केदारताल : यात्रा 1

विनीता यशस्वी

लम्बा समय बीत चुका है ट्रेकिंग में गये हुए। आँखों और दिल-दिमाग को हिमालय की याद सताने लगी इसलिये केदारताल जाने का तय किया और अपने एक मित्र की मदद से एक गाइड भी ढूँढ लिया। केदारताल 4750 मीटर की ऊँचाई में स्थित एक हिम झील है जो गढ़वाल के उत्तरकाशी जिले में स्थित है। केदारताल का ट्रेक गंगोत्री से शुरू होता है। थलाई सागर, मंदा और भृगुपंत तथा आसपास की पर्वत श्रृंखलाओं से केदारताल में पानी इकट्ठा होता है जो केदारगंगा का स्रोत है और केदारगंगा नीचे आकर भागीरथी में मिल जाती है़…

जिस दिन मुझे हरिद्वार निकलना था, उसी दिन पता चला कि यहाँ से जाने वाली सभी हाई-टैक और ए़सी़ बस बंद की जा चुकी हैं इसलिये सामान्य बस से जाना ही विकल्प था। कभी तो लगता है, जैसे नैनीताल दिन-ब-दिन पिछड़ता जा रहा है। टिकट लेते हुए दूसरे संकट का भी पता चल गया जो पहले से अधिक बड़ा है। टिकट देते हुए कंडक्टर ने लापरवाही से कहा- हरिद्वार जाने वाले रास्ते में एक जगह पुल टूटा है इसलिये बस लम्बे रास्ते से जायेंगी। किराया 80 रुपये ज्यादा लगेगा और बस सुबह सात-साढ़े सात बजे तक पहुँचेगी। सुन के मेरी तो साँस ही अटक गयी। किराया दिक्कत नहीं है पर समय की तो कमी है। इतना लेट होने का मतलब है मेरी ट्रेकिंग का एक दिन पीछे हो जाना जो मैं नहीं चाहती पर मेरे चाहने या नहीं चाहने से कुछ होने नहीं वाला इसलिये कंडक्टर से टिकट लिया और अपनी सीट में बैठ गयी। आगे की सीट है तो पैर लम्बे करने की जगह मिल गयी। बस अपने समय पर स्टेशन से निकल गयी़….

हल्द्वानी से आगे पहुँचने पर गर्मी बढ़ने लगी और शीशे खोलना जरूरी हो गया। शीशे खोलते ही धूल ने बस में अपना साम्राज्य बसा लिया। रात के समय बस में सन्नाटा हो गया तभी अचानक एक यात्री चिल्लाने लगा और सब जाग गये। उसका एक पैर खराब है और उसने चिल्लाते हुए कहा- मेरे पैर में दर्द हो रहा है। मुझे डॉक्टर के पास जाना है। आधी रात को सुनसान सड़क में डॉक्टर कहाँ से लाया जाये इसलिये कंडक्टर और यात्रियों ने उसे समझाया कि जब किसी शहर वाले इलाके में पहुँचेंगे तो उसे डॉक्टर को दिखा देंगे। उसे शांत हुए कुछ ही समय बीता होगा कि वह फिर चिल्लाने लगा। इस बार जब कंडक्टर उसके पास गया तो उसे महसूस हुआ यात्री ने शराब पी है और सबको परेशान करने की नीयत से ऐसा कर रहा है। फिर क्या था, कंडक्टर ने उसे बस से बाहर कर दिया और तब ही अंदर आने दिया जब उसने आश्वस्त किया कि वह फिर ऐसा नहीं करेगा। फिर हरिद्वार तक शांति रही हालांकि धूल और गर्मी ने पीछा नहीं छोड़ा़…..

