अगले जनम मोहे बिटिया न कीजो
कमल नेगी
बहुत दिनों से सिम्मी की कुछ खबर नहीं थी। एक दिन जब उसे फोन किया तो दोनों नम्बर स्विच ऑफ थे। तब से फोन लगातार बन्द हैं और एक अनजाने भय से मन अशांत है। आखिर क्यों उसके फोन बन्द हैं? क्या वह किसी मुसीबत में है? आज जब यह सब सोच रही हूँ तो कई प्रश्न मन में आते हैं। आखिर क्या कसूर था उस छोटी सी नौ साल की लड़की का, जिसकी माँ की मृत्यु के बाद कोई भी उसकी जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं था। (देखें उत्तरा- जनवरी-मार्च 2007 आखिर सिम्मी कहाँ जाये?) पिता दूसरी शादी कर गाँव चले गये। उम्र में उससे उन्नीस साल बड़ी बहन को अपने ही भविष्य की चिन्ता ज्यादा थी। वह भी शादी करके चली गई, छोटी बहन को भाई की जिम्मेदारी में छोड़कर। भाई ने भी शादी की तो भाभी को वह खटकने लगी। उसे लगता कि पिता के होते हुए वे लोग क्यों उसकी जिम्मेदारी उठायें। इसी कारण उसे भी गाँव भेज दिया गया। सौतेली माँ भला उसे क्यों सहती। उसने भी सिम्मी को रंग दिखाने शुरू किये तो उसने अपना घर छोड़कर अपने से दोगुनी उम्र के व्यक्ति से शादी कर ली। पर शायद सिम्मी के भाग्य में और भटकना लिखा था। पति की मृत्यु हो गई और अब वह फिर अकेली हो गई थी। किसी तरह वह अपने एक रिश्तेदार के घर पहुँची। पर आखिर कब तक वह वहाँ रह सकती थी? जब अपने पिता, भाई और बहिन ने साथ नहीं दिया तो उनसे अपेक्षा भी नहीं की जा सकती थी। किसी तरह उन्होंने गुजरात के एक व्यक्ति से सिम्मी की शादी कर दी। उत्तराखण्ड की बेटियों का सुदूर राज्यों में विवाह करने का प्रचलन तो अतीत से ही है पर अब जिस तरह उन्हें खरीदकर दूसरे राज्यों में ले जाया जा रहा है और अवैध धन्धे करने को मजबूर किया जा रहा है, वह निश्चित रूप से औरतों के लिये बेहद तकलीफदेह है। दूसरे राज्यों में जहाँ उनके लिये हर रास्ता, हर व्यक्ति अजनबी है, वह किसी से अपनी तकलीफ के बारे में बात भी नहीं कर सकती और यातनाएँ झेलने को अभिशप्त है। तब स्त्री का स्त्री होना सबसे बड़ा गुनाह लगता है।
गुजरात में स्त्री-पुरुष अनुपात में काफी अन्तर है, इसीलिये वहाँ भी दुल्हनों को खरीदने का चलन काफी है। गुजरात की ही एक महिला जो उत्तराखण्ड में रहती है, उसने सिम्मी की स्थितियों को देखकर यह शादी करवाई थी। उसे झूठ कहा गया था कि लड़का रेलवे में नौकरी करता है तथा सम्पन्न परिवार का है। वास्तविकता यह थी कि लड़का कुछ काम नहीं करता था। पूरा परिवार कर्ज में डूबा था। उनकी मंशा यह थी कि वे मातृहीन, रिश्तेदारों से विहीन इस लड़की को अपनी मर्जी से चलायेंगे। उन्हें पता था कि इसकी खोज-खबर कोई नहीं लेगा। अत: वे अपनी मनमानी कर लेंगे। परन्तु उनकी मनमानी सिम्मी ने नहीं चलने दी। सिम्मी ने नौकरी करनी चाही तो उसे आसानी से नौकरी मिल गई परन्तु पति उसे नौकरी नहीं करने देता। वह जहाँ भी जाती, वह वहाँ पहुँचकर गाली गलौच करता और कर्मचारियों से झगड़ता। नतीजतन उसकी नौकरी छूट जाती। र्आिथक तंगी से जूझ रही सिम्मी निरन्तर प्रयास करती रही। घर में रोज-रोज झगड़े होते। पति यही चाहता था कि सिम्मी इतनी मजबूर हो जाय कि उसके इशारे पर चलने को तैयार हो जाय। वह अक्सर लोगों को घर में लाता। सिम्मी से कहता कि ये मेरे दोस्त हैं। इन्हें ‘इन्टरटेन’ करो। सिम्मी प्रतिरोध करती तो निर्ममता से उसकी पिटाई होती पर सिम्मी ने भी ठान लिया था कि कुछ भी हो जाये, वह अपने पति और ससुराल वालों के मनसूबे पूरे नहीं करेगी। जिन्दगी नर्क बन चुकी थी। कहीं से कोई आशा नहीं थी। पति की पिटाई से पस्त सिम्मी महिला संगठनों के पास भी गई परन्तु वहाँ से भी निराशा ही हाथ आती। संगठन के लोग