प्रागैतिहासिक काल की शिकारिनें

मैया वी. हास
अनु. स्वाति मेलकानी

प्रागैतिहासिक काल में मनुष्यों द्वारा किये जाने वाले शिकार को लेकर कई ऐसी धारणाएं प्रचलित हैं जिनमें लैंगिक विभाजन परिलक्षित होता है। लम्बे समय तक शोधकर्ताओं की यह मान्यता रही थी कि उस युग में केवल पुरुष ही शिकार करते थे जबकि महिलाओं की शिकारी के रूप में कोई भूमिका नहीं थी। परन्तु कुछ ऐसे प्रमाण मिले हैं जो इन प्रचलित मान्यताओं पर प्रश्नचिह्न लगाते हैं। 2018 में कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के पुरातत्वविद् रैंडल हास एवं उनकी टीम को पेरू की एंडीज पर्वत श्रृंखला के निकट खुदाई के दौरान कुछ मानव अवशेष प्राप्त हुए। इन अवशेषों में कुछ प्रौढ़ मानव हड्डियों के साथ पत्थरों के प्राचीन औजार प्राप्त हुए जो संभवत: किसी बड़े शिकार को फंसाने के लिए प्रयुक्त होते थे। हास और उनकी टीम इस बात पर सहमत थी कि उन्हें प्राप्त अवशेष किसी ऐसे महान शिकारी के हैं, जिसे अपने समाज में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त होगा। इससे आगे के विश्लेषण में प्राप्त निष्कर्ष आश्चर्यचकित करने वाले थे क्योंकि खुदाई में प्राप्त मानव अवशेष किसी पुरुष के न होकर एक महिला के थे। ‘साइंस एडवांसेज’ में छपे एक अध्ययन के अनुसार ऐसे परिणाम असंगत नहीं हैं। एक अन्य प्रकाशित लेख में इससे पूर्व की गई खुदाई में प्राप्त जैविक अवशेषों का जिक्र करते हुए इस तथ्य को उजागर किया गया है कि अमेरिका के विभिन्न स्थानों से प्राप्त संभावित महान शिकारियों के जैविक अवशेषों में 30 से 50 प्रतिशत महिलाओं के हो सकते हैं।

इस अध्ययन से प्रारंभिक शिकारी/मांसभक्षी समाजों में लैंगिक भूमिकाओं को लेकर चल रही दशकों लम्बी बहस में एक नया मोड़ आया है। लैंगिक भूमिकाओं के सम्बन्ध में एक प्रचलित अवधारणा है कि प्रागैतिहासिक समाज में पुरुष शिकार करते थे जबकि महिलाएं शिकार को संभालने और बच्चों की देखभाल सम्बन्धी कार्य करती थीं। परन्तु दशकों तक कुछ विद्वानों का इन पारंपरिक भूमिकाओं को लेकर भिन्न मत रहा है क्योंकि उनका मानना है कि लैंगिक आधार पर कार्य विभाजन, दुनिया भर के मानव विज्ञानियों द्वारा 19वीं शताब्दी के बाद किया गया जबकि इसकी जड़ें इससे पूर्व अतीत में गहरी धंसी हैं।

मियामी विश्वविद्यालय की पुरातत्वविद् पामेला गैलर ने भी पेरू में महिला शिकारी के अवशेषों के पक्ष में बयान देते हुए कहा कि “ऐसे कई आँकड़े उपलब्ध हैं परन्तु फर्क इस बात से पड़ता है कि कोई शोधकर्ता उनकी व्याख्या किस प्रकार करता है।” शोधकर्ताओं को पेरू में खुदाई के दौरान 24 प्रकार के पत्थरों से बने रंगीन औजार मिले। इन औजारों में विशालकाय जानवरों को खींचने वाले प्रक्षेप, हड्डियां तोड़ने या खाल उतारने वाली मजबूत शिलाएं, खाल में चिपके मांस को खुरचने वाले गोल पत्थर, गोश्त काटने के लिये प्रयुक्त होने वाले तीखे औजार, खाल को संरक्षित रखने के लिये लाल-गेरुई मिट्टी आदि प्रमुख हैं। खुदाई स्थल के चारों ओर विभिन्न जानवरों की हड्डियों के टुकड़े मिले। इन जानवरों में लामा प्रजाति के हिरन भी पाए गए।
prehistoric hunters

