शाहीन बाग केवल आधा कि.मी. रोड का नाम नहीं, एक सोच का नाम है- शगुफ़्ता अहमद

Shaheen Bagh Protesters Interview
13 दिसम्बर को शाहीन बाग में हमें शगुफ़्ता जी मिलीं। वे कुछ घायल युवकों को देखने अस्पताल को जा रही थीं। गली में चलते-चलते उनके साथ जो बातचीत हुई वह यहाँ ज्यों की त्यों प्रस्तुत है। इस बातचीत में चन्द्रकला भी शामिल थीं।

शुगुफ़्ता जी, सबसे पहले हम यह जानना चाहेंगे कि आप  इस आन्दोलन से कैसे जुड़ीं?
15 दिसम्बर को जब जामिया में विरोध प्रदर्शन चल रहा था तो वहाँ जामिया के विद्यार्थी भी थे और हम स्थानीय लोग भी थे। वहाँ पर जब पुलिस ने बच्चों के साथ बर्बरता की, लाइब्रेरी में घुसकर मारा, लड़कियाँ टॉयलेट में घुसी तो पुलिस ने वहाँ घुसकर भी उनको मारा और इतना ज्यादा मारा है कि किसी की आँख फूट गई, किसी के हाथ-पैर की हड्डी टूट गई। वही गुस्सा था। उस दिन जब हम वहाँ से वापस आये तो लगा कि वह चोट बच्चों को नहीं लगी थी, वह माँ के कलेजे पर पड़ी थी। जामिया के चालीस प्रतिशत विद्यार्थी यहीं आसपास के हैं। बाकी जो बाहर के हैं, हॉस्टल में रहते हैं। हॉस्टल वाले बच्चों पर भी मार पड़ी है। जिनका विरोध प्रदर्शन से कोई लेना-देना नहीं था, उन पर भी मार पड़ी है। पुलिस ने बच्चों के साथ 15 दिसम्बर को बहुत गन्दा खेल खेला है। यह गुस्सा हर माँ का था। तब हम लोग यहाँ आकर बैठे।
(Shaheen Bagh Protesters Interview)

आप लोग उसी दिन यहाँ आकर बैठ गए?
हाँ, उसी दिन आकर हम लोग यहाँ पर बैठ गए।

यह निश्चय कैसे किया आप लोगों ने?
कोई निश्चय नहीं किया था। हम तो वहाँ से रैली निकाल रहे थे। वहाँ से जंतर-मंतर की तरफ रैली निकलने वाली थी। 14 तारीख को जामिया का विरोध प्रदर्शन था और 15 तारीख को हमारा स्थानीय लोगों का विरोध प्रदर्शन था। उसमें विद्यार्थियों की भी भागीदारी थी।

यह विरोध सीएए के खिलाफ था?
हाँ, बिल्कुल सीएए के खिलाफ था।

यह किसने शुरू किया?
यह जामिया के विद्यार्थियों ने शुरू किया था। बच्चे पढ़े-लिखे हैं। उनको समझ में आया। उन्होंने कानून को पढ़ा-समझा। सीएए, एनपीआर, एनआरसी सबके बारे में पढ़ा। उन्होंने आवाज बुलन्द की तो फिर हम लोगों ने भी पढ़ा। 13 और 14 को जब बच्चों ने प्रदर्शन किया तो 15 तारीख के लिए हम लोगों ने आह्वान किया कि यहाँ के स्थानीय जन प्रदर्शन करेंगे।

तो ये आह्वान महिलाओं का था?
नहीं, सबने किया। यहाँ के स्थानीय निवासियों ने दिया। जामिया के बच्चे तो काफी पहले से इसके खिलाफ थे लेकिन हम लोगों को समझ में नहीं आ रहा था कि यह क्या है? हमने तब इसकी पढ़ाई नहीं की थी। हम समझ रहे थे कि यह नागरिकता देने वाला कानून है। लेकिन इसमें क्या खामियाँ हैं, क्यों बच्चे इसके खिलाफ है, यह हमें पढ़कर समझ आया। हर विश्वविद्यालय पर इन्होंने हमला किया है, चाहे जेएनयू हो, चाहे जामिया हो, चाहे अलीगढ़ मुस्लिम यूनिर्विसटी हो। सब जगह से यही आवाज उठ रही थी कि एक समुदाय को आप नागरिकता से बाहर नहीं कर सकते। तो उस दिन हम लोग यहाँ आकर बैठ गए। बहुत कम लोग उस दिन हम यहाँ थे।
(Shaheen Bagh Protesters Interview)

