अर्थनीति में बदलाव-नारी तू नारायणी

Women and Economy
मृगेश पाण्डे

2019 की आर्थिक समीक्षा एवं बजट में एक मात्र तर्कपूर्ण चिन्तन को ही परम सत्य नहीं माना जा सकता क्योंकि यह भी पूर्वाग्रह व मिथकीय परिकल्पनाओं से मुक्त नहीं है। आर्थिक समीक्षा 2019 में नीतियों की प्रस्तावना के पीछे व्यवहारात्मक अर्थशास्त्र के उस पक्ष पर ध्यान दिया गया है जो विकास की प्रक्रिया में लाभदायक सामाजिक ढाँचे की वकालत करता है तथा आचरण और व्यवहार की जुगलबंदी पर जोर देता है। यह बजट लोगों के दिल में वास कर रही भावनाओं व विश्वास से आस्था का संबल पाने की जुगत भिड़ा सकता है। एक प्रकार से यह एक टोटका है। (Women and Economy)

व्यवहारात्मक अर्थशास्त्र से प्राप्त अन्तर्दृष्टि से सामाजिक परिवर्तन किए जा सकते हैं। बजट 2019 में वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने इस धारणा को बदलाव से सम्बन्धित किया। 49 वर्ष के उपरान्त एक महिला के हाथ वित्त मंत्रालय की कमान लगी। इससे पूर्व 1970-71 में इंदिरा गाँधी के पास वित्त मंत्रालय था। निर्मला सीतारमण ने अर्थशास्त्र की छात्रा होने के साथ-साथ बड़े उपक्रमों में काम करने की योग्यता तथा विशाल संगठनों में अपनी कुशलता सिद्घ की है। र्आिथक समीक्षा 2019 में नीले आकाश में उड़ान भरते भारत के विकास का वह नया आयाम सामने आता है जो परिवर्तन और धक्के अर्थात ‘नज’ से अपना प्रयोजन सिद्ध करने की आतुरता दिखाता है।
(Women and Economy)

आर्थिक समीक्षा में परिवर्तन का यह सूत्र बनाया गया है कि बेटी आपकी धनलक्ष्मी और विजय लक्ष्मी है। इसे नारी सशक्तीकरण का संदेश बनाया गया है। इस प्रयोजन के लिए रोल-मॉडल बनाई गयी हैं देवी लक्ष्मी। एक ओर वह सम्पत्ति एवं पूँजी अर्थात् धनलक्ष्मी की द्योतक है तो दूसरी ओर जीत अर्थात विजय की। पूर्ववत सोच में परिवर्तन लाने वाले संदेशों यथा बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ और स्वच्छ भारत अभियान की प्रगति से उत्साहित सत्ता ने इसी क्रम में अब समग्र संदेश दिया है ‘बदलाव’ का।

वर्ष 2010 में यूनाइटेड किंगडम में भी ऐसी ही अन्तर्दृष्टि टीम का गठन किया गया था, जिसे प्रयास, धक्का या ‘नज’ यूनिट कहा गया। अमेरिका में भी युद्ध की शीत अवधि में सरकार ने फर्म, फैक्ट्री, कारखानों में पुरुषों द्वारा सम्पन्न किये जा रहे कार्यों में महिला श्रम शक्ति को प्राथमिकता देना आरम्भ किया। रोजी द रिवेटर के सांस्कृतिक आइकन द्वारा तथा अनेक उदाहरणों, संदेशों व विज्ञापनों के प्रचार-प्रसार से यह संवाद दिया गया कि महिलाएँ अपने स्त्रीत्व को आहत किए बिना पुरुषों द्वारा किए गए कार्यों को बेहतर व कारगर तरीके से सम्पन्न करने में समर्थ हैं।

