नैनीताल के बाजार में कार्यरत महिलाएँ

मधु जोशी

इस शहर की फिजा बदल गयी है… इन बड़ी-बड़ी गाड़ियों के कारण चलना दूभर हो गया है…। इस छोटे से शहर की आबादी कितनी बढ़ गयी है…  इन सभी नकारात्मक, बहुधा डरावने बदलावों के मध्य एक सुखद बदलाव भी नैनीताल शहर में स्पष्ट नजर आता है और वह है बाजार की दुकानों में कार्यरत महिलाओं की बढ़ती संख्या। चंद महिलाएँ अपनी दुकानें सम्हाल रहीं हैं, तो कुछ अपने पति की सहायता कर रही हैं। कुछ महिलाएँ ऐसी भी हैं, जिनके कंधों पर पति की मृत्यु अथवा अस्वस्थता के कारण दुकान की जिम्मेदारी आ गयी है। ऐसी ही कुछ महिलाओं से उत्तरा ने बातचीत की।

हाईस्कूल पास ऊषा लाम्बा का बचपन अल्मोड़ा में बीता और विवाह के बाद वह नैनीताल आ गईं। पति के जीवनकाल में यह पति और तीन बच्चों के परिवार की देखभाल में व्यस्त रहती थीं और अपनी दुकान ‘‘विकी फुटवैयर” के संचालन में इनकी कोई भूमिका नहीं थी। 1988 में पति की आकस्मिक मृत्यु के उपरान्त परिवार और दुकान दोनों की ही जिम्मेदारी इनके कंधों पर आ गई और पति की मृत्यु के छ: महीने के अंदर इन्होंने दुकान का कामकाज सम्हाल लिया। उस समय इनके तीनों बच्चे पढ़ रहे थे। तल्लीताल बाजार में उस समय एकमात्र श्रीमती कपूर ‘‘कपूर बुक डिपो” में अपने पति का हाथ बँटाती थीं। श्रीमती कपूर ने इनकी बहुत हौसला अफजाई की और इनका बारह वर्षीय पुत्र भी दुकान में इनकी सहायता करने लगा। इसके अलावा इनके भाइयों और आसपास के लोगों ने भी इनकी बहुत मदद की। ऊषा लाम्बा बताती हैं कि जब वह आगरा की शू मण्डी में जाती थीं तो वहाँ वह एकमात्र महिला होती थीं। लोग उन्हें देखकर हैरान तो होते थे लेकिन इनकी सहायता भी करते थे। अब इनके सभी बच्चों की शादी हो गई है। घर की जिम्मेदारी इनकी योग्य बहू ने पूरी तरह से सम्हाल ली है, अत: इनका बोझ काफी कम हो गया है। अपनी मेहनत और लगन के बल पर इन्होंने तल्लीताल में जूतों की एक और दुकान खोल ली है।
(women working in nainital market)

एम.ए., बी.एड., संगीत में विशारद, संगीता साह जब एक प्राइवेट स्कूल में पढ़ाती थीं तब इनके पिताजी की मृत्यु हो गयी। पिताजी की दुकान इनकी बहन चलाने लगी। बहन के विवाह के बाद इन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी और अपनी दुकान ‘‘आनन्द जनरल स्टोर” का कामकाज देखने लगीं। शुरू में दुकान के संचालन में इन्हें बहुत कठिनाई हुई। सीधेपन के कारण लोगों को आसानी से उधार दे देती थीं और फिर वह लोग पैसे चुकाने वापस नहीं आते थे। इसके  अलावा इनका मन भी पढ़ाने की तरफ लगा हुआ था। फिर इन्होंने अपना रवैया बदला और इनकी दुकान अच्छी तरह से चलने लगी। यद्यपि अभी भी कभी-कभार तीन वर्ष तक किये गये अध्यापन की याद आती है, पर अब इन्हें दुकान में काम करना अच्छा लगने लगा है। इन्होंने दुकान में सामान भी बढ़ा लिया है। माँ, भाभी, परिवार के अन्य सदस्यों और आसपास के दुकानवालों से इन्हें सहयोग मिलता है और इन्हें संतोष है कि यह अपने परिवार, विशेषकर माँ, के काम आ रही हैं।

