डर के दायरों को तोड़ती महिलाएँ

निर्मला सूरी

बिन्दु का फोन आया, वह अस्पताल में भर्ती है। वह काफी समय से अस्वस्थ चल रही थी। आये दिन खून निकलना उसके स्वास्थ्य के लिए खतरनाक हो गया था। डॉक्टर ने भी उसे गर्भाशय निकालने की सलाह दी थी, परन्तु उसका पति इस बात की स्वीकृति नहीं दे रहा था। बिन्दु के दो बेटे थे। बड़े बेटे ने जो बालिग था, फार्म में दस्तखत किये। मैं अस्पताल पहुंची तो ऑपरेशन शुरू हो गया था। उसका पति नहीं आया। ऑपरेशन ठीक हो गया। अस्पताल से डिस्चार्ज होकर वह घर गई तो पति ने दरवाजे पर ताला ठोक दिया और कहा कि अब वह यहां नहीं रह सकती। बिन्दु अपने पिता के घर चली गई। कुछ समय बाद वह स्वस्थ हुई तो रिश्तेदारों ने उसके पति से बात करनी चाही लेकिन वह लड़ाई-झगड़ा करता रहा और उसके चरित्र पर भी लांछन लगाता रहा। बदकिस्मती से बिन्दु ने उस मकान को अपने गहने व पिता द्वारा दिये गये जमीन के टुकड़े को बेच कर खरीदा था पर मकान पति के नाम कर दिया था।

कुछ समय बाद सूचना मिली कि बिन्दु अपने घर वापस चली गई। रिश्तेदारों ने समझा-बुझाकर यह समझौता करवाया कि वह अपने दोनों बेटों के साथ ऊपर के कमरे में रहे व पति नीचे वाले कमरे में। खाना वही उसके लिये बनायेगी व नीचे भेज देगी। पति अपनी कमाई से कुछ पैसा उनको देगा व अपना अन्य कार्य स्वयं करेगा।

कुछ समय बाद ही वह फिर बिन्दु को कई अन्य तरीकों से तंग करने लगा। कभी पानी की मोटर खराब कर देता, कभी गाली-गलौज करता, कभी लांछन लगाता व हंगामा काटता रहता। एक दिन मैंने ही उसे सलाह दी कि महिला सैल में जाकर क्यों न शिकायत की जाय।

हम दोनों एक दिन महिला हैल्प लाइन पहुंचे। वहां कोई बैठक चल रही थी। बैठक समाप्त हुई। महिला ऑफीसर के पीछे-पीछे पूरा स्टाफ बाहर तक गया। हम दोनों ऑफिस में जाकर बैठ गये। उतने में एक महिला कर्मचारी अन्दर आई और सामने कुर्सी पर बैठ गई। बिन्दु ने उसे बताया कि वह अपने पति की शिकायत दर्ज कराने यहां आई है। उस महिला कर्मचारी ने घूरकर बिन्दु को देखा और डांट कर बोली- खड़ी हो, यहां कैसे बैठ गई? बिन्दु धीरे-धीरे खड़ी हुई और धीरे-धीरे अपनी बात बताने लगी। वह कमजोरी के कारण मुश्किल से खड़ी हो पा रही थी। महिला कर्मचारी फिर गुस्से में बोली ऐसे डर कर क्यों बोल रही है? चोरी करके आई है क्या? शिकायत लिखवा कर लाओ। ऐसे ही चले आते हैं। मैंने कहा वह स्वस्थ नहीं है। आप बताइये हमें क्या करना है पर उस महिला कर्मचारी ने तो सारा गुस्सा बिन्दु पर उतार दिया। मैं हैरान थी- यह एक महिला का महिला के साथ व्यवहार है और वह भी उस महिला का जो महिला हैल्प लाइन में पीड़ित महिलाओं की मदद के लिये तैनात है। मुझे बहुत खिन्नता हुई। मुझे लगा, जो सही दिशा में सोच सके ऐसी महिलाओं का संगठित होना कितना आवश्यक है। तभी से हमने उत्तराखण्ड महिला मंच की  ओर से दो या उससे अधिक महिलाओं ने साथ जाना शुरू किया। इससे काफी हद तक हमारा कार्य भी आसान हुआ।