चीनी राजनीतिज्ञ डेंग जिआओ पिंग का कथन 2019 की र्आिथक समीक्षा में उद्धृत किया गया है कि ‘नदी पार करते समय उसके पत्थरों का ध्यान रखें’। अर्थात यदि निरन्तर असंतुलनशील अर्थव्यवस्था एक बहती हुई नदी है तो आँकड़ों पर आधारित नीति निर्माण के पुन: विन्यास के लिए पत्थरों को ध्यान में रखकर आगे बढ़ना चाहिए। बजट 2019 में वित्तमंत्री कहती हैं कि उनकी सरकार महिला केन्द्रित योजनाओं को आगे बढ़ाना चाहती है तथा सरकार उन योजनाओं को महिलाओं के नेतृत्व में चलाना चाहती है। बजट में महिलाओं के लिए सरकार ने क्या घोषणाएँ की हैं, उन्हें देखना जरूरी है। सरकार अब एक समिति बनायेगी जिसमें सरकारी व निजी दोनों क्षेत्रों के विशेषज्ञ होंगे, जो विकास में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने व उत्पादकता बढ़ाने के सुझाव देंगे। ऐसे सुझाव पिछले कई वर्षों से दिये जा रहे हैं। ये सिर्फ कागजी सुझाव बनकर रह जाते हैं। महिला स्वयंसेवी समूहों की जन धन खाताधारक महिलाएँ खाते में पैसा न होने पर भी अब हर जिले में उपलब्ध कोष से पाँच हजार रुपये का ओवर ड्राफ्ट कर सकेंगी। पहले भी महिलाओं को दो हजार रुपये तक की ओवर ड्राफ्टिंग की सुविधा थी। अब इसकी सीमा पाँच हजार रुपये तक बढ़ा दी है। सरकार द्वारा चलाई गई मुद्रा स्कीम में स्वयंसेवी समूह की एक सदस्य को एक लाख रुपये तक का उधार आसानी से मिल सकेगा। यह भी कहा गया है कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की महिलाओं को अपने कारोबार में मदद के लिए पन्द्रहवें वित्त आयोग के तहत अलग स्कीम लायी जायेगी। परन्तु इसमें क्या होगा, यह स्पष्ट नहीं है।
(Women and Economy)

इससे पूर्व अंतरिम बजट में महिला व बाल विकास मंत्रालय का आवंटन बढ़ाकर 29,000 करोड़ रु़ किया गया था। प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना (PMMVY) के लिए धनराशि 1200 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 2500 करोड़ रुपये की गई थी। तब बजट प्रस्तुत करते हुए तत्कालीन वित्तमंत्री पीयूष गोयल ने बताया था कि मुद्रा योजना की 70 प्रतिशत लाभार्थी महिलाएँ हैं। तब समूची योजनाओं में वित्तीय खर्च 4 प्रतिशत बढ़ाकर 21 लाख करोड़ रुपये कर दिया गया था। लेकिन महिला कर्मचारियों का ई.पी.एफ. योगदान 12 से घटाकर 8 प्रतिशत कर दिया गया था। साथ ही मातृ वंदना योजना में गर्भवती व स्तनपान कराने वाली महिलाओं को 6 हजार रुपये की अनुग्रह राशि दी गई थी। अंतरिम बजट में 2006 से चल रही नेशनल क्रेच स्कीम के 200 करोड़ रुपये के बजट को घटाकर 128 करोड़ रुपये कर दिया। महिलाओं की माँग रही है कि डे केयर सुविधा तथा क्रैच सेंटर्स पर होने वाले खर्चों को टैक्स में छूट की सुविधा मिले तथा कामकाजी व एकल परिवारों को पैरंटल अवकाश दिया जाय। परन्तु इन माँगों पर बजट  में ध्यान नहीं दिया गया। ‘स्पोर्ट टु ट्रेनिंग एण्ड इम्प्लोयमेंट प्रोग्राम’ (STEP) में मात्र 5 करोड़ रुपये का ही बजट आवंटन किया गया। सेनेटरी पैड्स सस्ता करने की माँग भी लगातार उठायी जा रही है। महिला शिक्षा के लिए भी कोई विशेष प्रयास इस बजट में नहीं दिखाई देते। सरकार ने अपनी महत्वाकांक्षी तथा बहुप्रचारित योजना ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ का बजट भी नहीं बढ़ाया। पिछली बार की ही तरह 280 करोड़ रुपये उसके लिये दिये गये हैं। महिलाओं की सुरक्षा के मुद्दे को भी महत्व नहीं दिया गया और निर्भया फण्ड का बजट भी नहीं बढ़ाया। नारी तू नारायणी कहकर महिलाओं को प्रतीकात्मक रूप से उत्प्रेरित करने की कोशिश वित्तमंत्री ने की लेकिन समान काम के लिए समान वेतन की घोषणा बजट में नहीं हो सकी, जो महिलाओं को ठोस र्आिथक आधार और समानता का मूल मंत्र दे सकती थी। गुलाबी या लालरंग के आवरण में आर्थिक समीक्षा की रिपोर्ट या बजट की फाइलों को लपेटकर लाने से महिलाओं को सिर्फ भ्रम में रखने की कोशिश की गई कि हम लैंगिक दृष्टि से सम्वेदनशील हैं। नारी तू नारायणी के मूल सूत्र पर आधारित आर्थिक रूपान्तरण में महिलाओं के योगदान को विशिष्ट व महत्वपूर्ण बनाने का यह सोच बजट में लिंगानुसार व्यय आवंटन की जरूरत की भी अपेक्षा रखता है।

