शराब के खिलाफ महिलाएं

प्रीति थपलियाल

उत्तराखण्ड की जनता ने अलग राज्य की मांग इस उम्मीद के साथ की थी कि नये राज्य में सभी बुनियादी सुविधाएँ होगी तथा भय और नशामुक्त समाज का निर्माण होगा। आजादी के बाद अनेक आन्दोलनों के साथ 80 के दशक में ‘नशा नही रोजगार दो’ आन्दोलन के प्रमुख ऐजेण्डे में था। लेकिन शराब का कारोबार लगातार बढ़ता जा रहा है। इससे राज्य की आर्थिेक, सामाजिक, पारिवारिक, तथा स्वास्थ्य सम्बधी स्थितियाँ  बहुत बुरी तरह प्रभावित हुई हैं। प्रत्येक सरकार चुनाव जीतने से पहले शराब मुक्त राज्य बनाये जाने पर बल देती है लेकिन सत्ता में आने के बाद ये सभी वायदे खोखले हो जाते हैं। आज शराबबंदी के कार्यक्रम इसलिये विफल हो रहे हैं क्योंकि उसमें राजनैतिक प्रतिबद्धता की कमी है। शराबबन्दी की घोषणा केवल वोट प्राप्त करने व जनता को गुमराह करने के लिये की जाती है। उत्तराखण्ड में जहाँ एक ओर गाँवों में अस्पताल, स्कूल, राशन की दुकान, पानी आदि मूलभूत सुविधाओं की कमी है, वहीं गाँव में शराब की दुकानें मौजूद हैं। शराब को राज्य की आय का मुख्य स्रोत मानकर प्रतिवर्ष दुकानें बढ़ाई जाती हैं जिस कारण दूर-दूर तक के गाँवों में शराब पहुँच चुकी है। जिससे महिला हिंसा की घटनाओं में  लगातार वृद्वि हो रही है। शराब के खिलाफ महिला आन्दोलनों को कमजोर करने के लिये शराब व्यवसायियों में एक सोची समझी साजिश के तहत लाटरी पद्घति से दुकानें आवंटित करने के लिये महिलाओं के नाम से ठेके दिये जा रहे हैं। इस वर्ष सुप्रीमकोर्ट ने आदेश दिया है कि हाईवे पर चल रही शराब की दुकानें और बार बंद किये जायेंगे। लेकिन पहाड़ से लेकर मैदान तक इनकी जगह बदलाव का विरोध चल रहा है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के चलते एऩएच़ और स्टेट हाइवे से 500 मीटर दूरी पर शराब की दुकानें खोली जानी हैं।

