परिवार और निजी सम्पत्ति फेड्रिक एगेंल्स के विचार

जया पाण्डे

फेड्रिक एंगेल्स कार्ल मार्क्स  के घनिष्ठ मित्र थे। दोनों ने मिलकर कम्यूनिस्ट मैनिफेस्टो जैसी कालजयी घोषणापत्र तैयार किया था। मार्क्स   इस सदी के महत्वपूर्ण चिन्तक रहे हैं। एंगेल्स उनकी तुलना में कम जाने पहचाने गए। मार्क्स अपने अंतिम दिनों में ल्युइस मौर्गन की पुस्तक ‘प्राचीन समाज’ के नोट लेने तथा इनका सारांश बनाने की ओर बहुत ध्यान देते थे। मार्क्स (1818-1883) की मृत्यु के कुछ दिनों बाद ही एंगेल्स ने मार्च-मई 1884 के दौरान मार्क्स द्वारा तैयार किये गए मार्गन की पुस्तक के नोट्स का उपयोग करते हुए अपनी पुस्तक ‘परिवार निजी सम्पत्ति तथा राज्य की उत्पत्ति’ लिखी। इसके प्रकाशन को ही एंगेल्स अपने दिवंगत मित्र की अंतिम इच्छा की पूर्ति मानते थे।
(Thoughts of Friedrich Engels)

अपनी इस पुस्तक में एंगेल्स ने यह साबित किया है कि स्त्री-पुरुष असमानता प्राकृतिक नहीं हैं। यह आदिकाल से नहीं चली आ रही है। इस असमानता का कारण जैविक नहीं वरन् आर्थिकी है। यह हाल में उपजी स्थितियाँ हैं, जिन्होंने स्त्री-पुरुष के बीच असमानता को जन्म दिया है। स्त्री की स्थिति हमेशा से दोयम दर्जे की नहीं रही है। प्रारम्भिक ऐतिहासिक दौर में असमानता की स्थिति नहीं थी। मौर्गन की ही भाँति एंगेल्स ने मानव समाज के इतिहास को तीन युग में बाँटा है- जंगल, बार्बर और सभ्यता का युग के प्रारम्भ में समानता थी, सभी स्वतंत्र तथा समान थे। इस युग में न तो सैनिक थे न राजा, न ही किसी के विरुद्ध अभियोग चलाने के लिए न्यायालय थे। श्रम विभाजन का स्वरूप लैंगिक व स्वाभाविक था। पुरुष युद्ध में भाग लेते थे, शिकार करते थे, मछली मारते थे, आहार की सामग्री जुटाते थे। स्त्रियाँ कंदमूल बटोरती थी, घर की देखभाल करती थी और खाना-कपड़ा तैयार करती थीं। प्रत्येक अपने-अपने कार्यक्षेत्र का स्वामी था, पुरुषों का जंगल में प्रधान्य था तो स्त्रियों का घर में। सब कुछ साथ मिलकर उपभोग किया जाता था। उत्पादन और उपभोग सामूहिक था, समीपवर्ती था। श्रम और उपभोग अलग-अलग हाथों में नहीं थे। मतलब यह कि जो मेहनत करता था और मेहनत से जो पाता था, उसका उपभोग करने का अधिकारी वही था। ऐसा नहीं था कि मेहनत करे कोई और उसका फायदा उठाये कोई दूसरा। अर्जित की गई सम्पत्ति सामुदायिक थी। एंगेल्स अपनी इस पुस्तक में कई प्रस्थापनाएँ करते हैं- जैसे विवाह परिवार से पहले था तथा आदिम समाज का लक्षण पारिवारिक संगठन नहीं गोत्रीय और कबायली संगठन था। गोत्र परिवार से पहले थे और मातृसत्ता पितृसत्ता से पहले की भाँति एंगेल्स ने मातृसत्तात्मक गोत्र को आदिम मानव जाति की सामाजिकता की पहली इकाई माना। वहाँ गोत्र मातृवंश के आधार पर चलता था। इन्होंने बाइबिल में र्विणत इस बात का खण्डन किया कि सामाजिक संगठन का प्रथम रूप पितृसत्तात्मक था। मातृसत्तात्मक होने की कई वजह थी। मार्क्स वाद उत्पादन से जुड़ा था, सृष्टि की रचना में उसका कार्य महत्वपूर्ण था। उसे आदर्श दृष्टि से देखा जाता था। शिशु को वहन करने के साथ-साथ खद्यान्न कंदमूल बटोरने का अभियान चलाये रखना समूह में महत्वपूर्ण माना माना जाता था। ऐसे समय में यूथ विवाह का प्रचलन था, यह विवाह का प्रारम्भिक रूप था, जिसमें पुरुषों का एक पूरे दल का नारियों के एक पूरे दल के साथ सम्बन्ध होता है, जिसमें ईर्ष्या भावना के लिए कोई स्थान नहीं रहता। ऐसी स्थिति में शिशु केवल माँ को ही पहचानता है। व्यक्ति का सबसे प्यारा सम्बन्ध अपनी माँ से ही था। मातृसत्तात्मक समाज में पुरुष का घर नहीं बल्कि वह ऐसे घर में प्रवेश कर सकता था जो या तो उसकी माँ या उसकी पत्नी या उसकी बहन द्वारा चलाया जा रहा हो। खेती का भी मुख्य कार्य महिलाओं द्वारा ही किया जाता है, यह समुदाय के लिए महत्वपूर्ण था इसलिए भी महिलाओं की स्थिति दोयम दर्जे की नहीं थी। खुदाईयों में मिलने वाली मूर्तियाँ भी इसी बात को प्रमाणित करती हैं। ये अनगढ़ नारी मूर्तियाँ ही हैं। लेकिन मातृसत्तात्मक समाज में निरंकुशता नहीं थी, यह समानता पर आधारित था। मेरी बहन का बेटा मेरा बेटा है, इस भावना के साथ स्त्रियाँ साथ रहती थीं, उनमें एकता थी, वे असहयोगी पुरुषों के खिलाफ संयुक्त रूप से कार्य कर सकती थीं।
(Thoughts of Friedrich Engels)

