वह अनूठा व्यक्ति : बी. मोहन नेगी

इन्द्रेश मैखुरी

कविता को चित्र जैसे शब्द में ढालने वाले बी. मोहन नेगी, अब शब्दों और चित्रों में ही शेष रह गये हैं। वैसे बी. मोहन नेगी स्वयं चलते-फिरते चित्र थे। उनके छोटे कद के ऊपर गोरे चेहरे पर मेंहदी के रंग में रंगी दाढ़ी, जो सिर्फ चेहरे की ही सीमा तय नहीं कर रही होती थी, बल्कि उसके बाहर भी गले को ढकती हुई लहरा रही होती थी। उनकी बोलती आँखें, चेहरे की मुस्कान में अपना योगदान दे रही होती थीं। ऐसा लगता था कि ये गोल-गोल आँखें, दीखने वाली हर चीज को विस्मित होकर देख रही हों। शायद चित्रों को रचने के लिए यह विस्मय आवश्यक होता होगा, तभी किसी चीज में छिपे चित्र को पकड़ा जा सकता होगा। दुनियाँ में दिखने वाली चीजों में नयापन दिखेगा, तभी नया सृजन भी होगा। तो मेंहदी रंग में रंगे बाल, उसी रंग में लहराती दाढ़ी और बेहद जीवन्त और उत्सुक आँखें। कुल मिलाकर एक पोट्रेट जैसा ही व्यक्तित्व। चित्र बना सकने वालों की निगाह इस बेहद चित्रात्मक चेहरे पर गयी कि नहीं गयी, पता नहीं लेकिन निगाहें उनके बनाये कविता-पोस्टरों पर जरूर ठहर-ठहर जाती थीं।

पढ़ी-अपढ़ी कविताएँ, नेगी जी के कुशल हाथों से पोस्टर पर एकदम नये रूप-रंग में प्रकट होती थीं। कवि द्वारा लिखी जा चुकी कविता को एक प्रकार से पोस्टर पर नेगी जी पुन: रच देते थे। आप चाहें तो कविता पढ़ सकते हैं, न भी पढ़ें तो पोस्टर पर बिखरा उसका आकर्षक रूप निहार सकते हैं। कविता को पठनीय के साथ ही दर्शनीय बनाने का काम बी. मोहन नेगी कई दशकों से कर रहे थे। सैकड़ों की तादात में रचे गये ये कविता-पोस्टर ही नेगी जी की अमूल्य निधि थे। इस खजाने को बेहद सहेजकर रखना और जगह-जगह उन्हें प्रदर्शनी हेतु पहुँचाना भी एक अलग तरह के श्रम और धैर्य की माँग करता है। 1980 के दशक में गोपेश्वर में पोस्ट ऑफिस की नौकरी के दौर से शुरू हुआ कविताओं को पोस्टर में ढालने का यह सिलसिला अनवरत चलता रहा। दिन में नौकरी और रात में पोस्टर, शायद इसी तरह से यह सिलसिला चलता होगा। पोस्ट ऑफिस जैसी हर समय आदमी को खटाए रखने वाली, एकरस-उबाऊ किस्म की नौकरी में अपनी सृजनशीलता को न केवल कायम रखना बल्कि उसे निरन्तर बढ़ाते रहना ही अपने-आप में बड़ी बात है।

एकरस- उबाऊ नौकरी के बावजूद नेगी जी की जीवन्तता भी उनके पोस्टरों की तरह ही रोचक थी। खूब बतरसिया आदमी थे वे। अपनी दाढ़ी और बालों के रंग से वे कुछ-कुछ रूस के अगल-बगल वाले मुल्कों में से किसी एक के बाशिन्दे मालूम होते थे। उन्हें न जानने वाले तो उन्हें बहुधा विदेशी ही समझते थे।
(Tribute to B. Mohan Negi)

पोस्टर पर रचे जाने के लिए कविताओं का चुनाव करने में नेगी जी अपने आस-पास ही नहीं ठहरे रहे। बल्कि उत्तराखण्ड से लेकर देश-दुनिया के तमाम कवियों की कविताओं को अपने पोस्टरों में उन्होंने जगह दी। वे पहाड़ी आदमी थे, पहाड़ में रहते थे। पहाड़ उन्हें प्रिय थे। इसलिए पहाड़ पर लिखी हुई जितनी कविताएँ उन्हें मिली, उन सबको वे कविता-पोस्टरों में ले आये। पलायन की मार झेलते पहाड़ों की छद्म चिन्ता में मग्न बौद्धिकों पर बी. मोहन नेगी की खुद की गढ़वाली कविता भी क्या सीधा निशाना लगाती है-