लेकिन राज्य सरकार के द्वारा शराब को तवज्जो देने के लिये राज्य मार्गों को जिला मार्ग घोषित करने का जुगाड़ किया जा रहा है जिससे गढवाल मंडल के उखीमठ में शराब की दुकान के खिलाफ महिलाओं ने मोर्चा सम्भाला है। महिलाएँ यहाँ ठेका बंद करने के लिये आ गयी हैं। उधर कोटद्वार के पूर्व विधायक शैलेंद्र सिहं रावत ने पौखाल बाजार के निकट शराब ठेका खोलने का विरोध किया है। गैरसैंण के कोलियाणा और ग्वाड़ गाँव की महिलाओं ने दुकान के स्थान परिवर्तन का विरोध किया है। रुड़की रामपुर चुंगी से देशी शराब के ठेके को सुनहरा में खोल दिया है। जैसे ही बंद दुकान खुली, महिलाओं और ठेकेदारों में जमकर संघर्ष हुआ। हरिद्वार के शक्तिनगर व चिड़ियापुर में भी ग्रामीणों ने शराब के ठेके के खिलाफ प्रदर्शन किया। दूसरी ओर कुमाऊँ  मण्डल में चंपावत के पाटी और सूखीढांग,उधमसिंह नगर जिले के काशीपुर दिनेशपुर और नैनीताल जिले के कई स्थानों पर नेशनल हाईवे पर बंद हुई शराब की दुकानें अन्य स्थान पर खोलने का जबरदस्त विरोध हो रहा है। अल्मोड़ा के बसौली में महिलाओं ने राजमार्ग पर शराब की बिक्री का आरोप लगाते हुये प्रदर्शन किया। सुप्रीम कोर्ट की ओर से तय मानक और जगह-जगह लोगों के विरोध के चलते शराब की करीब 87 प्रतिशत दुकानें बंद हैं। राज्य में 526 में से सिर्फ 70 दुकानें ही खुली हैं। मुख्य मार्ग से औद्योगिक क्षेत्र सेलाकुंई में शराब के दो ठेके  खोलने पर उद्योग संचालकों ने विरोध किया है। इसे लेकर उद्योग संचालकों ने जिलाधिकारी को भी पत्र लिखा। पत्र में कहा है कि जल्द दोनों ठेके नहीं हटाये गये तो वह अपने उद्योग बंद रखेंगे। इस पर भी समाधान नही होता है तो उद्योग दूसरे राज्यों में स्थानान्तरित कर दिये जायेंगे। उत्तराखण्ड इंडस्ट्रीयल वेलफेयर एसोशियेशन का यह भी कहना है कि सेलाकुई की कई फैक्ट्रियों में महिलाएँ काम करती हैं। अगर उद्योगों के नजदीक ठेके खुल जायेंगे तो महिलाओं का काम करना मुश्किल होगा। और उद्योगों में भी काम का माहौल खराब होगा। महिलाओं के साथ छात्र भी शराब ठेके को अन्यत्र खोलने के विरोध में लामबंद हो गये हैं। विभिन्न छात्र संगठनों ने देहरादून के डी.एम. कार्यालय में ज्ञापन सौंपा व उग्र आन्दोलन की धमकी दी।
(women against alcohol)

शराब बंदी का यह आन्दोलन पूरे कुमाऊँ व गढवाल में तमाम छोटी-बड़ी जगहों पर चल रहा है। हमेशा की तरह शराब विरोधी मोर्चे की शुरूआत महिलाओं ने ही की है। सभी जगहों पर महिलाएँ उग्रता के साथ शराब के ठेकों को बंद करवाने की माँग कर रही हैं। आज से कुछ वर्ष पहले सन 2006 मई-जून में पिथौरागढ़ के गंगोलीहाट तहसील में शराब की दुकानों को बंद करने के लिये एक उग्र आन्दोलन हुआ था जिसे गंगोलीहाट की सारी जनता ने बराबर सहयोग दिया। इस आन्दोलन के दौरान कुछ अप्रिय घटनाएँ भी घटी। यहाँ तक कि एक आन्दोलनकारी महिला के साथ बलात्कार की घटना भी सामने आई। स्थानीय और राष्ट्रीय न्यूज चैनलों पर यह आन्दोलन छाया रहा। काफी संघर्ष के बाद आन्दोलन सफल रहा। गंगोलीहाट से शराब की दुकान बंद करवा दी गयी। परन्तु  गंगोलीहाट से शराब नहीं हट सकी। इस प्रकार पूरे उत्तराखण्ड में शराब के खिलाफ पुरजोर आन्दोलन चल रहे हैं। उत्तराखण्ड में शराब को पूर्ण रूप से बंद किया जाय, इसी मंशा से ये आन्दोलन चलाये जा रहे हैं और इन आन्दोलनों में महिलाओं की भूमिका अग्रणी है। कई जगहों पर शराब की दुकानों को भी तोड़ा गया है। नवगठित राज्य जो प्राकृतिक धरोहर से समृद्घ है तथा जहाँ एक ओर हिमालय से निकलने वाली सदाबहार नदियाँ हैं, वही 67 प्रतिशत भूभाग वनों से घिरा है।

