बलात्कार : एक सामाजिक विकृति

डॉ. कवलजीत कौर

वर्तमान समय में भारत में बलात्कार एक गंभीर मुद्दा है जो कि दिनोदिन बढ़ता जा रहा है। दिल्ली गैंग रेप दिसम्बर, 2012 की दिल दहलाने वाली घटना के बाद देशव्यापी आन्दोलन, इस घटना के प्रति राष्ट्रीय स्तर पर जागरूकता की अभिव्यक्ति निस्संदेह ही रहा हो लेकिन यह भी सत्य है कि न केवल दिल्ली, एन. सी. आर. बल्कि पंजाब, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, महाराष्ट्र, बिहार और भारत के उत्तरी राज्यों को मिलाकर देश के दूसरे भागों में भी बलात्कार की घिनौनी व मानवता को शर्मसार करने वाली घटनाओं की जैसे बाढ़-सी आ गयी हो। 1983 से 1988 के बीच प्रत्येक 80 मिनट पर यानी प्रतिवर्ष लगभग 6570 बलात्कार के मामले आए। वहीं 1993 में प्रत्येक 54 मिनट में यानी प्रतिवर्ष लगभग 9825 बलात्कार हुए। अभी 2012 में प्रत्येक 30 मिनट पर यानी पूरे वर्ष में लगभग 17520 बलात्कार हुए। ये आंकड़े समाज के लिए चिंताजनक हैं। आयु के हिसाब से बलात्कार के शिकार 16-30 वर्ष आयु समूह में सर्वाधिक लगभग 64.1 प्रतिशत हैं, दूसरे स्थान पर 10 से 16 वर्ष आयु समूह के लगभग 20.5 प्रतिशत हैं, तीसरे स्थान पर 30 वर्ष से ऊपर 12.8 प्रतिशत हैं और चौथे स्थान पर 10 वर्ष से कम लगभग 2.6 प्रतिशत हैं।

परिवार, पड़ोस, सार्वजनिक स्थानों के अतिरिक्त गरीब एवं मध्यम वर्ग की महिलाओं के साथ-साथ जेल में कैदी महिलाओं, संदिग्ध महिलाओं के साथ पुलिस अधिकारियों/कर्मचारियों द्वारा महिला मरीजों के साथ, भिखारिन, गूंगी, बहरी, अंधी, पागल एवं छोटी बच्चियां बलात्कार की शिकार बनती हैं। सभ्यता के उत्तर आधुनिक होने, नारी के सशक्त होने, समाज के शिक्षित होने के बावजूद महिलाओं के यौन शोषण की बढ़ती घटनाएं आदिम साबित कर रही हैं। देश में महिलाओं के प्रति होने वाले कुछ अपराधों में दिल्ली का 9 प्रतिशत योगदान है। दिल्ली के कुल अपराधों में 34 प्रतिशत अपराध केवल महिलाओं के साथ होते हैं।

बलात्कार क्या हैं? अपराध का एक रूप, ‘यौन अपराध का स्वरूप ‘बलात्कार है। बलात्कार का अभिप्राय कामवासना से प्रेरित होकर ऐसी क्रिया, जो जानबूझकर, धमकाकर व बलपूर्वक स्त्री के साथ अस्वीकृत यौन संबंध स्थापित करना है, जिसके परिणामस्वरूप स्त्री को आघात पहुंचा हो, उसके सम्मान को ठेस लगी हो या उसका विनाश (मृत्यु) हुआ हो तथा जिसके चलते अपराधी दण्ड का भागी बने। इस रूप में बलात्कार एक ऐसा घिनौना कृत्य है, जो मानवीयता के हृास का सूचक है। बलात्कार में अधिकांश 58 प्रतिशत एकल बलात्कार होते हैं, जिसमें एक अपराधी होता है, 21 प्रतिशत द्वय बलात्कार होते हैं, जिनमें दो अपराधी होते हैं और 21 प्रतिशत सामूहिक बलात्कार (गैंग रेप) होते हैं, जिसमें तीन या अधिक अपराधी होते हैं। 90 प्रतिशत बलात्कारों में किसी प्रकार की शारीरिक हिंसा व क्रूरता नहीं होती। महिला को वश में करने के लिए प्रलोभन या दबाव काम में लिए जाते है। 10 प्रतिशत में शारीरिक हिंसा व क्रूरता देखी जाती है। 50 प्रतिशत मामलों में पीड़ित महिला अपने हमलावरों के पहचान की होती है, जैसे रिश्तेदार, पड़ोसी, परिवार, मित्र, सहयोगी कर्मचारी, चिकित्सक, अध्यापक एवं शासक आदि। यद्यपि 60 प्रतिशत बलात्कार स्थितिजन्य होते हैं, लेकिन 40 प्रतिशत मामलों में यह नियोजित होता है। अधिकतर मामलों में महिलाएं बलयोग का शिकार होती हैं। गरीब एवं मध्यम वर्ग की महिलाओं के साथ-साथ जेल में कैद महिलाओं के साथ अधीक्षकों द्वारा, अपराध संदिग्ध महिलाओं के साथ पुलिस अधिकारियों द्वारा, महिला मरीजों के साथ चिकित्सा सेवकों द्वारा और वेतनभोगी महिलाओं के साथ ऊपर के नौकरशाहों द्वारा बलात्कार होते हैं। यहां तक कि बहरी, गूंगी, पागल, अंधी, भिखारिन व छोटी बच्ची भी नहीं बच पाती है। 
Rape: A Social Distortion