बजट 2019 में महिलाओं के लिए स्टेंडअप इंडिया कार्यक्रम के अन्तर्गत महिला उद्यमियों के लाभ हेतु प्रोत्साहन मूलक टी.वी.कार्यक्रम प्रसारित करने की योजना बनी है तो दूसरी ओर ‘नारी तू नारायणी’ योजना शुरू की जा रही है। इसके लिए एक समिति बनेगी, जो ग्रामीण अर्थव्यवस्था में महिलाओं की भागीदारी बनाने के पक्षों का निर्देश करते हुए समेकित विकास में ग्रामीण व शहरी महिलाओं के योगदान के उपाय बताएगी। इस बात पर जोर दिया गया है कि मात्र महिला केन्द्रित नीति निर्धारण नहीं, बल्कि महिला प्रेरित प्रोत्साहन व गतियाँ उपलब्ध होने का माहौल भी बने।
(Women and Economy)

वस्तुत: व्यवहारात्मक अर्थशास्त्र से प्राप्त अन्तर्दृष्टि का प्रयोग करने वाली कुछ योजनाओं से माहौल तो रचा गया है। इनमें स्वच्छ भारत मिशन और बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ की सोच बढ़ी है। सामाजिक मानकों पर आधारित इन योजनाओं के प्रभाव के बारे में व्यवहार अर्थशास्त्री बताते हैं कि लोग जनसमूह के आचरण व व्यवहार के प्रचलित मानकों का अनुसरण करते रहे हैं। जैसे वह खुले में शौच करने से तब स्वयं रुकेंगे जब उनका पड़ोसी शौचालय जा रहा हो। अपनी बेटियों को पढ़ा-लिखा आत्मनिर्भर बनाने का इरादा भी देखा-देखी पर आधारित एक प्रभावी सामाजिक मानक बन जाता है। इसका क्रमश: प्रभाव देखा जाता है। जिनसे विविध क्रियाकलापों यथा संगीत, नृत्य, योग, खेल, अभिनय, प्रबंध तकनीक सेवा क्षेत्रों में आगे के रास्ते दिखते हैं। ऐसी सफलता साहस व उपलब्धि कथाओं की कमी नहीं, जहाँ किशोरियों-महिलाओं ने विपरीत परिस्थितियों में भी डटे रहकर अपना मिशन पूरा किया और अन्य के लिए यह एक सामाजिक मानक बना।

उदाहरण के लिए अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस को लिंग सशक्तीकरण पर बल देने के लिए सामाजिक मानदण्डों जैसे लड़कियां मूल्यवान हैं, को स्थापित करने में चुना गया था। बाल लिंगानुपात में कमी के मुद्दे व बालिकाओं व महिलाओं के सशक्तीकरण से सम्बन्धित पक्षों के समाधान के लिए 22 जनवरी 2015 को ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ योजना  की शुरूआत हरियाणा में पानीपत से आरम्भ की गई। पानीपत का चयन भी पानीपत में लड़ी गई 1526,1556 व 1761 की ऐतिहासिक लड़ाइयों के दृष्टान्त से किया गया। 2015-17 में 100 जिलों में शुरू यह योजना तदन्तर उसके बाद 61 अतिरिक्त जिलों में लागू की गई। 18 मार्च 2018 को झुंझनू (राजस्थान) से इस योजना को और अधिक विस्तार दिया गया, जहाँ 2011 में हजार में 888 बालिकाएं थी व 2017-18 तक जिनकी संख्या प्रति हजार 922 हो चुकी थी। यद्यपि बाल लिंगानुपात में सुधार के लिए किसी अकेली योजना को श्रेय देना कठिन है और यह भी सच है कि जागरूकता कार्यक्रम रातों रात परिणाम नहीं देते। सोच बदलते देर लगती है। बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ के मूल्यांकन के समय 2015-16 में राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखण्ड में यह देखा गया था कि 2001 से 2011 की जनगणना के बीच बाल लिंगानुपात में गिरावट थी। 2015-16 के आरम्भ में लिंगानुपात बहुत खराब था। पर 2018-19 तक सभी राज्यों में लिंगानुपात में वृद्घि देखी गयी। गौरतलब है कि बहुत खराब लिंगानुपात वाले बड़े राज्यों पर इसका विशेष प्रभाव पड़ा।
(Women and Economy)