महिलाओं का नेतृत्व है इसमें या मिला-जुला है?
मिला-जुला है। लेकिन महिलाएँ सबसे आगे हैं। क्योंकि माँ जब अपने बच्चे को किसी चीज के लिए रोकती है कि धूप है, बाहर नहीं जाना, बारिश है बाहर नहीं जाना, आप सुरक्षित रहना। माँ को लग रहा है कि मेरे बच्चे कहीं सुरक्षित नहीं हैं। विश्वविद्यालयों में भी नहीं, हॉस्टिल में भी नहीं। कौन माँ-बाप अपने बच्चों को हॉस्टिल में रखना चाहेगा, जब पुलिस टॉयलेट तक में घुसकर मार रही है। बहुत सारी बच्चियाँ तो पूरा बता भी नहीं पा रही हैं कि उनके साथ क्या हुआ। यहाँ जो माएँ हैं वे उन सबकी माँ हैं जो बच्चे अलीगढ़ में हैं, जेएनयू में हैं या जामिया में हैं। अभी देखिये गार्गी कालेज में क्या हुआ? हम उस सारे गलत के खिलाफ खड़े हैं। शाहीन बाग केवल आधा किलोमीटर की रोड का नाम नहीं है, शाहीनबाग एक सोच का नाम है। हर गलत के खिलाफ आज शाहीन बाग खड़ा है?

इससे पहले भी आप लोग कभी किसी आन्दोलन में या विरोध प्रदर्शन में शामिल हुए थे?
नहीं, सब लोग तो नहीं हुए थे पर मैं जब निर्भया केस हुआ था तब एक दिन जंतर-मंतर गई थी और उस दिन हम सब लोग वहाँ बहुत रो रहे थे। आज तक उस बच्ची को इंसाफ नहीं मिला। यह सिर्फ एक गुस्सा नहीं है, ये बहुत सारा गुस्सा जमा है जो आज यहाँ शाहीन बाग में फूटा है। अभी तो आप यहाँ दिन में आये हो, कम लोग आपको दिख रहे हैं पर शाम होते-होते बहुत लोग यहाँ आ जाते हैं और मिली-जुली भीड़ होती है।

क्या सब तरह के लोग यहाँ आ रहे हैं?
सब तरह के लोग आ रहे हैं। अभी पंजाब से पाँच-छ: बसें आयी थीं। हमारे पंजाबी भाई आए थे। उनसे हमें बहुत ज्यादा हिम्मत मिली। हमारे बिन्द्रा जी, इन्होंने शुरू से यहाँ हमारे लिए लंगर चला रखा है। अभी तक लंगर चल रहा है इनका। हमारे पादरी हैं जसोला के वे शुरू से आ रहे हैं। अभी उन्होंने भाषण दिया था। हमारे पंडित जी भी आकर दो बार हवन कर चुके हैं। ऐसा नहीं है कि एक ही समुदाय के लोग हैं। ये सब वे लोग हैं जिनको चीजें गलत लग रही हैं। हर धर्म के लोग हमसे जुड़े हैं। हम यहाँ पर अकेले नहीं हैं।

महिलाओं का कितना बड़ा ग्रुप है, जो यहाँ नेतृत्व कर रहा है?
यहाँ पर सभी महिलाएँ नेतृत्व में हैं। कोई कमेटी नहीं है, कोई ग्रुप नहीं है। जिसको जो समझ में आता है, वह उस काम को करने लगता है। हमें समझ में आया कि सफाई करनी है तो हम सफाई में लग गए। किसी को कोई समस्या है तो उसको देख लिया। सब अपनी-अपनी तरफ से लगे हैं। हमारी बूढ़ी दादियाँ हैं तो वे भी व्यवस्था देखती हैं। जो लोग रात को रुकते हैं, वे रात की व्यवस्था देखते हैं। कुछ लोग एकदम सवेरे आ जाते हैं तो कुछ लोग शाम को आते हैं। ऐसा नहीं है कि हमारा कोई लीडर है।
(Shaheen Bagh Protesters Interview)

महिलाएँ रात को भी रुकती हैं?
जी, महिलाएँ रात को भी रुकती हैं।

यहीं पर सोतीं हैं?
बिल्कुल यहीं पर सोती हैं और सोना क्या होता है, हम लोग बैठकर बातें ही करते हैं। सुबह छ: बजे घर जाकर बच्चों को स्कूल भेजते हैं फिर थोड़ी देर सो जाते हैं और उठकर यहाँ आ जाते हैं। जिसको जैसा मौका मिल रहा है, वह ज्यादा से ज्यादा समय यहाँ दे रही हैं।

