शमीमा, अमीना और जमीला

मधु जोशी

विभिन्न पुरस्कारों से सम्मानित तबिस खैर के 2016 में प्रकाशित उपन्यास जिहादी जेन को पढ़ते समय कुछ ऐसा महसूस हुआ कि जैसे साहित्य वास्तव में समाज का दर्पण होता है। उपन्यास की नायिकाओं अमीना और जमीला के विषय में पढ़ते हुए अनायास ही दिमाग में अक्स उभरता है शमीमा बेगन का। उन्नीस वर्षीय बांग्लादेशी मूल की शमीमा बेगम का जन्म इंग्लैण्ड में हुआ और वह वहीं पली-बढ़ी। फरवरी 2015 में पन्द्रह वर्ष की आयु में वह आई.एस.आई.एस. में शामिल होने सीरिया चली गईं। सीरिया पहुँचने के दस दिनों के अन्दर उन्होंने डच मूल के जिहादी यागों रिदजिक से विवाह कर लिया। शमीमा के पति इस्लाम अपनाने के बाद अक्टूबर 2014 में इस्लामिक स्टेट के जिहाद में शामिल होने के लिए सीरिया आये थे।

सीरिया में प्रवास के दौरान शमीमा बेगम के तीन बच्चे हुए। दोनों बड़े बच्चों की मृत्यु हो गयी। अपुष्ट सूत्रों के अनुसार शमीमा बेगम के तीसरे बच्चे की भी मार्च 2019 में फेफड़े के संक्रमण के कारण शरणार्थी कैम्प में मृत्यु हो गयी है। सूत्रों ने टैलीग्राफ को यह भी सूचित किया है कि इस्लामिक स्टेट में अपने कार्यकाल के दौरान शमीमा बेगम ‘‘नैतिक पुलिस’’ दस्ते की सदस्य थीं और वह अन्य युवा लड़कियों को जिहादी गुटों में शामिल होने के लिए प्रेरित भी करती थीं। कहा जाता है कि उन्हें अपने पास कलाशनिकोव रायफल रखने की अनुमति थी और उन्हें महिलाओं के परिधान से जुड़े कट्टर नियमों का कड़ाई से पालन करवाने के लिए जाना जाता था। एक इस्लामिक स्टेट विरोधी सामाजिक कार्यकर्ता का यहाँ तक कहना है कि उन पर यह आरोप भी लगे थे कि वह आत्मघाती जिहादी महिलाओं के परिधानों में इस तरह से विस्फोटक सिलवाती थीं कि उन्हें बिना विस्फोट हुए उतारा ही नहीं जा सकता था।
(Samima, Amina or Jamila)

13 फरवरी 2019 को द टाइम्स के युद्ध पत्रकार ऐन्टनी लॉयट ने उत्तर सीरिया के अल हॉल शरणार्थी शिविर में रह रही शमीमा बेगम की कहानी को दुनिया के सामने प्रस्तुत किया। इस साक्षात्कार में नौ माह की गर्भवती शमीमा ने कहा कि यद्यपि उन्हें इस्लामिक स्टेट में शामिल होने के अपने निर्णय पर कोई मलाल नहीं है, लेकिन वह अपने बच्चे का लालन-पालन ब्रिटेन लौटकर करना चाहती हैं। उन्होंने एन्टनी लॉयड को यह भी बताया कि जब उनकी आँखों के सामने एक व्यक्ति का सिर कलम किया गया तो उन्हें कोई परेशानी नहीं हुई क्योंकि वह व्यक्ति ‘‘इस्लाम का दुश्मन’’ था। इसके साथ उन्होंने यह मत भी व्यक्त किया कि इस्लामिक स्टेट भ्रष्टाचार और उत्पीड़न के कारण विजय का हकदार नहीं था। इस साक्षात्कार के तीन दिन बाद शमीमा बेगम ने पुत्र को जन्म दिया जिसकी (अपुष्ट खबरों के अनुसार) शीघ्र ही निमोनिया से मृत्यु हो गयी। 18 फरवरी 2019 को बी.बी.सी. सम्वाददाता क्वैन्टिन सॉमरविल से बात करते हुए शमीमा बेगम ने माफी माँगी और यह भी कहा कि वह अभी भी ‘‘कुछ ब्रिटिश मूल्यों’’ का समर्थन करती हैं। इसके बावजूद उन्होंने इस्लामिक स्टेट की गतिविधियों का समर्थन किया।