ग्राम हरिपुरा, बाजपुर में रहने वाली शोभा तिवारी ने बी.ए. पास करने के बाद पुलिस में सब इंस्पेक्टर के पद पर प्रविष्टि के लिए परीक्षा उत्तीर्ण की ही थी कि इनका विवाह नैनीताल में हो गया। शादी के छ: महीने के उपरान्त इन्होंने और इनके पति ने ‘‘तिवारी गारमेन्ट्स” नाम की दुकान खोल ली। 1990 में जब इन्होंने दुकान खोली तब तल्लीताल बाजार में एक-दो महिलाएँ ही दुकान में बैठती थीं। मूलत: ग्रामीण परिवेश से होने के कारण यह दुकान में आने वाले लोगों से बात करने में भी झिझकती थीं। दिसम्बर 2008 में इनके पति गम्भीर रूप से बीमार हो गये और एक महीने तक कोमा में रहे। फिर स्वास्थ्य-लाभ का लम्बा सिलसिला चला। पति कुछ हद तक ठीक हुए किन्तु दुकान की जिम्मेदारी अब इनके कंधों पर आ गई। एक पारिवारिक सदस्य प्रमोद ने इनके साथ बहुत सहयोग किया। वह अपनी पढ़ाई करने के साथ-साथ दुकान में भी सहायता करता है। तीन बच्चों के लालन-पालन के दौरान इन्हें बहुत कठिनाई हुई लेकिन परिवार, विशेषकर सास, ने इनकी बहुत मदद की। अब इन्होंने अपनी दुकान का विस्तार भी कर लिया है। शोभा तिवारी का कहना है कि यदि इंसान ठान ले कि हिम्मत और लगन के साथ कुछ काम करना है तो कुछ भी असम्भव नहीं है। एम.ए. (राजनीतिशास्त्र) करने के उपरान्त ‘‘नैशनल हार्डवेयर” की मालकिन गीता पंत का विवाह हो गया और विवाह के एक वर्ष के उपरान्त उनके पति की मृत्यु हो गयी। उस समय उनकी बेटी की आयु मात्र दो महीने थी। पाँच-छ: महीने घर में रहने के बाद इन्हें लगने लगा कि बेटी के भविष्य को ध्यान में रखते हुए इन्हें काम करना पडे़गा और इन्होंने पति की बर्तनों आदि की दुकान पुन: खोल दी। इस दौरान इनके भाइयों और दुकान के मकान मालिक ने इनकी बहुत सहायता की। इसके अलावा नैनीताल के स्थानीय निवासियसों ने भी इनके साथ सहयोग किया। आरम्भिक दौर अनेक कठिनाइयों से भरा था। इन्होंने बैंक से लोन लिया और धीरे-धीरे पूछ-पूछ कर हार्डवेयर का काम सीखा। आज इनकी बेटी एम.बी.ए. करके नौकरी कर रही है और इनका व्यवसाय भी भली-भाँति चल रहा है। इन्हें लगता है कि महिलाओं में घर-परिवार और व्यवसाय दोनों को सम्भालने की विशेष क्षमता होती है अत: उन्हें सशक्त होकर अपने पैरों पर खड़े होकर आगे बढ़ना चाहिये। जब यह लड़कियों को उन्नति करते हुए देखती हैं तो इन्हें बहुत खुशी होती है और जब कोई लड़कियों को टोकता है या उन पर टीका-टिप्पणी करता है तो इन्हें बहुत बुरा लगता है। अपने बुरे समय  को याद करके यह जरूरतमंदों की यथा सम्भव सहायता करती है।

ग्राम पाली, रानीखेत निवासी चम्पा भट्ट की हाईस्कूल करने के बाद शादी हो गयी थी। आरम्भ में यह घर-परिवार तक ही सीमित थीं किन्तु जब दोनों बच्चे कॉलेज में पढ़ने लगे तब यह पति का हाथ बँटाने रामजे रोड स्थित दुकान ‘‘भट्ट जनरल स्टोर” में आने लगीं। शुरू में किसी चीज का अंदाज नहीं होने के कारण परेशानी भी हुई। धीरे-धीरे आदत हो गई और अब इन्हें दुकान में आना अच्छा लगता है और अगर पूरा दिन घर पर रहना पड़े तो दिन बहुत लम्बा लगता है! दुकान से लगभग एक किलोमीटर दूर घर के दिन में दो और कभी-कभी तीन चक्कर भी लग जाते हैं। अब दुकान में आने वाले नियमित ग्राहकों से इनका अच्छा परिचय हो गया है और उनसे बातचीत करना और उनके कुशल-समाचार प्राप्त करना इन्हें अच्छा लगता है।
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रामजे रोड में स्थित ‘‘प्रकाश स्टेशनर्स” की मालकिन ललिता भट्ट दो छोटे-छोटे बच्चे होने के बावजूद दिन में दो-तीन घण्टे पति का हाथ बँटाने दुकान में आ जाती हैं। जब पति दुकान का सामान लेने हल्द्वानी जाते हैं तो घर-गृहस्थी और बच्चे सास को सौंपकर वह अकेले दुकान भी सम्हाल लेती हैं।