आवश्यकता है बलात्कार के बढ़ते कारणों को जानने की, क्योंकि पिछले कुछ दशकों में ही इस समस्या ने विकराल रूप लिया है। यदि भारतीय समाज का सामाजिक-सांस्कृतिक इतिहास देखा जाए तो पता चलता है कि वैदिक तथा उत्तरवैदिक काल में स्त्रियों की स्थिति पुरुषों के समान थी। घर में कन्या का जन्म उत्साह व खुशी दान करने वाला बताया गया है।  अधिकार की दृष्टि से भी वैदिक तथा उत्तरवैदिक काल में स्त्री को पुरुष के समान आर्थिक, राजनीतिक तथा शैक्षिक अधिकार प्राप्त थे। यहां तक कि स्त्री को विवाह करने या न करने का निर्णय लेने का भी अधिकार प्राप्त था। यद्यपि मनुस्मृति के अनुसार ‘‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमते तत्र देवता:’’ का उल्लेख मिलता है, तथापि धर्मशास्त्र काल में स्त्रियों के अधिकार कम किये जाने लगे थे। स्मृतिकारों ने निर्देश दिए कि स्त्री को किसी भी स्थिति में स्वतंत्र नहीं रहने देना चाहिए। यह वह समय था, जब स्त्रियों पर पुरुषों का पूर्ण नियंत्रण, स्त्री अधिकारों में कमी, विधवा पुर्निववाह का निषेध, सती प्रथा आदि से स्त्रियों की स्थिति निम्न होने लगी और सबसे निकृष्ट स्थिति तो स्त्रियों की मध्यकाल में हुई, जब उन्हें बाल-विवाह, कन्या-हत्या, पर्दा-प्रथा, अशिक्षा, चरित्रहीन, कामुक, नासमझ और  विश्वास के अयोग्य समझा जाने लगा।