सीरियाई शरणार्थी शिविर में शमीमा बेगम की उपस्थिति की बात उजागर होने पर जब ब्रिटिश सुरक्षा मंत्री बैन वैलेस से पूछा गया कि क्या वह उन्हें सीरिया से बाहर लाने का प्रयास करेंगे, तो उन्होंने दो टूक जवाब दिया कि वह एक असफल देश में मौजूद आतंकवादियों और भूतपूर्व आतंकवादियों की सहायता करने के उद्देश्य से ब्रिटिश नागरिकों की जान खतरे में नहीं डालेंगे। 19 फरवरी 2019 को ब्रिटेन के गृहमंत्री साजिद जाविद ने घोषणा की कि शमीमा बेगम से ब्रिटिश नागरिकता वापिस लेने का आदेश पारित कर दिया गया है। ब्रिटेन के कानून के अनुसार किसी व्यक्ति को नागरिकता विहीन नहीं किया जा सकता है। लेकिन ब्रिटेन का मानना है कि शमीमा बेगम के पास बांग्लादेशी नागरिकता भी है। बांग्लादेश ने इससे इंकार किया है और 3 मई 2019 को उनके विदेश मंत्री ने घोषणा की कि यदि शमीमा बेगम ब्रिटेन आयीं तो उन्हें बांग्लादेश में आतंकवादियों के लिए निर्धारित मृत्युदण्ड दे दिया जायेगा।
(Samima, Amina or Jamila)

शमीमा बेगम प्रकरण पर मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, सामाजिक विश्लेषकों, राजनीतिज्ञों और राजनीतिक पंडितों द्वारा विभिन्न मत प्रकट किये गये हैं। जहाँ ब्रिटेन में रहने वाले शमीमा बेगम के परिवार ने उनके हक में आवाज बुलन्द की है, वहीं उनके रिश्तेदार मुहम्मद रहमान ने ब्रिटिश सरकार के निर्णय का समर्थन किया है। शमीमा बेगम ने अपने पति के देश नीदरलैण्ड की नागरिकता हासिल करने की बात भी की है। 3 मार्च 2019 को उनके पति ने भी शमीमा के साथ अपने देश लौटने की इच्छा जाहिर की किन्तु नीदरलैण्ड सरकार ने घोषणा की कि उनका यागो रिदजिक अथवा उनके परिवार को वापिस लेने का कोई इरादा नहीं है। 15 अप्रैल 2019 को शमीमा बेगम को सभी ब्रिटिश नागरिकों को लीगल ऐड एजेन्सी द्वारा कानूनी लड़ाई के लिए प्रदान की जाने वाली कानूनी सहायता प्राप्त हो गयी जिस पर विदेश मंत्री जैरमी हंट ने अप्रसन्नता जाहिर की है।

