कविता जो अंधी कर दी गई
प्रभात उप्रेती
तेरा साथ तो मुझे क्या कमी है अंधेरों से रोशनी मिल रही है ….
ये माना आँखों में नमी है जिन्दगी बेबसी बन गई है
तेरा साथ तो मुझे क्या कमी है अंधेरों से रोशनी मिल रही है़….।
इतनी प्यारी वह आवाज थी जैसे कोई पाँच साल की बच्ची अपनी मासूम आवाज में शहद से मीठे स्वर में गा रही हो। सामने न हो तो इस 23 साल की युवती के एक बच्ची होने का एहसास हो। नकाब से अपना मुँह ढके आँखों में चश्मा लगाये उसकी नाक व चेहरे की आकृति ऐसी लग रही थी जैसे प्लास्टिक की किसी सुंदर आकृति को गला दिया गया हो। वह हर बात पर बच्चों की तरह शरमा रही थी। आऱटी़आई एक्टिविस्ट गुरविन्दर चड्डा जी के घर में जब वह गा रही थी तो उनकी पत्नी, बेटी और पी जोशी इस लड़की की जिन्दगी के प्रति आस्था से लबरेज हो गये थे। उसने माहौल ऐसा बना डाला था कि जैसे आँखों को खो देने और जिन्दगी के दाँव में लग जाने का हादसा भी एक खेल का पार्ट हो। गीत को सार्थक करती वह कोमल जीवंत गुड़िया लग रही थी।
रानीखेत के बग्वाली पोखर की रहने वाली यह युवती अपनी मासूमियत में अपने मुँह की विकृति और अंधेपन के बावजूद बातचीत में जब भी मौका मिल रहा था अपने भीतर की खुशी को जाहिर करने में कोई कमी नहीं कर रही थी। लग नहीं रहा था कि उसके ऊपर इतना बड़ा हादसा गुजर गया।
कविता बिष्ट पहाड़ की एक सीधी साधी मासूम युवती अपनी बीस की उम्र में नोयडा में हार्नेस बनाने वाली एक लिमिटेड कम्पनी में अपने परिवार की र्आिथक तंगी के चलते काम करती थी। उसकी गाँव की बुआ ने उसे कपड़े सीना और ब्यूटी पार्लर का काम सिखाया था। बुआ के बच्चे नहीं थे। सब कुछ ठीक ही चल रहा था कि एकाएक़ एक दिन वह सुबह साढे पाँच बजे रास्ते में जा रही थी तभी नोयडा की बदनाम बस्ती खोडा की तरफ से एक मोटर साइकिल आती है उसकी पीछे की सीट में बैठा एक युवक तेजी से काला तेजाब उस पर फेंकता है और भाग जाता है। काला तेजाब इतना भयंकर है कि कविता का आर्तनाद सारे वातावरण में फैल जाता है। सारे नोयडा में उसे किसी अस्पताल ने नहीं रक्खा। वह दर्द से चीखती रही। पर सहायता के लिए कोई नहीं आया। हादसा साढे़ पाँच बजे सुबह हुआ और दिनभर वह तड़फती रही। वह दोपहर ढाई बजे दिल्ली के राम मनोहर लोहिया अस्पताल में भर्ती हो पाई। उसे इतना दर्द था कि वह कह रही थी कि मुझे गोली मार दो, मुझे मार दो। तेजाब से उसका मुँह ही नहीं जला, नाक गल गयी, मुँह बंद हो गया और आँखों की रोशनी चली गई। पुतलियाँ अंदर चिपक गयीं। तेजाब फेंकने वाला युवक गिरफ्तार तो हुआ पर दो दिन में ही छोड़ दिया गया।

2009 में रानीखेत से आयी कविता उस इलाके को समझती ही नहीं थी। बाहर निकलना ही फैक्ट्री से बहुत कम होता था। कम्पनी सिनेमा घर के पीछे रहने वाला जगदीश उसे आते-जाते देखता रहता, रिमार्क कसता पर इस अबोध बालिका को उस युवक के कसते शिकंजे की भयावहता का कोई ज्ञान नहीं था। एक दिन वह ऐसे ही आ रही थी कि उसने शादी का प्रस्ताव रखते हुए उसका हाथ पकड़ा। कविता ने जोर से उसे थप्पड़ रसीद कर दिया। भीड़ भी जमा हुई। लड़का चला गया धमकी के साथ। धमकी वही पुरानी सामंतवादी जो पुरुष देते हैं- जिस खूबसूरती पर इतना घमंड तुझे है, उसे देखूंगा।
kavita that was blinded
उसने धमकी को ऐसे ही समझा। पर उस सुबह उसने वह हादसा करके उसके जीवन में अंधेरा कर दिया। पिता रोडवेज में ड्राइवर थे। किसी तरह नोयडा पहुँचे। एफ.आई.आर. लिखवायी तो धमकी मिली कि समझौता कर लो नहीं तो नोयडा के ड्रमों में और भी ऐसिड का जखीरा पड़ा है। पिता ने समझौता कर लिया। एमझौता मतलब एफ.आई.आर. वापस ले लिया। वह अंधी हो गयी, चेहरा विकृत हो गया। छठे दिन उसे होश आया था। कंम्पनियाँ अपने आदमियों का शोषण करने में बदनाम होती हैं पर इस कम्पनी ने उसकी अच्छी मदद की। रंजन सर, अमित सर ने खूब मदद की। मुँह खाने के लिए भी नहीं खुल रहा था, उसे आपरेशन से खोला गया। उस आपरेशन के लिए एक लाख रुपये भी दिये और आगे भी मदद के लिए तैयार है। उसके इलाज पर पैसा भी लगवाया, उसकी बहन को भी नौकरी देने का अश्वासन दिया और यह भी कहा जब भी उसकी दृष्टि आ जायेगी, उसके लिए कम्पनी के दरवाजे खुले हैं।
