सुल्ताना का सपना

रुकय्या सखावत हुसैन

एक शाम अपने कमरें में आराम कुर्सी पर पसरी मैं यूँ ही भारतीय महिलाओं के हालात के बारे में सोच रही थी। मुझे याद नहीं कि मैं ऊँघ रही थी या नहीं, पर यह जरूर याद है कि मैं जगी हुई थी। मैंने तारों भरे आकाश को देखा, हीरे की तरह हजारों-हजार जगमगाते तारे।
अचानक एक महिला मेरे सामने खड़ी हो गयी। वह अंदर कैसे आई, मुझे याद नहीं। मैंने उसे अपनी सहेली, सिस्टर सारा समझा।
‘‘गुड मार्निंग,’’सिस्टर सारा ने कहा। मैं धीमे से मुस्कुराई क्योंकि मुझे पता था कि अभी सुबह नहीं, बल्कि तारों भरी रात है। मैंने उसकी बात का जवाब दिया, ‘‘तुम कैसी हो?’’
‘‘शुक्रिया, मैं ठीक हूँ।’’ तुम बाहर आकर मेरे बगीचे को देख सकती हो क्या?’’
खुली हुई खिड़की से एक बार फिर मैंने चाँद को देखा और सोचा कि इतनी रात गये बाहर जाने में कोई नुकसान नहीं है।  उस समय सभी पुरुष गहरी नींद में थे और मैं बड़े आराम से सिस्टर सारा के साथ टहलने जा सकती थी।

जब हम दार्जिलिंग में थे तो अक्सर मैं सिस्टर सारा के साथ टहलने जाया करती थी। तब हम अक्सर हाथों में हाथ डाले बोटानिकल गार्डन में घूमते हुए खुले दिल से बातें किया करते थे। मैंने कल्पना की कि सिस्टर सारा शायद ऐसे ही किसी बगीचे की सैर कराने के लिए मुझे लेने आयी हैं। मैं झपटकर तैयार हो गई और उनके साथ बाहर निकल पड़ी।
चलते हुए मुझे हैरत हुई जब मैंने पाया कि वहाँ तो पूरी सुबह हो चुकी है। शहर जाग चुका था और सड़कों पर लोगों का सैलाब उमड़ रहा था। मुझे यह सोचकर शर्म आ रही थी कि मैं भरी दोपहरी सड़क पर चल रही थी, हालांकि वहाँ एक भी मर्द दिखायी नहीं दे रहा था।
चलते हुए कुछ लोगों ने मुझ पर फिकरे कसे। हालांकि मैं उनकी भाषा नहीं समझ पायी फिर भी मैं यह तो समझ ही गयी कि वे मेरा मजाक उड़ा रही हैं। मैंने अपनी सहेली से पूछा, ‘‘ये क्या कह रही हैं।’’
‘‘औरतें कह रही हैं कि तुम बड़ी मर्दाना लगती हो।’’
‘‘मर्दाना?’’ मैंने कहा, ‘‘वे क्या कहना चाह रही हैं?’’
उनका मतलब है कि तुम मर्दो की तरह शर्मीली और डरपोक हो।
‘‘मर्दों की तरह शर्मीली और डरपोक?’’ यह निरा मजाक था। मैं बिलकुल घबरा गयी जब मैंने पाया कि मेरी सहेली सिस्टर सारा नहीं बल्कि कोई अजनबी है। ओह, मैं कितनी बेवकूफ हूँ जो इस अजनबी महिला को सिस्टर सारा समझ बैठी।
हम दोनों हाथों में हाथ लिए चल रहे थे। उसने मेरे हाथों की कंपकंपाहट महसूस की।
‘‘प्यारी, क्या मामला है?’’ अपनेपन के साथ उसने पूछा। ‘‘मुझे बड़ा अजीब लग रहा है।’’ मैंने कुछ-कुछ माफी माँगने के अंदाज में कहा। ‘‘मैं परदे में रहने वाली औरत हूँ और बिना परदे के चलने की मुझे आदत नहीं है।’
तुम्हें इस बात के लिए डरने की जरूरत नहीं है कि यहाँ कोई मर्द आ जाएगा। पाप और खतरे से मुक्त यह महिलाओं का देश है।
(Story by Rukaiya Sakhawat Husain)