ये सभी महिलाएँ क्या पहली बार इस तरह धरना दे रही हैं?
हाँ, पहली बार। केवल मैं एक बार निर्भया केस में गई थी वह भी एक-दो घंटे के लिए। वरना कहीं नहीं गई थी। मेरा भी यह पहला अनुभव है, जब दो महीने से इस धरने में शामिल हूँ। कोई एक चेहरा नहीं है इसमें, सारी महिलाएँ लीडर हैं। सिर्फ महिलाएँ ही नहीं, हमारे साथ आदमी भी हैं। आप देख रही होंगी, आदमी खड़े हैं। लड़के हैं जो दोनों ओर सुरक्षा के लिए खड़े हैं। वे रात को भी रुकते हैं। कुछ दिन में रुकते हैं। हम लोग चैकिंग भी करते हैं। दिल्ली विधानसभा चुनाव के दौरान काफी डर था। गोली भी चली थी, तब हम लोग काफी चौकन्ने थे। बीजेपी की गुंजा कपूर बुर्का पहनकर आ गई थीं। हमारे प्रधानमंत्री ने कहा कि कपड़ों से पहचान लीजियेगा। तो वे बुर्का पहनकर ही आ गईं। उनका क्या इरादा था, पता नहीं। लेकिन वे पकड़ी गईं। मीडिया में अब उनकी कोई चर्चा नहीं है। मीडिया बिल्कुल चुप बैठा है। बजरंग दल के दो लड़के भी यहाँ पकड़े गए थे। उनके खाते में उसी दिन दो लाख रुपये भी आए थे। तो वे क्या करने आए थे यहाँ?

यहाँ आस पास की सब दुकानें बंद हैं। क्या इससे परेशानी नहीं हो रही है? लोग नाराज नहीं हैं?
बिल्कुल नहीं। ये सब लोग हमारे साथ धरने में शामिल हैं। जो किराये में है उनके मालिकों ने जितने दिन धरना चलेगा, उतने दिन के लिए उनका किराया माफ कर दिया है। जो सामान अन्दर है, उसे वे बाहर लेजाकर बेच सकते हैं।

जो महिलाएँ इतने लम्बे समय तक यहाँ आन्दोलन कर रही हैं, आप सोचती हैं कि इससे उनकी चेतना भी बढ़ेगी? वे अन्य समस्याओं के लिए भी आगे आयेंगी?
बिल्कुल। ऐसा नहीं है कि मुस्लिम महिलाएँ पिछड़ी हुई हैं, वे बाहर निकलकर नहीं आतीं, वे पर्दे में रहती हैं, उनको समझ नहीं है, ऐसा बिल्कुल नहीं है। बिला वजह कोई भी किसी के काम में टाँग नहीं अड़ाता है। अपने घर को ठीक रखना, अपने बच्चों को पढ़ाना यही मुख्य होता है। अब जब उन्हें लग रहा है कि हमें बाहर निकलना है तो वे घर का भी इंतजाम कर रही हैं और बाहर का भी। दोनों काम कर रही हैं। आज वे सड़क पर बैठी हैं तो गलत के विरोध में बैठी हैं। घर में भी जब कुछ गलत होता है तो औरत सबसे पहले कहती है। माँ ही तो उठती है कि ये गलत हो रहा है। आज जब देश में गलत हो रहा है तो वही महिला घर से बाहर निकलकर आ गई है।
(Shaheen Bagh Protesters Interview)

अक्सर हमने देखा है कि जब भी महिलाएँ बाहर निकलती हैं तो उन पर कई तरह के आरोप लगाये जाते हैं…
यहाँ पर भी बहुत आरोप लगे हैं। आपने मीडिया में देखा नहीं। पाँच-पाँच सौ रुपये के लिए बैठे हैं, बिरियानी खाने बैठे हैं, कितने सारे इलजाम लगे हैं फालतू के।

इससे मनोबल नहीं गिरता है?
बिल्कुल नहीं, हमें और हिम्मत मिलती है। आप कितना कहोगे, कहो। ये हमारी साथी हैं। इन्होंने कहा, आप अपनी घर की औरतों को भेजो। हम पाँच हजार रुपया देंगे। वे एक दिन बैठकर दिखाएँ। हम तो दो डिग्री से. में यहाँ बैठे थे। आज तो धूप निकल आयी है। कौन यहाँ पाँच सौ में बैठेगा। इससे ज्यादा तो हमारा दवाईयों का खर्चा है।

शगुफ्ता जी, आपको और आपके साथियों को बहुत-बहुत शुक्रिया ।
(Shaheen Bagh Protesters Interview)

प्रस्तुति: उमा भट्ट

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