निर्भीक कर्मयोगी : सुमिता विजयन

मधु जोशी

अक्टूबर 2015 में रक्षा मंत्रालय के  प्रवक्ता शीतांशु कार ने घोषणा की कि शीघ्र ही भारतीय वायु सेना में महिला पायलट लड़ाकू विमान भी उड़ा सकेंगी। फिर दिसम्बर 2015 में खबर आयी कि वर्तमान में वायु सेना अकादमी में प्रशिक्षण प्राप्त कर रही तीन महिलाओं का चयन कर लिया गया है ताकि जून 2016 में उन्हें लड़ाकू बेड़े में कमीशन देकर वायु सेना में लड़ाकू पायलट के रूप में शामिल कर लिया जाय। 8 मार्च 2016 को अंर्तराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर आयोजित समारोह में भारतीय वायु सेना के प्रमुख एयर चीफ मार्शल अरूप राहा ने घोषणा की कि 18 जून 2016 के दिन तीन महिला प्रशिक्षु भावना कन्ठ, अवनि चतुर्वेदी और मोहना सिंह फायटर पायलटों के रूप में वायु सेना में शामिल हो जायेंगी। अक्टूबर 2015 में ही भारतीय नौ सेना ने भी घोषणा की कि वहाँ भी शीघ्र ही महिला पायलट सभी प्रकार के विमान उड़ा सकेंगी, हालांकि वह फिलहाल तब तक तटीय हवाई अड्डों में ही कार्यरत रहेंगी जब तक जहाजों में मूलभूत सुविधाओं का विस्तार नहीं हो जाता है। फिर दिसम्बर 2015 में लोकसभा में लिखित उत्तर में रक्षा राज्य मंत्री राव इंद्रजीत सिंह ने स्पष्टीकरण दिया कि वायु सेना में महिला पायलटों को आरम्भ में पाँच वर्षों के लिए प्रायोगिक तौर पर लड़ाकू बेड़े में शामिल किया जायेगा। यद्यपि यह निर्णय अभी अल्पकाल के लिए ही लिया गया है, इसके साथ ही भारतीय रक्षा सेवाओं में एक और काँच की छत (glass ceiling) टूट गयी है जो महिलाओं की ऊँची उड़ान की राह में अवरोध खड़े करती थी।

ऐसी ही अदृश्य किन्तु सर्वत्र व्यापक लक्ष्मण रेखा को सुमिता विजयन ने 1997 में पार किया था, जब वह भारतीय वायु सेना में पायलट के रूप में शामिल हुई थीं। उन्होंने भारतीय वायु सेना में पायलट के रूप में कमीशन तब प्राप्त किया था जब वायु सेना ने शुरूआती दौर में अपने दरवाजे महिलाओं के लिए खोले थे। वह अत्यन्त अनुभवी पायलट थीं और उन्हें 8000 घंटों से अधिक हैलीकॉप्टर उड़ाने का अनुभव था। 2005 में वायु सेना से स्क्वॉड्रन लीडर के पद से सेवा निवृत होने के उपरान्त उन्होंने हिमालयन हैली र्सिवसेज प्राइवेट लिमिटेड (HSPL) में कार्य आरम्भ किया। 23 नवम्बर 2015 को 45 वर्ष की आयु में कैप्टन सुमिता विजयन की वैष्णोदेवी के आधार शिविर कटरा में हैलिकॉप्टर हादसे में मृत्यु हो गयी।

सुमिता विजयन के जीवन पर नजर डालने पर यह स्पष्ट हो जाता है कि क्यों उनकी मृत्यु के उपरान्त उनके परिवारजनों, मित्रों, सहर्किमयों, परिचितों तथा पत्रकारों ने  उनके  लिए ‘अग्रणी’, ‘अनुकरणीय’, ‘आदर्श’, ‘पथ प्रदर्शक’ तथा ‘प्रेरणास्रोत’ आदि विशेषणों का प्रयोग किया था। मूल रूप से तिरुअनन्तपुरम में अतिंगल के समीप अवननचेरी में रहने वाले परिवार में जन्मी सुमिता विजयन के पिता भारतीय नौ सेना में फौरमैन थे। उनकी स्कूली पढ़ाई मुम्बई में हुई। तिरुअनन्तपुरम से डिग्री प्राप्त करने के उपरान्त वह शॉर्ट र्सिवस कमीशन प्राप्त कर पायलट के रूप में भारतीय वायु सेना में शामिल हो गयीं। हैदराबाद में वायु सेना अकादमी में प्रशिक्षण प्राप्त करने के उपरान्त वह भटिन्डा, हैदराबाद, बागडोगरा आदि वायु सैनिक अड्डों में कार्यरत रहीं और 2005 में स्क्वॉड्रन लीडर के पद से सेवा निवृत्त हुईं। उनकी पुरानी सहकर्मी लाजू चैरियन के अनुसार, ‘‘सुमिता एक पथ-प्रदर्शक थीं जो सभी, विशेषकर महिला पायलटों के लिए प्रेरणा स्रोत थीं।’
(Sumita Vijayan)