धीरे-धीरे मैं दृश्य का आनन्द लेने लगी। निश्चय ही यह बेहद भव्य था। मैं घास की एक पट्टी को शनील की कालीन समझ बैठी। उस पर चलने पर ऐसा अहसास हो रहा था, जैसे मैं मखमल की कालीन पर चल रही हूँ। जब मैंने नीचे देखा तो पाया कि उस रास्ते पर तो गहरी काई और घास जमी है।
‘‘यह कितनी अच्छी है,’’ मैंने कहा।
‘‘तुम्हें यह अच्छी लगी?’’ सिस्टर सारा ने पूछा। (मैं उन्हें सिस्टर सारा बुलाती रही और वे मुझे मेरे नाम से पुकारती रही)
‘‘हाँ, बहुत ज्यादा, लेकिन मैं नाजुक और सुन्दर फूलों को कुचलना नहीं चाहती।’’
‘‘चिन्ता न करो प्यारी सुल्ताना, ये जंगली फूल हैं। तुम्हारे चलने से खराब नहीं होंगे।’’
मैंने तारीफ करते हुए कहा, ‘‘यह पूरी जगह एक बगीचे की तरह लग रही है। तुमने एक-एक पौधे को कितनी खूबसूरती से सँवारा है।’’
‘‘तुम्हारे कलकत्ता को भी इससे बेहतर बगीचा बनाया जा सकता है, बशर्ते तुम्हारे देश के लोग ऐसा करना चाहें।’’
‘‘उनके पास करने के लिए बहुत-सी दूसरी चीजें जो होती हैं, इसलिए वे बागवानी पर इतना ध्यान देना वक्त जाया करना समझेंगे।’’
‘‘इससे बेहतर बहाना उन्हें नहीं मिलेगा,’’ मुस्कुराते हुए उसने कहा।
मुझे यह बात जानने की बेहद इच्छा हो रही थी कि सारे के सारे मर्द कहाँ गये। चलते हुए लगभग सौ महिलाओं से मेरी भेंट हुई थी लेकिन एक भी मर्द दिखाई नहीं दिया।
‘‘सारे मर्द कहाँ गए? मैंने उनसे पूछा।’’
‘‘अपनी सही जगह पर, जहाँ उन्हें होना चाहिए।’’
‘‘मेहरबानी करके मुझे बताओ कि ‘‘अपनी सही जगह’’ से तुम्हारा क्या मतलब है।’’
‘‘ओह, अब मुझे अपनी गलती समझ आयी, तुम्हें हमारे तौर-तरीके नहीं पता, तुम तो पहली बार यहाँ आयी हो। हम अपने आदमियों को अन्दर बन्द करके रखते हैं।’’
‘‘ठीक वैसे ही जैसे हम औरतों को जनाना घर में बन्द रखते हैं?’’
‘‘कितनी मजाकिया बात है,’’ मैं ठठा कर हँसी। सिस्टर सारा भी हँस पड़ी।
‘‘लेकिन प्यारी सुल्ताना, इन मासूम औरतों को बन्द रखना और मर्दों को खुला छोड़ना, कितनी नाइंसाफी है।’’
‘‘क्यों, चूँकि हम लोग कुदरती तौर पर ही कमजोर हैं, इसलिए हमारा जनानखाने से बाहर रहना सुरक्षित नहीं है।’’
‘‘हाँ सड़कों पर रहना तब तक सुरक्षित नहीं है जब तक कि वहाँ मर्द होते हैं।’’ क्या यह कुछ ऐसा नहीं है, जैसे बीच बाजार में कोई जंगली जानवर घुस आये?
‘‘बिल्कुल नहीं।’’
(Story by Rukaiya Sakhawat Husain)

सोचो, किसी पागलखाने से कोई पागल बाहर निकल आये और मर्दों, घोड़ों और दूसरे जानवरों के साथ ऊलजलूल हरकत करने लगे तो उसके साथ तुम्हारे देश के लोग क्या करेंगे?
‘‘वे उसे पकड़कर वापस पागलखाना भेज देंगे।’’
‘‘शुक्रिया! और तुम ये नहीं सोचती कि समझदार आदमी को अन्दर रखने और पागल आदमी को बाहर रखने में ही अक्लमंदी है?’’
‘‘बिल्कुल नहीं।’’ मैं धीरे से हँसी।
‘‘तुम्हारे देश में तो मर्द इस तरह के काम करते ही रहते हैं। मर्द जो इस तरह के काम करते ही रहते हैं, या फिर उनमें इस तरह के खुराफात करने की कुव्वत होती है, वे आजाद घूमते हैं जबकि महिलाएँ अन्दर बन्द रहती हैं! घर से बाहर इस तरह के गैर जिम्मेदार मर्दों पर तुम कैसे भरोसा कर सकती हो?’’
‘‘सामाजिक मसलों में हमारा कोई दखल नहीं है। भारत में मर्द भगवान और स्वामी होते हैं। उन्होंने अपने पास सारी शक्तियाँ और विशेषाधिकार रखे हुए हैं और औरतों को जनानखाने में बन्द कर दिया है!’’
‘‘तुमने अपने को जनानखाने में बन्द कैसे रहने दिया?’’
‘‘क्योंकि इससे बचा नहीं जा सकता। मर्द औरतों से ज्यादा ताकतवर हैं।’’
‘‘शेर आदमी से ज्यादा ताकतवर होता है, पर इंसान उसको अपने ऊपर हावी नहीं होने देता। तुमने अपने अधिकारों को लेकर बहुत लापरवाही बरती है। अपने फायदे से आँखें फेरकर अपने कुदरती अधिकारों को भी खो दिया।’’
‘‘लेकिन सिस्टर सारा, अगर हम सारे काम खुद ही कर लेंगी तो मर्द क्या करेंगे?’’
(Story by Rukaiya Sakhawat Husain)

