कामगार महिलाओं की साथी ‘सेवा’

SELF EMPLOED WOMEN'S ASSOCIATION
-मधु जोशी

यह बीसवीं शताब्दी के उत्तराद्र्ध में अहमदाबाद में घटी दो आम घटनाएँ हैं। सरोज नाम की एक महिला को रेहड़ी लगाने के लिए एक कालोनी में स्थान आवंटित किया गया। शीघ्र ही उसे एक दबंग पुरुष व्यवसायी ने वहाँ से खदेड़कर कूड़े के ढेर के समीप गन्दे स्थल पर रेहड़ी लगाने के लिए मजबूर कर दिया। सरोज के साथ हुए अन्याय पर किसी ने आवाज नहीं उठाई। दूसरी घटना में जीवी नाम की महिला पन्द्रह साल से पुराने शहर में सड़क से काफी दूर पुराने कपड़े बेचा करती थी। एक दिन पुलिस ने गाड़ियों के आवागमन में व्यवधान डालने के जुर्म में उसका चालान कर दिया क्योंकि उसने पुलिस वाले को रिश्वत नहीं दी थी, यद्यपि उसकी दुकान सड़क से काफी दूर थी। कोर्ट कचहरी के चक्करों और जुर्माने के कारण उसका पहले से ही सीमित मुनाफा और भी कम हो गया। उसका भी साथ देने वाला कोई नहीं था। ये दोनों महिलाएँ निर्धन महिलाओं के उस वर्ग का प्रतिनिधित्व करती हैं जो महिला-मुक्ति और समानता की भावना से प्रेरित होकर नहीं, अपितु र्आिथक मजबूरियों के कारण बाजार में आकर रोजी-रोटी का प्रबन्ध करने के लिए मजबूर होती हैं। रोजी-रोटी के गोरखधन्धे में उलझी ये महिलाएँ वक्त-बेवक्त अपमानित होती हैं, और इन्हें कदम दर कदम शोषण, अत्याचार, गैर बराबरी और धोखाधड़ी का सामना करना पड़ता है। ऐसी ही निर्धन, बहुधा अशिक्षित अथवा अल्प-शिक्षित महिलाओं को आत्मसात करने के साथ जीविकोपार्जन करने में सहायता करने के उद्देश्य से गुजरात में ‘सेवा’ नाम की स्थापना स्थापना की गई। (SELF EMPLOED WOMEN’S ASSOCIATION)

‘सेवा’ अर्थात् (SELF EMPLOED WOMEN’S ASSOCIATION (SEWA)) 1972 में गुजरात राज्य केअहमदाबाद शहर में पंजीकृत श्रमिक संघ अर्थात् ट्रेड यूनियन है। अपने नाम को चरितार्थ करते हुए सेवा नामक यह संस्था अल्य आय वाली असंगठित क्षेत्र में स्वतंत्र रूप से कार्यरत महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा  के लिए कार्य करती है जिन्हें औपचारिक रूप से रोजगार प्राप्त महिलाओं की तरह रोजगार सुरक्षा और नियमित आय नहीं मिलती है। इसका उद्देश्य ऐसी परिस्थितियाँ स्थापित करना है जिनमें ये महिलाएँ अपने और अपने परिवार वालों के लिए आय, भोजन, स्वास्थ्य सुविधाएँ, बच्चे की माकूल देखभाल तथा रहने को मकान जुटा सकें। इस उद्देश्य की र्पूित हेतु यह संघर्ष, विकास सम्बन्धी पक्षों से वार्ता और अन्य आवश्यक सेवाएँ मुहैया कराने का रास्ता अपनाती है। 2015 में मार्टी चेन ने दावा किया था कि ‘सेवा’ सम्पूर्ण विश्व में अनौपचारिक रूप से रोजगाररत श्रमिकों का संगठन होने के साथ भारत  का सबसे बड़ा स्वयं सहायता समूह है।

