ग्रामीण औरतें बनीं इंजीनियर

राजस्थान के एक गाँव में ऐसा कॉलेज चल रहा है जो ग्रामीण औरतों को सोलर इंजीनियर बना रहा है। अजमेर जिले के तिलोनिया गाँव में स्थित बेयरफुट कॉलेज यह काम कर रहा है। यह कॉलेज डिग्री ही नहीं देता बल्कि औरतों को इस तरह योग्य बना देता है कि वे अपने पैरों पर खड़ी हो सकें। यहाँ हर साल सैकड़ों बेयरफुट महिला इंजीनियर तैयार होती हैं, जो अपने-अपने क्षेत्रों में सोलर लालटेन व सोलर लाइट लगाकर उजियारे की लौ जला रही हैं। बेयरफुट कॉलेज की यह मुहिम अब तक 44 हजार से ज्यादा घरों में सोलर लालटेन और सोलर पंप की रोशनी पहुँचा चुकी है।

तिलोनिया गाँव में 52 एकड़ में बना बेयरफुट कॉलेज अपनी अनूठी शिक्षा के लिए भारत देश ही नहीं बल्कि दुनियाभर में जाना जाता है। 1972 में संजीत बंकर रॉय ने सोशल वर्क एंड रिसर्च सेंटर नामक संस्था का गठन किया, जो कि बेयरफुट कॉलेज के नाम से जाना जाता है। यह संस्था गरीबों को शिक्षित, प्रशिक्षित और मजबूत करने का काम कर रही है। ग्रामीण हाइटेक कामों के जरिए अपना जीवन स्तर सुधार रहे हैं। यह संस्था भारत देश के सोलह राज्यों के दूर-दराज गाँवों में प्रशिक्षण दे रही है। तकरीबन पचास हजार बच्चे इसके रात्रिकालीन स्कूलों में शिक्षित हुए हैं। तिलोनिया के आस-पास के गाँवों की कई औरतें सोलर इंजीनियर का प्रशिक्षण ले रही हैं। यहाँ पर बिना डिग्री डिप्लोमाधारी लोग भी तकनीकी काम आसानी से कर रहे हैं। यहाँ से प्रशिक्षित इंजीनियरों में 449 विदेशी महिला बेयरफुट इंजीनियर्स भी शामिल हैं। जिन्होंने 25 हजार से ज्यादा घरों का अंधियारा मिटाया है। यहाँ के बनाए गए उपकरण हर दिन एक लाख 51 हजार 315 वाट सोलर ऊर्जा का उत्पादन करते हैं। सितंबर 2008 से 2015 तक यहाँ 73 देशों की 688 बेयरफुट महिला इंजीनियर प्रशिक्षित हो चुकी हैं। अभी यहाँ 13 देशों की 50 महिलाएँ प्रशिक्षण ले रही हैं। आन्ध्रप्रदेश राज्य की 10 औरतें भी पिछले 4 माह से प्रशिक्षण ले रही हैं।
(Rural women became engineers)

पिछले 24 सालों के दौरान बेयरफुट कॉलेजों ने 16000 सोलर यूनिट स्थापित करने व 9500 सोलर लालटेन बनाने की उपलब्धि हासिल की है। साथ ही  पानी गर्म करने के 70 सोलर हीटर व 60 सोलर पेराबोलिक कुकर भी स्थापित किए हैं। इस मुहिम की वजह से रात्रिशाला स्कूलों में सोलर लालटेन से प्रकाश व्यवस्था की गई है। यहाँ तक कि तिलोनिया स्थित बेयरफुट कॉलेज का परिसर भी पूरी तरह सौर ऊर्जा चलित है। सौर ऊर्जा से ही यहाँ लगभग 500 लाइट, पंखे, पंप सेट, लगभग 30 कंप्यूटर प्रिंटर, एक छोटा टेलीफोन एक्सचेंज, मिल्क बूथ के फ्रीजर आदि चलते हैं।

तिलोनिया में प्रशिक्षित बेयरफुट सोलर इंजीनियर महिलाएँ अब अन्य देशों से सीखने के लिए आ रही महिलाओं को प्रशिक्षित कर रही हैं। अफ्रीका के लगभग 15 देशों की महिलाओं का यह प्रशिक्षण विदेश मंत्रालय के भारतीय तकनीकी व र्आिथक सहयोग कार्यक्रम के अन्तर्गत दिया जाता है। बेयरफुट कॉलेज के सौर ऊर्जा कार्यक्रम की एक खास विशेषता यह रही है कि थोड़ी बहुत स्कूली शिक्षा प्राप्त करने वाले गाँववासियों ने ही प्रशिक्षण प्राप्त कर इस सौर ऊर्जा काम की खास जिम्मेदारियाँ सम्भाली हैं। तिलोनिया के पास के ही एक गाँव में रहने वाली मगन कंवर ने बेयरफुट कॉलेज में सोलर इंजीनिर्यंरग का काम सीखा। वह आज मास्टर ट्रेनर हैं। मगन कहती हैं, ‘मैंने कभी सपने में भी यह नहीं सोचा था कि मैं सोलर इंजीनियर बनकर इस तरह विदेशी महिलाओं को प्रशिक्षण भी दूंगी। पिछले 25 साल से मैं बेयरफुट कॉलेज तिलोनिया का हिस्सा हूँ। यहाँ आकर मैं आत्मनिर्भर बनी हूँ। अपने बच्चों के बेहतर भविष्य का सपना देख रही हूँ।’बेयरफुट कॉलेज के सोलर इंजीनियर सेक्शन के समन्वयक भगवत नंदन कहते हैं, ‘डिग्री से ज्यादा हम यहाँ सीखने वालों को आत्मनिर्भर बनाते हैं।’

उन्होंने कहा कि देश के 13 राज्यों में कॉलेज के 27 एफिलिएटेड सेंटर चलते हैं। 1985 में बेयरफुट कॉलेज में सोलर उपकरण बनने शुरू हुए, पर तब पुर्जे बाजार से लिए जाते थे। 1989 में पहली बार र्सिकट भी यहीं बनने शुरू हुए। 2004 में यहाँ बनी लाइट पहली बार विदेशों तक पहुँची और 2008 से सरकार के सहयोग से विदेशी महिलाओं को प्रशिक्षण देना शुरू किया गया।
(Rural women became engineers)
उजाला छड़ी से साभार
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