‘‘उन्हें कुछ नहीं करना चाहिए। माफ करना, वे कुछ करने के काबिल नहीं हैं। उन्हें पकड़ो और जनानखाने मेें बन्द कर दो।’’
‘‘पर क्या उन्हें पकड़कर चारदीवारी के अन्दर कैद करना आसान होगा? मैंने कहा। ‘‘और अगर हम यह कर पाने में कामयाब भी होती हैं तो क्या उनके सियासी और दूसरे कारोबार भी उनके साथ जनानखाने के अन्दर नहीं चले जायेंगे?’’
सिस्टर सारा ने कोई जवाब नहीं दिया। वे सिर्फ हल्का सा मुस्कुरायीं। शायद उन्हें लगा हो कि मुझ जैसी कुँए की मेंढक से बहस करने से क्या फायदा।
तब तक हम सिस्टर सारा के घर पहुँच गये थे। वह दिल के आकार के एक बगीचे में बना था। वह लोहे की नालीदार छत वाला बँगला था। वह हमारी बेहतरीन इमारत से ज्यादा ठंडा और अच्छा था। मैं बता नहीं सकती कि वह कितना साफ-सुथरा था। शानदार फर्नीचर और बेहतरीन सजावट की तो बात ही क्या।
हम किनारे ही बैठ गये। बैठक से वह कसीदाकारी का एक टुकड़ा ले आयी और उस पर एक नया डिजाइन बनाने लगी।
‘‘क्या तुम बुनाई और कढ़ाई का काम जानती हो?’’
‘‘हाँ, जनानखाने में इसके अलावा हमारे पास कोई और काम ही नहीं होता।’’
‘‘लेकिन हम जनानखाने के मर्दों पर कढ़ाई के मामले में भरोसा नहीं करते, क्योंकि उन्हें तो सुई में धागा डालना भी नहीं आता!’’ उसने हँसते हुए कहा।
‘‘क्या तुमने यह सब खुद ही किया है?’’ मैंने कढ़ाई किये हुए तिपाई के टुकड़ों की ओर इशारा करते हुए पूछा।
‘‘हाँ’’
‘‘यह सब करने के लिए तुम वक्त कहाँ से निकालती हो? तुम्हें ऑफिस का काम भी तो करना होता है या नहीं?’’
‘‘अरे, मैं पूरा दिन प्रयोगशाला में ही नहीं चिपकी रहती। मैं अपना काम दो घंटे में ही निपटा लेती हूँ।’’
सिर्फ दो घंटे में! तुम कैसे कर पाती हो? हमारे देश में अफसर, मजिस्ट्रेट जैसे लोग सात घंटे काम करते हैं।
‘‘मैंने उन्हें काम करते हुए देखा है। क्या तुम्हें लगता है कि वे पूरे सात घंटे काम करते हैं?’’
‘‘हाँ, बिलकुल!’’
‘‘नहीं प्यारी सुल्ताना, वे नहीं करते। वे अपना समय सिगरेट पीने में बर्बाद करते हैं। कई तो ऑफिस टाइम में दो से तीन डब्बी सिगरेट पी जाते हैं। वे अपने काम के बारे में बातें ज्यादा करते हैं, काम कम करते हैं। फर्ज करो अगर एक सिगरेट को खत्म होने में आधा घंटा लगता है और एक आदमी दिनभर में बारह सिगरेट पीता है तो तुम ही देखो, दिनभर में वह छ: घंटा सिर्फ सिगरेट पीने में बर्बाद करता है।’’
(Story by Rukaiya Sakhawat Husain)

अलग-अलग मुद्दों पर हुई अपनी बातचीत में मैंने पाया कि उन्हें न तो महामारी होती है और न ही उन्हें उस तरह मच्छर काटते हैं जैसे हमें। मैं यह जानकर हैरान रह गयी कि औरतों के देश में किसी हादसे के अलावा कोई अपनी जवानी में मरता ही नहीं।
‘‘क्या तुम हमारी रसोई देखना पसंद करोगी?’’ उसने मुझसे पूछा।
‘‘खुशी-खुशी,’’ मैंने जवाब दिया और फिर हम रसोई देखने निकल पड़े। जब मैं उसे देखने जा रही थी तब शायद मर्दों से उसकी सफाई करने को कहा गया था। रसोई सब्जियों के एक खूबसूरत बगीचे में थी। हर लता, हर टमाटर मानो अपने में एक गहना लग रहा था। रसोई में कोई चिमनी नहीं दिखाई दी। वह साफ-सुथरी थी और रोशनी से भरपूर थी। उसकी खिड़की पर सुन्दर फूल लगे थे। कोयले और धुँए का कोई निशान नहीं था।
‘‘तुम लोग खाना कैसे बनाती हो?’’ मैंने पूछा
‘‘सूरज की गरमी से। उसने जवाब देते हुए एक पाइप दिखाया जिससे होकर सूरज की घनी रोशनी और गर्मी गुजरती थी। फिर उसने मुझे तरीका समझाने के लिये कोई चीज पका कर दिखायी।’’
‘‘तुम सूरज की रोशनी को कैसे इकट्ठा और जमा करती हो?’’ आश्चर्य से मैंने पूछा।
‘‘मुझे थोड़ा बहुत अपने लोगों का इतिहास बताने दो। हमारी मौजूदा महारानी को तेरह साल की उम्र में राजगद्दी मिली। वह सिर्फ दिखावे की रानी थी। देश की असली सत्ता तो प्रधानमंत्री के पास थी।’’