बस सुबह करीब 7.15 बजे हरिद्वार पहुँची। तब तक गंगोत्री जाने वाली बस चली गयी। अब सोचना यह है कि क्या किया जाये और तय किया आज उत्तरकाशी जाऊँ और अगली सुबह गंगोत्री। टैक्सी का पता किया तो सब बुकिंग पर जाने को ही तैयार हुए और मनमाने दाम माँगने लगे। मुझे भूख लगने लगी इसलिये एक रैस्टोरेंट में चली गयी। रैस्टोरेंट वाले से पूछने पर उसने कहा- टैक्सी स्टैंड में जा कर पता कर लो। अगर कोई टैक्सी उत्तरकाशी जा रही हो तो और नहीं तो ऋषिकेश से तो टैक्सी मिल ही जायेगी़….
(Travel to Kedartal)

खाना खाने के बाद मैं टैक्सी स्टेंड आयी तो एक टैक्सी उत्तरकाशी के लिये दिखी जिसमें मुझे आगे की सीट मिल गयी पर अभी कुछ यात्रियों का आना बाकी है। मौसम अब तक बेहद गर्म हो गया और पसीने से हालत खराब होने लगी। टैक्सी को निकलने में लगभग 12 बज गये। टैक्सी में कुछ लोग बाहर के हैं और कुछ पहाड़ी हैं। टैक्सी का माहौल बिल्कुल शांत है। ड्राइवर ने मेरी ओर देख कर कहा- सब लोग बिल्कुल चुप हैं न? देखो अभी कैसे सब को बहस में लगाता हूँऔर फिर हँसने लगा। बेहद गंभीर चेहरा बनाते हुए उसने नोटबंदी का जिक्र भर किया। देखते ही देखते टैक्सी में बहस चल निकली। मोदी समर्थक और मोदी विरोधी पूरी ताकत और तर्कों-कुतर्कों के साथ अपने-अपने पक्ष रखने लगे। बहस सिर्फ भारत तक ही सीमित नहीं रही। इस बहस में अमेरिका, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, ईरान-ईराक तक भी शामिल हो चले़….

एक पहाड़ी सज्जन बोले- नोट बंदी से कितना नुकसान हो गया। हम जैसे छोटे शहरों में रहने वालेों की रोजी-रोटी पर बन आई। दिल्ली से आये एक सज्जन ने उनकी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा- छोटे शहरों के ही नहीं दिल्ली में रहने वालों ने भी बहुत मुसीबत झेली। जिन्होंने काला पैसा इकट्ठा किया उनका तो कुछ नहीं हुआ बेचारी मध्यम वर्गीय जनता खां-म-खां लपेटे में आ गयी। एक सज्जन ने मोदी के बचाव में कहा- नोट बंदी सही कदम था। मोदी में हिम्मत है इसलिये उसने किया। वरना तो उसे भी क्या पड़ी थी वह भी दूसरों की तरह आराम से राज कर लेता। बहस के बीच कब पहाड़ी इलाका शुरू हो गया और कब हल्की सी सर्दी होने लगी, पता नहीं चला़….

पर इस गर्मा-गर्म बहस के बीच ड्राइवर ने गाड़ी रोकी और खाने के लिये बोला। इस गाँव का नाम तो अभी याद नहीं पर यहाँ बेहद ठंड है और कोहरा छाया है। मैंने जिस रैस्टोरेंट में खाना खाया, उसने भरपूर और स्वादिष्ट खाना खिलाया और कीमत भी ज्यादा नहीं ली। इसके बाद टैक्सी आगे बढ़ गयी और फिर  बहस शुरू हो गयी। इस बार एक महिला ने अपनी बात रखते हुए कहा- पता नहीं, मोदी ठीक है या सोनिया। मुझे तो रोज सुबह जंगल जाना ही पड़ता है घास लेने, नहीं तो मेरे गाय-भैंस क्या खायेंगे? और खेतों में काम भी करना होता है इसलिये मेरी तो बला से कोई आये कोई जाये। महिला ने गढ़वाली लहजे में इतनी दृढ़ता से बात रखी कि फिर किसी और को कुछ कहने की नहीं सूझी और इस बहस का अंत यहीं पर हो गया़….

