सुरेन्द्र पुण्डीर की कविताएं

-सुरेन्द्र पुण्डीर
मन
द्वन्द्व के रास्तों पर चलकर
संघर्षों की बाँह पकड़ कर
अन्धेरे कोनों से झाँककर,
कई तरह की
गुफाओं में फंस गया है मन
भीतर ही भीतर,
काई की तरह जम गई है संवेदनाएँ।
रसूकदार बादल छा गए हैं
गरीब की धरती पर-
मन फिर भी अनमना सा
अंतड़ियों के फेर में फंसा
देख रहा है सपने।
उम्मीदों की डंठल में
पका रहा है सम्भावनाओं की खिचड़ी
मन
राख के नीचे दबी चिनगारी की तरह
सुगबुगा रहा है,
आश्वासनों के ठेले पर बैठकर
पीट रहा है मुनादी।
(Surendra Pundir Poems)
नदी
बिना हथियार के
लड़ रही है लड़ाई
बह रही है
छपाकें मारते हुए
ढाह रही है,
मुसीबत के टीलों को
बेफिक्री के मवादों से।
दूर हटकर-
बह रही है एक नदी।
संशय-
अनुराग-
और
संघर्षों की धुरी में
रेंगती रहती है दिन भर।
नहीं-
थकती नदी कभी,
न जाने कितने द्वन्द्व
फिर भी-बहती रहती है
निमग्न होकर नदी।
सालती रहती है
अपने बाहर और भीतर ।
पर-
मनुष्य कभी नहीं सालता
अपने संवेदनशील मन को
3.
बस
भोर होते ही
निकल पड़ते हैं।
दो पैर
दो हाथ
उन घने जंगलों के बीच।
लपलपाती धूप में
बह जाते हैं
खप जाते हैं
उन पर्वतों के बीच।
दहाड़ मारता हुआ
आता है कोई
बिना मुँह बनाए
विचार लेकर।
(Surendra Pundir Poems)

श्रद्धांजलि
बहुमुखी आयामों को जीने वाले सुरेन्द्र पुण्डीर 4 जुलाई 1956-21 अक्तूबर 2019 पत्रकार, समाजसेवी, शिक्षक, घुमक्कड़, अध्येता और कवि-लेखक के रूप में हमेशा याद किए जाते रहेंगे। ये सिद्ध, मसूरी, भुवनेश्वरी महिला आश्रम,अंजनिसैंण, समय साक्ष्य, देहरादून, पहाड़, नैनीताल, धाद, देहरादून, महादेवी सृजनपीठ, नैनीताल व संवेदना आदि सामाजिक और साहित्यिक संस्थाओं से जुड़े थे। वे मसूरी टाइम्स, युगवाणी, लोकगंगा, नैनीताल समाचार और उत्तरा में नियमित रूप से लिखते रहे थे। उत्तरा में प्रकाशित उनकी कविताएं काफी र्चिचत हुईं। उनकी कविताओं में एक छटपटाहट और लोकध्वनि सदैव मुखरित रही। अमर उजाला की टीम के साथ मसूरी से जुड़े और लम्बे समय तक जुड़े रहे। साहित्यिक संस्था अतीक तथा दून प्रेस क्लब के संस्थापक सदस्यों में थे। जौनपुर घोड़ाखुरी इंटर कॉलेज में 50 वर्ष की उम्र से अध्यापन का कार्य किया । इसके पूर्व वे जौनपुर में सिद्घ संस्था द्वारा चलाये जा रहे नई तालीम के विद्यालयों से सम्बद्घ रहे, जिनमें शिक्षण के साथ-साथ विभन्न अध्ययनों और प्रशिक्षण कार्यक्रमों में उनकी अग्रणी भूमिका रही। 1994 में उत्तराखण्ड राज्य आंदोलन पर उनकी लिखी किताब मसूरी के शहीद उत्तराखण्ड राज्य आंदोलन पर लिखी पहली किताब मानी जाती है। आपकी अन्य प्रमुख किताबें हैं- जौनपुर का सामाजिक एवं राजनैतिक इतिहास, जौनपुर के तीज त्यौहार, जौनपुर के लोक देवता, गॉड्स ऑफ जौनपुर, जौनपुर की लोककथाएं आदि। यमुना घाटी के लोकगीत नाम से उनकी किताब प्रकाशनाधीन है। किसी भी साहित्यिक-सामाजिक-सांस्कृतिक कार्यक्रम में एक चिरपरिचित मुस्कान के साथ उनकी उपस्थिति/भागीदारी हमेशा याद की जाती रहेगी। उत्तरा के प्रारम्भ के समय से ही उनका योगदान मिलता रहा था। उत्तरा परिवार की विनम्र श्रद्धांजलि।
(Surendra Pundir Poems)
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