कमला
ममता थापा
कमला की माँ आयी थी उससे मिलने। आज मेला था, कमला के गाँव में। माँ के आने की खबर कमला को थी। उसकी तबियत ठीक नहीं थी। तब भी इस खुशी में उसने नहाया-धोया, बच्चों को नहला-धुलाकर अन्दर लीपा, बत्ती जलायी। आज सबका व्रत था। अभी काफी काम पड़ा था। बीमारी उसे थका रही थी। डाक्टर कह रहे थे, उसे खून की बहुत कमी है और ब्लड प्रेशर भी काफी नीचे है। जिस वजह से उसके हाथ-पाँव थक रहे थे। पैरों में दर्द था। थकान से चक्कर आ रहे थे। वह लेट गयी। अभी गौशाला साफ करनी थी जिससे बहुत गोबर निकालना था, जो बाहर एक जगह इकट्ठा करना होता था। थोड़ी देर बाद वह उठी, फिर गौशाला साफ की। उसके अपने कमरे में बच्चों ने सारा सामान बिखेरा था। वह थकी- थकी कमरा सहेजने लगी। उसने बच्चों से कहा, चीजें सम्भालने में मेरी मदद करो। मैं तभी जल्दी तुम्हें मेला दिखाने ले जाऊँगी। नहीं तो मेरा अभी बहुत काम है। बच्चे खुशी खुशी माँ का हाथ बँटाने लगे। फिर कमला एक गट्ठर घास काट लायी। फिर रसोई भी लीप दी और सारे बर्तन साफ किये। सासु माँ का भी व्रत था। नहीं तो चिल्लाती बाहर से आकर।
बच्चे बार-बार कह रहे थे मम्मी, नहीं जा रही हो मेला देखने। ससुर जी बाजार से आ चुके थे। कमला ने गैस में चाय रखी। वह बच्चों को तैयार करने लगी। ससुर को चाय दी, तभी माँ आ गई। माँ को भी चाय दी। बच्चे खुश हो गये। नानी आ गई, नानी आ गई। माँ बहुत दुबली हो गयी थी। कमला टीस सी महसूस करके रह गयी। माँ घी लायी थी, अचार लायी थी और बहुत सा प्यार भर लायी थी। तभी जिठानी बोली, कमला, चलो जल्दी। सब मेला देखने चले। बाजार में पहुँचे ही थे कि बारिश ने जोर पकड़ लिया। बारिश को भी आज ही आना था पर बारिश भी उसे माँ के साथ होने की खुशी से वंचित नहीं कर पायी। आज वह कई सालों बाद माँ के साथ थी। बचपन में माँ हमेशा हमारी खुशी के लिये मेला जाती थी। यह बात उसे हर मेले में याद आ जाती थी।
मेले में उसे काफी थकान महसूस होने लगी। शोर-शराबे से सरदर्द ऊपर से। उसकी हालत खराब होने लगी। पेट दर्द भी सता रहा था। माँ ने उसकी शक्ल को भाँप कर कहा, चलो, घर चलें। बच्चे एक-दो खिलौने पाकर खुश थे। सो घर की तरफ आ गये। जैसे कमरे में पहुँची, उसकी माहवारी हो गई। जो काफी देर में लगभग एक महीने बाद हुयी थी। कमला को पता था, अब सास बौखला कर उस पर बरसेगी। पर खून में भरा डर कहाँ मानता। उसने सास को बता दिया। सास ने कटाक्ष किया, बस इतनी सुख सेवा है मेरी। माँ बेटी की भी न लगती तभी अलग हो गयी।
वह समझ गयी कि मेरी बीमारी की वजह से सारा काम सास को करना पड़ रहा है। अब सब भड़ास माँ के सामने निकलेगी। कमला तन से तो कमजोर थी ही पर अब मन से भी हो गयी थी। उसके आँसू आ गये। वह इस बात से दुखी थी कि माँ रोज तो नहीं आती। जितना सामथ्र्य है वह काम करती है। माँ के सामने बात-बात में ये जाहिर करते हैं कि वह काम नहीं करती। जितनी ताकत होती है, वह काम करती है। अगर उसे माहवारी के दौरान अन्दर आने की अनुमति होती तो वह सब काम खुद करती। माहवारी उसके बस में तो नहीं कि मेहमान आये तब हो या तीज त्यौहार को न हो। उसका अपना वक्त है। सास बात-बात पर मुँह बनाती या ताने कसने लगती। कमला लेटी रह गयी। उसके हाथ-पाँव थकान से और अधिक सोचने से ढीले पड़ गये थे। वह सर दर्द से उठ नहीं पायी। भूख भी मर चुकी थी। मन उदास था। माँ अब उसे बोझ-सी लगने लगी। कल वह माँ को जल्दी मायके वापस कर देगी। अब पाँच दिन तक यही हाल रहेंगे। माँ को भी सुनना पड़ेगा। तभी बेटा बोला, मम्मी खाना खा लो। कमला बोली, बेटा भूख नहीं है। मैं नहीं खा पाऊंगी। वापस ले जाओ। कमला फिर लेट गई। कमला सोच रही थी जब खूब काम करूँ सब खुश रहते हैं। मैं बीमार हो जाऊँ, तो मुझे भी तो प्यार और देखभाल की जरूरत है। इस माहौल में वह कैसे अपना ब्लड प्रेशर नार्मल करे, कैसे खून बढ़ाये। जब वह स्वस्थ होगी, तभी तो काम होगा। उसकी हालत तीन साल से ऐसी ही चल रही थी। जब बेटी के बाद उसका एबॉर्शन कराया गया। खून की कमी हो गई थी। ब्लड प्रेशर नीचे चला गया था। दवाई-सुई सब लगा चुकी थी वह, पर कुछ नहीं हुआ। हाल में तो उसे दो दिन अस्पताल में एडमिट रहना पड़ा।
अब वह सोच रही थी कि उसे खुद को सम्भालना होगा। वर्ना वह जीते जी मर जायेगी।
story of kamla
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