रास्ता आगे बढ़ता हुआ खतरनाक होने लगा। गंगा भी बहती हुई दिख रही है। नजारा अच्छा है जिसे बीच में पड़ने वाले गाँव और कस्बे और भी जीवंत बना देते। हल्की सी शाम भी होने लगी और मुझे उत्तरकाशी में अपने रहने की चिंता सताने लगी। पहाड़ों में इतनी सुरक्षा तो महसूस होती ही है कि लोगों से पूछने पर वे मदद करते हैं इसलिये मैंने ड्राइवर से उत्तरकाशी में होटल के बारे में पूछा। मेरी सोच के मुताबिक ही टैक्सी में बैठे स्थानीय लोगों ने मुझे रहने की अच्छी जगहों के बारे में बता दिया और भरोसा दिलाया कि मुझे होटल पहुँचा कर ही वे लोग जायेंगे। ड्राइवर ने भी कहा कि वो मुझे होटल पहुँचा कर ही वापस लौटेगा़…..

अब मेरी रहने कि चिंता खत्म हो गयी तो रास्ता ज्यादा अच्छा लगने लगा। टैक्सी आगे बढ़ती रही और टिहरी बाँध की झील दिखने लगी। जितनी बार इस झील को देखती हूँ, उतनी बार याद आता है कि एक पूरा शहर, एक पूरी संस्कृति और सभ्यता इस झील के नीचे दफन है। लोगों के आँसू भी दिखने लगते हैं जो इस इलाके को डुबाते समय उनकी आँखों से निकले, पर सरकार को शायद इस सब से कोई मतलब नहीं है क्योंकि यदि ऐसा होता तो टिहरी से भी बड़ा बांध पंचेश्वर में बनाने की नहीं सोचती। यदि पंचेश्वर बांध बना तो उसके नीचे भी बहुत कुछ दफन होगा़….
(Travel to Kedartal)

अंधेरा होने लगा और ऊबड़-खाबड़ सड़क से होती हुई टैक्सी उत्तरकाशी पहुँच गयी। पहुँचते ही ड्राइवर ने मुझे सड़क से लगा एक होटल दिखाया। जिसे बाकी लोगों ने भी मान लिया इसलिये ड्राइवर ने मुझे वहाँ उतार दिया और मालिक को भी बता दिया। अब मेरी दूसरी चिंता सुबह गंगोत्री पहुँचने की है इसलिये होटल मालिक से टैक्सी के बारे में पूछा तो उसने कहा- टैक्सी आसानी से मिल जायेगी।  पर मुझे सुबह जल्दी ही गंगोत्री के लिये निकलना है ताकि थोड़ा ट्रैक शुरू कर सकूं और मेरा एक दिन बच जाये। होटल मालिक ने मुझे आश्वस्त किया कि यदि सुबह जाने वाली टैक्सी मिली तो वह मुझे बता देगा़….

अपने कमरे में जाकर मैं फ्रेश हुई और खाना खाने आ गयी। चाराधाम यात्रा का समय होने के कारण बाजार में अभी हलचल है। जब मैं वापस होटल गयी तो मालिक ने बताया कि सुबह एक टैक्सी 6 बजे गंगोत्री जायेगी। मैं उसमें जा सकती हूँ। मेरे लिये यह अच्छी खबर है। दिन भर की थकान अब मेरे ऊपर तारी होने लगी है इसलिये सोने चली गयी़….

सुबह 6 बजे जब मैं सड़क पर आयी तो मुझे टैक्सी दिख गयी। अपना सामान टैक्सी में रखकर मैं बाजार में टहलने लगी। अभी बाजार सोया हुआ है और अच्छी खासी ठंड भी हो रही है पर यात्रा सीजन होने के कारण गाड़ियों की हलचल होने लगी है। टैक्सी वाले ने शायद पहले से ही सवारियों का इंतजाम किया है इसलिये टैक्सी भरने में समय नहीं लगा और 6 बजे टैक्सी गंगोत्री को निकल गयी। मौसम और नजारा और भागीरथी का किनारा सब कुछ बेहद खूबसूरत हैं….