बिन्दु ने भी अपने हक के लिये लड़ना सीख लिया था। वह अपने पैरों पर खड़ी हो गई। वह छोटे बच्च्चों के साथ कार्य करती व उसके बेटे भी पढ़ाई के साथ कार्य करने लगे।
Women breaking the boundaries of fear

मैंने जब छोटे बच्चों के लिए स्कूल खोला था तो नर्सरी व केजी क्लास के अलावा बच्चों का क्रेच भी शुरू किया। मेरी इच्छा थी कि मैं कामकाजी महिलाओं के बच्चे क्रेच में रखूं। जो नौकरीपेशा हैं अथवा कोई अन्य कार्य घर चलाने के लिए कर रही हैं। धीरे-धीरे बच्चों की संख्या बढ़ने लगी। बिन्दु भी हमारे स्कूल में कार्य करने लगी। उसका बड़ा बेटा भी साथ आता, वह नर्सरी में पढ़ने लगा था। बिन्दु क्रेच के बच्चों की देखभाल करने लगी। कुछ समय के अन्तराल में उसका दूसरा बेटा हुआ। मैं रोज़ सुबह उसको कुछ खाना बनाकर दे आती। एक दिन मुझे पहुंचने में देर हो गयी। मैंने पहुंचते ही पूछा, तुमने कुछ खाया या नहीं? बिन्दु ने कुछ नहीं खाया था। मैंने जल्दी-जल्दी उसको कुछ खाने का दिया और जल्दी में ही वापस लौटने लगी, क्योंकि स्कूल का समय हो गया था। जैसे ही बाहर को मुड़ी तो दरवाजे में उसका पति खड़ा मिला और बोला ‘आज मैं सोच रहा था मैडम को आने में देर हो गयी है?’ मेरे मन में प्रतिक्रिया स्वरूप कुछ शब्द निकले ‘निल्र्लज कहीं का’जो एक शिक्षिका होने के कारण मुंह में ही रह गये। इस तरह के लोगों से मेरा अकसर सामना होता था। मैं वहां से जल्दी ही निकल गयी। बड़ा क्रोध भी आया उस पर कि एक गिलास दूध का गर्म करके न दे सका पत्नी को।

नामकरण के बाद बिन्दु अपने छोटे बच्चे को भी स्कूल में ले आती। क्रेच के अन्य बच्चों की तरह वह भी एक झूले में सोया रहता। बिन्दु ने भी काम धीरे-धीरे शुरू कर दिया था। बच्चे दूसरे स्कूल में जाने लगे व बिन्दु भी मन्द बुद्धि बच्चों के साथ काम करने लगी, दूसरी जगह।

कभी भी आवश्यकता पड़ने पर बिन्दु अब भी हमारे साथ कार्य करती है। वह दूसरों को भी सहारा देती है। हमारे थोड़े से प्रयास व नैतिक समर्थन से उसने बिना किसी की बैसाखी लेकर चलना व रहना सीख लिया था। उसका पति भी पहले से थोड़ा बदल गया है। उसे भी अहसास हो गया है कि बिन्दु अब उसके डर से बाहर निकल आई है। उसके डराने-धमकाने, चरित्र पर लांछन लगाने का बिन्दु पर अब कोई असर नहीं पड़ता।

बिन्दु कर्मठ व हिम्मत वाली है। उसे विश्वास है कि वह कहीं गलत नहीं है। यही सब बातें उसके आगे बढ़ने के लिए सहायक हुईं। हक की लड़ाई के लिये संघर्ष तो महिला को स्वयं ही करना पड़ता है। दूसरे, चाहे महिला हो या पुरुष, थोड़ा भी इस संघर्ष में उसका साथ देने वाला कोई है तो यह लड़ाई आसान हो जाती है और जीत भी तभी सम्भव होती है।
Women breaking the boundaries of fear

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