पाकिस्तान में औरत मार्च

Women March in Pakistan

-मधु जोशी

1983 में जब लाहौर की महिलाओं ने जैनरल जिया-उल-हक द्वारा पारित उस कानून का विरोध किया था, जिसके अनुसार दो महिलाओं की गवाही एक पुरुष की गवाही के बराबर मानी जाती थी तो उनके विरुद्ध फतवे जारी हुए थे और उन्हें वेश्या, काफिर और सीआईए/केजी बी का एजेन्ट कहा गया था। मार्च 2019 में जब पाकिस्तान में महिलाओं ने अपनी भावनाओं, बोलने के अधिकार, सुरक्षा और अस्मिता के हक में आवाज बुलन्द करने के उद्देश्य से ‘‘औरत मार्च’’ निकाले, तब भी पितृसत्तात्मक समाज की प्रतिक्रिया उतनी ही उग्र और अपमानजनक थी।
(Women March in Pakistan)

मार्च में शामिल महिलाओं को जी भरकर कोसा गया, भला-बुरा कहा गया, उन पर उनके शरीर के अंगों से जुड़ी अश्लील टिप्पणियाँ की गयीं और उन्हें कत्ल और बलात्कार की धमकियाँ दी गयीं। स्पष्ट है कि लगभग चालीस वर्ष बीत जाने के बावजूद न तो महिलाओं की स्थिति में कोई खास बदलाव आया है और न ही पुरुषों की मानसिकता और प्रतिक्रिया में। यद्यपि महिलाओं से जुड़ी जमीनी हकीकत में परिवर्तन नहीं हुआ है, ‘‘औरत मार्च’’ में एक विशिष्ट बात देखने को मिली। यहाँ महिलाएँ अपने सामाजिक, र्आिथक, कानूनी और राजनीतिक हितों के सन्दर्भ में जायज माँगों को उठाने के लिए सिर्फ आक्रोश और सशक्त दलील ही इस्तेमाल नहीं कर रही थीं। अपनी बातों को रेखांकित करने के लिए वे हास्य और व्यंग्य के साथ-साथ पुरुषों द्वारा महिलाओं की तौहीन करने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली अभद्र भाषा का भी बेझिझक प्रयोग कर रही थीं। उनकी यह ‘निर्लज्जता’ और ‘बाजारुपन’ पुरुषों को नागवार गुजरे और इसके फलस्वरूप आन्दोलनकारी महिलाओं को घटिया से घटिया ‘बाजारू’ टिप्पणियों से रूबरू होना पड़ा।

वैसे इस उग्र और ‘निर्लज्ज’ प्रतिक्रिया से किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिये। आखिरकार, यह वह समाज है जिसमें पति अपनी पत्नी की हत्या महज इसलिए कर देता है, क्योंकि उसे परोसा गया भोजन गर्म नहीं था और जहाँ एक बारह-वर्षीया पुत्री को पीट-पीटकर इसलिए मार दिया जाता है क्योंकि उसने पिता के लिए ‘गोल’ रोटी नहीं बनायी थी- ऊपर से तुर्रा यह कि इन पुरुषों द्वारा अपने कृत्यों को यह कहकर उचित ठहराया गया कि ‘‘यदि तुम्हारे साथ ऐसा हुआ होता तो तुमने भी यही किया होता।’’
(Women March in Pakistan)

तथाकथित इज़्ज़त के नाम पर महिलाओं की इज़्ज़त को तार-तार करने वाली व्यवस्था में जब महिलाओं का एक तबका ‘‘औरत मार्च’’ निकालकर पुरुषों की सत्ता को चुनौती देने के लिए उन्हीं के द्वारा प्रयुक्त भाषा का इस्तेमाल करता है तो पुरुषों का तिलमिलाकर अश्लील से अश्लील प्रतिक्रिया देना स्वाभाविक ही है। इस संदर्भ में नीलम हुसैन सटीक टिप्पणी करती हैं, ‘‘समाज महिलाओं द्वारा पुरुषों की आवाज के प्रभुत्व को ठुकराना और उन विषयों पर खुलकर बात करना जिन पर सि़र्फ पुरुष ही कहते और करते हैं। ‘‘औरत मार्च’’ ने चन्द अत्यन्त गम्भीर सरोकारों पर बहस-मुबाहिसे के लिए जमीन उपलब्ध करायी है।’’

(साउथ एशिया कम्पोज़िट हैरिटेज पत्रिका-अप्रैल-जून 2019 में प्रकाशित नीलम हुसैन का लेख ‘‘औरत मार्च एण्ड इट्स डिस्कन्टैन्ट्स’’ पर साभार आधारित)
(Women March in Pakistan)