सड़क ज्यादा संकरी और टूटी-फूटी होने लगी। बारिश में हुई तबाही के निशान दिख रहे हैं। टैक्सी आगे बढ़ती रही, नजारा खूबसूरत होता गया और हरसिल आ गया। हरसिल बहुत ही प्यारा गाँव है। यहाँ से हिमालय का नजारा भी दिखता है और भागीरथी भी फैल जाती है। हालाँकि अभी इसमें पानी कम है इसलिये रेत ज्यादा दिख रही है। हरसिल सेव के बागीचों के लिये प्रशिद्ध है। आजकल पेड़ सेवों से लदे हुए भी हैं। पूरे रास्ते में सेवों के बागीचे नजर आते रहे। हरसिल में कुछ देर रुकने के बाद टैक्सी आगे बढ़ गयी। रास्ता हालांकि खराब है पर नजारा खूबसूरत है। भागीरथी कभी बगल में तो कभी थोड़ा नीचे तो कभी बेहद नीचे घाटियों के बीच बह रही है। यहाँ भागीरथी के सारे रंग नजर आते हैं। कहीं भागीरथी पहाड़ियों के बीच लहराते हरे रंग के रिबन जैसी नजर आती है तो कहीं ऊँचे पहाड़ों के बीच से तेजी के साथ नीचे गिरते हुए दिखती है़…
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रास्ते में लंका गाँव आया। लंका में बना पुल एशिया का दूसरा सबसे ऊँचाई में बना पुल है। यहाँ से नीचे देखने में भागीरथी पतली धार सी नजर आती है जो लगता है पहाड़ियों के बीच कहीं फँस गयी है। सड़क से अब सुदर्शन पर्वत के दर्शन भी होने लगे। कुछ देर में गंगोत्री आ गया। मैंने गाइड राकेश दा को टैक्सी स्टैंड में बुला लिया था ताकि यात्रा की परमिशन लेने जा सकें….

जब ऑफिस पहुँचे तो कुर्सी में बैठे सज्जन ने एक फार्म भरने के लिये दिया और मेरे साथियों का विवरण पूछा। मेरे बताने पर कि मैं अकेली हूँ, उन्होंने चश्मा उतारते हुए मेरी तरफ देखा और बोले- गाइड के बिन मत जाना। बहुत खतरनाक रास्ता है। मैंने अपने गाइड से उन्हें मिलवा दिया। आश्वासन मिलने पर उन्होंने जाने की इजाजत दे दी। मैं आज भोजखरक तक यात्रा करुँगी जिससे एक दिन बच जायेगा़….

राकेश दा मुझे खाना खाने के लिये एक घंटे का समय देकर खुद हैल्पर को बुलाने और शेष व्यवस्था देखने चले गये। बाजार में काफी रौनक है। सभी दुकानें और रेस्टोरेंट भरे हैं। मैंने एक रैस्टोरेंट में खाना खाया और थोड़ा बाजार में टहली। एक तरफ भागीरथी की दहाड़ने वाली आवाजें बाजार में गूँज रही हैं तो गंगा सफाई वाली गाड़ी में बजने वाले गाने भी सुनाई दे रहे हैं। पता नहीं, इन सब से कितना फर्क पड़ा है पर हाँ बाजार में कूड़ा तो कम दिखा और सुलभ शौचालय भी साफ सुथरा है़….

राकेश दा एक घंटे में आ गये और चलने के लिये कहा। बाजार के बीच से एक रास्ता नीचे की तरफ निकला और पुल पार करके हम भागीरथी की दूसरी ओर आ गये। एक जगह नदी बहुत वेग से नीचे गिर रही है और यहाँ पर्यटकों की भीड़ भी है। राकेश दा ने बताया- यह सूर्यकुंड है और पर्यटक यहाँ तक आते हैं। कुछ देर यहाँ रुकने के बाद मैं आगे बढ़ गयी। इस समय अच्छी खासी गर्मी है और सूर्य सीधे आँखों में चुभ रहा है़….

