महिलाएँ एवं लोकसभा चुनाव 2014

चन्द्रकला

जनता द्वारा अपने प्रतिनिधियों का चुनाव कर संसद या किसी भी नीति-निर्मात्री संस्था में भेजना एक लोकतांत्रिक प्रक्रिया है। किसी भी देश के नागरिक अपने प्रतिनिधि का चुनाव इस उम्मीद से करते हैं कि वे आम जनता की बुनियादी आवश्यकताओं हेतु बिना किसी भेदभाव के उचित कार्यप्रणाली का निर्माण करेंगे एवं बेहतर शासन व्यवस्था के अन्तर्गत जनता की जीवन स्थितियाँ उन्नत होंगी।

भारत में 1952 से आरम्भ हुई चुनावी प्रक्रिया आज अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है। जनता के प्रति निष्ठा व जवाबदेही गुजरे जमाने  की बात हो गयी। अब तो नेताओं की पार्टी प्रतिबद्धता और विचारधारा तक फायदे व नुकसान से तय होती है। जहाँ पाँच साल में मुनाफा कमाया जा सके वहीं दाँव लगाया जाता है। कारपोरेट घरानों के इशारों पर ही पूरा चुनावी नाटक खेला जाने लगा है जिसमें लोकतंत्र के बजाय लूटतंत्र हावी है। चुनावों में, नब्बे प्रतिशत आबादी के वंचितों, शोषितों, महिलाओं, आदिवासियों, अल्पसंख्यकों का महज इतना ही महत्व है कि उनके वोट को किसी भी तरह हासिल कर लिया जाय। इनका उपयोग भी चुनावी पार्टियाँ महज इतना ही करती है जितना कि फायदा मिल सके। यदि चुनाव में खड़े उम्मीदवारों की सूची पर हम निगाह डालें तो देखेंगे कि कोई भी पार्टी, जाति, धर्म, लिंग, समुदाय, क्षेत्र इत्यादि के आधार पर उचित प्रतिनिधित्व प्रदान करने का प्रयास तक नहीं करती।

महिलाएँ देश की सम्पूर्ण आबादी का लगभग आधा हिस्सा हैं लेकिन शासन व्यवस्था में महिलाओं की भागीदारी नाममात्र की है। लोकसभा में महिलाओं का प्रतिशत महज 10.86 प्रतिशत है। ये चंद महिलाएँ जो कि मुख्यत: राजनैतिक, सामन्ती, घरानों से ताल्लुक रखती हैं महिला हितों को प्राथमिकता नहीं देती। इन्टर पार्लियामेंट्री यूनियन की 2011 में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार महिलाओं का संसद में प्रतिनिधित्व के हिसाब से विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश कहे जाने वाले  भारत का स्थान 98वां है।

पिछले वर्ष देश में महिला अधिकारों, सुरक्षा, सम्मान, समानता का बहुत अधिक शोर मचा और ऐसा माहौल बन गया कि अब सबके लिए महिलाओं की बेहतरी पर बात करना प्राथमिक हो गया। लगने लगा था कि अब महिलाओं की तकदीर बदलने वाली है। लेकिन न कुछ होना था और न हुआ। चुनाव आते-आते सारे महिला मुद्दे नैपथ्य में चले गये। महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों का ग्राफ कम होने के बजाय बढ़ता ही गया। आनन-फानन में बनाये गये ‘सख्त कानून’कागजी दाँव-पेचों व राजनीति में उलझ कर रह गये।

लेकिन इन चुनावों में जो एक चीज उभरकर आयी है वह यह कि महिला वोटरों, विशेषकर मध्यमवर्गीय को लुभाने के लिए या फिर महिला हितैषी दिखने के लिए ही सही पार्टियों ने चुनावी घोषणा पत्र में महिला मुद्दों को अलग से चिन्ह्ति किया है। भले ही यह चुनावी घोषणाएँ लागू हों लेकिन महिलाओं के अस्तित्व को स्वीकार करना, महिलाओं के लिए तो सकारात्मक संकेत है।
यहाँ पर ‘आम आदमी पार्टी’कांग्रेस व भाजपा के घोषणा पत्र में उल्लिखित महिला मुद्दों को प्रस्तुत किया जा रहा है।
Women and Lok Sabha Elections 2014