महिलाओं के साथ हो रहे इन अपराधों की रोकथाम को लेकर सबके अपने तर्क हैं। ओम प्रकाश चौटाला ने तर्क दिया कि बाल-विवाह करने से दुष्कर्म की घटनाओं पर अंकुश लगाया जा सकता है, किन्तु आंकड़े उनके सुझाव को झुठलाते है। मध्य देश और छत्तीसगढ़ में बाल-विवाह की दर सर्वाधिक है। मध्य प्रदेश के रतलाम, मंदसौर, राजगढ़ और गुना में 78 प्रतिशत लड़कियों का विवाह 14 से 19 वर्ष के बीच हो जाता है लेकिन यहां भी छेड़छाड़ और दुष्कर्म की शिकायतें वैसे ही हैं जैसी अन्य जगहों पर। कुछ लोगों ने सुझाव दिया कि औरत को अपना चेहरा और बदन ढककर रखना चाहिए ताकि उस पर किसी की नजर न पड़े। अरब देशों में औरतें ऐसा ही करती हैं, फिर भी उनके साथ दुष्कर्म होते हैं। इसके विपरीत, आदिवासी समाजों में जहां महिलाएं लगभग नग्न या अर्धनग्न रहती हैं, दुष्कर्म की घटनाएं लगभग शून्य हैं। कुछ विचारक मानते थे कि जब समाज स्त्री-पुरुष के संबंधों से पाबंदियां हटा लेगा और स्त्री दुर्बल प्रणाली से सुलभ की श्रेणी में आ जाएगी तो उसके प्रति अपराध कम होंगे। लेकिन पश्चिमी देशों के उदाहरण इस दलील को ठुकराते हैं। वहां भी उनके साथ दुष्कर्ष नही रुके। दरअसल, समस्या पुरुषों की मानसिकता में है। यह वही मानसिकता है जो स्त्रियों के प्रति पुरुषों के मन में सम्मान का भाव जागृत नहीं होने देती। पाकिस्तान में जिया उल हक के दौर में हदूद जैसा कानून बना, जिसमें दुष्कर्म की शिकार महिला को चार चश्मदीद गवाह पेश करने पड़ते हैं और असफल रहने पर उस महिला को छह वर्ष की सजा मिलती है। यानी शुचिता केवल औरत के लिए अनिवार्य है। अफ्रीका के आदिम कबीलों में औरत का कौमार्य परीक्षण किया जाता है लेकिन पुरुष के लिए कुंवारा होना कोई शर्त नहीं है।

आज के युग में जबकि यह मान लिया जाता है कि स्त्री को हर तरह से समाज में सम्मान व अधिकार प्राप्त है, तब उसके साथ बलात्कार जैसा कुकृत्य किया जाता है। स्त्री चाहे वह छ: माह की अबोध हो, छ: वर्ष की छोटी मासूम बच्ची हो, दस वर्ष से लेकर 20 वर्ष या 45-50 वर्ष से भी अधिक आयु की क्यों न हो, समाज में सुरक्षित नहीं है। ऐसा नहीं है कि सभी पुरुष प्रधान समाजों में स्त्रियां इतनी ही असुरक्षित हैं। फिर क्या कारण हैं कि भारत जैसे परम्परागत मूल्यों के धरोहर प्रधान समाज में पुरुष मानसिकता इतनी विकृत हो गई है कि कहीं पिता, तो कही चाचा, पड़ोसी, भाई, दोस्त, जानकार या अनजान पुरुष, जो 15 वर्ष, 20 वर्ष, 30 वर्ष, 50 वर्ष या इससे भी अधिक आयु का हो सकता है, बलात्कारी के रूप में चिन्हित होता है। इस समस्या के कारणों पर विचार किया जाए तो इसका मूल कारण है- भारतीय पितृसत्तात्मक सामाजिक व्यवस्था। पिता, पति, भाई और पुत्र के रूप में पुरुष स्वयं को स्त्री से सर्वोपरि ही मानता है और इस मनोवृत्ति से वह स्वयं को अलग नहीं कर पा रहा है।

इस समस्या का दूसरा महत्वपूर्ण कारण है पारिवारिक दशाएं- आज के भौतिकवादी युग की भाग-दौड़ भरी जिन्दगी में परिवार अपने दायित्वों का निर्वाह नहीं कर पा रहा है। परिवारों के एकांकी होने से नियंत्रण की व्यवस्था शिथिल पड़ी है और नैतिक मूल्य व संस्कार आज जैसे विलुप्त होते जा रहे हैं। पति-पत्नी के बीच तनाव, असन्तोष का सीधा प्रभाव बच्चों पर प्रतिकूल रूप से पड़ रहा है। दादी-नानी की मूल्यपरक कहानियां आज बच्चों के लिए टी़ वी़ , सिनेमा की बातों में बदल गई हैं। परिणामस्वरूप बच्चे सही-गलत के बीच फर्क नहीं कर पाते और संवेदनहीनता के कारण बलात्कार जैसा कृत्य भी उन्हें कुछ असामान्य बात नहीं लगती। तीसरा कारण है- समाज में बढ़ता हुआ भ्रष्टाचार व कानून व्यवस्था का कमजोर पड़ना। अपराधी को कानून का भय नही है, न्याय व्यवस्था से जुड़ी विलम्ब प्रक्रिया अपराधियों को अपराध करने के लिए प्रेरित व उत्साहित करती है। यह सत्य है कि सभी अपराध दर्ज नहीं होते और जो दर्ज होते हैं, उनमें न्याय प्रक्रिया इतनी धीमी व लम्बी होती है कि उससे न्याय प्रभावित होता है। गवाहों का मिटावा, रिपोर्ट के साथ छेड़छाड़, पीड़िता को मारना, धमकाना और भय दिखाना आदि से बलात्कार जैसे अपराधों में लम्बित न्याय का कोई अर्थ नहीं रह जाता, जो अपराधियों को दण्ड के भय से मुक्त रखता है। राजनीति में व्याप्त भ्रष्टाचार व राजनीतिक अपराधीकरण तथा पुलिस तंत्र में पाया जाने वाला भ्रष्टाचार, घूसखोरी बलात्कारियों को भय मुक्त करता है। बलात्कार के लिए चौथा महत्वपूर्ण कारण फिल्मों में दिखाई जाने वाली हिंसा व अपराध, शराब का सेवन युवाओं में उत्तेजना उत्पन्न करता है। मुख समाजशास्त्रीय सदरलैण्ड के अपराध से जुड़े शोध इस तथ्य का समर्थन करते हैं। सदरलैण्ड ने अपराधों के वर्गीकरण में बलात्कार को जघन्य अपराध की श्रेणी में रखा है।
Rape: A Social Distortion

