मधु की मधुरता बनी रहे

शमशेर सिंह बिष्ट

21 फरवरी को सुबह-सुबह यह समाचार मिला कि अल्मोड़ा कूर्मांचल एकेडेमी की निदेशक शिक्षाविद्, विचारक व कई संगठनों से जुड़ी श्रीमती मधु खाती का मंगलवार को देहरादून में निधन हो गया। इस समाचार से अल्मोड़ा शहर स्तब्ध ही नही रह गया बल्कि पूरे शहर में शोक की लहर दौड़ गई।

यह बताया जाता है कि शीतकालीन अवकाश में दक्षिण भारत की यात्रा के बाद मधु अपने घर देहरादून वापस आ गई थी। वही एक समारोह में गिरने के बाद रीढ़ की हड्डी में समस्या पैदा हो गई थी। जिसके  लिए उनका आपरेशन किया गया। आपरेशन के बाद उनकी तबीयत अचानक रात को खराब हो गई जिसके लिए उनको आई.सी.यू. में भर्ती किया गया लेकिन जीवन के संघर्ष में हारकर मंगलवार की सुबह उन्होंने अन्तिम सांस लेकर अलविदा कह दिया।

मधु की प्रारम्भिक शिक्षा देहरादून में ही हुई। उच्च शिक्षा के लिए वह बड़ौदा चली गई। वहीं से शिक्षा के साथ-साथ जीवन जीने की कला की शिक्षा भी प्राप्त की। उनके पिता श्री हीरा सिंह बिष्ट व माता स्व. गौरा देवी बिष्ट की दो सन्तानों में मधु व भाई मोहित का जीवन भर अगाध प्रेम बना रहा। उनके पिता अल्मोड़ा जनपद के पिठौनी गाँव के थे। माता गौरा देवी का भी बचपन चम्पानौला मोहल्ले में ही बीता है। माता ने भी प्राइमरी से लेकर उच्च शिक्षा तक अल्मोड़ा से ही प्राप्त की। मधु की नानी श्रीमती कुन्ती दीदी ने भी संघर्षों से अपने बच्चों का लालन-पालन किया तथा कुन्ती दीदी हमेशा समाज के प्रति संवेदनशील रहकर लोगों के सुख दुख में शामिल रहती थीं। इसी का प्रभाव मधु के जीवन में समाज के प्रति संवेदनशील होने की भावना में दिखाई देता है।

मधु का विवाह भारतीय सेना में कार्यरत कैप्टन देवेन्द्र पाल सिंह खाती के साथ हुआ, लेकिन कुछ ही समय बाद एक दुर्घटना में कैप्टन खाती चल बसे। बहुत कम उम्र में पति का साथ छोड़ जाना किसी भी महिला के लिए सबसे बड़ा संकट होता है, विशेषकर उत्तराखंड में जवानों के शहीद होने के समाचार आते रहते हैं लेकिन मधु खाती ने सन् 1991 में अल्मोड़ा में कूर्मांचल स्कूल खोलकर महिला सशक्तीकरण का वास्तविक रूप समाज के सामने रखा। प्रथम वर्ष जब कूर्मांचल स्कूल आरम्भ हुआ तो तीन कक्षाओं में ग्यारह बच्चों ने प्रवेश लिया था। मधु खाती की मेहनत से अल्मोड़ा में पहला आई.सी.एस.सी. बोर्ड वाला स्कूल बना। आज इसी स्कूल की चार शाखाएँ हैं जिनमें एक लोधिया में स्थापित है, जहाँ निर्धन बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा दी जाती है। इन छब्बीस सालों में मधु द्वारा प्राइमरी स्कूल से की गई शुरूआत आज इण्टरमीडिएट तक पहुँच गयी है। मधु ने शिक्षा का मतलब कभी भी किताबी ज्ञान को नहीं माना। कूर्मांचल एकेडमी की खास बात यह है कि यहाँ किताबों का अध्ययन तो है ही लेकिन उससे महवपूर्ण समाज के विभिन्न क्षेत्रों में विद्यार्थीयों को शिक्षित करना इस विद्यालय का उद्देश्य रहा है। आज से लगभग तीन सौ वर्ष पहले अमरीका के राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने हेड मास्टर के नाम जो पत्र लिखा था, जिसमें कहा गया था मेरे बच्चे को ऐसे ढालो, बच्चे को यह बताओ जहाँ सुख है वहाँ दुख है, हँसना-रोना बराबर बना रहता है, अच्छे-बुरे लोग समाज में मिलते रहते हैं, धूप भी है कड़ाके की ठंड भी है। इस तरह से अब्राहम लिंकन ने विस्तार से कैसी शिक्षा हो, इसकी विवेचना की है। लिंकन के तीन सौ साल बाद अल्मोड़ा में कूर्मांचल स्कूल खोलकर बच्चों को इसी तरह शिक्षित करने का प्रयास मधु ने किया। इसीलिए इन छब्बीस वर्षो में कूर्मांचल स्कूल से निकलने वाले बच्चे देश-विदेश में महवपूर्ण पदों पर विराजमान हैं।

