इच्छा शक्ति की धनी : जुंको ताबेई

गौतम  सिंह मौर्य

  ‘तकनीक और योग्यता अकेले आपको शिखर तक नहीं पहुँचा सकते, इच्छा शक्ति सबसे जरूरी पहलू है। इसे आप न तो खरीद सकते हैं और न आपको कोई यह उपहार देगा। यह आपके हृदय से जन्मेगी।’
-जुंको ताबेई 

हम जितने भी लोग हिमालय और उसके नीचे शिवालिक पर रहते हैं, रोज अपने हिस्से का पहाड़ चढ़ते हैं। दूर के इलाकों में तो जीवन ही पहाड़ जैसा होता है। पहाड़वासियों की रोज की चढ़ाई जोड़ी जाए तो एवरेस्ट से कम ऊँचाई न बनेगी। आम मनुष्य के लिए जीवन जीना भी पहाड़ चढ़ने जैसा है, फिर कोई एवरेस्ट पर चढ़े तो उपलब्धि दोगुनी मानी जाएगी। मनुष्यों में भी स्त्री का जीवन ज्यादा कठिन चढ़ाई है। जुंको ताबेई ने अपने जीवन की सभी कठिन चढ़ाइयों के साथ उस पर्वत की ऊँचाई पर भी कदम रखे, जो दुनिया का सबसे ऊंचा शिखर है। जुंको ताबेई अपने एक भाषण में कहती हैं कि सागर के माथे पर चढ़ना वास्तविक दुनिया में तारे को छूने के समान है। यह वह जगह है, जहां आप उन तारों के सबसे करीब होते हैं, जिनको सब पाना चाहते हैं। हर यात्रा अपने साथ कठिनाइयां लेकर आती है। उस यात्रा से आप क्या सीखते हैं, वह आपकी सर्वोच्च उपलब्धि है।

सर्वज्ञात है कि जुंको ‘सागरमाथा’ यानी एवरेस्ट पर चढ़ने वाली प्रथम महिला हैं। 22 सितम्बर 1939 को फूकोशिमा जापान में जन्मी जुंको के जीवन में चढ़ाइयों का सफर एवरेस्ट के शिखर पर चढ़ने से पहले ही शुरू हो गया था। शिखरों को छूना उनके जीवन के शुरूआती जुनूनों में से था और उन्होंने 16 मई 1975 को एवरेस्ट के शिखर को छू लिया। अपनी इस उपलब्धि पर वे कहती हैं- मुझे यह समझ में नहीं आता कि पुरुष एवरेस्ट चढ़ने का बतंगड़ क्यों बनाते हैं? यह बस एक पहाड़ है। इस कथन में पुरुष शब्द से जुंको का यह कथन खास हो जाता है। अंग्रेजी में यह कथन कुछ ऐसा मिलता है- I can’t understand why men make all this fuss about Everest-it’s only a mountain औरतों ने नहीं, आदमियों भर ने उनके पहले इस पहाड़ को जीता था और जुंको का जापान उस समय पुरुषवादी मानसिकता से हिंसा की हद तक भरा था। जापान में लैंगिक समानता तब दूर की सोच थी और स्त्री को पुरुष से कमतर समझा जाता था। जुंको न केवल अपने काम से बल्कि अपने कथन से भी उस दुश्चक्र को तार-तार करती हैं। वास्तविकता यही थी और यही है कि स्त्री न जाने कितने एवरेस्ट चढ़ने सरीखे काम चुपचाप करती जाती है और पुरुष अपनी ऐसी उपलब्धियों को अतिवादी ढंग से बखानते रहते हैं- हाँ पुरुष अक्सर ही बतंगड़ ज्यादा बनाते हैं। जापान भर में नहीं, दुनिया भर में ऐसे अनेक उदाहरण मौजूद हैं, भारत में कुछ ज्यादा।

जुंको ने आसाधारण काम किए पर उन्हें असाधारण बताए जाने का विरोध किया। वे सहज मनुष्यता की हामी थीं। हमें उनसे सीखना चाहिए कि मनुष्य होना सबसे पहले विनम्र होना है- फिर असाधारण मनुष्य होना, उतने ही साधारण और विनम्र होने की शर्त भी साथ रखता है। ऐसा हो सकने का सामथ्र्य एक स्त्री में ज्यादा होता है। जरूरी नहीं कि एवरेस्ट चढ़ें पर जो एवरेस्ट उन्होंने अपने व्यक्तित्व से बनाया है, उस तक पहुँच पाना, उन जैसा हो पाना भी हमारे लिए चुनौती है।

वे एक सहज, सरल और मनुष्यता की शिखर जैसी स्त्री थीं, उन्हें नमन।
(Tribute to Junko Tabei)

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