ही ऐसे हैं।
- लड़कियों को अपने चाल-चलन पर ध्यान देना चाहिये। उन्हें समय पर घर आना चाहिये।
- माना कि पुरुष ने ‘गलती‘ कर भी दी तो अब थाना पुलिस करने से क्या लाभ? खामखां और झंझट और बेइज्जती।
अस्पताल में चिकित्साकर्मी, थाने में पुलिस और कोर्ट में विपक्ष के वकील अमर्यादित ढंग से पेश आते हैं।
हिंसा की शिकार महिला या बच्ची को सहानुभूति, सम्मान व सहयोग मिलना मुश्किल हो जाता है जबकि उसकी कोई गलती नहीं होती।
जिम कार्बेट ने लिखा है कि जो लोग जंगलराज या जंगल कानून जैसे शब्दों को अराजकता व अमानवीयता के पर्याय के रूप में प्रयोग करते हैं, उन्हें जंगल जा कर वहाँ की व्यवस्था को देखना चाहिये। वहाँ हर चीज तय होती है। जिस फूल को जब खिलना होता है, तभी खिलता है, न उससे पहले न उससे बाद। जानवरों का व्यवहार तय है। जो मांसाहारी है, कुछ भी हो जाय, वे शाकाहारी नहीं बनेंगे और न ही शाकाहारी जानवर शिकार करने लगेंगे, बगैरा-बगैरा। गड़बड़ या अजीबोगरीब व्यवहार अर्धसभ्य मानव समाजों में ही नजर आता है, जंगल में नहीं।
अब यह कहना कि पुरुष महिला से कुछ भी गलत व्यवहार कर सकते हैं। इसलिये महिलाओं को खुद सतर्क रहना चाहिये, हमारी सभ्यता का मजाक है। अगर पुरुष का यह व्यवहार स्वाभाविक है तो फिर चोर का चोरी करना, डाकू का डकैती डालना, हत्यारे का खून करना, जेब कतरे के द्वारा जेब काटा जाना, शराबी द्वारा हंगामा करना सब स्वाभाविक कार्य कहे जायेंगे। लेकिन ऐसा नहीं है। अगर हम चोरी, डकैती, हत्या रोकने के लिये कानून की दुहाई देते हैं तो फिर महिला हिंसा अपवाद नहीं। आज अमेरिका, यूरोप ही नहीं, एशिया के कुछ देश जैसे सिंगापुर, जापान ने भी अपने समाज में कड़ी कानून व्यवस्था से अपराधों पर काफी हद तक काबू कर लिया है तो क्या हम अपनी पुलिस व न्याय व्यवस्था में सुधार कर ऐसा कार्य नहीं कर सकते। अगर नहीं तो हमें सभ्य सुसंस्कृत कहलाने का हक नहीं।
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