ताकि फिर न जलायी जाय कोई नेहा़….

विमल नेगी

देश और दुनिया की बात क्या करें, जब देवभूमि कही जाने वाली धरती पर ही महिलाएँ सुरक्षित नहीं रहीं। गढ़वाल मण्डल मुख्यालय पौड़ी से महज 8 किमी दूर 18 वर्षीय नेहा का दिन दहाड़े एक सिरफिरे व्यक्ति द्वारा पेट्रोल उड़ेल कर जलाया जाना, यही साबित करता है कि हम आधुनिकता का लबादा ओढ़कर संविधान प्रदत्त महिला-पुरुष समानता की चाहे जितनी बातें कर लें लेकिन वास्तविकता अभी भी यही है कि हम महिलाओं के प्रति अपनी मानसिकता और सोच नहीं बदल पा रहे हैं। उसे निर्बल, असहाय और अबला समझकर अपनी क्रूरता अथवा हवस का आसानी से शिकार बना रहे हैं। इसी पुरुष प्रधान मानसिकता का शिकार नेहा भी हुई और उसने पुरुष वर्चस्ववादी सोच का विरोध कर अपनी जान कुर्बान कर दी।

आम दिनों की तरह उस दिन 16 दिसम्बर, 2018 को भी नेहा अपनी माँ से शाम को जल्दी घर लौटने का वायदा कर कॉलेज के लिए अपनी स्कूटी से रवाना हुई थी। उसे क्या पता कि आज वह घर से आखिरी बार कॉलेज के लिए निकल रही है और ऐसी कोई अनहोनी उसका इन्तजार कर रही है जिसे सपने में देखने भर से ही रोंगटे खड़े हो जांय। पिछले एक महीने से नेहा काफी खुश थी और इसका कारण उसकी माँ द्वारा उसे गाँव से तीस किमी. दूर पौड़ी डिग्री कॉलेज में आने-जाने के लिए उपहार में स्कूटी देना था। उसकी विधवा माँ ने एक-एक कौड़ी जोड़कर अपनी लाड़ली की खुशी के लिए स्कूटी खरीदी थी लेकिन नेहा को क्या मालूम कि उसकी खुशियों पर आज ही ग्रहण लगने वाला है। शाम को कॉलेज से वापस घर लौटते समय उसकी जान-पहचान वाला पड़ोसी गाँव का मनोज उसका पीछा करते हुए उसे पौड़ी-कोटद्वार राष्ट्रीय राजमार्ग पर बुआखाल से लगभग दो किमी. आगे मिला और उसने छेड़खानी की नीयत से उसे एक सुनसान मार्ग पर चलने को बाध्य किया। इसी मार्ग पर कुछ आगे जाने पर उसने नेहा से छेड़छाड़ शुरू कर दी और उसके विरोध करने पर पेट्रोल उडे़ल कर उसे आग के हवाले कर दिया।
(Report by Vimal Negi)

यह जघन्य अपराध मनोज उर्फ बंटी से अचानक हुआ या वह सुनियोजित तरीके से किया गया, यह भले ही जाँच का विषय हो मगर इस घटना से यह स्पष्ट है कि मनोज का इरादा पहले से ही ठीक नहीं था। अन्यथा वह उसे मुख्य राष्ट्रीय राजमार्ग से हटकर सुनसान सड़क पर चलने को क्यों मजबूर करता और अचानक उसके पास इस घटना के लिए पेट्रोल कहाँ से आता? नेहा को आग के हवाले कर उसे वह नजदीक ही छिप कर तड़पते देखता रहा। वहाँ से गुजरते एक ग्रामीण ने नेहा को इस हालत में जलता देखकर पुलिस को इसकी सूचना दी और फिर 108 की मदद से उसे जिला अस्पताल पौड़ी लाया गया। इस घटना में नेहा लगभग 70 प्रतिशत से अधिक जल चुकी थी। इसलिए उसे हायर सेन्टर रिफर कर दिया गया। पहले उसे बेस अस्पताल श्रीनगर ले जाया गया लेकिन बेस अस्पताल में बर्न यूनिट न होने के कारण उसे अखिल भारतीय आयुर्वेदिक संस्थान (एम्स) ऋषिकेश में भर्ती किया गया। यहाँ भी उसकी हालत में सुधार न होने के कारण उसे सरकारी खर्चे पर एअर एम्बुलेंस की मदद से दिल्ली सफदरजंग अस्पताल ले जाया गया लेकिन यहाँ पर डॉक्टरों की तमाम कोशिशों के बावजूद उसे बचाया नही जा सका और उसने घटना के सात दिन बाद 23 दिसम्बर को दम तोड़ दिया।
(Report by Vimal Negi)