मैं आगे बढ़ती रही और चढ़ाई भी बढ़ती चली गयी जिसने ज्यादा गर्मी का एहसास करा दिया। कुछ दूर तक भागीरथी और गंगोत्री दिखायी देते रहे फिर जंगल शुरू हो गया और केदारगंगा साथ आ गयी। काफी चढ़ाई चढ़ लेने के बाद मैं एक जगह बैठ गई। जिस यात्रा में मैं लम्बे समय से आना चाहती थी वह अब सच हो गया। आगे बढ़ते हुए चढ़ाई तीखी होती गयी। यहाँ भोज वृक्ष के जंगल हैं, इसलिये रास्ते में भोज के पेड़ की छालें गिरी हैं। आजकल जंगलों में सूखापन है, इसलिये छालें ज्यादा गिरी हुई हैं…
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मेरी अभी तक राकेश दा से ज्यादा बात नहीं हुई है और न ही मुझे हैल्पर के बारे में कुछ पता है। राकेश दा मुझसे पीछे चल रहे हैं। मैं रुक गयी ताकी उनसे थोड़ी बात कर सकूँ। साथ-साथ चलते हुए राकेश दा ने बताया- मैं 52 साल का हूँ और उत्तरकाशी के गाँव में रहता हूँ। मेरे पास जब ट्रेकिंग का ग्रुप आता है तो मैं ट्रैकिंग में चला जाता हूँ। जब घर में होता हूँ तो खेती-बाड़ी और गृहस्थी देखता हूँ। मेरे बारे में भी उन्हें मेरे एक मित्र ने बताया था। बातों-बातों में काफी रास्ता पार हो गया और अब हल्की ठंड भी होने लगी। एक मोड़ पार करते ही मुझे सामने थलई सागर पर्वत चोटी दिखायी दे गयी। मेरे लिये यह किसी आश्चर्य से कम नहीं है। इस झलक ने मेरे अंदर जान फूँक दी और मैं एकदम तरोताजा हो गयी। इसके बाद से तो हिमालय दिखता ही रहा़….

मेरे बगल और पीछे के पहाड़ बिल्कुल उजाड़ से दिख रहे हैं। बर्फ न होने के कारण ये ज्यादा उजाड़ लग रहे हैं। मैं आगे बढ़ती चली गयी और अचानक एक खड़ी दीवार ने मेरा रास्ता रोक लिया। राकेश दा भी कहीं नजर नहीं आये। गौर से देखा तो लगा चट्टान के दूसरी ओर रास्ता जा रहा है इसलिये समझने में देर नहीं लगी कि ये वही स्पाइडर वॉल है जिसके बारे में मुझे पहले बताया गया है। मैंने वॉल को गौर से देखा तो उसे पार करने का रास्ता नजर आ गया। कैमरा संभालते हुए मैंने दीवार पर दोनों हाथों और पैरों की मदद से स्पाइडर की तरह चढ़ना शुरू किया। दीवार में पानी बह रहा है और दीवार का एक हिस्सा सुरंग सा है जिसमें मेरा बैगपैक टकराने लगा। दीवार को पार करना बेहद कठिन है। हाथों की पकड़ दीवार में बनाये रखना जरूरी है क्योंकि अगर पकड़ छूटी तो सीधे गिर के नीचे। बहुत मुश्किलों से इस खड़ी चढ़ाई को पार कर मैंने दीवार के सीधे हिस्से में चलना शुरू किया पर अभी भी हाथ-पैरों के सहारे से ही चलना है हाँ अब चलना पहले से आसान है। दीवार पार कर मैं फिर रास्ते में आ गयी और बैठ गयी। कुछ देर बाद राकेश दा दौड़ते हुए आ गये। मुझे दीवार के पार देख कर आश्चर्य से बोले- आपने पार कर लिया। फिर कुछ ठहर कर बोले- आप ऐसे रास्तों में अकेले मत जाइये। आगे ऐसी ही एक दीवार और है, उसे अकेले ही पार मत कर लेना। फिर मुझे आगे बढ़ने का इशारा किया। शाम होने के कारण ठंड भी बढ़ने लगी है़….
(Travel to Kedartal)

