सांझ पड़ते ही रुके कदम

जया पाण्डे

हमारे शहर कितने सुरक्षित हैं, यह मुद्दा आजकल चर्चा में है। दिल्ली चुनाव 2015 में ‘सुरक्षित दिल्ली’ नारा बहुत निर्णायक रहा। ‘आप पार्टी’ की निर्णायक विजय का कारण भी यही था कि इस पार्टी ने शहर की सुरक्षा सम्बन्धी ठोस वायदे किए थे। महिलाएँ क्यों असुरक्षित महसूस करती हैं और पुरुष क्यों उन्हें एक ‘वस्तु’ या ‘उपभोग’ की निगाह से देखते हैं? इसके पीछे सामाजिक व मनोवैज्ञानिक कारण हैं। चूँकि महिलाएँ घर में भी निर्णय लेने से नहीं जुड़ी होतीं या उनके नाम पर जमीन जायदाद नहीं होती, इसलिए उनमें आत्मविश्वास की कमी होती है और कहीं न कहीं यही कमी उन्हें असुरक्षित बनाती है। इसी से जुड़ा एक प्रश्न और भी है कि महिलाएँ अपने अधिकारों या स्वतंत्रता का अपने जीवन में कितना अधिक इस्तेमाल कर पाती हैं।

यह लेख वस्तुत: स्वतंत्र विचरण की आजादी से जुड़ा है और हमारा उद्देश्य यहाँ पर यह देखना है कि महिलाएँ इस आजादी का कितना उपयोग कर पाती हैं यानी वे स्वतंत्र रूप से भ्रमण के लिए  कितनी आजाद हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ के मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा (1948) के 13वें अनुच्छेद में कहा गया है कि किसी भी राज्य के नागरिक को जहाँ वह रहता है, उसे घूमने की, बस जाने की तथा कार्य करने की स्वतंत्रता है। जब तक कि यह स्वतंत्रता किसी दूसरे नागरिक की इसी प्रकार की स्वतंत्रता में बाधक नहीं बनती। इसी अनुच्छेद में यह भी कहा गया है कि हर नागरिक को किसी भी देश को छोड़ने का अधिकार है, वह अपना देश छोड़ भी सकता है और किसी भी समय अपने देश में फिर से लौट सकता है।

यह अधिकार राष्ट्र राज्यों की स्थापना से भी पहले का है, यह अधिकार इस मान्यता पर आधारित है कि इस पृथ्वी पर सबका समान अधिकार है। जब तक कृषि का आविष्कार नहीं हुआ था, मनुष्य खानाबदोश की तरह स्वतंत्र विचरण करता था, कृषि ने मनुष्य को जमीन के टुकड़े से जोड़ा और इसी से स्थिर समाज की संरचना हुई। मनुष्य एक कुएँ का मेढक न बना रह जाय उसकी सोच व्यापक हो, इसके लिए यह व्यवस्था की गई कि उसे एक जगह से दूसरी जगह जाने की आजादी हो। जहाँ वह जाता है, उसके कार्यों से उस जगह को भी फायदा होता है। स्वयं उसके व्यक्तित्व का भी विकास होता है। किसी सत्ता द्वारा इस अधिकार का दोहन न किया जाय इसलिए संविधानों में मौलिक अधिकारों के अन्तर्गत इसे शामिल किया जाता है। भारतीय संविधान के तीसरे भाग में मौलिक अधिकारों के अन्तर्गत अनुच्छेद 19 में जो सात स्वतंत्रताएँ दी गई हैं उनमें से एक स्वतंत्रता है- (ए.) भारत में किसी भी स्थान में भ्रमण की स्वतंत्रता (बी.) भारत राज्य में किसी भी स्थान में रहने और बस जाने की स्वतंत्रता। जनहित को देखते हुए राष्ट्र इस पर प्रतिबन्ध लगा सकता है। यह स्वतंत्रता किसी नागरिक की स्वामित्व वाली भूमि पर लागू नहीं होती। इसका सम्बन्ध सार्वजनिक स्थलों जैसे सड़क, गलियाँ, पार्क, मन्दिर, मस्जिद। एक शहर से दूसरे शहर में जाने की स्वतंत्रता, बाजार में घूमने की आजादी से है।

एक नागरिक के रूप में लड़कियाँ इस स्वतंत्रता का उपयोग कितना कर पाती हैं, यह जानने के लिए हमने दिल्ली, नैनीताल व रानीखेत की 15-15 लड़कियों से प्रश्नावली भरवाई जिसमें  18 प्रश्न थे। इन प्रश्नों का सम्बन्ध था, लड़कियों की स्वतंत्र विचरण की आजादी तीन स्तर पर; अपने में, दूसरे शहर में तथा रात में अकेले सफर करने में, उनको अकेले घूमते देखते हुए लोगों का दृष्टिकोण इस स्वतंत्रता के सम्बन्ध में उनका स्वयं का दृष्टिकोण तथा अपने शहर के बारे में उनका रवैया। लड़कियाँ आगे बढ़ रही हैं, समानता प्राप्त कर रही हैं परन्तु किन सीमाओं के भीतर वे आगे बढ़ती हैं, यह जानना जरूरी था। आज की तारीख में यह जानना इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि लड़कियाँ अधिक संख्या में बाहर निकल रही हैं और जिन खतरों का सामना वे कर रही हैं वे बाहर निकलकर कर रही हैं। इन खतरों की वजह से वे घर से बाहर निकल ही नहीं रही हैं, ऐसा नहीं है।