एक महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि बलात्कार की घटनाएं गांवों में कम और नगरों में बहुत अधिक घटित हो रही है तथा औद्योगिक नगरों में इनकी संख्या बहुत अधिक रिपोर्ट हुई है। इसका सीधा संबंध नगरीकरण व औद्योगीकरण की प्रक्रिया से है। औद्योगिक नगरों में दूरस्थ गांवों से, दूसरे राज्यों से श्रमिक रोजगार के लिए आते है चूंकि उनका परिवार उनके साथ नहीं होता है, रोजगार मिलने के बाद खाली समय या अवकाश के समय अपनी यौन आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए ये श्रमिक बलात्कार जैसे अपराध करते हैं। इनमें ड्राईवर, फैक्ट्री में काम करने वाला मजदूर, बढ़ई, चौकीदार, कूलर, गीजर, ए़ सी़ मिस्त्री आदि छोटी बच्चियों को, अपाहिजों को अपनी हवस का शिकार बनाते हैं।

कानून चाहे कितना भी कठोर क्यों न बन जाए, ऐसे अपराध तब तक नही रोके जा सकेंगे, जब तक कानून व्यवस्था को न सुधारा जाए। कानून व्यवस्था को सुधारने वाले लोग, कानून बनाने की जिम्मेदारी लिए हुए लोग स्वयं जो संसद तथा विधान सभाओं में बैठे हैं, अपराधी पृष्ठभूमि व अपराधी प्रवृत्ति के हैं। ऐसी स्थिति में कानून व्यवस्था को सुधारने की, अपराध रोकने की, बलात्कारियों को सजा दिलाने की और समाज को अपराध मुक्त करने की कल्पना निरर्थक ही होगी। समाज तब बदलेगा जब पुरुष की मानसिकता बदलेगी। स्त्री के प्रति पुरुष में सम्मान की भावना होगी। इसके अतिरिक्त कानून में होने वाले बदलाव से, स्त्रियों के प्रति हिंसा, दुव्र्यवहार के लिए मिलने वाली सजा जब व्यावहारिक रूप से लागू होगी अर्थात् स्त्रियों को न्याय मिलेगा। अपराधी कड़ी सजा पायेंगे। मृत्युदण्ड अपराधी को मिलेगा तो निश्चित ही इस अपराध के लिए अपराधियों में यह धारणा विकसित होगी कि कानून से बचना उनके लिए असम्भव है, तो अवश्य ही अपराधों में कमी आयेगी। आज पुरुषों को अपनी मानसिकता बदलने की आवश्यकता है। पुरुषों को यह स्वीकारना होगा कि स्त्री को सम्मान व समानता का दर्जा देकर ही एक स्वस्थ संतुलित समाज का निर्माण किया जा सकता है अन्यथा भारतीय समाज एक बीमार समाज की श्रेणी से कभी ऊपर नहीं उठ पाएगा। बालकों में संस्कार व मानवीय नैतिक मूल्य विकसित कर ही आने वाले समय में स्त्रियों को सम्मान व संरक्षण दिया जा सकता है।
Rape: A Social Distortion

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