बगल की पहाड़ियों के बीच से चाँद आता दिखायी दे रहा है। बेहद अद्भुद नजारा है पर अभी जल्दी आगे बढ़ना है इसलिये बिना वक्त गँवाये मैं आगे बढ़ गयी। आगे रास्ता खतरनाक ढंग से टूटा है। मैं राकेश दा के लिये रुक गयी। एकदम ढीली मिट्टी में पैर धँसते ही फिसल रहे हैं। कई जगहों में तो मुश्किलों से रास्ता पार किया। बैगपैक के साथ ये रास्ते पार करने ज्यादा कठिन हो जाते हैं। एक जगह मैंने जैसे ही रास्ता पार करने के लिये एक पत्थर पकड़ा उसकी मिट्टी  ढीली हो गयी और वह नीचे गिर गया। उसके साथ मैं भी फिसल कर काफी नीचे तक आ गयी पर किसी तरह संभली और आगे का रास्ता तय किया। कुछ समय बीता ही था कि दूसरी स्पाइडर वॉल भी सामने आ गयी। यह पहली जितनी कठिन नहीं है पर उससे ज्यादा लम्बी है और खतरनाक पहले जितनी ही है। जरा सा चूक और सीधे नीचे गहरी खाई में। राकेश दा साथ ही हैं इसलिये इस  दीवार को भी पहले वाले तरीके से पार किया। दीवार पार करने के बाद काफी लम्बा रास्ता तय कर मैं भोजखरक पहुँच गयी। भोजखरक पहुँचने तक शाम गहरा गयी। जब मैं यहाँ पहुँची तो देखा तीन कैंप पहले से ही हैं और चौंथा मेरा। राकेश दा ने बताया आजकल काफी बंगाली आये हैं। मैंने अपना टेंट लगाने की जगह ढूँढी और टेंट लगाया। राकेश दा और हेल्पर भी किचन टेंट लगा चुके हैं…

सामने की चोटी में सूर्यास्त का सुन्दर नजारा है पर ठंड भी बढ़ गयी है। हैल्पर ने चाय पीने के लिये मुझे किचन टेंट के पास बुला लिया। पूरे दिन में अब कहीं मुझे उससे बात करने का मौका मिला। उसने चाय का गिलास देते हुए कहा- दीदी, आग के पास बैठ जाओ। अब बहुत ठंडा हो गया है। मुझे उससे बात करने का मौका मिल गया और मैंने उसका नाम पूछा- उसने थोड़ा हँसते और शर्माते हुए कहा- कर्ण बहादुर। फिर बोला- दीदी, आप अकेले ही आ जाते हो? आपको डर नहीं लगता। उसके सवालों को अनसुना कर मैंने उससे पूछा कि उसका घर कहाँ है? उसने फिर हँसते हुए जवाब दिया- मैं नेपाल से आया हूँ। कुछ महीने मजदूरी करके नेपाल वापस चला जाऊँगा। ठंड बढ़ने लगी इसलिये मैं अपने टेंट में आ गयी। कर्ण बहादुर ने कहा कि वह मुझे खाना टेंट में ही दे देगा़….

अंधेरा जरूर हो गया पर पूरे चाँद की रोशनी में घाटी चाँदी सी चमक रही है और आसमान भी तारों से सजा हुआ है। मन तो है कि शांति से बैठ कर इस नजारे को देखती रहूँ पर ठंड से बाहर रहना नामुमकिन है इसलिये टेंट में अपने स्लीपिंग बैग की शरण में जाना ही ठीक लगा। इस सन्नाटे में केदारगंगा की आवाज बहुत बड़ा सहारा है मेरे लिये रात काटने को। कुछ देर में कर्ण बहादुर खाना दे गया। खाना खा कर मैंने एक बार बाहर के खूबसूरत नजारे को देखा और सो गयी़….
(Travel to Kedartal)
क्रमश:

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