धर्म और जाति से मुक्त स्नेहा पार्थिबराजा

Snegha Parthibaraja

वेल्लूर की ए स्नेहा पार्थिबराजा जो तिरुपत्तूर की अदालत में वकालत करती हैं, ने अपनी नौ साल पुरानी लड़ाई जीत ली है। 35 वर्षीया स्नेहा देश की ऐसी पहली नागरिक है जिसने यह प्रमाणपत्र प्राप्त कर लिया है कि वह जाति तथा धर्म से मुक्त है। उसका कोई धर्म नहीं, कोई जाति नहीं। स्नेहा 2010 से इसके लिए संघर्ष कर रही थी।
(Snegha Parthibaraja)

हमारे देश में जिस तरह जाति और धर्म  के नाम पर अत्याचार बढ़ते जा रहे हैं और राज्यसत्ता उनका पोषण कर रही है, ऐसे में स्नेहा का बिना किसी जाति और धर्म के अपनी पहचान सिद्घ करना एक महत्वपूर्ण विजय है। स्नेहा के माता पिता ने बचपन से ही उसके सभी आवेदन पत्रों में जाति और धर्म का कलम खाली छोड़ा था जिससे उसके किसी भी प्रमाण पत्र में जाति और धर्म का उल्लेख नहीं है । 35 वर्षीय स्नेहा के प्रमाण पत्रों में केवल भारतीय लिखा गया है ।तहसीलदार   टी एस सत्यमूर्ति से ऐसा प्रमाण पत्र हासिल करने वाली वह देश में पहली नागरिक बन गई है । उसके प्रमाण पत्र में लिखा है कि उसका कोई जाति और धर्म नहीं है  — नो कास्ट नो रिलिजन ।

स्नेहा का कहना है कि जो लोग जाति और धर्म में विश्वास करते हैं, वे इसका प्रमाण पत्र हासिल कर सकते हैं तो जो लोग जाति धर्म में विश्वास नहीं करते, वे इसका प्रमाण पत्र क्यों नहीं हासिल कर सकते। 2010 से वह इसके लिए आवेदन कर रही थी पर अधिकारी गण कुछ न कुछ बहाना बनाकर उसकी अर्जी खारिश कर देते थे । उनका कहना था कि देश में ऐसा कोई उदाहरण नहीं है। अंतत: उन्होंने उसे यह कहते हुए प्रमाण पत्र दे दिया कि कि उसके पिछले प्रमाण पत्रों में जाति और धर्म के कलम खाली पड़े हैं। स्नेहा और उसके पति ने अपनी तीनों बेटियां की भी जाति और धर्म का उल्लेख किसी भी कागज में नहीं किया है।
(Snegha Parthibaraja)

हैदराबाद के डीबी रामकृष्ण भी पिछले 8 साल से इस लड़ाई को लड़ रहे हैं। उन्होंने सरकारी दस्तावेजों में जाति और धर्म नहीं का विकल्प रखने के लिए जनहित याचिका दायर की है। केरल के शिक्षा मंत्री श्री रविंद्र नाथ ने दो हजार अट्ठारह में विधानसभा में बताया था कि केरल के कक्षा 1 से 10 तक के विद्यार्थियों में से 100000 विद्यार्थियों ने अपने आवेदन पत्रों में जाति और धर्म का उल्लेख नहीं किया है। 

केरल के ही सीपीएम के एक सांसद तथा कांग्रेस के एक विधायक ने भी घोषणा की थी कि वह अपने बच्चों का जाति धर्म नहीं लिखेंगे। जाति और धर्म से जुड़ी हुई घृणा और हिंसा की राजनीति के लिए संभवत: यही सबसे उपयुक्त जवाब है।
(Snegha Parthibaraja)

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