आम आदमी पार्टी का कहना है-
हम एक ऐसी दुनिया देखना चाहते हैं जिसमें महिलाओं को उनकी वास्तविक स्थिति के अनुरूप स्वीकार किया जाय और उनके साथ समान नागरिक के बतौर व्यवहार किया जाय, जहाँ वे उन पुरुष-प्रधान मूल्य मान्यताओं से संचालित न हों जो उनकी सामाजिक व पारिवारिक भूमिका को निर्धारित करते हैं। सम्पूर्ण नीति निर्माण के केन्द्र में आम औरत को रखने की आवश्यकता है। हम स्वयं को तभी एक लोकतांत्रिक, आधुनिक व प्रगतिशील देश कह सकते हैं जब हम सही मायनों में औरतों को अधिकार स्वतंत्रता, सुरक्षा व सशक्तीकरण प्रदान करें।

इस विषय में निम्न बिन्दु हैं-

1.लिंग आधारित भेदभाव व हिंसा की संस्कृति को खत्म करने के लिए व्यापक स्तर पर दूरगामी जन जागरूकता कार्यक्रम लागू किये जायेंगे। इनको लागू करने के लिए एस.एम.एस., रेडियो, टेलीविजन, सार्वजनिक सेवा अभियान, स्कूलों के लिए पाठ्य योजनाओं, शिक्षकों व पेशेवर जैसे डाक्टरों, वकीलों के शिक्षण मापदण्डों का उपयोग किया जायेगा। इस माध्यम से अन्तत: हम गाँव व शहरी दोनों क्षेत्र के स्त्री-पुरुष, लड़के-लड़कियों तक पहुँच पायेंगे।

2.आम आदमी पार्र्टी लिंग आधारित भ्रूण हत्या की दिशा में सख्त रवैय्या अपनायेगी और इसके पूरी तरह खात्मे के लिए प्रभावी कानूनों को व्यवहार के स्तर पर लागू किया जायेगा। कानून का उल्लंघन करने वालों के लिए सख्त सजा का प्रावधान होगा। इसमें व्यापक भागीदारी के लिए केन्द्र राज्य व क्षेत्रीय स्तर पर बजट आवंटित कर महिलाओं के प्रति बेहतर विचार को स्थापित करने के लिए अभियान चलाया जायेगा।

3.महिलाओं के लिए सुरक्षित गरिमामय व लाभकारी रोजगार सुनिश्चित किया जायेगा। प्रत्येक क्षेत्र में महिलाओं के लिए समान वेतन सुनिश्चित किया जायेगा। मनरेगा, आंगनबाड़ी इत्यादि में कार्यरत महिलाओं को न्यूनतम मजदूरी दी जायेगी। संगठित व असंगठित क्षेत्र की महिला मजदूरों के लिए गरिमामय अधिकार व न्यूनतम मजदूरी निर्धारित की जायेगी।

4.सरकार महिलाओं पर होने वाली हिंसा को रोकने के लिए व्यापक रूपरेखा बनाने के लिए प्रतिबद्ध होगी। राज्य सरकारों के साथ मिलकर उन पीड़ित महिलाओं की हर संभव मदद की जायेगी जो हिंसा की शिकार हुई हैं और उनके लिए तत्काल र्आिथक मदद उपलब्ध करायी जायेगी।

5.महिलाओं पर होने वाले हिंसात्मक अपराधों के विरुद्ध न्याय सुनिश्चित करने के लिए राज्य सरकारों के साथ मिलकर त्वरित अदालतों का गठन किया जायेगा।

6. हम संसद व विधानसभा में 33 प्रतिशत महिला आरक्षण को लागू करने के पक्ष में हैं। साथ ही यह भी आश्वस्त करते हैं कि विभिन्न काउन्सिलों, कमेटियों, कार्य समितियों, नीति निर्माण इत्यादि में व्यवहार के स्तर पर महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित की जायेगी। हम संसद में नारी विरोधी व्यंग्य एवं व्यवहार के संदर्भ में आचार संहिता बनाने के पक्ष में हैं।