‘‘हमारी प्यारी रानी को विज्ञान बहुत अच्छा लगता था। उसने फरमान जारी किया कि उसके देश में सभी लड़कियों को पढ़ाया जाना चाहिए। इस तरह लड़कियों के लिए सरकार ने बहुत सारे स्कूल खोले। औरतों के बीच शिक्षा फैली। कम उम्र में होने वाली शादियाँ भी रुकीं। इक्कीस साल से कम उम्र की लड़कियों की शादी पर पूरी तरह रोक लग गयी। मैं यह बताना चाहती हूँ कि इस बदलाव के पहले हमें सख्त पर्दे में रखा जाता था।’’
‘‘यह सब किया कैसे गया?’’ मैंने हँसते हुए पूछा।
‘‘पर अलगाव अभी भी उतना ही है।’’ उसने कहा। ‘‘कुछ सालों में हमारे पास लड़कियों के लिए अलग विश्वविद्यालय होंगे, जहाँ मर्दों को प्रवेश नहीं मिलेगा।’’
‘‘राजधानी में जहाँ हमारी महारानी रहती हैं, वहाँ दो विश्वविद्यालय हैं। इन विश्वविद्यालयों में से एक ने एक निराले गुब्बारे में कई पाइप लगा दिये हैं और इस बन्द गुब्बारे को वे बादलों के ऊपर तैराने में सफल रहे हैं। वहीं जरूरत के हिसाब से वातावरण से पानी को इकट्ठा किया जाता है। अब चूँकि विश्वविद्यालय लगातार पानी इकट्ठा कर रहा था, इसलिए बादल ही नहीं रहे थे। इस तरह लेडी प्रिंसिपल ने बारिश और तूफान को रोक दिया।’’
(Story by Rukaiya Sakhawat Husain)

‘‘वाकई! अब मैं समझी कि यहाँ मिट्टी की कोई झोपड़ी क्यों नहीं है!’’ मैंने कहा। पर मुझे यह नहीं समझ में आया कि पाइपों में पानी कैसे जमा किया जा सकता है। उसने मुझे समझाने की बहुत कोशिश की लेकिन मेरी खोपड़ी में कुछ भी नहीं घुसा, क्योंकि विज्ञान की मुझे जरा भी समझ नहीं थी… खैर, उसने अपनी बात जारी रखी। ‘‘जब दूसरे विश्वविद्यालयों को इसके बारे में पता चला तो उन्हें बहुत जलन हुई और उन्होंने इससे भी नायाब कुछ करने की सोची। उन्होंने एक ऐसी मशीन बनायी जिससे वे जितना चाहते, सूरज की उतनी गरमी जमा कर सकते थे। वे उस ताप को जमा कर के रखते और जब जिसको जितना जरूरत होती उतना दे देते।’’

‘‘औरतें जब वैज्ञानिक शोध में लगी हुई थीं, तब इस देश के मर्द सेना को ताकतवर बनाने में लगे थे। जब उनको पता चला कि महिला विश्वविद्यालय वातावरण से पानी और सूरज की गर्मी एकत्रित करने में सफल हो गये हैं तो उन्होंने विश्वविद्यालय के सदस्यों का मजाक उड़ाया और इस पूरे काम को ‘‘एक भयानक भावनात्मक दु:स्वप्न’’ का नाम दिया।