दूसरी तरफ उत्तराखण्ड में उत्तरकाशी के 133 गांवों में एक भी कन्या के जन्म न लेने के आँकड़े ने हड़कम्प भी बचा दिया। तुरन्त महिला और बाल विकास की रिपोर्ट में इन 6 विकासखण्डों में शामिल 133 गाँवों में संचालित 158 आंगनबाड़ी केन्द्रों में पिछले तीन माह में जन्मे 222 बच्चों में 160 लड़के व 62 लड़कियों के पैदा होने के सुधरे आंकड़े सामने रख दिये गये। पर प्रवृत्तियां साफ बता रही थीं कि उत्तरकाशी में लिंगानुपात तो गिरा ही है। 2001 में यहाँ प्रति हजार लड़कों पर 942 लड़कियाँ थीं जो वर्ष 2011 में गिरकर 916 हो गयी थी। नीति आयोग की रपट 2018 में उत्तराखण्ड का लैंगिक अनुपात 844 था जिसके पीछे सिर्फ हरियाणा है जहाँ लिंग अनुपात 831 रहा। जून 2019 में नीति आयोग की रपट में स्वास्थ्य सुविधाओं में देश के 21 राज्यों की तुलना में उत्तराखण्ड पिछले वर्ष के 15वें क्रम से लुढ़क कर 17वें स्थान पर आ गया था। नवजातों की मृत्युदर भी प्रति हजार 28 से बढ़कर 232 तक जा पहुँची। उत्तराखण्ड की पहली मानव विकास रपट 2019 के अनुसार राज्य का मानव विकास सूचकांक 0.718 था। इस गिरावट की वजह शिक्षा की गुणवत्ता हीनता, बेकारी व पलायन की दशाएँ यदि हैं तो इसकी पड़ताल जरूरी है।

जनांकिकी में महिलाओं के अनुपात में कमी, सामाजिक रूढ़िवादी सोच व घर-परिवार व समाज के स्तर पर उनके साथ विकृत व्यवहार, हत्या व हिंसा साफ तौर पर महिलाओं के प्रति भेदभावपूर्ण व्यवहार का संकेत है। इसके मूल कारण उस सामाजिक, धार्मिक व आर्थिक जुगलबन्दी से जुड़े हैं जो अनौपचारिक व औपचारिक मानकों व प्रथाओं पर अवलंबित होते हैं। ऐसे में 2019 की र्आिथक समीक्षा व बजट के प्राविधान यद्यपि आचरण व व्यवहार में परिवर्तन का संकेत देते हैं लेकिन उनके क्रियान्वयन में प्रश्न चिह्न भी लगाते हैं। क्योंकि सरकारी प्रवृत्ति जो कि मात्र लक्ष्य पूर्ति के आँकड़ों को देखती है तथा योजनाओं में आय-व्यय के समायोजन में लगी रहती है वह कैसे बदलेगी, यह सवाल अभी भी मुंह बाए खड़ा है।
(Women and Economy)