7. पारदर्शितापूर्ण पद्धति से चुनी गयी अनुभवी पेशेवरों के माध्यम से केन्द्र व राज्य स्तरीय महिला आयोगों के स्वायत्त संचालन को मजबूत करेंगे।

8. महिलाओं पर होने वाली आपराधिक कार्यवाहियों के खिलाफ व्यापक जवाबदेही के लिए मानक स्थापित कर उनको लागू किया जायेगा और उनका प्रचार किया जायेगा। हम राज्य सरकारों के साथ मिलकर नौकरी के नियमों को बदलेंगे और पुलिस व अभियोजन पक्ष की प्रोन्नति व दण्ड इस आधार पर तय होगा कि उनका लैंगिक नजरिया प्रदर्शन कैसा है। गाँव व शहरों में पाइलट प्रोजेक्ट शुरू कर बलात्कार के संकट के लिए कार्रवाई दल गठित किये जायेंगे।
Women and Lok Sabha Elections 2014

कांग्रेस में महिला मुद्दों को निम्न  बिन्दुओं में रेखांकित किया है-
हम अपना ध्यान मुख्यत: महिला सशक्तीकरण में लगायेंगे और उनकी सुरक्षा, सम्मान व समानता के लिए संघर्ष करेंगे।

हम क्या करेंगे
आधे भारतीय राज्यों में महिला मुख्यमंत्री देखना हमारा सपना है। हम महिलाओं का सुरक्षित भविष्य चाहते हैं। हमने बलात्कार व यौन हिंसा के विरुद्ध ऐतिहासिक कानूनों का निर्माण किया है। हमने आरटीई (शिक्षा का अधिकार) एक्ट के तहत प्रत्येक बच्चे के लिए स्कूल के दरवाजे खोले हैं। लगभग 11 करोड़ बच्चों के पोषण के लिए मध्याह्न भोजन की सुविधा दी है।

हमारी मुख्य प्राथमिकता महिला आरक्षण बिल पास करवाना होगा और बाल मजदूरी रोकने व बच्चों की सुरक्षा के लिए बाल यौन हिंसा अधिनियम को सख्ती से लागू किया जायेगा। सभी अस्पतालों में महिलाओं के लिए संकट मोचन केन्द्र स्थापित किये जायेंगे।

हम प्रत्येक पुलिस स्टेशन में 25 प्रतिशत महिला र्किमयों की भर्ती सुनिश्चित करेंगे। हम महिला सुरक्षा हेतु नागरिक घोषणापत्र पारित करेंगे।

अपराधों की रोकथाम
महिलाओं के विरुद्ध होने वाले हिंसात्मक अपराधों की सुनवाई हेतु त्वरित अदालतों की व्यवस्था, 25 प्रतिशत महिला कर्मियों की पुलिस स्टेशनों में भर्ती।

अस्पताल में संकट केन्द्र
प्रत्येक अस्पतालों में संकट रोकथाम केन्द्र स्थापित किये जायेंगे। जहाँ बलात्कार व घरेलू हिंसा से उत्पीड़ित महिलाओं को चिकित्सकीय-कानूनी और सामाजिक-मनोवैज्ञानिक सहायता प्रदान की जायेगी।

बजट निर्धारण
पंचायतों व नगरपालिकाओं को आवंटित होने वाले बजट की 30 प्रतिशत धनराशि महिलाओं व बच्चों के विकास के लिए निर्धारित होगी।

महिलाओं को भूमि अधिकार
महिलाओं को भूमि पर अधिकार दिया जायेगा विशेषकर एकल महिलाओं को और उनको, जिनके पति गाँव छोड़कर प्रवासी हो गए हैं।

महिला छात्रावासों का निर्माण
लड़कियों के लिए छात्रावासों की संख्या बढ़ाई जायेगी। आदिवासी इलाकों में कामगार महिलाओं के लिए हॉस्टल उपलब्ध किये जायेंगे, दिनभर (पूरा दिन) के लिए भी।

जागरूकता बढ़ाना
हम ब्लॉक स्तर पर पूरन शक्ति केन्द्रों में एक खिड़की व्यवस्था लागू करेंगे। जहाँ सरकारी योजनाओं हेतु जागरूकता प्रयोग एवं उपयोग की जानकारी प्रदान की जायेगी।