गंगोलीहाट निवासी दया साह का कक्षा नौ में पढ़ते समय विवाह हो गया था। शादी के चार साल के बाद विषम पारिवारिक परिस्थितियों के कारण रामजे रोड स्थित अपनी चाय की दुकान चलाने लगीं। दो बच्चे हैं, जो स्कूल में पढ़ते हैं और घरेलू कार्यों में भी सहयोग करते हैं। घर दुकान से थोड़ी ही दूरी पर स्थित है और पड़ोस में रहने वाली ननद भी बहुत मदद करती हैं। शुरू में बहुत कठिनाई हुई और ‘अजीब-सा’लगता था। सामान का दाम पता नहीं रहता था और चाय भी ठीक से नहीं बन पाती थी। फिर सबने समझाया कि आप कोई गलत काम नहीं कर रही हैं। इसके बाद इन्होंने हिम्मत जुटाई और मन लगाकर दुकान चलाने लगीं। अब घर का खर्चा इसी दुकान से चलता है।

माल रोड स्थित ‘‘मॉडर्न बुक डिपो” की मालकिन नीलू कुमार का जन्म लखनऊ के एक व्यापारिक परिवार में हुआ था। जन्तु विज्ञान में स्नातकोत्तर डिग्री प्राप्त करने के उपरान्त इन्होंने पी.एच.डी. के लिए शोध-कार्य प्रारम्भ किया और इसके साथ-साथ डेढ़ साल तक आई.सी.एस.ई. कक्षाओं को भी पढ़ाया। मॉडर्न बुक डिपो के मालिक विमल कुमार से विवाह के बाद यह नैनीताल आकर अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियाँ सम्हालने लगीं। इन्हीं जिम्मेदारियों के कारण इन्होंने एक प्रतिष्ठित स्कूल से मिला नौकरी का प्रस्ताव ठुकरा दिया। फिर अपने ससुर जी की अस्वस्थता के दौरान इन्होंने पति का हाथ बँटाने के लिए दुकान में आना शुरू किया। यहाँ यह उल्लेख करना अनुचित नहीं होगा कि इनकी सास श्रीमती मोहिनी देवी उन महिलाओं में शामिल थीं, जिन्होंने सर्वप्रथम नैनीताल में अपनी दुकान में काम करना प्रारम्भ किया था। शुरू में नीलू कुमार शाम पाँच बजे तक दुकान में रहती थीं। इस दौरान इनके बच्चे स्कूल से लौटने पर अपनी-अपनी चाबी से घर में लगा ताला खोलते थे। जब बच्चे पढ़ने के लिए बाहर चले गये तब यह अपना पूरा समय दुकान को देने लगीं। यह सिलसिला पन्द्रह वर्ष तक चला। फिर इनके पति गम्भीर रूप से बीमार हो गये। पति के जीवन के अन्तिम तीन वर्षों के दौरान दुकान की पूरी जिम्मेदारी धीरे-धीरे इनके कंधों पर आ गई। पति की मृत्यु के चार दिन के बाद ही इन्होंने दुकान फिर से खोल दी। आज इनका बेटा इनके होटल की देखरेख कर रहा है, बेटी न्यूयार्क से एम.बी.ए. कर रही है, जबकि यह ‘‘मॉडर्न बुक डिपो” का कामकाज देखती हैं। यह नियमित रूप से रक्तदान भी करती हैं और इससे इन्हें आन्तरिक सुकून मिलता है। इन्हें इस बात की संतुष्टि है कि यह पारिवारिक व्यवसाय को कुशलतापूर्वक चलाते हुए परिवार की विरासत को सम्हाले हुए हैं।
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माल रोड में ‘‘हिमजोली” नामक संस्थान में कार्यरत रेनू जोशी और सुमनलता नैनीताल में किराये का मकान लेकर रहती हैं। रेनू रामगढ़ ब्लॉक के बस गाँव की रहने वाली है और सुमन धौलादेवी ब्लॉक के माड़म गाँव की। रेनू ने इतिहास से एम.ए. किया है तो सुमनलता ने हिन्दी तथा समाजशास्त्र से। रेनू 2009 से ‘‘हिमजोली” में कार्यरत है और सुमनलता 2008 से अन्य दुकानों में कार्य करने के उपरान्त लगभग एक वर्ष से ‘‘हिमजोली” में काम कर रही है। शुरू में नये शहर में परिवार से अलग रहकर काम करने में डर भी लगता था किन्तु वक्त के साथ-साथ डर समाप्त हो गया। अब नये लोगों से मिलना-जुलना और नयी चीजें सीखना अच्छा लगता है। इसके अलावा उत्तराखण्ड के ग्रामीण इलाके की महिलाओं को आजीविका प्रदान करने वाले एन.जी.ओ. के सामान की बिक्री करने वाली संस्था से जुड़े होने पर गर्व भी होता है। दोनों युवतियाँ अपने काम से संतुष्ट हैं लेकिन दोनों की सरकारी नौकरी करने की इच्छा है। दोनों अश्विन माह में घास कटाई के समय परिवार की सहायता करने गाँव अवश्यक जाती हैं।

