कविताएं

कहो चिड़िया
स्वाति मेलकानी

कहो चिड़िया
कब तक चहकोगी ?

जब धूप तेज होगी
तो
अपनी कोमल देह को
कैसे बचाओगी ?
देखो वह पेड़ झुलसता है।

जब कान के पर्दे
फूटते हों
शहर के शोर से
तो कैसे सुनाओगी
भोर का धीमा संगीत
(Poems of Swati Kamal and Maya)

कहो चिड़िया
जब बादल फटेगा
तो अपने भीगे पंखों को
कैसे सुखाओगी
समय के अंधेरे में।
तुम्हारी निर्दोष आंखें
कैसे देखेंगी
टकराती तलवारों को
बहते रक्त को
बच्चों की लाशों को
फैलती दुर्गंध को

कहो चिड़िया
अपनी लघुता को
कैसे प्रमाणित करोगी
इस संसार की
बढ़ती भव्यता में।
(Poems of Swati Kamal and Maya)

कहो चिड़िया
कहो तो़…….क
कहो तो मैं भी
तुम्हारे साथ
आकाश में
दूर तक उड़ चलूं
किसी ऐसे स्थान की खोज में
जहाँ
तुम्हारे और मेरे जैसे
अनदिखे जीवों का होना
अब भी अपेक्षित है
और जहाँ
हमारा सूक्ष्म अस्तित्व
अब भी
सहने योग्य है।

तुम और मैं
स्वाति मेलकानी

तुम
एक विशाल आकाश हो
बडे़ से बड़े
ग्रह और नक्षत्र भी
तुम में समाकर
ओझल हो जाते हैं
इसीलिए शायद
तुम रह पाते हो
तटस्थ
निष्पक्ष
और अक्षुण्ण …..
(Poems of Swati Kamal and Maya)

पर मैं,
निरंतर
अपने ही पैरों तले
पाताल की विभीषिका को
उद्घाटित करती
वह गतिशील धरती हूँ
जिसमें समाकर
सूक्ष्मतम बीज भी
अपनी जड़ें जमा लेता है।

मुझमें कुछ नहीं खोता
मैं एकत्र करती हूँ
स्वयं के भीतर
उन सुप्त खदानों
और मूक झरनों को
जो समय-असमय
तुम्हारे द्वारा
खोज लिये जाने को
प्रस्तुत रहते हैं।

इसीलिये
मैं पक्षधर हूँ
जीवन की
सुख और दु:ख की
हर्ष और विषाद की ……

मैं
तुम्हारी तरह
निर्लिप्त रहकर
विजयी मुस्कान धारण नहीं कर सकती।
मुझे
प्रेम और विरह
दोनों पर मान है
मैं भी जीवित हूँ वर्तमान में
किन्तु मुझमें
भूत अब तक प्राणवान है
(Poems of Swati Kamal and Maya)

दीवार में खिड़की
कमल कुमार

दीवार में खिड़की से
सुबह की सुनहली धूप
दुपहर का तपता सूरज
शाम का इंद्रधनुषी सूर्यास्त
सब दिखता था।
आकाश में गोलाकार उड़ते पक्षी
पक्षियों की चहचहाट
कोयल की कू-कू-ऽ
बारिश की टिप् टिप्
सुनती थी।
कोयल से पौधों में,
पौधों से उसरते पेड़
फैलती हरियाली
पत्तों की सरसराहट
घुमड़ते बरसते बादल
मिट्टी से उठती सोंधी गंध
मेरी सांसों में बसते थे।
बहु मंजिली इमारतों का झुण्ड
दीवारें उलांघ गया है
सुनहली किरणें, आकाश में इंद्रधनुष
बादलों का घिरना, बारिश की फुहार
पत्तों की सर सर हरियाली,
सब अदृश्य।
विकास का अंधेरा
एल.आई.जी. घरों में घुस आया है। 
(Poems of Swati Kamal and Maya)

अदालत
कमल कुमार

पितृ समाज की सुप्रीम अदालत में
दायर है मेरे विरुद्घ कई आपराधिक केस,
मेरे पक्ष में सभी याचिकाएं, खारिज़ कर दी गई हैं,
अपने मुकद्दमे की वकालत, मैं स्वयं ही करूंगी।
भ्रूण हत्या से बच गई थी,
लड़की के जन्म का अंधेरा था।
तो भी, पल-पुस पढ़-लिख गई,
आज मैं सवालों से घिरी हूं,
सवाल पूछे हैं –
सीता से, अहल्या से, गांधारी से,
अग्निपरीक्षा, गर्भावस्था में राज्य से निष्कासन,
अभिशाप कबूलकर प्रस्तर प्रतिमा बनना,
पतिव्रता बनकर आंखों पर पट्टी
तुम्हारी नियति हमारी क्यों हो ?
हमारे अन्तस का उजास,
भीतर की तर्क शक्ति,
‘अपने होने’ की आस्था खंडित क्यों हो !
हम रचेंगी एक नया इतिहास,
बनेंगी नई ताकत,
औरत के विरुद्घ, अन्याय के खिलाफ,
तर्कहीनता, व्यक्तिहीनता,
उनके शोषण और दमन के विरुद्ध
आज की ‘अस्तित्ववान’ औरत के पक्ष में।
(Poems of Swati Kamal and Maya)

हम औरतें
माया गोला

हम औरतें
अक्सर ही प्यार की तलाश में भटका करती हैं
और प्यार की तलाश के हमारे रास्ते चक्करदार सीढ़ियाँ साबित होते हैं
जो कभी मंजिल तक नहीं पहुँचते
हम औरतें
अक्सर ही चाहती हैं
एक ऐसा कंधा
जहाँ हम अपना सिर टिका लें
और दो बाँहों में बँध
वक्ष में छुप जाएँ
जब दु:खों से हम पिघल रही हों
परन्तु हम औरतों की तलाश
धुँए का बादल साबित होती हैं
जहाँ प्रेम का पानी नहीं मिलता
हाँ जिस्म के सौदागर
बहुतेरे मिलते हैं
और इस तरह
हम औरतें
अक्सर ही भटकती रहती हैं
प्यार की तलाश में
मरने से पहले
और मरने के बाद भी…
(Poems of Swati Kamal and Maya)
उत्तरा के फेसबुक पेज को लाइक करें : Uttara Mahila Patrika