गरीबी बन रही अभिशाप
केशव भट्ट
बाईस वर्ष की सुनयना को जब पता लगा कि उसकी शादी होने वाली है तो वह बहुत खुश हुई। उसने अपनी सहेलियों को भी यह बात बताई। सभी उसे नर्ई जिंदगी के सुनहरे सपने दिखाने लगे और सुनयना उन सपनों को बुनने लगी। एक दिन कुछ लोग घर में आए। उसकी माँ ने बताया कि ये वर पक्ष से हैं। उनमें से एक अधेड़ की ओर इशारा कर माँ ने बेटी को बताया कि वह उसका पति है। ये हरियाणा से हैं। इनकी माँ की तबियत काफी खराब है इसलिए शादी के लिए बारात लाने-ले जाने के लिए इनके पास वक्त की कमी है। कल मंदिर में शादी होगी।

सुनयना पर तो जैसे बिजली सी गिरी। उसने सोचा भी नहीं था कि उसके थोड़े से सपनों का यह होगा। माँ को शादी के लिए मना कर वह रोती हुवी छोटी सी रसोई में जा सुबकने लगी। रोने के लिए उसका अपना कमरा भी तो नहीं था। एक छोटे से कमरे में माँ-बाप और तीन बहनों के साथ बमुश्किल गुजर-बसर चल रही थी। पिता गोपाल मजदूरी कर गृहस्थी की गाड़ी को धकेलता था। लड़के की चाह में चार लड़कियों का वह बाप बन चुका था। गाँव में कुछ होता नहीं था। एक नर्ई शुरूआत करने के लिए वह गाँव में खंडहर हो चुके मकान को छोड़ नगर में एक कमरे के किराए के मकान में रहकर मजदूरी करने लगा। उसे विश्वास था कि उसकी किस्मत भी जरूर बदलेगी। लेकिन उस अकेला कमाने वाले को मंहगाई की मार ने कभी उठने ही नहीं दिया। बड़ी होती बच्चियों को देख असमय ही वह बूढ़ा हो गया। गोपाल के दूर के एक परिचित वालों ने उसकी बड़ी लड़की की शादी की बात चलाई तो गोपाल निराश हो उठा कि बिटिया की शादी के लिए कैसे पैंसों का जुगाड़ होगा। संबंधी ने उसे बताया कि पैंसो का खर्चा तो कुछ होना ही नहीं है बल्कि उसे भी कुछ ठीक-ठाक रकम मिलेगी। उसने भरोसा दिलाया कि उसकी लड़की एक अच्छे घर-परिवार में जाएगी। लेकिन वह खुश रहेगी। लड़के वहाँ बहुत हैं लेकिन लड़कियाँ कम होने से शादी के लिए वे यहाँ आए हैं। पहले भी तो कई लड़कियाँ बाहर ही ब्याही हैं।
संबंधी की बातों में आकर गोपाल खुशी से लड़की की शादी के लिए तैयार हो गया। दूसरी सुबह मंदिर में घंटे भर में शादी की रस्म अदा कर लड़के वाले लड़की को अपने साथ ले गए। गोपाल की बिटिया फिर कभी अपने मायके नहीं आ सकी। गोपाल ने इसे ही नियति मान लिया।
गोपाल की यह कहानी कई घरों की है। वर्षों बाद कुछ लड़कियाँ मायके आती भी हैं तो हरियाणा या अन्य जगहों की बोली-भाषा व संस्कृति को लेकर। कुछ अन्य मामलों में लड़कियाँ ही इनके जाल में फँस कर घर छोड़ने का दुस्साहसिक कदम भी उठा लेती हैं।
पहाड़ों से मैदान की ओर वीमैन ट्रैफिकिंग के इस काले धंधे में पहाड़ की गरीबी तो एक महत्वपूर्ण पहलू है ही साथ ही स्थानीय दलालों की सक्रियता के साथ ही एक और जो तथ्य सामने आया है उसके मुताबिक हरियाणा, आगरा, राजस्थान आदि स्थानों में खान व ट्रैफिकिंग कामगार परिवारों द्वारा अपनी आने वाली पीढ़ी के नस्ल सुधार के मिथक के चलते पर्वतीय युवतियों की खरीद फरोख्त कर उनसे जबरन शादी रचा संतति बढ़ायी जाती है। गरीबी की मार से पहले ही दबे ऐसे परिवार कुछ धनराशि हासिल कर संबन्धों को भूल जाते हैं और युवती वहीं की होकर रह जाती है।
बहरहाल उत्तराखण्ड में शादी के नाम पर लड़कियों की पर्दे के पीछे से खरीद-फरोख्त जारी है। इस तरह के कई मामलों में सरकारें भी महिला आयोग की शिकायतों को एक तरह से नजरअंदाज ही करते आई हैं। इसके लिए आयोग को जिले स्तर से ही अपनी सच्ची व स्वस्थ पहल करनी होगी तभी इस तरह के अपराधों में अंकुश लग पाएगा।
Poverty is becoming a curse
उत्तरा के फेसबुक पेज को लाइक करें : Uttara Mahila Patrika
पत्रिका की आर्थिक सहायता के लिये : यहाँ क्लिक करें