यहाँ अमूल्य प्राकृतिक जड़ी बूटियों का अम्बार है। उत्तराखण्ड में पर्यटन की असीम सम्भावना है। इसके अलावा यहाँ लघु व कुटीर उद्योगों के लिये अनुकूल परिस्थितियाँ है। यहाँ छोटे-छोटे डैम बनाकर इतनी बिजली बनाई जा सकती है कि पूरे देश को बिजली की आपूर्ति की जा सकती है। परन्तु इस ओर किसी भी सरकार का ध्यान नहीं गया। कांग्रेस व भाजपा सरकारों ने घर-घर तक शराब पहुँचाने का काम जरूर किया है। इसका परिणाम यह हुआ कि शराब का वैध-अवैध कारोबार खूब फल-फूल रहा है। आज हालात ये हैं कि प्रत्येक गाँव में शराबियों का ताण्डव देखा जा सकता है। शादी हो या अन्य समारोह बिना शराब के पूरे नही होते हैं। यहाँ तक कि सरकारी विभागों में भी शराब का चलन जोरों पर रहता है। इसका सबसे अधिक असर महिलाओं के जीवन पर पड़ता है। वैसे ही पहाड़ में महिलाओं का जीवन काफी कष्टों व चुनौतियों से भरा है। इसके बाद घरों में आकर शराबी पतियों की मार व गाली भी महिलाओं को खानी पडती है। सरकार सफेद झूठ बोलती रहती है कि आज सरकार के सबसे बडे़ आमदनी के स्रोत शराब व अन्य नशे का कारोबार है। अगर ये कारोबार बंद हो जायेंगे तो सरकारी महकमों का खर्चा चलाना व शिक्षा, चिकित्सा जैसी कल्याणकारी योजनाओं के खर्च कैसे चलेंगे। लेकिन उत्तराखण्ड की मेहनतकश जनता शराब की काली कमाई से उत्तराखण्ड का विकास नही चाहती है। जनता लगातार सलाह देती है कि यहाँ के प्राकृतिक संसाधनों का उचित उपयोग किया जाय, नदी घाटी, बुग्याल, तथा वन संपदा का उपयोग किया जाय, सरकार चाहे तो व्यावहारिक नीतियां बनाकर पहाड़ से पलायन को रोक सकती है। जल-जंगल -जमीन पर सरकार सरकारी रोजगार के माध्यम से इस प्रदेश की सूरत बदल सकती है। लेकिन भारतीय जनता पार्टी की सरकार पूर्ण शराब बंदी के बजाय महज 6 घंटे शराब की दुकानें 3 से 9 बजे सांय तक खोलने पर खुद ही अपनी पीठ थपथपा रही है। राज्य में रोजगारपरक शिक्षा नही है। रोजगार की स्थिति यह है कि डिप्लोमाधारियों को किसी भी तरह का रोजगार नही मिल रहा है। महंगाई की माँग चौतरफा है, पहाड़ों की खेती जंगली जानवरों की भेंट चढ़ रही है या प्राकृतिक आपदाओं के करण बरबाद होती है, जैसे सूखा आदि। इन परिस्थितियों के लिये सम्पूर्ण रूप से सरकार जिम्मेदार है। केन्द्र से राज्य सरकार तक न तो सरकारों द्वारा रोजगार की व्यवस्था की जा रही है और न ही प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग किया जा रहा है। सरकार बड़े बड़े पूँजीपतियों को ये प्राकृतिक संसाधन कौड़ियो के दाम पर दे रही है। विदेशी कम्पनियों के दबाव में जंगलों व जंगली जानवरों को सुरक्षित करने का काम कर रही है। जो आम लोगों से पहाड़ को खाली करवा रहे हैं। सरकारें इको सेन्सिटिव जोन खोलकर फार्म व सेंचुरियां बना रही है जिससे विदेशी पर्यटक उत्तराखण्ड घूम कर लुत्फ उठायेंगे। जंगली जानवरों को प्रत्यक्ष देख पायेंगे। इन कम्पनियों से भारत व राज्य सरकारों को प्रतिवर्ष हजारों करोड़ रुपये का ग्रीन बोनस प्राप्त होता है। जनमानस को नशे की लत में डालने के लिये मदिरापान धूम्रपान आदि नशीले पदार्थों का कारोबार सरकार के महकमों के लोगों की मिलीमगत से किये जाते हैं। शराब व अन्य नशीले पदार्थों के कारोबार में तभी प्रतिबंध लग सकता है जब आम जनता इन जनविरोधी सरकारों और राजनैतिक पार्टियों के खिलाफ व्यापक और सशक्त जन आन्दोलन खड़ा करे व जनता इन सरकारों को अपनी ताकत का एहसास कराये।
(women against alcohol)

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