महिला स्वयं सहायता समूहों के साथ मिलकर हम किशोरवय लड़कियों को मुफ्त स्वच्छता नैपकिन वितरित करेंगे।

हम एन.आर.एल.एम. के तहत महिलाओं को जीवनपयोगी कार्य के लिए एक लाख तक का कर्ज देंगे।

2007 में स्थापित बाल अधिकारों की सुरक्षा के लिए गठित राष्ट्रीय आयोग को मजबूती प्रदान कर इसके क्षेत्र का विस्तार करेंगे।
Women and Lok Sabha Elections 2014

भाजपा का महिला एजेण्डा
1-कन्याओं को बचाने और पढ़ाने के लिए राष्ट्रीय अभियान बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ शुरू करना।

2-बलात्कार पीड़ित व एसिड हमलों की शिकार महिलाओं के कल्याण के लिए सरकार एक कोष का निर्माण करेगी ताकि ऐसी महिलाओं के इलाज व उनकी कास्मैटिक सर्जरी के लिए चिकित्सकीय खर्च उठाया जा सके।

3-पुलिस स्टेशनों को महिलाओं के अनुकूल बनाया जायेगा और विभिन्न स्तरों पर पुलिस विभाग में महिलाओं की संख्या बढ़ायी जायेगी।

4-महिलाओं के विशेष हुनर प्रशिक्षण के लिए कारोबारी प्रशिक्षण पार्क बनाये जायेंगे।

5-महिलाओं को विधानसभाओं व संसद में 33 प्रतिशत आरक्षण दिलाने की प्रतिबद्धता।

उपरोक्त के आधार पर यह तो कहा जा सकता है कि चाहे सतही तौर पर मध्यमवर्गीय महिलाओं के अनुरूप ही सही पार्टियाँ आज अपने घोषणापत्रों में महिला मुद्दों को स्थान दे रही है। आज यह माना जाने लगा है कि कोई भी चुनाव महिलाओं के अस्तित्व को नकार कर केवल पुरुषों के भरोसे नहीं जीता जा सकता।

घोषणापत्रों में आप ने जहाँ मध्यमवर्गीय महिलाओं के बुनियादी मुद्दों को चिह्नत किया है तो उसी तर्ज पर कांग्रेस ने भी कुछ  बेहतर वादों को स्थान दिया है। भाजपा ने अपनी परम्परागत सामन्ती छवि को बरकरार रखते हुए महिर्ला हिंसा के इर्द-गिर्द ही महिला समस्या को केन्द्रित किया है। किन्तु इन घोषणाओं की सबसे बड़ी आलोचना यह है कि ग्रामीण गरीब मेहनतकश, खेतीहर मजदूर, महिलाओं की समस्याओं पर ध्यान नहीं दिया गया। धर्म, जाति, बिरादरी, ग्राम पंचायतों एवं कश्मीर, पूर्वोत्तर राज्यों आदिवासी बहुल इलाकों में सेना व पुलिस की राजकीय हिंसा व बलात्कारों, साम्प्रदायिक हिंसा की शिकार महिलाओं के विषय पर सभी ने चुप्पी साध ली है। महिलाओं पर होने वाली यौन हिंसा के लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार, स्त्री को उपभोग व यौनिक वस्तु में तब्दील करने वाली साम्राज्यवादी संस्कृति व उसके प्रचारक मीडिया विशेषकर, धारावाहिकों, हास्य शो, पोर्न साइटों पर रोक लगाने की घोषणा करने का साहस किसी में नहीं दिखता। महिलाओं की रोजमर्रा की समस्याओं, गरीबी, बेरोजगारी, विस्थापन, स्वास्थ्य इत्यादि पर भी सभी खामोश दिखते हैं। पार्टियों द्वारा जो वादे किये गये हैं उनको वास्तविक रूप में लागू करना या लागू करने की मंशा रखना सम्भव नहीं दिखता। वैसे भी सभी पार्टियों की चुनावी घोषणाओं वा वास्तविक कार्यों में सत्ता पर काबिज होते ही बदलाव आ जाता है। संसद में महिलाओं की बढ़ती संख्या में पुरुष सत्ता को मिलने वाली चुनौती से सभी पार्टियाँ घबराती हैं इसलिए 33 प्रतिशत महिला आरक्षण बिल घोषणाओं के बावजूद आज तक लोकसभा में पारित नहीं हो पाया है। आज भी हमारे समाज की मानसिकता यही है कि महिलाओं को उतना ही अवसर दिया जाय जितना कि उनके राजनीतिक-सामाजिक-व्यक्तिगत उपयोग का हो।