भेदभाव हर स्तर पर हैं तो इसके निवारण के लिए विधिक प्रणालियों का सुगठन व संस्थाओं के कामकाज को अधिक पारदर्शी बनाना होगा। स्वास्थ्य, देखभाल सभी स्तरों पर गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा, कैरियर व व्यावसायिक मार्ग दर्शन, रोजगार में बराबर पारिश्रमिक उपभोग व उत्पादन प्रक्रिया की हर सीढ़ी में महिलाओं की समान पहुँच और हर स्तर पर उन्हें मौके तो देने ही होंगे। कई छोटे-छोटे कदम भी बड़ा प्रभाव डालते हैं, जैसे महिलाओं को प्रतियोगी बनाने के लिए विविध सेवाओं में आवेदन करते हुए अभ्यर्थियों के लिए शुल्क में छूट व आवेदन पत्र से जनसांख्यिकीय सूचना हटाना, विशिष्ट भर्ती अभियान चलाना, उनके स्वास्थ्य व पोषण की जरूरतों को हर स्तर पर पूरा करना इत्यादि। यहाँ गुणवत्ता पर ध्यान देना बहुत जरूरी है। लकीर के फकीर की तरह आयरन की गोली बाँट देना व बच्चियों का बीमार पड़ जाना बड़ा संवेदनशील मुद्दा है तो ऐसी पुनरावृत्ति बार-बार कैसे होती है? पुष्टाहार में कीड़े निकलते हैं। प्रसव के लिए एम्बुलेंस नहीं मिलती। हर मामला बड़े अस्पताल को भेज दिया जाता है। अब नारी तू नारायणी, बदलाव, बेटी आपकी धनलक्ष्मी, विजय लक्ष्मी के लिए व्यवहारात्मक सिद्धांतों का प्रयोग आर्थिक रपट 2019 के मूल में है। अन्य बातों के साथ उत्पीड़न व भेदभाव की घटनाओं की सूचना व कार्यवाही में, बैंक खाता खोलने, पासपोर्ट वीजा जैसे सरकारी दस्तावेज हासिल करने की प्रक्रियाओं को भी सरल किया जा रहा है। साथ ही ग्रामीण महिला उपक्रमियों व विशिष्ट क्षेत्रों में योगदान दे रही महिलाओं को रोल मॉडल के रूप में विज्ञापित किया जाना सरकारी-गैर सरकारी क्षेत्रों में जारी है। जनमीडिया के द्वारा बेटी आपकी धनलक्ष्मी-विजय लक्ष्मी या बदलाव के माध्यम से उन प्रयासों को उछाल दे रहा है जो पिछले तीन दशकों में लड़कों की तुलना में लड़कियों की स्कूल कालेज में बेहतर परफारमेंस से दिखाई दे रहा था। प्रतिष्ठित नेत्रियों ने हालिया मीटू अभियान की लहर से काफी बड़े चेहरों की नकाब खींच इतना तो जता ही दिया कि प्रतिरोध अपने चरम पर जा सकता है। पर अंतत: इसका दंड कब किसे मिला यह अभी संदेह के घेरे में है। देश-विदेश में शीर्ष पर पहुंची किशोरियों-युवतियों ने नए प्रतिमान बनाए हैं और अब उनके बारे में सब जानते हैं। बजट में भी साफ कहा गया है कि मात्र शीर्ष पर आ गयी महिलाओं की संख्या को उजागर करने के बजाय यह बताना अधिक जरूरी है कि व्यवस्था में महिलाएँ किन-किन स्तरों पर कार्यरत हैं और उनकी भूमिकाएँ क्या-क्या हैं। साथ ही महिला-पुरुष को दिए जाने वाले भुगतान अंतराल को भी पाटना बहुत जरूरी है। टाटा स्कूल ऑफ सोशियल साइंस 2018 के अध्ययन में यह संकेत मिला कि देश में घरेलू हिंसा को अक्सर पारिवारिक मामले की तरह देखा जाता है। इसमें शारीरिक व लैंगिक हिंसा के साथ मौखिक व भावनात्मक हिंसा, आर्थिक शोषण व दुरुपयोग के साथ दहेज व अन्य किसी भी तरीके से मानसिक या शारीरिक क्षति एसिड अटैक सब शामिल हैं। बच्चियों-किशोरियों के साथ बलात्कार के बाद हत्याओं का ग्राफ तेजी से बढ़ रहा है। महिला तस्करी जारी है। पर्यटन उद्योग में निरंतर आपूर्ति बढ़ती जा रही है।

आर्थिक-अनार्थिक सभी क्षेत्रों में पुरुषों के साथ कदमताल करती सभ्यता के आधार पर महिलाओं के द्वारा सभी मानवाधिकारों व मौलिक स्वतंत्रता के सभी कथ्य तब ही व्यावहारिक हो सकते हैं जब भागीदारी व निर्णय में महिलाओं की भूमिका व पहुँच के अवसर लगातार मिलते रहें। जब तक महिला संगठनों के साथ बेहतर तालमेल व साझेदारी नहीं होगी, समस्याओं के समाधान के प्रति निरन्तर संवाद नहीं होंगे, कोई भी प्रयास कागजी ही सिद्घ होगा, ठीक वैसे ही जैसे महिला प्रधान के नाम का ठप्पा प्रधान पति ठोकते रहे हैं।

उत्तरा के फेसबुक पेज को लाइक करें : Uttara Mahila Patrika