खुदाई के दौरान मिले इन औजारों के बारे में शोधकर्ताओं की शुरूआती राय यह थी कि इन औजारों का मालिक अवश्य ही कोई संभ्रान्त पुरुष रहा होगा परन्तु हड्डियों के सूक्ष्म परीक्षण के बाद यह पाया गया कि प्राप्त जैविक अवशेष किसी महिला के थे। इसकी पुष्टि दांतों की बाहरी परत में मौजूद एक प्रोटीन के परीक्षण से हुई जो लिंग के अनुसार बदलता है। 2018 की यह खोज लैंगिक दोहरेपन के उन स्थापित मानदंडों को चुनौती देती है जिसमें यह माना गया है कि पुरुष शिकार करते थे जबकि महिलाएं उसे सम्भालने का कार्य करती थीं। एरिजोना स्टेट यूनिवर्सिटी के उद्भव मानव विज्ञान के विशेषज्ञ किम हिल का मानना है कि उपरोक्त अवधारणा आधुनिक शिकारियों के अध्ययन से पुष्ट होती है, जिसमें अधिकांश पुरुष शिकार करते थे जबकि महिलाएं बच्चों की देखभाल का उत्तरदायित्व सम्भालती थीं। एक ईमेल के माध्यम से किम अपना तर्क प्रस्तुत करते हुए कहते हैं, ”आप किसी रोते बच्चे को चुप करने के लिये किसी हिरन का पीछा करना बीच में नहीं छोड़ सकते।” किम के समान ही वर्तमान समय में शिकारी और संग्रहकर्ताओं पर किये गये निरीक्षणों की सीमाएं हैं। गैलर का कहना है कि कतिपय पुरातत्वविदों द्वारा पुरुषों को शिकारी एवं महिलाओं को संग्रहकर्ता मान लेने का दृष्टिकोण एक प्रकार का अति सरलीकरण है। वे कहते हैं, ”किसी भी महाद्वीप में शिकारियों पर शोध करने वाले लैंगिक आधार पर कार्य विभाजन को मानकर चलते हैं। उनका यह पूर्वाग्रह अति संकीर्ण परन्तु सार्वभौमिक है। इसीलिए जब खुदाई के दौरान उनका वास्ता ऐसे अवशेषों से पड़ता है जो महिला शिकारियों के प्रतीत होते हैं तो वे या तो उनकी उपेक्षा कर देते हैं या फिर कोई व्याख्या नहीं कर पाते।” कुछ वैज्ञानिकों का यह भी मानना है कि शिकार के लिये अधिक सुदृढ़ शरीर वाले प्रौढ़ों की आवश्यकता पड़ती होगी ताकि शिकार अचूक और सुरक्षित ढंग से हो पाए। संभव है कि बच्चों को शान्त करके उनकी मांएं भी शिकार पर जाती हों। बच्चे होने के बाद भी उनकी देखभाल हेतु सामुदायिक सहयोग से महिलाओं का शिकार में भाग लेना संभव रहा होगा।

अमेरिका में पुरातात्विक खुदाई के दौरान शिकार हेतु प्रयुक्त पाषाण औजारों के साथ महिलाओं के जैविक अवशेष मिलने की रिपोर्ट प्रकाशित हुई है। इस प्रकार प्राप्त अवशेषों में कुछ ऐसे भी हैं जिनका जैविक लिंग निर्धारण नहीं हो पाया है। वैज्ञानिकों ने संदेह व्यक्त किया है कि प्राप्त मानव शरीर व औजार एक ही समय के न होकर अलग-अलग समयों पर गाड़े हुए हो सकते हैं। कुछ का यह भी मानना है कि संभवत: खुदाई में प्राप्त प्रक्षेप का प्रयोग किसी की जान लेने में किया गया हो, जिसे मारने के उपरान्त मृतक के शरीर के पास ही छोड़ दिया गया हो।

वृहत्तर आँकड़ों का अध्ययन करने पर यह पाया गया कि 429 में से जिन 27 अवशेषों का जैविक लिंग निर्धारण हो पाया उनमें से 11 महिलाएं थीं जबकि 16 पुरुष थे।

यह आवश्यक नहीं कि 9000 साल पूर्व दफनाई गई ये महिलाएं वास्तविक जीवन में शिकारी ही रही हों। किन्हीं धार्मिक विश्वासों के चलते भी ये सारा सामान और शिकार के औजार मृतकों के शरीर के साथ छोड़े गये हो सकते हैं। इन तमाम आशंकाओं के बीच स्र्टिलंग का कहना है कि ”यदि पुरुष शरीरों के पास शिकारियों के औजार मिलें तो हम इस प्रकार के प्रश्न नहीं पूछते। ऐसे प्रश्नों को तभी उठाया जाता है जब लिंग भेद की हमारी प्रचलित मान्यताओं को किसी प्रकर की चुनौती मिल रही हो।”

9000 वर्ष पूर्व दफन हुए ये औजार विभिन्न प्रकार के हैं, जिनमें एक ओर नुकीले प्रक्षेप हैं, जिन्हें कुशल कारीगरी से बनाया गया है जबकि कुछ पत्थरों के औजार साधारण चट्टानों को तोड़कर भी बन सकते हैं। इससे संकेत मिलता है कि ये औजार केवल मृत्यु के बाद कब्र में चढ़ाए गये न होकर दैनिक जीवन में प्रयुक्त किये जाते होंगे। गैलर का मानना है कि महिलाओं के शिकारी होने का यह विमर्श वर्तमान युग में प्रासंगिक है। वे कहते हैं कि यदि हमें यह मानना पड़े कि हमारी खोज में मिलने वाले मानव अवशेष जैविक महिलाओं के हैं तो हम उसे अस्वीकार करना चाहते हैं। यह एक खतरनाक तथ्य है।
prehistoric hunters

साभार/ nationalgeographic.com

5/11/2020
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