‘‘वाकई तुमने जो चीजें हासिल की हैं, वे हैरतअंगेज हैं! लेकिन मुझे यह बताओ कि तुम लोग इस देश के मर्दों को जनानखाने में रखने में कैसे सफल हो गये। क्या पहले तुम लोगों ने उन्हें…’’
‘‘नहीं।’’
‘‘ये तो हो नहीं सकता कि वे खाली और मुक्त हवा का जीवन खुद ही छोड़कर अपने आप को जनानखाने की चहारदीवारी में कैद कर लें! उन पर ताकत का इस्तेमाल किया गया होगा।’’
‘‘हाँ, किया गया!’’
‘‘किसने किया? महिला सैनिकों ने?’’
‘‘नहीं, हथियारों के दम पर नहीं’’
‘‘हाँ, यह मुमकिन नहीं था। मर्दों के हाथों में औरतों से ज्यादा ताकत होती है। तब?’’
‘‘दिमाग से।’’
‘‘हालांकि उनके दिमाग औरतों के दिमाग से ज्यादा बड़े और भारी हैं। क्या ऐसा नहीं है?’’
‘‘लेकिन उससे क्या? हाथी का दिमाग भी तो मर्दों के दिमाग से ज्यादा बड़ा और भारी होता है। लेकिन तब भी मर्द हाथी को जंजीरों में कैद कर उसे अपनी इच्छा से काम पर लगा सकते हैं।’’
‘‘बिलकुल ठीक, लेकिन मुझे यह बताओ कि वाकई यह सब हुआ कैसे? मैं जानने के लिए मरी जा रही हूँ!’’
‘‘औरतों का दिमाग मर्दों के दिमाग की तुलना में अधिक तेजी से काम करता है। दस साल पहले जब सेना के कुछ अफसरों ने हमारी वैज्ञानिक खोजों का ‘‘एक भयानक भावनात्मक दु:स्वप्न’’ कहकर मजाक उड़ाया, तब हमारी कुछ युवा महिलाएँ उसके जवाब में कुछ कहना चाहती थीं। लेकिन दोनों महिला प्रिंसिपलों ने उन्हें रोक दिया और कहा कि अगर वे जवाब देना चाहती हैं तो शब्दों से नहीं, बल्कि मौका मिले तो काम से दें। और उन्हें मौके के लिए ज्यादा इन्तजार नहीं करना पड़ा।’’
(Story by Rukaiya Sakhawat Husain)

‘‘वाह, कितना शानदार?’’ मैंने मन से ताली बजायी। ‘‘और अब वे घमंडी जेंटलमैन स्वयं ही भावनात्मक दु:स्वप्न देख रहे हैं।’’
‘‘इसके कुछ समय बाद ही पड़ोसी देशों से कुछ लोग आये और यहाँ बस गये। किसी तरह का राजनीतिक अपराध करने के कारण वे मुसीबत में थे। राजा जो अच्छे शासन के बजाय ताकत के इस्तेमाल में ज्यादा यकीन करता था, उसने हमारी कोमल दिल रानी से निवेदन किया कि वे उनके अफसरों को वापस सौंप दें। रानी ने इनकार कर दिया क्योंकि शरणाथर््िायों को वापस भेजना उनके उसूल के खिलाफ था। इस इनकार के बाद राजा ने हमारे देश के खिलाफ युद्ध की घोषणा कर दी।’’
‘‘हमारे मिलिट्री अफसर धड़ाधड़ तैयार हुए और दुश्मन से दो-दो हाथ करने कूच कर गये। हालांकि दुश्मन हमसे ज्यादा ताकतवर थे, फिर भी हमारे सैनिक बहादुरी से लड़े लेकिन उनकी लाख बहादुरी के बावजूद विदेशी फौजों ने हमारे देश पर कब्जा कर लिया।’’
‘‘सभी पुरुष युद्ध के मोर्चे पर गये हुए थे, यहाँ तक कि सोलह साल का एक लड़का घर पर नहीं बचा था। हमारे ज्यादातर योद्धा मारे जा चुके थे। बाकी को खदेड़ा जा चुका था और दुश्मनों की फौज राजधानी से पच्चीस मील दूर तक आ पहुँची थी।’’
रानी के महल में कुछ समझदार महिलाओं की इस बाबत एक बैठक बुलायी गयी कि देश को कैसे बचाया जा सकता है। कुछ ने योद्धाओं की तरह लड़ने का सुझाव दिया तो कुछ ने विरोध करते हुए कहा कि औरतों को सैनिकों की तरह तलवार और बन्दूकों से लड़ने का प्रशिक्षण नहीं मिला है और न ही वे हथियारों से लड़ने की अभ्यस्त हैं। कुछ और लोगों ने तो यहाँ तक कह दिया कि वे तो शारीरिक रूप से बेहद कमजोर हैं।
‘‘अगर तुम शारीरिक ताकत से अपने देश को नहीं बचा सकती तो अपनी बुद्धि की ताकत से उसे बचाओ।’’