किच्छा, उधमसिंह नगर में पली-बढ़ी चंचल गुलाटी शादी के बाद नैनीताल आने पर सास-ससुर, तीन देवरों, दो बच्चों और पति के भरे-पूरे परिवार की देखभाल में व्यस्त हो गयीं। चालीस वर्ष की आयु में इन्हें ब्रैस्ट कैंसर हो गया। बीमारी से उत्पन्न हुए डिप्रैशन से उबरने के उद्देश्य से खुद को व्यस्त रखने के लिए इन्होंने पति के साथ ‘गुलाटी गिफ्ट हाउस’नामक अपनी दुकान में आना शुरू कर दिया। इनके मन में यह भी विचार आया कि इनकी बीमारी के इलाज में हुए आर्थिक नुकसान से उबरने में इन्हें पति की सहायता करनी चाहिये। शुरू में इन्हें अन्दाजा नहीं आया लेकिन चीजों पर दाम लिखे होने के कारण यह शीघ्र ही सब सीख गयीं। पहले पति के साथ दुकान में बैठती थीं किन्तु शीघ्र ही पति की अनुपस्थिति में भी दुकान सम्भालने लगीं। आज दस साल बाद इनके दोनों बच्चे नौकरी कर रहे हैं और पति-पत्नी मिलकर दुकान चला रहे हैं। चंचल गुलाटी का महिलाओं के लिए विशेष संदेश है कि कैंसर जैसी बीमारी से घबराना नहीं चाहिए- इसका हिम्मत और आत्मबल से सामना करना चाहिए। आज भी इनकी दुकान में कैंसर पीड़ित महिलाएँ इनसे सलाह लेने आती हैं और यह यथासम्भव उनकी हौसला अ़फजाई करती हैं।

सुनीता वर्मा का मायका भवानी मंडी, कोटा, झालावार में है। बी.एस-सी. करने के बाद इन्होंने तीन वर्ष तक कोऑपरेटिव बैंक में नौकरी की। शादी होने पर इन्होंने नौकरी छोड़ दी। शादी के तीन साल बाद 2009 में धनतेरस के समय होने वाली भीड़ के दौरान इनके पति सुधीर वर्मा ने इनसे दुकान में सहायता करने के लिए कहा। आरम्भ में सभी काम पूछकर करने पड़े। फिर यह कभी-कभार दुकान में आने लगीं और इन्हें मल्लीताल स्थित अपनी दुकान ‘‘सुधीर ज्वैलर्स” का काम पूरी तरह से समझ में आने लगा। सास की बीमारी के दौरान लगभग छ:-सात महीने दुकान में कम आयीं। सास की मृत्यु के उपरान्त फिर से आना शुरू कर दिया। अब यह घर-परिवार की जिम्मेदारियाँ पूरी करने के बाद लगभग रोज दुकान में सहायता करने आती हैं क्योंकि इन्हें लगता है कि जैसे इनके पति इनके साथ घर में पूरा सहयोग करते हैं, उसी तरह से इन्हें भी पति की मदद करनी चाहिये। सुनीता का पुत्र स्कूल में पढ़ता है और दुकान में आना अब इनकी दिनचर्या का हिस्सा बन गया है। पति की अनुपस्थिति में भी अकेले दुकान सम्भालने में इन्हें परेशानी नहीं होती है। गत वर्ष इनके पति दस दिन के लिए नन्दा देवी राजजात में गये तो इन्होंने अकेले ही दुकान सम्भाली थी। घर और दुकान दोनों काम निभाने के कारण इन्हें थकान तो होती है लेकिन इसके साथ-साथ कुछ सार्थक करने के कारण सन्तुष्टि भी मिलती है।