सेवा की स्थापना 1972 में गाँधीवादी नागरिक अधिकार कार्यकर्ता इला भट्ट ने की थी। आरम्भ में यह महात्मा गाँधी द्वारा 1918 में स्थापित श्रमिक संगठन TETILE LABOUR ASSOCIATION  (TLA) की शाखा थी। वैचारिक मतभेदों के कारण जब ‘सेवा’ का ळछअ से अलगाव हुआ तो इला भट्ट तमाम कठिनाइयों के बावजूद कामकाजी महिलाओं के हक में पूरी शिद्दत और प्रचंडता के साथ आवाज बुलन्द करती रहीं। इन महिलाओं में शामिल थीं, हाथ गाड़ी खींचने वाली,  कुम्हार, सब्जी विक्रेता, कारीगर कबाड़ बीनने वाली और बीड़ी-अगरबत्ती बनाने वाली महिलाएँ। उदाहरणत: जब अहमदाबाद की टोपलावाली अर्थात् जमीन में बैठकर सब्जी बेचने  वाली महिलाओं ने सेवा से सहायता माँगी क्योंकि उन्हें बड़े दुकानदार और अवैध वसूली करने वाले पुलिस वाले परेशान कर रहे थे तो सर्वप्रथम इला भट्ट ने पुलिस प्रशासन से सम्पर्क किया। जब वहाँ से कोई सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं मिली तो इला भट्ट इन टोपलावालियों को शहर के व्यस्त मानेक चौक में ले गयीं जहाँ पर इन्होंने अपनी दुकानें सजा लीं। कुछ दिनों तक इला भट्ट की उपस्थिति के कारण सब ठीक रहा लेकिन फिर पुलिस वालों ने पुन: टोपलावालियों को परेशान करना शुरू कर दिया। इसके बाद इला भट्ट ने मानवाधिकारों के क्षेत्र में कार्यरत  वकील इन्दिरा जयसिंह  से मदद माँगी और उन्होंने टोपलावालियों के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। अन्तत: 1985 में न्यायालय ने सेवा के पक्ष में फैसला सुनाया और नगर निगम और पुलिस को निर्देश दिया कि वह सेवा के साथ विचार-विमर्श करने के उपरान्त इन महिलाओं को स्थान आवंटित करे। इसी तरह से जब पुराने कपड़ों के टुकड़ों से रजाइयाँ बनाने वाली महिलाओं ने सेवा से शिकायत की कि उन्हें अपनी मेहनत का वाजिब मेहनताना नहीं मिल रहा है तो सेवा ने अहमदाबाद के दरियापुर इलाके में उनके लिए उनकी अपनी दुकान खुलवा दी।

7 सितम्बर 1933 को पैदा हुई ईला भट्ट पेशे से वकील हैं। वह 1955 में अहमदाबाद में टीएलए के विधि विभाग में शामिल हुईं। यहीं उन्होंने सेवा की स्थापना की। 1981 में वैचारिक मतभेद के कारण सेवा टीएलए से अलग हो गई। तब से अब तक सेवा और उसकी संस्थापक असंगठित क्षेत्र में कार्यरत कामकाजी महिलाओं के कल्याण तथा सहायता हेतु प्रयासरत हैं। इस क्षेत्र में उनके अथक प्रयासों के फलस्वरूप इला भट्ट को 1977 में रैमन मैगसेसे एवार्ड, 1984 मे राइट लाइवलीहुड एवार्ड, 1985 में पद्मश्री, 1986 में पद्मभूषण, 2010 में निवानोपीस प्राइज और ग्लोबल फेयरनेस इनीसियेटिव एवार्ड, 2011 में रैडक्लिप मैडल तथा इंदिरा गाँधी प्राइज फार पीस, डिसआर्मामेंट एण्ड डिवलपमेंट से सम्मानित किया गया।

इला भट्ट को दिये गये सभी सम्मान इस तथ्य को रेखांकित करते हैं कि उनके द्वारा स्थापित संस्था सेवा ने महिला सशक्तीकरण तथा कल्याण के क्षेत्र में अग्रणी एवं अनुकरणीय भूमिका निभाई है। यह संस्था महात्मा गाँधी द्वारा प्रतिपादित सत्य, अहिंसा, सर्वधर्म सम्भाव, खादी तथा आत्मनिर्भरता के सिद्धान्तों पर विशेष रूप से ध्यान देती है। उल्लेखनीय है कि सेवा महज एक श्रमिक संगठन नहीं है। यह निर्धन, ग्रामीण और शहरी निर्धन बस्तियों में रहने वाली असंगठित क्षेत्र में कार्यरत महिलाओं को मिल-जुलकर संगठित होने का अवसर प्रदान करती है। इस कार्य के लिए सेवा ने 50 से अधिक सहकारी समितियों की स्थापना की है। अहमदाबाद में शुरू हुई इस संस्था की शाखाएँ पहले गुजरात और अब सम्पूर्ण देश में फैल गई हैं।