निवर्तमान लोकसभा में महिलाओं की भागीदारी 11 प्रतिशत है  वह भी तब जबकि अधिकांश नेत्रियाँ राजनीतिक व उच्च सामन्ती पृष्ठभूमि से ताल्लुक रखती हैं या फिर किसी क्षेत्र विशेष में चर्चित हैं। वर्तमान चुनावों में किसी भी दल ने टिकट देने के मामले में महिलाओं की आबादी के अनुपात में तो क्या 15 प्रतिशत महिलाओं को भी टिकट नहीं दिया है। आज तक संसद में महिलाओं की संख्या 15 प्रतिशत तक नहीं पहुँच पाई है। कांग्रेस ने इन चुनावों में 12 फीसदी महिलाओं को टिकट दिया है तो भाजपा ने केवल 9 (नौ प्रतिशत) महिलाओं को उम्मीदवार बनाया है। बसपा की मुखिया मायावती की पार्टी में तो महिलाएँ दिखती ही नहीं हैं। वहीं सपा प्रमुख मुलायम सिंह पु़रुष सत्ता व घोर सामन्ती मानसिकता के वाहक होने के कारण महिला विरोधी ही दिखते हैं। उनकी पार्टी आम आदमी पार्टी ने अपनी प्रगतिशील छवि बरकरार रखने का प्रयास किया है लेकिन यहाँ भी अधिकांशत: चर्चित महिला चेहरे ही चुनाव मैदान में हैं। वैसे भी पैसे बाहुबल, आपराधिक पृष्ठभूमि, जातीय समीकरण आदि को चुनाव जीतने का आधार माना जाता है। अत: सामान्य महिलाओं के लिए चुनाव लड़ना आसान नहीं होता। महिला हितों का दावा करने वाले प्रमुख पुरुष राजनेता भी अपनी पत्नियों को जरूरत के अनुसार ही सामाजिक-राजनीतिक भूमिका में सामने लाते हैं। अन्यथा अधिकांश अपनी पत्नियों की नैपथ्य की भूमिका को बनाये रखना अपनी शान समझते हैं।

भारतीय मानव विकास सर्वेक्षण की रिपोर्ट के अनुसार भारत में आज भी महिलाओं की जिन्दगी में सदियों की जकड़न हावी है। महिला सांसद उम्मीदवारों को महिला होने के नाते विभिन्न पितृसत्तात्मक प्रहारों को झेलना पड़ता है। संसद में बनाये जाने वाले कानूनों पर आज भी पुरुष प्रधान सामन्ती निर्णय हावी रहते हैं। भारत में  आज भी 50 फीसदी महिलाएँ बस में अकेले सफर नहीं कर सकती। 60 फीसदी को परदे व घूंघट में रहना पड़ता है। 41 फीसदी से उनकी  शादी के बारे में राय नहीं ली जाती। जिस देश में 1000 पुरुषों में महिलाओं की संख्या महज 919 रह गयी हो उस देश में चुनावी घोषणापत्रों में किये गये वादों से आम महिलाओं के जीवन में कोई बदलाव आयेगा सम्भावना तो नहीं दिखती। लेकिन महिलाओं का जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में हस्तक्षेप हो यह आज जरूरी हो गया है।

पितृसत्तात्मक रुढ़ियों व परम्पराओं पर टिकी हमारी वर्तमान समाज व्यवस्था तो महिलाओं को अपने अधिकार हासिल करना आसान नहीं है। इसलिए उन्हें स्वयं अपनी शक्ति को पहचानकर एकजुट होना होगा और सत्तात्मक मानसिकता पर टिकी समाज व्यवस्था को चुनौती देनी होगी।
Women and Lok Sabha Elections 2014
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