पौड़ी, देहरादून समेत उत्तराखण्ड के कई शहरों में और पूरे देश के विभिन्न इलाकों में इस घटना के खिलाफ जो जनाक्रोश सड़कों पर दिखाई दिया, वह स्वाभाविक ही था। लोग अपराधी के खिलाफ फास्ट ट्रैक कोर्ट में मामले की सुनवाई किये जाने और उसे फाँसी पर लटकाए जाने की माँग करते हुए सड़कों पर कई दिनों तक आन्दोलनरत रहे। यह घटना चौंकाने वाली इसलिए भी थी कि यह उस देवभूमि में हुई जहाँ के सामाजिक इतिहास में इस तरह की घटनाओं के लिए कोई जगह नहीं है। उत्तराखण्ड के मैदानी क्षेत्रों में भले ही इस तरह की घटनाएँ धीरे-धीरे आम होती जा रहीं हों लेकिन पहाड़ी क्षेत्रों में आज भी सामाजिक ताना-बाना कुछ इस तरह का है कि ऐसी घटनाओं के बारे में सोचा भी नहीं जा सकता। यहाँ के ग्रामीण जीवन में आपसी रिश्तों का जुड़ाव इतना गहरा है कि ऐसी घटनाएँ अपवाद रूप में सामने आती हैं और ऐसी घटनाओं में प्राय: शातिर अपराधी का नहीं, बल्कि विकृत मानसिकता वाले दुराचारी का ही हाथ रहता है। यह बात भी समझ से परे है कि जिस मनोज उर्फ बन्टी ने इस घटना को अंजाम दिया उसके बारे में बताया जा रहा है कि विगत छ:-सात महीने पहले ही उसकी शादी हुई थी। घर में नवविवाहिता पत्नी को छोड़कर वह एक लड़की का पीछा करता है, उससे छेड़छाड़ करता है और विरोध करने पर उसे जिन्दा जला देता है। मनोज का बयान है कि वह नेहा से तब से एकतरफा प्यार करता था जब वह कक्षा 9 में पढ़ती थी। यदि ऐसा था तो सवाल यह उठता है कि उसने शादी क्यों की? स्थानीय स्तर पर ड्राइवरी का काम करने वाले मनोज ने अगर यह सोच कर शादी की कि नेहा ऊँची जाति की लड़की है और उसके साथ उसकी शादी होनी मुमकिन नहीं है तो अपने एकतरफा प्यार को उसने इस तरह निर्ममता से क्यों मार दिया? उसके इस कृत्य से तो यही साबित होता है कि एक शातिर अपराधी भले ही न रहा हो लेकिन विकृत मानसिकता का वह एक ऐसा नरपिचाश है जिसे दूसरे को जिन्दा जलते देखने में भी आनन्द आता है। स्थानीय पुलिस की तत्परता से मनोज को दूसरे ही दिन उसके गाँव गहड़ से गिरफ्तार कर दिया गया। उसने अपना अपराध भी कबूल कर दिया है और वह खाँड्यूसैंण जिला जेल में बन्दी है।
(Report by Vimal Negi)

पौड़ी जनपद के कफोलस्यूँ पट्टी की पल्ली गाँव की नेहा अपने परिवार में बड़ी बहिनों की शादी के बाद अपनी माँ के साथ घर पर रहती थी। पढ़ने में बचपन से ही नेहा अव्वल रही। यही कारण था कि घरेलू परिस्थितियाँ प्रतिकूल होने के बावजूद उसकी माँ पम्मी देवी ने उसे किसी भी तरह इण्टर पास करने के बाद उसकी आगे की पढ़ाई जारी रखने की ठान ली थी। नेहा के पिता का कैंसर से जूझते हुए वर्ष 2013 में निधन हो गया था। इसके बाद परिवार के भरण-पोषण की जिम्मेदारी उसकी माँ पर ही थी। माँ अपनी लाडली बिटिया नेहा का पूरा ध्यान रखती थी और उसे वह हर खुशी भी देना चाहती थी। उसने आगे की पढ़ाई के लिए नेहा को हेमवती नन्दन बहुगुणा केन्द्रीय विश्वविद्यालय के पौड़ी परिसर में दाखिला दिलाया था और इस समय वह बी़ एस-सी द्वितीय वर्ष की छात्रा थी। लेकिन इस हादसे के बाद नेहा की माँ पम्मी देवी की तो दुनिया ही उजड़ गई। उसने अपनी इस लाड़ली के लिए क्या कुछ नहीं सोचा था और न जाने कितने सपने देखे थे। पति के निधन और बड़ी लड़कियों की शादी के बाद अब नेहा ही उसके जीवन की धुरी थी और उसके लिए ही उसने अपना जीवन समर्पित कर दिया था। नेहा की मौत के बाद अब सब कुछ समाप्त हो गया। मनोज को कोसती हुई वह कहती है कि उसने नेहा के साथ ही उसे भी मार डाला और अब उसका एक मात्र इच्छा है कि जिसने उसकी लाडली को मारा है उसे सरेआम चौराहे पर आग लगा दी जाय।
(Report by Vimal Negi)