8 जुलाई 1962 को जन्मी मधु 54 वर्ष में ही समाज को महत्वपूर्ण योगदान देकर अलविदा कह गई। मधु का लक्ष्य स्कूल चलाकर धन र्अिजत करना नहीं रहा लेकिन स्कूल में बच्चों व अध्यापकों को वह सारी सुविधाएँ उपलब्ध हों जो समाज अपने लिए करता है। मधु ने विद्यार्थियों, अध्यापकों से अपने गहरे सम्बन्ध बनाए रखे। उन्हें विद्यार्थियों का आदर भाव सिर्फ कूर्मांचल एकेडमी के मुखिया के रूप में नहीं मिलता था बल्कि स्कूल का हर विद्यार्थी अपने अन्तर्भाव से मधु को अपना शिक्षक ही नहीं, अभिभावक भी समझता था। मधु की सीख हमेशा विद्यार्थियों ने अपने सिर माथे पर रखी। इसीलिए मधु के देहान्त की खबर ने इन छब्बीस सालों में देश-विदेश में रहने वाले विद्यार्थियों को अन्दर तक हिलाकर रख दिया। मधु ने जो अपार श्रद्घा, प्रेम, सद्भावना अर्जित   की है वह अमूल्य है। इसीलिए मधु की मधुरता हमेशा समाज में बनी रहेगी।

मधु के जाने पर विभिन्न क्षेत्रों में श्रद्घांजलियों का कम्र जारी है। खेल, संगीत, महिला सशक्तीकरण, आर्ट आफ लिविंग में भी मधु सक्रिय रही हैं। होली, गायन, गणेश महोत्सव में हमेशा बढ़-चढ़कर हिस्सा लेती रही हैं। ऐसे कई उदाहरण मधु के पूरे जीवन में मिलते हैं,जब वह बिना किसी स्वार्थ के असहाय लोगों की मदद करती रहीं। दूरस्थ ग्रामीण क्षेत्रों में भी प्रतिमाह कई निर्धन लोगों की सहायता करती रहीं। सामाजिक क्षेत्रों में सक्रियता से स्कूल की सक्रियता भी बनी रहती थी।

इन छब्बीस सालों में मधु ने आन्तरिक व बाहरी संघर्षों को भी बखूबी सफलता की ओर उन्मुख बनाए रखा। समाज में सकारात्मक कार्यों के लिए व्यवधान आते रहते हैं और इस प्रतियोगिता के युग में भी प्रतिद्वंदिता बनी रहती है। मधु की ओर संस्था की उन्नति को प्राथमिकता दी गई जिसके कारण मधु किसी संगठन विशेष की नहीं बन पाई और सफलता की ओर बढ़ती गई। अब यही आशा करते हैं कि मधु की मधुरता को कूर्मांचल एकेडमी बनाए रखेगी।
(Tribute to Madhu)

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