एकनिष्ठ परिवार, पृथक सम्पत्ति का अस्तित्व तथा विनिमय के स्वरूप ने समाज के इस मातृसत्तात्मक स्वरूप को परिवर्तित कर दिया। एंगेल्स विवाह के तीन रूप बताते हैं- यूथ, युग्म और एकनिष्ठ विवाह। इन विवाह को वे तीन युगों से जोड़ते हैं- जंगल, बार्बर और सभ्यता के युग से यूथ विवाह मुख्यत: यौन संसर्ग का क्षेत्र तय करता था, युग्म विवाह सन्तानोत्पत्ति का और एकनिष्ठ विवाह सम्पत्ति के उत्तराधिकार का। यूथ विवाह में एक ही पीढ़ी के साथ सैक्सुअल सम्बन्ध हो सकते थे। पिता और पुत्री के बीच निषेध था। युग्म विवाह में एक ही पीढ़ी में रक्तसम्बन्ध का निषेध कर दिया गया। चचेरे भाई-बहनों के साथ सम्बन्ध र्विजत था। एकनिष्ठ विवाह में पुरुष की एक पत्नी होती थी। यह सम्बन्ध घर तथा परिवार तक सीमित था। यहीं पर स्त्री तथा पुरुष के बीच स्वतंत्रता का अन्तर आ गया क्योंकि इस स्थिति में पुरुष सम्पत्ति का स्वामी हो गया। एकनिष्ठ विवाह परिवार का पहला रूप था, जो प्राकृतिक कारणों पर नहीं, वरन् आर्थिक कारणों पर आधारित था। एंगेल्स मानते हैं कि यह स्वरूप अन्तर्विरोधी है इसलिए नारी को दास बनाकर रखती है। एकनिष्ठ परिवार और वेश्यावृत्ति दो विपरीत वस्तुएँ होते हुए भी एक ही सामाजिक व्यवस्था के दो छोर मात्र हैं और इसलिए एक-दूसरे से अलग नहीं किए जा सकते।

पृथक् सम्पत्ति के उदय ने पुरुष की स्थिति को मजबूत किया। हल के आविष्कार ने खेती पर स्त्री के अधिकार को कम किया, क्योंकि  हल केवल पुरुष ही चला सकता था। बच्चों को लेकर जब स्त्री खानाबदोश के रूप में कंदमूल अर्जित करती थी, तब उसकी स्थिति मजबूत थी, परन्तु उसे चुनौतियों का सामना करना पड़ता था। बच्चों की परवरिश के लिए घर में बैठना  सुविधाजनक था। पशुधन के आने से तथा खेती के कारण पुरुष के लिए भी लम्बे समय के लिए घर की आवश्यकता पड़ी। भूमि अब भी सामुदायिक थी। एक साल के लिए बाँट दी जाती थी। धीरे-धीरे यह विवाद बढ़ने से उस पर कुटुम्ब का अधिकार हो गया। एक नए वर्ग का उदय हुआ, पुजारी और अधिकार, जो खेती का कुछ भाग लेने लगे। यहीं पर उपभोग तथा उत्पादन में अन्तर आ गया।  इसके लिए भूमि पर कार्य करने वाले को अतिरिक्त काम करना पड़ा। समाज के एक विशेष वर्ग के उदय के साथ परिवार में मुखिया की स्थिति भी मजबूत हो गई। यह पुरुष ही था। सम्पत्ति का हस्तान्तरण अब पुरुष के वंश पर प्रारम्भ हो गया। यहीं से पितृसत्तात्मक वंश का प्रारम्भ हुआ। स्त्री की स्थिति घर तक सीमित होने से उसकी स्थिति दोयम दर्जे की हो गई।
(Thoughts of Friedrich Engels)

