सामूहिक खेती करती महिलाएँ

शीला रजवार

उधमसिंह नगर में निवास करने वाली थारू और बोक्सा जनजाति समाज की स्थिति आज भी र्आिथक दृष्टि से कमजोर है। खेती उनके जीवन का मुख्य साधन होते हुए भी उनके पास वर्तमान में अपनी जमीन बहुत कम रह गयी है। महाजनी सभ्यता के अवशेष आज भी यहाँ पर देखने को मिलते हैं। आदिवासियों की जमीनें धीरे-धीरे भूमाफियाओं के पास चली गईं हैं।

इन विकट परिस्थितियों में गदरपुर के जगनपुरी गाँव की बुक्सा जनजाति की महिलाओं ने अपनी गिरवी रखी जमीन को वापस किराए पर लेकर उसमें सामूहिक खेती कर नई सकारात्मक पहल की है।  इस गाँव की गुड्डो देवी ने महिला अधिकारों के लिए कार्यरत सामाजिक कार्यकर्ता हीरा जंगपांगी के सहयोग से 10 महिलाओं का सबला समूह बनाया। प्रारम्भ में सबला संगठन ने महिला अधिकारों के लिए काम किया फिर समूह द्वारा एक एकड़ जमीन में सामूहिक खेती की शुरूआत की गयी जिसमें 30 कुन्तल धान उगाकर 45,000  रुपये की आय र्अिजत की गई। जिसमें  व्यय मात्र 5,000 रुपये  हुआ यानी छ: माह में 40,000 रुपये की बचत तथा सालभर में कुल 80,000 रुपये की बचत हुई।
( Women and Collective farming)

सबला संगठन ने न केवल सामूहिक खेती की शुरूआत की वरन् जैविक खेती को भी बढ़ावा दिया है और लोगों को भी इसके लिए जागरूक करने का कार्य किया है। ये अपने खेत में जैविक खाद का प्रयोग कर रही हैं। साथ ही इनके द्वारा तैयार जैविक खाद को लोग खरीद भी रहे हैं। जिससे अतिरिक्त आय हो रही है।

खेती से प्राप्त आय को महिलाएँ आपस में बराबर बाँट लेती हैं। यह सामूहिकता और सहभागिता का अनूठा और सफल प्रयोग है। इससे एकता की ताकत का अहसास जगा है चाहे वह प्रारम्भिक अवस्था में महाजन से गिरवी रखी जमीन का कब्जा छुड़ाना हो या फसल से सम्बन्धित। खेत जोतने से लेकर निराई-गुड़ाई तक के सभी काम महिलाएँ अपने दम पर कर रही हैं। यह भी उल्लेखनीय है कि यह वह जमीन थी जिसे पुरुष वर्ग ने शराब के लिए गिरवी रख दिया था। इस तरह उन्होंने सामूहिक खेती के माध्यम से महिलाओं की अपनी पहचान बनाई है।

ये महिलाएँ अपनी कृषि उपज को खुद ही मंडी में भी ले जाती हैं। इसके लिए उन्हें पारम्परिक पुरुष वर्चस्व से लेकर मंडी के तौर-तरीकों में काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ा लेकिन उन्होंने सभी जगह पुरुषों को कड़ी चुनौती दी। अब वे संगठित होकर अपने हकों के लिए आवाज उठाने लगी हैं। अपने समूह, संगठन तथा अन्य गाँवों में खुली बैठकों में सामूहिक खेती पर चर्चा करने लगी हैं। पहले अपने ही खेतों में मजदूरी कर रही थीं अब स्वयं मालिक हैं। उनके द्वारा ब्लॉक स्तर पर बीज बैंक की माँग की जा रही है। गुड्डो देवी ने बताया कि बुक्सा समुदाय अभी भी पारम्परिक बीज का ही प्रयोग करते हैं। उन्होंने गाँव-गाँव में बीज बचाओ अभियान चलाया, मिट्टी के कोठले बनाकर बीज को सुरक्षित रखने के बारे में जानकारी दी। उन्होंने बताया, किसान का सबसे महत्वपूर्ण पारम्परिक बीज जैविक खाद है।
( Women and Collective farming)

इस समय पाँच गाँवों में परम्परागत बीज बैंक तैयार हैं। इससे समुदाय में इन बीजों के संरक्षण, सम्वद्र्धन के लिए जागरूकता आयेगी। पारम्परिक बीजों का विस्तारण और संग्रहण होगा।

इस प्रकार इन महिलाओं में जागरूकता और संगठनात्मकता का विकास हुआ है। आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हो जाने और अपनी श्रम शक्ति की पहचान बन जाने के कारण वे सामूहिक रूप से निर्णय लेने में भी सक्षम हुई हैं। उनके साथ होने वाली हिंसा में कमी आई है। वे बच्चों को अच्छे स्कूल में भेज रही हैं। उनमें सामाजिक जिम्मेदारी की सोच पनपी है। एकल महिलाओं को इस खेती में प्राथमिकता दी जा रही है। खेती से प्राप्त आय से जरूरतमंद महिलाओं की मदद भी करते हैं।

सामूहिक खेती के लिए पहल करने वाली गुड्डो देवी अपनी उपलब्धियों को बताते हुए कहती हैं कि सामूहिक खेती की पहचान से प्रेरित होकर नाबार्ड द्वारा 10 किसान क्लबों का गठन किया गया है। अगर देखा जाय तो हम लोग समूह संगठन से लेकर आज ग्राम पंचायत स्तर तक नेतृत्व में पहुँचे हैं तथा प्रधान, क्षेत्र पंचायत सदस्य, वार्ड मेम्बर बने हैं। हमने हर स्तर पर सामाजिक मुद्दों को लेकर आवाज उठायी है।

समुदाय की इन महिलाओं की सोच और कार्य न केवल उनकी अपनी पहचान बना रहे हैं वरन् यह समाज की अन्य महिलाओं के लिए एक आदर्श स्थापित कर रहे हैं।
( Women and Collective farming)

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