1974 में ‘सेवा’ ने महिला सहकारी बैंक की स्थापना की ताकि सदस्य महिलाओं को भ्रष्ट बैंकों तथा महाजनों और बिचौलियों के चंगुल से मुक्ति मिल सके। इस बैंक पर पूर्ण रूप से सेवा का नियंत्रण होता है। बैंक कार्मिक तथा पार्षद सेवा की सदस्य होती हैं। यही इसकी ब्याज दरें निर्धारित करती हैं और इसे पूँजी उपलब्ध कराती हैं। इस बैंक को लघु बचत के क्षेत्र में मील का पत्थर माना जाता है। क्योंकि यह एक सफल उदाहरण प्रस्तुत करती है कि कैसे उस पूँजीवादी व्यवस्था को टक्कर दी जा सकती है जो साधारण महिलाओं का शोषण करती है और लिंग आधारित पूर्वाग्रहों के कारण उनके साथ भेदभाव करती है इस बैंक द्वारा आसानी से उपलब्ध कराये जाने वाले ऋण के फलस्वरूप निर्धनतम महिलाएँ भी अपना रोजगार आरम्भ कर सकती हैं। इससे न सिर्फ उनकी आर्थिक और सामाजिक स्थिति सुधरती है वरन् उनके आत्मविश्वास और प्रतिष्ठा में भी वृद्धि होती है।

‘सेवा’ भारत के सबसे बड़े संगठनों में से एक है। इस नाते वह अपनी प्रतिष्ठा और प्रभाव का इस्तेमाल विभिन्न महत्वपूर्ण सामाजिक और र्आिथक मुद्दों पर जनमत और राजनीतिक नेतृत्व को प्रभावित करने के लिए करती है। वह सतत प्रयासरत रहती है कि असंगठित क्षेत्र में कार्यरत महिलाओं की आवाज देश के र्आिथक और राजनीतिक नीति निर्धारकों तक अवश्य पहुँचे। इसके अलावा सेवा इन कामकाजी महिलाओं को उनके कानूनी अधिकारों और दायित्वों से भी परिचित कराती है। उदाहरणत: फेरी तथा फड़ वाली महिलाओं को जो सबसे अधिक पुलिस उत्पीड़न का शिकार होती हैं, यह परमिट, पंजीयन आदि के विषय में शिक्षित करती है। इक्कीसवीं शताब्दी के आरम्भ में हिन्दू-मुस्लिम तनाव के दौरान सेवा ने शांति और सद्भाव स्थापित करने में उल्लेखनीय योगदान दिया क्योंकि इसकी सदस्य सभी धर्मों, जातियों और वर्गों से होती है।

सेवा की अपनी अकादमी भी है जो शिशुपालन, स्वास्थ्य सेवा, व्यावसायिक अनुभव आदि विषयों पर शैक्षणिक मूल्यांकन और शोध कार्य करती है। यह सभी कार्य सेवा की सदस्यों द्वारा निष्पादित किये जाते हैं और उन्हें इन कार्यों के लिए सेवा द्वारा प्रशिक्षण दिया जाता है। सेवा की सहयोगी संस्था WOMEN IN INFORMAL EMPLOMENT GLOBLIZATION AND ORGANIZING (WIEGO) वैश्विक  स्तर पर स्व-रोजगाररत महिलाओं के ऊपर व्यापक शोध कार्य करती है। उल्लेखनीय है कि WIEGO अमेरिका के हावर्ड विश्वविद्यालय से सम्बन्ध है। ‘सेवा’ सदा यह प्रयास करती है कि वह उस मिथक को तोड़ सके जो महिलाओं को घर, परिवार, चूल्हा-चक्की और शिशुपालन तक सीमित रखना चाहता है। इस उद्देश्य से सेवा महिलाओं के हुनर, शिल्प तथा सामाजिक-आर्थिक-राजनीतिक योगदान को विशेष रूप से चिह्नांकित करने का प्रयास करती है।