एंगेल्स मानते हैं कि पूँजीवाद के आने और उद्योगों के आने से महिलाएँ जब बाहर निकली और उद्योगों में उनकी भागीदारी होने लगी लेकिन यहाँ पर भागीदारी में भेदभाव था। यह कार्य क्षेत्र मध्यमवर्गीय महिलाओं के लिए वकील, जज, कम्पनी के निदेशक जैसे पद मध्यवर्गीय महिलाओं के लिए थे। श्रमिक महिलाओं के लिए नहीं। उन्हें पार्टटाइम काम दिया जाता था। और वेतन में भेदभाव बरता जाता था। एंगेल्स उस समय चल रहे नारीवादी आन्दोलन की भी आलोचना करते हैं और कहते हैं कि यह मध्यमवर्गीय स्त्रियों का आन्दोलन है इसलिए सम्पूर्ण नारी की स्थिति में परिवर्तन नहीं आयेगा।

मार्क्स की भाँति ही एंगेल्स भविष्य के समाज की कल्पना करते हैं। एक ऐसे समाज की जिसमें व्यक्तिगत सम्पत्ति का स्थान नहीं होगा। वह ‘सर्वहारा परिवार’ की कल्पना करता है जिसमें पितृसत्तात्मक एकनिष्ठ परिवार नहीं पाये जायेंगे। इसलिए एकनिष्ठ विवाह के सदा सर्वदा साथ चलने वाली दो प्रथाओं की- हैटेरिज्म और व्यभिचार की भूमिका नगण्य हो जायेगी। यहाँ नारी को वास्तव में पति से अलग होने का अधिकार मिल जायेगा। दाम्पत्य जीवन में पुरुष आधिपत्य केवल उसके आर्थिक प्रभुत्व का एक परिणाम है, उस प्रभुत्व के मिटने पर वह अपने आप ही खत्म हो जायेगा। सर्वहारा स्त्री सामान्यत: अपने लिए और अपने बच्चों के लिए यदि पुरुष से अधिक नहीं तो उसकी ही भाँति रोटी कमा सकेगी। 
(Thoughts of Friedrich Engels)

उत्पादन साधनों पर सामाजिक स्वामित्व हो जाने से वैयक्तिक परिवार समाज की आर्थिक इकाई नहीं रह पायेगा। घर का निजी प्रबन्ध एक सार्वजनिक विषय बन जायेगा। समाज सब बच्चों का समान रूप से पालन करेगा, चाहे वे विवाहित की संतान हों या अविवाहित की। एक नई पीढ़ी का उदय होगा, ऐसे पुरुषों की पीढ़ी जिसे जीवनभर किसी नारी की देह को पैसा देकर या सामाजिक शक्ति के किसी अन्य साधन द्वारा खरीदने का मौका नहीं मिलेगा, और ऐसी नारियों की पीढ़ी, जिसे कभी सच्चे प्रेम के सिवा और किसी कारण से किसी पुरुष के सामने आत्मसमर्पण करने के लिए विवश नहीं होना पड़ेगा, और न ही जिसे अर्थिक परिणामों के भय से अपने को अपने प्रेमी के सामने आत्मसमर्पण करने से कभी रोकना पड़ेगा। और जब एक बार ऐसे स्त्री-पुरुष इस दुनिया में जन्म ले लेंगे, तब वे इस बात की तनिक भी चिन्ता नहीं करेंगे कि आज हमारी राय में उन्हें क्या करना चाहिए। वे स्वयं तय करेंगे कि उन्हें बचा रहना चाहिए और उसके अनुसार वे स्वयं ही प्रत्येक व्यक्ति के आचरण के बारे में जनमत का निर्माण करेंगे।

एंगेल्स के इस कार्य ने मार्क्स वादी देशों में लिंग समानता स्थापित करने का मार्ग प्रशस्त किया है। मार्क्स वादी देशों में दिए जाने वाला काम पाने का अधिकार स्त्री-पुरुष दोनों को समान रूप से सार्वजनिक क्षेत्र में काम करने का अवसर देता है और ‘समान कार्य के लिए समान वेतन’ की व्यवस्था करता है। पूँजीवादी देशों को भी इस दृष्टि ने महिलाओं के लिए मातृत्व अवकाश तथा कार्यस्थल पर यौन हिंसा के विरुद्ध कानून बनाने पर मजबूर किया।
(Thoughts of Friedrich Engels)

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