गाड़ी पड़ाव में मोजे-टोपी आदि का फड़ लगाने वाली विमला देवी चालीस साल पहले विवाहोपरान्त मुरादाबाद से नैनीताल आयीं। पति की आय से घर का खर्च पूरा नहीं होता था अत: अपने ससुर जी की जूते आदि की दुकान के बगल में फड़ लगा ली। पति और इनके छ: बच्चों को इनका काम करना अच्छा नहीं लगता था। फिर पति की मृत्यु के बाद परिवार का गुजारा इसी दुकान के सहारे होने लगा और आज इनके बच्चे कहते हैं कि यदि यह दुकान नहीं होती तो वह भूखे मर गये होते। युवा पुत्र की मृत्यु भी इस साहसी महिला को नहीं डिगा पायी और इन्होंने अपने दु:ख से जूझते हुए भी दुकान चलाना जारी रखा। खुले में फड़ होने के कारण इन्हें बारिश और ठंड से परेशानी होती है। आज इनका छोटा बेटा दुकान चलाने में इनकी सहायता करता है।
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मूलत: पठानकोट, पंजाब की रहने वाली जसबीर कौर विवाहोपरान्त 1980 में नैनीताल आयी थीं। 1984 से यदा-कदा पति की मल्लीताल स्थित दुकान ‘राम सिंह, संत सिंह मेडिकल स्टोर’में आती थीं, विशेषकर तब जब पति को शहर से बाहर जाना होता था। 1989 में जब इनके पति का देहान्त हुआ तो इनके तीन बच्चों में से सबसे छोटा तीन वर्ष का और सबसे बड़ा छ: वर्ष का था। आरम्भ के वर्ष बहुत दु:ख और परेशानी के थे। बच्चे छोटे थे और इन्हें दवाइयों के विषय में बहुत कम जानकारी थी। कुछ लागों ने हौसला दिलाया तो कुछ लोगों ने हतोत्साहित भी किया। कुछ लोगों ने यह राय भी दी कि दुकान बंद करके मायके लौट जाओ। लेकिन बच्चों के भविष्य के खातिर यह हिम्मत जुटाती रहीं। इस दौरान इन्होंने अपने शौक पूरे तरह से भुला दिये। फिर जब बच्चे बड़े हुए तो वह भी इनका हाथ बँटाने लगे। आज जब यह पीछे मुड़कर देखती हैं तो इन्हें विश्वास ही नहीं होता है कि इन्होंने वह मुश्किल दौर कैसे पार किया होगा। अब इन्होंने माल रोड में एक और मेडिकल स्टोर खोल लिया है। इन्हें इस बात की खुशी है कि समाज में इनकी इज्जत है और यह पुश्तैनी व्यवसाय को सफलतापूर्वक आगे बढ़ा रही हैं।

कचहरी रोड में ‘‘फीलिंग्स गिफ्ट शॉप” चलाने वाली प्रतिभा राठौर की कहानी बहुत रोचक है। अपने पाँवों पर खड़े होने के उद्देश्य से इस स्वाभिमानी किशोरी ने कक्षा ग्यारह व बारह में पढ़ने के दौरान ठंडी सड़क में तालाब के किनारे चिप्स और कोल्ड ड्रिंक की दुकान खोल ली। इन्हें सड़क से कुछ नीचे तालाब के तट पर अपनी दुकान चलाते देख पर्यटक ही नहीं स्थानीय लोग भी बहुत प्रभावित होते थे। स्नातक डिग्री प्राप्त करने के बाद इन्होंने कचहरी रोड में दुकान खोल ली जिसमें यह आज भी लगभग आठ-नौ वर्षों से, गिफ्ट आइटम, मोमबत्ती, होली-दीवाली का सामना बेचती हैं। माँ की बीमारी के समय इन्होंने घर और दुकान की दोहरी जिम्मेदारी भी सम्भाली। फिर लोन लेकर मोमबत्ती की फैक्ट्री खोल ली और आज भी यह साहसी युवती आत्मनिर्भरता की मिसाल पेश करती है।

इन सभी साहसी महिलाओं की कहानियाँ विशिष्ट भी हैं और समान भी। सभी की अपनी-अपनी कहानियाँ हैं, परिस्थितियाँ हैं और मजबूरियाँ भी हैं। अपनी कहानी सुनाते समय किसी का गला भर गया, आँखें छलक उठीं, तो किसी का चेहरा गर्व व संतुष्टि के साथ दमक उठा। छोटी-छोटी भिन्नताओं के मध्य एक सूत्र है जो इन सभी को आपस में जोड़ता है और वह है इनका जीवट, इनकी हिम्मत और घर-परिवार तथा व्यवसाय दोनों में सामंजस्य बिठा पाने की अद्भुत और अनुकरणीय क्षमता। इन्हीं विशिष्ट गुणों के कारण यह महिलाएँ सभी के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं।
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