रेनान झालवाला आदि द्वारा स्थापित ‘सेवा महिला हाउसिंग ट्रस्ट’ ने 2003 में ‘कार्मिका स्कूल फॉर कन्स्ट्रक्शन’ वर्कर्स की स्थापना की। यह संस्था महिलाओं को निर्माण क्षेत्र में कार्य करने के लिए प्रशिक्षित करती है। प्रशिक्षण के उपरान्त प्रशिक्षित महिलाओं को निर्माण कार्यों में काम ढूँढने में आसानी होती है। सेवा द्वारा संचालित ‘संगिनी’ और ‘शैशव’ नामक सहकारी संस्थाओं की सहायता से महिलाओं को शिशुपालन सहायकों के रूप में रोजगार प्राप्त करना आसान हो जाता है।

सेवा द्वारा खाद्यान्न सुरक्षा के क्षेत्र में किये गये प्रयासों का असर गुजरात में खाद्यान्न उपलब्धता पर पड़ा है। बाढ़ और सूखे जैसी प्राकृतिक आपदाओं के दौरान सेवा द्वारा स्थापित शिशु देखभाल केन्द्र भोजन तथा अन्य आवश्यक वस्तुएँ तथा सहायता उपलब्ध करते हैं। उदाहरणत: गुजरात के सुरेन्द्रनगर और पाटण जिलों के पच्चीस से अधिक शिशु देखभाल केन्द्रों ने सूखे, महामारी, तूफान और बाढ़ के अलावा 2001 के भूकंप के दौरान भोजन, पानी और राशन उपलब्ध कराया था।

1984 से सेवा ने अपनी सदस्यों को स्वास्थ्य सुरक्षा उपलब्ध कराना आरम्भ किया है। इसके अन्तर्गत  सेवा पिचासी रुपये शुल्क के ऐवज में स्वास्थ्य सुविधाएँ मुहैया कराने लगी है। आज यह सेवा के सबसे बड़े कार्यक्रमों में से एक है। 1992 से श्कटड सेवा सहकारी संस्था सौ रुपये सालाना शुल्क के ऐवज में अपनी सदस्यों को जीवन तथा चिकित्सा बीमा देती है। 2005 में उसके सदस्यों की संख्या एक लाख तीस हजार थी। सेवा स्वच्छ जल की उपलब्धता सुनिश्चित करने के उद्देश्य से सदस्यों को कुओं के पम्पों की देखरेख के लिए प्रशिक्षित करती है और सूखा ग्रस्त इलाकों में भूमिगत पानी की टंकियों के निर्माण को बढ़ावा देती है।

‘सेवा’ की सदस्यों द्वारा सेवा बैंक से लिए गए लगभग चालीस प्रतिशत कर्ज मकान खरीदने अथवा मकान की मरम्मत के लिए होते हैं। ‘सेवा’ अपनी सदस्यों को सम्पत्ति के कागजात पर अपना नाम दर्ज करवाने के लिए प्रेरित करती है ताकि परिवार तथा समाज में अच्छी प्रतिष्ठा बढ़े। इसी तरह ‘सेवा’ अपनी सदस्यों को बैंक में बचत करने के लिए भी प्रोत्साहित करती है। इस उद्देश्य से व२ ग्रामीण इलाकों तथा निर्धन व्यक्तियों के मोबाइल अर्थात चलते-फिरते बैंक भी संचालित करते हैं। ‘सेवा’ अपनी जनपद सदस्यों को शिक्षित करने के उद्देश्य से कक्षाएँ भी चलाती है। सेवा के इन सभी प्रयासों के फलस्वरूप निर्धन कामकाजी महिलाओं के आत्मसम्मान, सामाजिक प्रतिष्ठा आर्थिक स्थिति और राजनीतिक प्रभाव में वृद्धि होती है