प्रश्नावली के तीन प्रश्नों के अन्तर्सम्बन्ध से समस्या के स्वरूप को समझा जा सकता है।

1.  क्या आपकी अपने शहर में अकेले घूमने फिरने की आजादी है?
2.  क्या आप कभी किसी भी शहर में अकेले जाने के लिए स्वतंत्र हैं?
3.  क्या आपको रात में अकेले सफर करने की स्वतंत्रता है?

दिल्ली से लेकर रानीखेत तक की लड़कियों के अनुभव हैं कि जहाँ अपने ही शहर में घूमने-फिरने की आजादी 80 प्रतिशत लड़कियों को प्राप्त है, वहीं जब दूसरे शहर में घूमने की आजादी की बात आती है या रात में सफर करने की बात आती है तो यह आजादी सीमित हो जाती है। निम्न तालिका से यह बात अच्छे से समझी जा सकती है-
The steps stopped at dusk

                        अपने ही शहर में घूमने    दूसरे शहर में जाने           रात में सफर करने 
                        की आजादी                    की आजादी                    की आजादी

दिल्ली               80                                20                                48
नैनीताल               76                                27                                33
रानीखेत                80                                40                                28

इन स्वतंत्रताओं का मूल्यांकन और अधिक स्पष्ट हो जाता है जब हम उसी स्थिति में रह रहे पुरुषों से करते हैं आप शहर से बाहर जाने के लिए वैसी ही स्वतंत्र हैं जैसा आपका भाई या पति। दिल्ली में 27 प्रतिशत, नैनीताल में 12 प्रतिशत तथा रानीखेत में 20 प्रतिशत लड़कियों को ही घूमने फिरने की आजादी अपने भाइयों के समान प्राप्त नहीं है। यही कारण है कि सड़कों पर लड़कियाँ कम दिखाई पड़ती हैं, यही उनकी असुरक्षा का कारण बनता है। ये लड़कियाँ कितनी असुरक्षित महसूस करती हैं, इसका पता एक और प्रश्न के अन्तर से चलता है, प्रश्न है क्या आपको ऐसा लगता है कि जब रात में आप बाहर निकलती हैं तो लोगों की निगाहें आप पर रहती हैं? तो ‘हाँ’ कहने वाली लड़कियों का प्रतिशत इस प्रकार है-

दिल्ली   85 प्रतिशत
नैनीताल     80 प्रतिशत
रानीखेत      80 प्रतिशत

यह लड़कियों के अन्दर बेमतलब का अपराधबोध पैदा करता है। हर समय का यह अहसास कि कोई हम पर निगाह रखे हुए है, हमारे बढ़ते कदम को रोकता है? लड़कियाँ माता-पिता को कसूरवार नहीं समझतीं। ‘अड़ोस पड़ोस वाले सवाल करते हैं?’ अगर हमने अपने मन से काम कर दिए तो लोगों की बातें ही खत्म नहीं होतीं। बातचीत में इस प्रकार की प्रतिक्रियाएँ वे व्यक्त करती हैं।