‘‘जू छा ब्याली तक
पलायन पर लेख, कविता
ग्रन्थ लिखणा
अखबार छपणा
वो देखिन मिन
पाँच बिस्वा जमीनै खातिर
तै देहरादूण रिटणा’’
(जो थे कल तक/पलायन पर लेख, कविता/ग्रन्थ लिखते, अखबार छापते/उन्हीं को देखा मैंने/पाँच बिस्वा जमीन की खातिर/उस देहरादून में मँडराते।)

हिन्दी कवि हरिवंशराय बच्चन से लेकर वीरेन डंगवाल तक की कविताओं के गढ़वाली साहित्यकार नरेन्द्र कठैत द्वारा किये गये अनुवादों के पोस्टर भी नेगी जी ने बनाए।

नागार्जुन धूमिल, मुक्तिबोध, सर्वेश्वरदयाल सक्सेना, दुष्यंत कुमार से लेकर कितने ही कवियों की कविताओं को उन्होंने पोस्टर पर उतारा। चन्द्र कुंवर बर्त्वाल की कविताओं के पोस्टरों की तो एक श्रृंखला ही बी. मोहन नेगी ने बनायी। हिन्दी के कवियों से लेकर सुदूर केरल के मलयाली कवियों की कविताओं तक के उन्होंने पोस्टर बनाए। न केवल जर्मनी के चर्चित कवि ब्रेख्त की कविताओं के पोस्टर बनाए, बल्कि रूस, डेनमार्क, मेक्सिको, दक्षिण अफ्रीका, बुल्गारिया आदि तमाम देशों के कवियों की कविताओं को उन्होंने पोस्टर पर उकेरा। उत्तराखण्ड, देश और दुनिया के तमाम कवियों की कविताओं को पोस्टर पर उकेरने के लिए निश्चित ही दुनिया भर के साहित्य और खास तौर पर कविताओं से गुजरना पड़ा होगा। और इन सब कवियों को, जिनकी कविताएं नेगी जी ने पोस्टर पर उकेरीं, उनमें साम्य क्या है? उन कवियों की जनपक्षधरता। वे उत्तराखण्ड, देश या दुनिया के कवि हों, आप पाते हैं कि पोस्टरों में जो कविताएं हैं, वे जनता के पक्ष और जनसंघर्षों की ताप वाली कविताएं हैं।

यह जनपक्षधर दृष्टि ही वह तंतु था, जिसने देश-दुनिया के तमाम कवियों को बी. मोहन नेगी से जोड़ा और उन्हें जनसमुदाय तक पहुँचाने में, नेगी जी के पोस्टरों ने भी अपनी भूमिका बखूबी अदा की। नेगी जी पोस्टरों के जरिये जनपक्षधर और प्रगतिशील विचारों के प्रचारक-प्रसारक थे। इसलिए तमाम जनपक्षधर एवं प्रगतिशील व्यक्तियों एवं संगठनों के साथ उनका जुड़ाव था।

निश्चित ही कविता पोस्टर बनाने वाले देश भर में बहुत सारे लोग हैं लेकिन उत्तराखण्ड में इस विधा को सर्वाधिक प्रसारित यदि किसी व्यक्ति ने किया तो वह बी. मोहन नेगी थे। यह उनके अकेले का ही एक तरह का सांस्थानिक उपक्रम था। बहुत सारे लोगों ने उनसे प्रेरणा ग्रहण कर, चित्रकला और कविता पोस्टर को अपनी कलात्मक अभिव्यक्ति का माध्यम बनाया। नेगी जी की सादगी, सरलता और जनपक्षधरता भी इनको हासिल हो, यही कामना है।

अलविदा बी. मोहन नेगी जी, आपको सलाम।
(Tribute to B. Mohan Negi)
साभार: समकालीन जनमत

उत्तरा के फेसबुक पेज को लाइक करें : Uttara Mahila Patrika