उत्तराखण्ड राज्य में भी ‘सेवा’ जरूरतमंद कामकाजी महिलाओं के जीवन स्तर को सुधारने के लिए प्रयासरत है। 2006 से सेवा अल्मोड़ा, देहरादून, मसूरी तथा रुद्रप्रयाग जिलों में कृषि व होटल उद्योग में कार्यरत, फेरीवाली तथा कारीगर महिलाओं के हित में काम कर रही है। 2013 में इसने एक कृषि सहकारिता समिति की स्थापना की जिसका स्वामित्व तथा संचालन महिलाओं के हाथ में है। इसके अलावा ‘सेवा’ ने अस्सी हजार से अधिक महिलाओं के बैंक खाते खुलवाये हैं। अल्मोड़ा में साढ़े सात हजार से अधिक खेती तथा पशुपालन से जुड़ी महिलाएँ ‘सेवा’ के अभियान में शामिल हुई हैं। देहरादून में ‘सेवा’ ने निर्धन बस्तियों में रहने वाली घरेलू कामकाज से जुड़ी महिलाओं को संगठित किया है। ‘सेवा एकता स्व-सहायता सहकारी समिति’ के माध्यम से ‘सेवा’ उत्तराखण्ड में कृषक महिलाओं को प्रशिक्षित करती है और उन्हें तकनीकी तथा र्आिथक सहयोग देती है। इसी तरह से ‘सेवा’ अपनी सदस्यों को जीवन-यापन, सामाजिक सुरक्षा, स्वास्थ्य सुविधाओं आदि से सम्बन्धित सरकारी योजनाओं से परिचित कराती है।

2013 में रुद्रप्रयाग जिले में हजारों महिलाओं के असंगठित क्षेत्र में कार्यरत पतियों की मृत्यु अतिवृष्टि और जल आपदा के कारण हो गई और इन बेसहारा महिलाओं के कंधों पर अचानक अपना घर चलाने की जिम्मेदारी आ गई। सेवा ने तत्काल इन असहाय महिलाओं की सहायता के लिए हाथ बढ़ाया। आरम्भ में सेवा ने दो हजार परिवारों की तात्कालिक आवश्यकताओं का अध्ययन कर उन्हें कम्बल, सौर लालटेन, पानी के फिल्टर तथा अन्य आवश्यक सामग्रियाँ उपलब्ध करायीं। सेवा ने उखीमठ और अगस्त्यमुनि ब्लॉकों में ‘सेवा से शक्ति केन्द्रों’ की तर्ज पर दो सामुदायिक केन्द्र स्थापित किये। सेवा के पुनर्वासन प्रयासों के केन्द्र में यह दो सामुदायिक विकास केन्द्र हैं जो अपनी छ: शाखाओं के माध्यम से जरूरतमंद महिलाओं की जिन्दगी को पटरी में लाने का प्रयास कर रहे हैं-

-सेवा सृजन- कृषि क्षेत्र में जीवन यापन हेतु प्रोत्साहनार्थ।
-सेवा महिला ज्योति- कृषि के अलावा अन्य क्षेत्रों में प्रोत्साहन।
-सेवा युवा ज्योति- डिजिटल साक्षरता तथा व्यक्तित्व विकास कार्यक्रम।
-सेवा कृषि- जैविक कृषि को प्रोत्साहित करने का प्रयास।
-स्वास्थ्य सहयोगी सेवा- स्वास्थ्य सेवाओं पर केन्द्रित।
-सेवा साहस- पारिस्थितिकी पर्यटन तथा आपदा प्रबन्धन के क्षेत्र में कार्यरत।

चाहे गुजरात हो या उत्तराखण्ड, दिल्ली हो या पश्चिम बंगाल, सेवा ने विगत कई दशकों से महिला सशक्तीकरण, समानता, कल्याण और प्रतिष्ठा के क्षेत्र में अतुलनीय योगदान दिया है। सेवा के प्रयासों और प्रभाव के मद्देनजर हिलेरी क्लिन्टन ने इसकी संस्थापक ईला भट्ट को अपनी ‘नायिकाओं’ की सूची में शामिल किया है। इसकी सदस्य चंदू पपू भाई के अनुसार, ‘सेवा से जुड़ने के उपरान्त मेरे परिवार में मेरा दर्जा बदल गया है। इससे पहले यदि खाना स्वादिष्ट नहीं होता था अथवा घर साफ नहीं होता था, मेरे पति मुझे पीटते थे और मुझे अपमानित करते थे। किन्तु अब वे देखते हैं कि समाज में मुझे कितना सम्मान मिलता है और वे मुझसे बराबरी का व्यवहार करते हैं।’ सेवा की एक अन्य सदस्य बिलकिस बानो इसी बात को आगे बढ़ाते हुए बिना लाग लपेट के कहती हैं, ‘सेवा ने एक नई जिन्दगी पाने में मेरी मदद की है।

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