उत्तराखण्ड के पहाड़ी क्षेत्र के गाँवों में इस तरह की घटनाएँ भले ही दुर्लभ हों लेकिन मैदानी और नगरीय क्षेत्रों में और कुछ मामलों में पहाड़ी ग्रामीण क्षेत्रों में भी महिलाओं के खिलाफ अपराधों की घटनाएँ लगातार बढ़ती ही जा रही हैं। दहेज हत्या या दहेज के लिए प्रताडनाएँ, बलात्कार, यौन हिंसा, अपहरण, जातीय भेदभाव अथवा तिरस्कार, ऐसिड फेंकना, लव जेहाद, तीन तलाक, घरेलू हिंसा आदि में ही नहीं, बल्कि प्रेम-प्रसंगों में भी अधिकांश महिलाएं ही हिंसा का शिकार होती हैं। राज्य महिला आयोग की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि उत्तराखण्ड में प्रत्येक दूसरी महिला घरेलू हिंसा की शिकार है। 54 प्रतिशत महिलाएं मानसिक प्रताड़ना या पति अथवा परिवारजनों से प्रताड़ित हैं। राज्य महिला आयोग में महिलाओं के खिलाफ हिंसा के प्रतिवर्ष 1200 से भी अधिक मामले पहुँचते हैं। इनमें 60 प्रतिशत मामले घरेलू हिंसा, 25 प्रतिशत मानसिक या शारीरिक उत्पीड़न, 10 प्रतिशत जान को खतरा, 2 प्रतिशत छेड़छाड़ व बाकी अन्य तरह के होते हैं। इसी तरह अगर हम पूरे देश के सन्दर्भ में बात करें तो महिलाओं के खिलाफ शारीरिक शोषण, यौन हिंसा, बलात्कार, यौन उत्पीड़न, अपहरण और टेड़छाड़ के मामलों में लगातार वृद्घि होती जा रही है। इन्हें रोकने के लिए केन्द्र और राज्य सरकारें कड़े कानून बनाये जाने की बातें करती हों लेकिन लगातार बढ़ते अपराधों से तो यही लगता है कि अपराधियों को इन कानूनों की जरा भी परवाह नहीं और वे बेखौफ होकर ऐसी वारदातों को अंजाम देने में पीछे नहीं हैं। हमारे समाज में इस तरह की घटनाएं तब भी होती जा रहीं हैं जबकि केन्द्र सरकार ने विगत वर्षों निर्भया काण्ड के बाद महिलाओें के खिलाफ यौन शोषण के मामलों में सख्त कानून बनाये जाने और ऐसे मामलों के निपटारे हेतु फास्ट ट्रैक कोर्ट में मामलों की सुनवाई किये जाने के प्राविधान किये हैं। ऐसा भी नहीं है कि पहले से ऐसे मामलों में सख्ती दिखाने के लिए कोई कानून ही नहीं थे। लेकिन जब कानून को सख्ती से लागू करने की इच्छाशक्ति न हो और पुलिस अपराधियों से साँठ-गाँठ करने लगे तो सख्त कानून होने के बाद भी अपराधी अपने बचने के रास्ते तलाश ही लेते हैं। ऐसे मामलों में कानून ही नहीं, बल्कि पुलिस और समाज को भी अपराधियों के खिलाफ सख्ती से पेश आना होगा। अपराधियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई के साथ ही समाज में यह सन्देश जाना भी आवश्यक है कि इस ढंग के अपराध होने पर कठोरतम सजा निश्चित है। समाज में जनजागरूकता होने पर ही ऐसे जघन्य और क्रूर अपराधों पर रोक लगाई जा सकती है। यह इसलिए भी जरूरी है ताकि समाज में इस तरह की घटनाओं की पुनरावृति न हो और नेहा जैसी निर्दोष बालिकाओं को बचाया जा सके और फिर कोई नेहा न जलाई जाय।
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