‘‘कुछ पल के लिए मुर्दा चुप्पी छा गई। रानी ने फिर से कहा, ‘‘अगर मेरी मातृभूमि और मेरा सम्मान खो जायेगा तो मैं आत्महत्या कर लूंगी।’’
‘‘तब दूसरे विश्वविद्यालय की महिला प्रिंसिपल ने (जिन्होंने सूरज की गर्मी एकत्रित की थी)’’ जो पूरी बातचीत के दौरान चुपचाप सुन रही थी, कहा कि राज्य हाथ से जा चुका है, और अब हमें किसी तरह की आशा नहीं करनी चाहिए। हालांकि एक योजना अभी थी जिस पर वह आखिरी बार अमल करना चाहती थीं। अगर वह इसमें भी असफल रहीं तो आत्महत्या के अलावा कोई चारा नहीं बचता। वहाँ उपस्थित सभी लोगों ने प्रण किया कि चाहे कुछ भी हो जाय, वे खुद को गुलाम नहीं होने देंगी।
‘‘रानी ने दिल से उनको धन्यवाद दिया और महिला प्रिंसिपल से अपनी योजना पर अमल करने को कहा। महिला प्रिंसिपल फिर से खड़ी हुई और कहा, ‘‘इससे पहले कि हम बाहर जायें, पुरुषों को जनानखाने में आ जाना चाहिए। परदे के लिए मैं यह प्रार्थना करूंगी।’’
‘‘हाँ, बिलकुल, रानी ने जवाब दिया।’’
(Story by Rukaiya Sakhawat Husain)

‘‘अगले दिन रानी ने सभी पुरुषों को सम्मान और स्वतंत्रता के लिए जानानखाने में आने को कहा। वे इतने थके हुए और घायल थे कि उन्होंने इस आदेश को एक वरदान की तरह लिया! उन्होंने सर झुकाया और विरोध का एक शब्द कहे बिना जनाने में प्रवेश किया। उन्हें पक्का यकीन हो चला था कि अब देश का कुछ नहीं हो सकता।’’
‘‘उसके बाद महिला प्रिंसिपल ने अपनी दो हजार छात्राओं के साथ रणभूमि की ओर कूच किया और उनके वहाँ पहुँचते ही सूरज की संघनित रोशनी और गरमी का रुख दुश्मनों की ओर कर दिया।’’

‘‘इतनी तेज गरमी और रोशनी उनके बर्दाश्त के बाहर थी। वे बुरी तरह घबराकर भागे। उन्हें समझ में ही नहीं आ रहा था कि इस झुलसा देने वाली गर्मी से वे कैसे मुकाबला करें। जब वे अपनी बन्दूकें और गोला बारूद छोड़कर भाग गये, तब हमने उन्हें भी उसी तरह सूरज की गरमी से जला दिया। तबसे किसी ने भी हमारे देश पर हमला करने की जुर्रत नहीं की।’’
‘‘और तब से तुम्हारे देश के मर्दों ने जनानखाने से बाहर निकलने की कोशिश नहीं की?’’

‘‘हाँ, वे आजाद होना चाहते हैं। कुछ पुलिस कमिश्नर और जिलाधीशों ने पत्र लिखे कि सैनिक अधिकारी अपनी नाकामी को देखते हुए निश्चय ही जेल जाने लायक हैं, लेकिन चूँकि उन्होंने कभी भी अपनी ड्यूटी में लापरवाही नहीं बरती है, इसलिए उन्हें सजा नहीं मिलनी चाहिए और उनकी अपील के अनुसार उन्हें उनके विभाग सौंप देने चाहिए।’’

‘‘महारानी ने उन्हें एक पत्र भेजा जिसमें कहा गया था कि भविष्य में यदि उनकी सेवाओं की जरूरत पड़ी तो उनकी सेवा ली जायेगी। तब तक उन्हें वहीं रहना है जहाँ उन्हें रखा गया है। और अब जबकि उन्हें पर्दा प्रथा की आदत हो गयी है, और चूँकि उन्होंने अपने अलगाव (एकाकीपन) पर खीझना छोड़ दिया है, इसलिए हमने भी इस व्यवस्था को ‘‘जनाना’’  की जगह ‘‘मरदाना’’ कहना शुरू कर दिया है।
‘‘पर तुम यह सब कर कैसे पाती हो?’’ मैंने सिस्टर सारा से पूछा। ‘‘चोरी या हत्या के मामले में बिना पुलिस या मजिस्ट्रेट के यह कैसे हो पाता है?’’
‘‘जब से मर्दाना’’ व्यवस्था लागू हुई है तबसे अपराध बन्द हो गये हैं इसलिए अब अपराधी को ढूँढने के लिए हमें पुलिस की जरूरत नहीं रह गयी है और न ही हम यह चाहते हैं कि कोई मजिस्टे्रट किसी अपराधी पर मुकदमा चलाये।’’
‘‘अरे, यह तो बहुत शानदार बात है। जहाँ तक मैं समझती हूँ, अब किसी अपराधी को दण्डित करना भी बहुत आसान हो गया होगा। तुमने एक भी बूँद खून बहाए बिना अन्तिम जीत हासिल की है, इसलिए तुम अपराध और अपराधियों को भी उतनी ही आसानी से खत्म कर सकती हो!’’
‘‘प्रिय सुल्ताना, तुम यहीं बैठी रहोगी या मेरे साथ पार्लर चलोगी?’’ उन्होंने पूछा।
(Story by Rukaiya Sakhawat Husain)