शमीमा बेगम की कहानी सुनकर बरबस तबिश खैर की जिहादी जेन की नायिकाएँ अमीना और जमीला याद आती हैं। शमीमा की तरह ही ये दोनों ब्रिटिश छात्राएँ अपना व्यवस्थित मध्यवर्गीय जीवन त्यागकर, बिना अपने परिवारजनों को बताये जिहाद का हिस्सा बनने सीरिया पहुँच जाती हैं। र्धािमक प्रवृत्ति वाली जमीला की खिलंदड़ी सहेली अमीना का जब दिल टूटता है तो वह भी जमीला की तरह इस्लाम की तरफ आर्किषत होने लगती है। जल्द ही इन्टरनेट पर उनका सम्पर्क हेज्जिये नामक धर्म प्रचारक से होता है, जो सीरिया में लड़ रहे जिहादियों की सुविधा के लिए अनाथालय और आवासगृह चलाती हैं और अपनी प्रभावशाली और भड़काऊ बातों से पश्चिमी समाज की युवा लड़कियों को जिहाद में शामिल होने और जिहादियों की जीवन संगिनी बनने को प्रेरित करती है। हेज्जिये की बातों से मंत्रमुग्ध होकर जमीला और अमीना इस्तांबुल के रास्ते सीरिया पहुँच जाती हैं और यहीं से शुरू होता है उनका इस्लामिक स्टेट की कड़वी सच्चाई से रूबरू होने का त्रासदीदायक सफर।

अमीना का विवाह हसन नामक जिहादी से हो जाता है और वह विवाहोपरान्त काफी समय तक नारकीय जीवन बिताती है। जल्द ही वह और जमीला तथाकथित जिहादियों के जीवन में व्याप्त हिंसा, उत्पीड़न, मौत, क्रूरता और असमानता से वाकिफ होने लगती हैं। अंत में हेज्जिये के अनाथालय में अमीना अपनी कुर्बानी दे देती है और जमीला किसी तरह से जान बचाकर भाग निकलने में कामयाब होकर इन्डोनेशिया में बाकी की जिन्दगी बिताती है।
(Samima, Amina or Jamila)

भारतीय पत्रकार ताबिश खैर इस समय डेनमार्क में विश्वविद्यालय स्तर पर अंग्रेजी पढ़ाते हैं। जिहादी जेन में उन्होंने दो साधारण-सामान्य एशियाई मूल की ब्रितानी लड़कियों की मर्मस्पर्शी गाथा गढ़ी है- उल्लेखनीय है कि अंग्रेजी भाषा में ‘जेन’ शब्द एक साधारण लड़की के लिए प्रयुक्त होता है। ये दोनों सहेलियां धार्मिक कट्टरपंथियों की उत्तेजक बातों से प्रभावित होकर  इंग्लैण्ड में अपना सधा-सधाया जीवन एक झटके में पीछे छोड़कर ऐसी राह पर निकल पड़ती हैं जिसमें पग-पग पर उन्हें खौफ, हिंसा, असहिष्णुता और मौत के ताण्डव से रूबरू होना पड़ता है। वह खुद को ऐसे दुष्चक्र में फँसा हुआ पाती हैं जिससे बाहर निकलना लगभग नामुमकिन है। जिहादी जेन की कहानी बिना किसी तरह की अतिरंजना  अथवा लाग-लपेट के जमीला की जुबानी कही गयी है जो कि इस्लामिक स्टेट के चंगुल से निकलकर छद्म पहचान धारण कर इंडोनेशिया में निर्वासित जीवन बिताने के लिए मजबूर है। जमीला और अमीना के चित्रण और शमीमा बेगम के जीवन में इतनी समानता है कि मन में स्वत: ही यह विचार उपजता है कि जिन अनुभवों से ये काल्पनिक नायिकाएँ गुजरती हैं, उन्हीं अनुभवों से सम्भवत: जमीला बेगम भी गुजरी होगी। यह बात अलग है, जहाँ अमीना मानव बम बनकर खुद को नष्ट करने में नहीं हिचकती है और जमीला किसी तरह से बच निकलने में कामयाब हो जाती है, वहीं शमीमा बेगम की त्रासदी अभी जारी है। तीनों का जीवन कट्टरपंथ तथा धर्मान्धता के चक्रव्यूह में फँसकर नाटकीय जीवन बिताने को मजबूर ‘जिहादी विधवाओं’ का उत्कृष्ट उदाहरण है। उनकी दारुण और यंत्रणापूर्ण जीवन कथाओं के संदर्भ में गुलजार ने ठीक ही कहा है कि ‘‘यह भयावह समय की भयावह कहानी है।’’
(Samima, Amina or Jamila)
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