यह पूछे जाने पर कि रात को कितनी देर उन्हें बाहर रहने की आजादी है, इसकी निश्चित समय सीमा 7.30 बजे है। अधिकांशत: 6 बजे है और कुछ को सिर्फ 5 बजे है। अमूमन लड़कियाँ दिन में ही निकलती हैं। वे बिना उद्देश्य के बाहर नहीं निकलतीं। जहाँ तक अपने शहर को सुरक्षित समझने का है 93 प्रतिशत दिल्ली की लड़कियाँ ये मानती हैं कि वे अपने शहर में असुरक्षित हैं। नैनीताल व रानीखेत में यह स्थिति विपरीत है। यहाँ 90 प्रतिशत लड़कियाँ अपने शहर को सुरक्षित मानती हैं। दिल्ली मेट्रोसिटी, पूरे देश का आइना है। अगर देश के कोने में कहीं भी अशिक्षा है, अश्लीलता हैर्, लिंगभेद है तो दिल्ली में रहेगा ही रहेगा। एक अध्ययन के अनुसार दिल्ली में देश के किसी अन्य शहर की तुलना में सबसे अधिक बलात्कार की घटनाएँ होती हैं। सबसे ज्यादा पीड़ित वर्ग है- 25 साल से कम की लड़कियाँ, गरीब महिलाएँ अकेले रहने वाली महिलाएँ और मुस्लिम महिलाएँ (जागोरी 2010) हैं। यही कारण है कि बलात्कार की घटनाएँ भी वहाँ अधिक हैं। 16 दिसम्बर 2012 के बाद इतना बदलाव अवश्य आया है कि अब इन घटनाओं की शिकार लड़कियाँ अपराधबोध से ग्रसित नहीं दिखतीं और कसूरवार नहीं ठहराई जातीं। इस घटना का विपरीत असर भी हुआ है। माता-पिता लड़कियों को घर से बाहर भेजने में और अधिक डर गए हैं। मेरी दो विद्यार्थी रुद्रपुर में काम कर रही थीं, इस घटना के तुरन्त बाद उन्हें वापस बुला लिया गया। एसिड फेंकने की घटनाओं ने उनकी असुरक्षा को और अधिक बढ़ा दिया है। यह सब सोचने को मजबूर करता है कि एक नागरिक के रूप में स्वतंत्र विचरण करने की आजादी को लड़कियाँ किस सीमा तक उपयोग कर पा रही हैं। यह बात नहीं है कि वे इन आजादी का महत्व नहीं समझती। प्रश्नावली में इससे सम्बन्धित दो प्रश्न थे 1. क्या आप मानती हैं कि लड़कियों को बाहर निकलने की आजादी रोकने से उनका विकास बाधित होता है? 2. क्या आप मानती हैं कि कैरियर के विकास के लिए जरूरी है कि लड़कियों को कहीं भी अकेले जाने दिया जाय।

1. बाहर निकलने की आजादी       दिल्ली में           रानीखेत में        नैनीताल में
रोकने से विकास में बाधा             82                    96                    88
2. बाहर निकलने की आजादी       दिल्ली में           रानीखेत में        नैनीताल में
रोकने से विकास में बाधा             100                  66                    64

यह दर्शाता है कि लड़कियों का सोच व्यापक है। लड़कियाँ आगे बढ़ रही हैं और अश्लील नजरिए को भी झेल रही हैं। यह उनकी कसमसाहट को दर्शाता है। उनके संघर्ष का प्रमाण भी है। सरकारें भी प्रयास कर रही हैं, समाज में अब विमर्श है, चर्चा है। सड़कें व गलियों में हर जगह स्ट्रीटलाइट हो, मोबाइल में इस तरह के एप्स हैं जो पुलिस की मदद के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं। लड़कियों को हर मामले में चौकस भी होना है। जैसे उबर टैक्सी केस उस लड़की ने बाहर गिरते ही मोबाइल से टैक्सी न. की फोटो खींच ली। ऐसी बुद्धिमत्ता भी बार-बार बाहर निकलने से ही आती है।

महिलाओं का संसाधनों में कितना अधिकार है यह भी उनके ‘प्रजेन्स ऑफ माइण्ड’ को बढ़ाता है। आँकड़े दर्शाते हैं कि एक अदृश्य इमरजेंसी महिलाओं की स्वतंत्रता को रोकती है। एक सर्वे के अनुसार 20 प्रतिशत महिलाओं के नाम पर उनका घर है। 10 प्रतिशत महिलाओं के घर खरीदते समय निर्णय में भागीदारी होती है। महिलाओं को सम्पत्ति पर अधिकार दिए जाने के दस साल बाद भी ऐसी महिलाओं की संख्या दस प्रतिशत ही है जिनके माता-पिता अपनी सम्पत्ति में उनका हिस्सा देना चाहते हैं। राजस्थान में अभी भी घूंघट कायम है तो हम किस तरह से उनके विचरण को स्वतंत्र बना सकते हैं (द हिन्दू, 8 मार्च)। एक तर्कपूर्ण और विवेकपूर्ण नजरिया क्या है? यह हमारे समाज को पता हीं नहीं है। ‘इण्डियाज डॉटर’ में एक वकील का यह कहना कि महिलाओं को सही ढंग के कपड़े पहनने चाहिए इस तरह के हल से समस्या का समाधान होगा? नजरिये में, मानसिक सोच में बहुत बदलाव की जरूरत है। यह बहस इसलिए है कि आज महिलाएँ आदर्श पत्नी, आदर्श माँ, आदर्श बहू, आदर्श बहन के दिखावे से बाहर आना चाहती है। वे आदर्श नागरिक बनना चाहती हैं। मानवीय महत्ता के साथ जीना चाहती हैं।

यह दर्शाता है कि सार्वजनिक स्थल लड़कियों के लिए कितने असुरक्षित हैं। इसी कारण माता-पिता उनको रातभर में सफर करने या बाहर जाने से रोकते हैं। इसी से उनमें और उनके भाइयों को प्राप्त अवसरों में अन्तर आ जाता है और आखिर में यही दोनों के व्यक्तित्व निर्माण में अन्तर पैदा करता है।
The steps stopped at dusk
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