वायु सेना से सेवानिवृत्ति के बाद सुमिता विजयन हिमालयन हैली र्सिवसेज नामक निजी कम्पनी में कार्य करने लगीं और इस कम्पनी के विस्तार का काफी हद तक श्रेय उन्हें जाता है। उत्तराखण्ड देवभूमि एवियेशन कम्पनी में कार्यरत अनुपम कठूरिया, जिन्होंने सुमिता विजयन के साथ प्रशिक्षण भी प्राप्त किया था, के शब्दों में, ‘सुमिता बहुत पेशेवर और मेहनती थीं। वह अत्यन्त मजबूत भी थीं और सौम्य भी। एच.एस.पी.एल. की प्रधान पायलट के रूप में उन्होंने कम्पनी के विस्तार में अग्रणीय भूमिका निभायी थी।’

जून 2013 में उत्तराखण्ड में अतिवृष्टि और भूस्खलन से बुरी तरह क्षतिग्रस्त केदारनाथ के पुर्निनर्माण की प्रक्रिया के आरम्भिक दौर में भी सुमिता विजयन ने असाधारण हिम्मत और कर्तव्य-निष्ठा का प्रदर्शन करते हुए महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। 4 मार्च 2014 को प्रतिकूल मौसम और बर्फबारी के कारण पेश आ रही अनेक बाधाओं के बावजूद, सुमिता विजयन ने जोखिम उठाकर हैलिकाप्टर को केदारनाथ में ‘हॉवर’कराया अर्थात् जमीन से थोड़ी ही दूरी पर हवा में एक स्थान पर स्थिर रखा और इसी कारण नेहरू पर्वतारोहण संस्थान (निम) उत्तरकाशी का दल वहाँ नीचे उतर पाया। इस संदर्भ में निम के प्रधानाचार्य कर्नल अजय कोठियाल का कहना था, ‘यह जज़्बा, जिसे going beyond the call of duty’(कर्तव्यपरायणता की सीमा से आगे जाकर काम करना) कहा जाता है, एक सैनिक का ही हो सकता है और इसे एक अनुभवी पायलट ही अंजाम दे सकता था।’ उनकी सहायता से निम का दल केदारनाथ घाटी का प्रारम्भिक सर्वेक्षण कर पाया जिसके कारण कुछ समय बाद केदारनाथ यात्रा पुन: आरम्भ हो पायी।

केदारनाथ त्रासदी के दौरान हैलिकॉप्टर उड़ाने वाले एक और पायलट पुनीत बक्शी भी सुमिता विजयन को याद करते हुए कहते हैं, ‘सुमिता लगभग दस पायलटों के समूह की अगुआई करती थीं जिनमें से अधिकांश उनसे वरिष्ठ थे। उनकी छवि अत्यन्त फौलादी थी। नागरिक उड्डयन के क्षेत्र में सीमित संख्या में महिलाएँ कार्यरत हैं और हैलिकॉप्टर उड़ाने वाली महिलाओं की संख्या तो और भी कम है। यह अत्यन्त जोखिम भरा काम है जिसमें विषम परिस्थितियों में, सुरक्षा उपायों, हैलिपैड और वायु यातायात नियंत्रण के बिना, किसी भी समय उड़ान भरनी पड़ सकती है। सुमिता ने एक दशक तक यह काम किया, टैण्टों में रहीं और मैगी जैसी चीजों पर गुजारा किया। उनकी असमय मृत्यु से पायलट बिरादरी गहरे सदमे में है।’

अपनी मृत्यु से कुछ क्षण पूर्व भी सुमिता विजयन ने असामान्य प्रत्युत्पन्नमतित्व, समझदारी और नि:स्वार्थता का परिचय दिया। सोमवार 23 नवम्बर 2015 को वैष्णो देवी यात्रा के आधार शिविर कटरा में उनका हैलीकॉप्टर, सम्भवत: गिद्ध के टकराने के कारण, दुर्घनाग्रस्त हो गया। तब उन्होंने छ: यात्रियों के साथ सांझी छत हैलिपैड से उड़ान भरी थी। प्रत्यक्षर्दिशयों के अनुसार हैलीकॉप्टर के दुर्घटनाग्रस्त होते ही सुमिता विजयन उसे खुले इलाके की तरफ ले गयीं ताकि रिहायशी इलाके में रहने वालों को कोई नुकसान नहीं हो। मौत का सामना करते हुए भी सुमिता विजयन ने अपने होशो-हवास नहीं खोये अन्यथा कई और लोगों की जान जा सकती थी। अपने निजी दु:ख से जूझते हुए भी उनके भाई सुनील ने गर्व व्यक्त किया कि उनकी बहन ने अन्त तक स्थिति को सम्हालने का प्रयास किया और एक और भी बड़ी दुर्घटना को होने से रोक दिया।

सुमिता विजयन एक ऐसी जुझारू, साहसी, निडर और दृढ़-निश्चयी महिला थीं जिन्होंने अद्वितीय कर्मठता, दृढ़ता और हिम्मत के साथ, बिना किसी शोर-शराबे के, कुछ इस तरह से अपना जीवन जिया कि वह अपने बाद आने वाली अनेक महिलाओं के लिए मार्ग प्रशस्त कर गयीं। सुमिता विजयन को उत्तरा परिवार की श्रद्धांजलि।

(सुमिता विजयन की मृत्यु के उपरान्त विभिन्न समाचार-पत्रों में प्रकाशित लेखों पर साभार आधारित)
(Sumita Vijayan)
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