‘‘तुम्हारी रसोई तो महारानी के श्रृंगार-कक्ष से कुछ कम बेहतर नहीं है!’’ स्नेहिल मुस्कान के साथ मैंने जवाब दिया, ‘‘लेकिन हमें अब उसे छोड़ देना चाहिए क्योंकि अब वे महाशय मुझे कोस रहे होंगे कि मैंने उन्हें इतने दिन रसोई की ड्यूटी से दूर क्यों रखा।’’ हम दोनों ठठा कर हँसे।

‘‘मैं सोच रही हूँ कि घर पर मेरे सारे दोस्त कितना हैरान होंगे, जब उन्हें यह पता चलेगा कि महिलाओं के इस सुदूर देश में महिलाएँ देश पर राज करती हैं और सभी सामाजिक मामलों को निबटाती हैं जबकि पुरुषों को मरदानखाने में बच्चों की देखभाल, खाना बनाने और दूसरे घरेलू कामों के लिए रखा जाता है। यहाँ की बातें सुनकर उन्हें समझ में आयेगा कि खाना बनाना कितना आसान और आनन्ददायी भी हो सकता है!’’
‘‘हाँ, उन्हें वह सब बताना जो तुमने यहाँ देखा।’’

अब मुझे यह बताओ कि तुम जमीन पर खेती कैसे करती हो और उसे जोतती कैसे हो? दूसरे भारी कामों को कैसे निबटाती हो?
‘‘हमारे खेतों में बिजली से जुताई होती है। उसी से हम दूसरे कठिन काम भी निबटाते हैं। उसे हम हवाई यातायात में भी इस्तेमाल करते हैं। हमारे यहाँ कोई भी रेल या सड़क नहीं है।’’
‘‘इसलिए यहाँ कोई रेल या सड़क दुर्घटना नहीं होती’’ मैंने कहा। ‘‘पर क्या तुम्हें कभी बारिश के पानी की कमी नहीं महसूस होती?’’
‘‘जबसे ‘पानी के गुब्बारे’ लगाये गये हैं, तबसे कभी नहीं। तुमने देखा न कि उस विशाल गुब्बारे से पाइप किस तरह जोड़े गये हैं। उनकी मदद से जितनी बारिश और जितने पानी की जरूरत होती है उतना हम लेते हैं। हमें कभी बाढ़ या तूफान का भी सामना नहीं करना पड़ता है। प्रकृति हमें अधिक से अधिक जितना दे सकती है, हम उसका फायदा उठाने में लगे हुए हैं। हमारे पास किसी से झगड़ा करने की फुर्सत ही नहीं होती। हर समय हमारे पास कोई न कोई काम होता है। हमारी महारानी को वनस्पति विज्ञान में खासी दिलचस्पी है। उनकी यह दिली तमन्ना है कि पूरे देश को एक विशाल बगीचे में बदल दिया जाय।’’
(Story by Rukaiya Sakhawat Husain)

‘‘विचार तो बहुत शानदार है। तुम्हारा मुख्य भोजन क्या है?’’
‘‘फल।’’
‘‘गरमी के मौसम में तुम अपने देश को ठंडा कैसे रखती हो? गरमी के मौसम में तो बारिश हमें स्वर्ग के आशीर्वाद की तरह लगती है।’’
गरमी जब बर्दाश्त के बाहर हो जाती है, तब हम अपने खुद के बनाये फव्वारों से धरती पर खूब सारी बौछार करते हैं और जाड़े के मौसम में हम अपने कमरों को सूरज की गरमी से गर्म रखते हैं।
उसने मुझे अपना स्नानघर दिखाया जिसकी छत को हटाया जा सकता था। जब भी उसका मन करे, बस छत को हटाकर और फव्वारे का नल खोलकर वह फव्वारे का आनन्द ले सकती थी। (छत किसी बक्से के ढक्कन की तरह थी)
‘‘तुम लोग भाग्यशाली हो! मैं बोल पड़ी। ‘‘तुम्हारी तो इच्छा ही नहीं है। क्या मैं पूछ सकती हूँ कि तुम्हारा धर्म क्या है?’’
‘‘हमारा धर्म प्रेम और सच्चाई पर आधारित है। यह हमारा धार्मिक कर्तव्य है कि हम एक-दूसरे से प्रेम करें और पूर्ण सच्चाई के रास्ते पर चलें। अगर कोई व्यक्ति झूठ बोलता है तो…’’
‘‘मौत की सजा?’’
‘‘नहीं, मृत्युदंड नहीं। ईश्वर ने जिस जीव को बनाया है, खासतौर पर मनुष्य को, उसे मारने में हमें बिल्कुल भी मजा  नहीं आता। अपराधी से कहा जाता है कि सबके भले के लिए वह इस देश को छोड़कर हमेशा के लिए चला जाये और फिर कभी न लौटे।’’
‘‘किसी अपराधी को क्या कभी माफ नहीं किया जाता?’’
‘‘किया जाता है, अगर उसे वास्तव में अफसोस हुआ हो।’’
‘‘क्या तुम्हें अपने रिश्तेदार के अलावा किसी दूसरे पुरुष को देखने का अधिकार नहीं है?’’
‘‘पवित्र रिश्तों के अलावा किसी को नहीं।’’
‘‘पवित्र रिश्तों का हमारा घेरा बहुत छोटा है, यहाँ तक कि सगे चचेरे-ममेरे भाई-बहनों को भी पवित्र नहीं माना जाता है।’’
‘‘लेकिन हमारा घेरा तो बहुत बड़ा है। दूर का भाई भी सगे भाई जितना ही पवित्र माना जाता है।’’
‘‘यह तो बहुत अच्छी बात है। मैं देख रही हूँ कि आपके देश में पवित्रता का ही बोलबाला है। मैं आपकी शानदार महारानी को देखना चाती हूँ जो इतनी दूर तक सोचती हैं और जिन्होंने ये सारे कानून और नियम बनाये हैं।’’
सिस्टर सारा ने कहा, ‘‘ठीक है।’’
(Story by Rukaiya Sakhawat Husain)