दोनों की बात सुनते। पति को दो-चार डाँट लगाते और सिम्मी को समझौते के लिये बाध्य करते। उसका दूसरे राज्य का होना भी शायद उसके लिये भारी पड़ता। लोगों की सहानुभूति अक्सर उसके पति की तरफ होती। एक अकेली लड़की जिसके अपनों ने उससे सारे रिश्ते तोड़ लिये थे और जो परिवार के होते हुए भी अपनों के लिये बेगानी थी, एक ऐसी स्थिति में पहुँच गई थी जहाँ से उसे कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था। एक ही बन्धन था जो उसे बाँध रहा था और वह था उसका बेटा। अपने बेटे को अच्छी शिक्षा देने का सपना पूरा हो पाना भी मुमकिन नहीं लग रहा था।
Don’t make me a daughter in my next life
आज जब उससे कोई सम्पर्क नहीं हो पा रहा है तो कई सवाल मन में आ रहे हैं। पहला सवाल तो यही कि क्या स्त्री के रूप में जन्म लेना अभिशाप है? सोचती हूँ, यदि सिम्मी की जगह बेटा होता तो क्या उसकी स्थिति भी सिम्मी जैसी होती? क्या माँ की मृत्यु के बाद उसे इस तरह परिवार से अलग कर दिया जाता? और अगर अलग कर भी दिया जाता तो क्या उसकी स्थिति सिम्मी की तरह ही होती? एक सवाल यह भी है कि घर में सबसे छोटी बेटी की जिम्मेदारी परिवार के लोग क्यों एक-दूसरे पर डालने की कोशिश करते रहे? किसी भी समाज की सबसे अहम इकाई परिवार है और पारिवारिक रिश्तों का मजबूत होना परिवार के लोगों को बल प्रदान करता है। क्या पारिवारिक रिश्तों का कमजोर होना सिम्मी के लिए घातक बना? सिम्मी का अपने पति के गलत इरादों का प्रतिरोध भी उसके पति के पुरुष वर्चस्व पर एक चोट थी। क्या इसके लिये सिम्मी दोषी थी? यहाँ पर महिला संगठनों की भूमिका पर भी सवाल खड़े होते हैं। अक्सर महिला संगठनों की यही राय होती है कि पत्नी समझौता करे ताकि परिवार न टूटे। परन्तु क्या परिवार को कायम रखने के लिये दोनों की जिम्मेदारी समान नहीं है? क्यों औरत से ही यह अपेक्षा की जाती है कि वह परिवार को टूटने से बचाये? पति पर क्यों ऐसे सवाल नहीं उठते कि वह परिवार को सुखी रखने के प्रयत्न करे। वह क्यों हर सवाल से बरी कर दिया जाता है? औरत को क्यों इतना कमजोर मान लिया जाता है कि वह अकेले पाना परिवार नहीं चला सकती।
आज जब उत्तराखण्ड ही नहीं, पूरे देश में महिलाओं की तस्करी जोरों पर है, गाँव-गाँव से लड़कियाँ शादी के नाम पर दूर-दराज के क्षेत्रों में ले जाई जा रही हैं, हर जगह बिचौलिये सक्रिय हैं, लड़कियाँ खरीदी-बेची जा रही हैं, यह जरूरी हो गया है कि एक देशव्यापी हेल्प लाइन नम्बर हो जिस पर औरतें अपने प्रति होने वाले अपराधों/अत्याचारों की सूचना तुरन्त दे सकें। यह नम्बर टोलफ्री हो और इसे वृहद तरीके से विभिन्न माध्यमों से विज्ञापित किया जाय। सभी राज्यों की पुलिस का आपस में समन्वय हो ताकि जरूरत पड़ने पर राज्यों की पुलिस तुरन्त कार्यवाही कर सके। तस्करी में बिचौलियों की भूमिका मुख्य है। वे सारा सौदा तय करते हैं और लाभ कमाते हैं। बिचौलियों के लिये सख्त से सख्त सजा का प्रावधान हो क्योंकि मानव तस्करी, महिलाओं को बेचा एवं खरीदा जाना एक अमानवीय कृत्य है। इनमें से कई महिलाएँ नारकीय जीवन जीने को बाध्य की जाती हैं। लड़कियों/महिलाओं को शादी के बहाने बेचना/खरीदना महिला हिंसा का ही एक कुत्सित रूप है। मेरे मन में सिम्मी को लेकर अनेक शंकाएँ उठ रही हैं। क्या वह ऐसी स्थिति में है, जहाँ से उसके सारे सम्पर्क काट दिये गये हैं। उम्मीद है कि शीघ्र उसकी कुशल मिलेगी पर उसकी जिन्दगी के सारे कष्टों के बारे में सोचकर न चाहते हुए भी लिख रही हूँ- अगले जनम मोहे बिटिया न कीजो।
Don’t make me a daughter in my next life
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