उसकी आँखों के बाल में रक्त जमा हो गया है, पुतलियाँ सिकुड़ गयी हैं। चेहरा विकृत हो गया है। जाने-माने प्लास्टिक सर्जरी विषेषज्ञ डाक्टर जैकी ने आपरेशन किया है जिसके कारण उसकी नाक ठीक हुई है और वह खाने के लिए अपना मुंह खोल सकती है।
अब तक उसने देहरादून जाकर ब्रेल सीख ली है। क्या-क्या किताब ब्रेल में पढ़ी है पूछने पर तो कहती है रामायण पढ़ी है और साथ में ‘जीवन में जीने के तरीके’ पढ़ी है। एक व्यंगय माहौल में लटक जाता है। वह फिर से आँख खोल कर जीना चाहती है़…। उसके गाने की रिकार्डिग कर दी है तो वह शरमा रही है।
वह कहती है कि पिता पूरे दो महीने उसके चक्कर में रहे तो विभाग ने उन्हें नौकरी से अलग कर दिया। जब वह पैदा हुई थी तब उनकी नौकरी लगी थी। जब वह अंधी हुई तो उनकी नौकरी छूट गयी। वह काठगोदाम के जी.एम. के पास भी गये और पापा ने कहा कि मैं लड़की को आपको दिखलाता हूँ तो उस पर वह कहने लगे- उसे देख कर मैं क्या करूंगा। मेरे देखने से वह ठीक तो नहीं हो जायेगी। रोडवेज वालों ने उन पर कोई चार्ज भी नहीं लगाया है और न उनका बकाया देय दिया है।
उसकी माँ नदी से रेता निकाल कर जीवन यापन करती है। आजकल नदी बढ़ी है तो वह भी बंद है। बहन हाईस्कूल कर रही है तो भाई दिल्ली में किसी टूरिस्ट कंपनी में खाने-पीने की शर्त पर बिना किसी तनख्वाह के काम कर रहा है। दीदी का देहांत काले पीलिया के इंफेक्शन से हो गया है।
वह खुश लग रही है। वह अंग्रेजी शब्दों का भी अच्छा इस्तेमाल कर रही है। अपने गाने की तारीफ सुन वह खुश हो रही है कह रही है जब उसने मीरा का भजन आर्मी वालों के सामने सुनाया तो उसे 200 रुपये ईनाम मिले। वह बहुत मासूम है। अंधेरे के बावजूद भी लग रहा है जैसे वह देख रही है- गहरे अंधेरे में रोशनी। तभी चड्डा जी डी.एम. निधिमणि त्रिपाठी जी से फोन मिलाते हैं तो वह हाथ से इशारे कर ना ना कह कर बात न करने के लिए कहती है। फिर जबरदस्ती फोन देने पर वह सिद्धस्थ विश्वास पूर्व ढंग से बात करती है।
उसकी मासूमियत सारे कमरे में औरों को दे रही है। उसको बोलने में अपनी बात रखने में विश्वास पूर्ण कुशलता है। वह हिंदी कुमाउनी अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग जिस तरह से कर रही है, उससे लगता नहीं कि हाईस्कूल भी पास वह नहीं कर पायी। वह वाकई प्रतिभाशाली है।
वह कहती है डाक्टर कहते हैं कि उसकी 20 प्रतिशत तक रोशनी आ सकती है पर पाँच लाख रुपये लगेंगे। नेपाल-चेन्नई में बहुत अच्छे हास्पिटल हैं। देखें क्या होता है।
उसने अपना मुँह रुमाल से बाँधा है विकृत हुए चेहरे से भी एक आभा विश्वास और दम का जो माहौल रौशन हो रहा है वह देखने लायक है। इस दुबली-पतली युवती के भोलेपन और जीने की आस में पुरुष मानसिकता का तेजाब माहौल को विकृत कर रहा है। पाकिस्तानी फिल्म एसिड की डायरेक्टर के कलैक्शन में महिलाओं पर हुए तेजाब हमले में एक अंजान रिकार्ड और जुड़ गया है। इन पुरुषों का कौन सा अहं तेजाब होता है जो नाजुक सौन्दर्य को निर्दयता से घोल देता है। इस हिसाब से फैज़ का शेर कुछ परिवर्तन के साथ सारी महिलाओं के लिए सुरक्षित होना चाहिए कि रस्म है कि कोई सर उठा के मुँह दिखा के न चले! साथ चलते आऱपी ज़ोशी जी कहते हैं कि किसी की अस्वीकृति पर क्या किसी दूसरे को अधिकार मिल जाता है कि वह उसकी अस्वीकृति को अपना इगो बना डाले! यह इण्डियन कल्चर है! अब मैं क्या कहूँ यह तो सदियों से चला आ रहा फन मारता सवाल है।
kavita that was blinded
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