फिर उन्होंने एक तख्ते पर कुछ कुर्सियों को पेंच से कस दिया। इस तख्ते से उसने चिकनी और अच्छी तरह से पालिश की गयी दो गेंदें जोड़ दी। जब मैंने पूछा कि इन गेंदों का क्या काम, तो उन्होंने कहा कि ये हाइड्रोजन गेंदें हैं जो गुरुत्वाकर्षण का मुकाबला करेंगी। अलग-अलग भार के गुरुत्वाकर्षण के खिलाफ अलग-अलग क्षमताओं वाली गेंदें हैं। फिर उन्होंने एयर-कार में पंख की तरह दो ब्लेड लगा दी। उन्होंने बताया कि वे बिजली से चलेंगी। जब हम लोग ठीक से बैठ गये तो उन्होंने एक बटन दबाया और ब्लेड घूमने लगीं। वे तेज और तेज घूमने लगीं। पहले तो हमारी एयर-कार छ:-सात फुट ऊपर उठी और फिर उड़ चली। जब तक मुझे समझ में आता कि मेरी सहेली ने मशीन को उल्टी दिशा में खींचकर एयर-कार को नीचे ला दिया। जब एयर-कार जमीन से लगी, मशीन बंद हो गयी और हम बाहर निकल आये।

मैंने एयर कार से देख लिया था कि महारानी अपनी बेटी (जो चार साल की थी) और अपनी खास सेविकाओं के साथ बगीचे में घूम रही थीं।
‘‘अरे! तुम यहाँ हो’’ महारानी ने सिस्टर सारा की ओर देखते हुए कहा। मुझसे महारानी का परिचय कराया गया और उन्होंने बिना किसी तामझाम के मेरा स्वागत किया।
महारानी को अपना परिचय देकर मैं बहुत खुश थी। बातचीत के दौरान महारानी ने बताया कि उन्हें अपने नागरिकों के दूसरे देशों के साथ व्यापार करने पर कोई आपत्ति नहीं है। ‘‘लेकिन’’ उन्होंने आगे कहा कि उन देशों के साथ किसी भी तरह का व्यापार मुमकिन नहीं था जो अपनी औरतों को जनानखाने में ही रखते हैं और इसलिए वे हमसे साथ व्यापार नहीं कर पातीं। पुरुष हमें नैतिक रूप से संतोषजनक नहीं लगे इसलिए हम उनके साथ किसी भी तरह का लेन-देन नहीं करतीं। हम किसी दूसरे की जमीन नहीं हड़पतीं, हीरे के एक छोटे से टुकड़े के लिए नहीं झगड़तीं भले ही वह कोहिनूर से कई गुना महंगा हो और न ही हम किसी शासक का तख्ता पलट करती हैं। हम ज्ञान के गहरे सागर में डुबकी लगाती हैं और उन कीमती हीरों को ढूँढने की कोशिश करती हैं जिन्हें प्रकृति ने अपने खजाने में हमारे लिए संजोकर रखा है। प्रकृति के उपहारों का जितना अधिक लुत्फ उठा सकती हैं, हम उठा रही हैं।

महारानी से मिलने के बाद मैं प्रसिद्ध विश्वविद्यालय देखने गयी जहाँ मुझे उनके द्वारा बनाये गये कुछ उपकरण, प्रयोगशालाएँ और वेधशालाएँ दिखायी गयीं।
अपनी पसंदीदा जगहों को देखने के बाद हम फिर एयर कार में बैठे। लेकिन जैसे ही उसने चलना शुरू किया, पता नहीं, कैसे मैं फिसल कर गिरी और मेरी नींद टूट गयी। अपनी आँख खोलने पर मैंने खुद को आराम कुर्सी में धँसा पाया।

सुल्ताना का सपना से साभार
अनुवाद – आशु वर्मा
(Story by Rukaiya Sakhawat Husain)

उत्तरा के फेसबुक पेज को लाइक करें : Uttara Mahila Patrika