कविताएं

कमल जोशी की कविताएं

उम्मीद

1.

सूरज दिखा रहा रास्ता
दे रहा पहाड़ को चुनौती
घाटियों से आ रही आवाजें
बुला रहे सीढ़ियों पर बैठे खेत
पेड़ की तरह थाम लो मिट्टी को
छा जाओ हवा की तरह
बाहें बढ़ाओ…
पकड़ लो उम्मीदों को
फिर बसा लो एक गाँव

2.

खेतों को नाज मिले
बैलों को सानी
जंगल को पेड़ मिलें
                नदिया को पानी
बिटिया को प्यार मिले
बेटे को काज
तवे को रोटी मिले
                चूल्हे को आग
बटिया को राही मिले
                प्यासे को कुंवा
बच्चों को खेल मिलें
                चिमनी को धुवां
सागर भी नीला रहे
                पर्वत हों धानी
ऐसा हो साल नया
                जिसके हों मानी…

दिल कहे

दिल कहे आऊँ मैं
तुमको ले जाऊँ मैं
खुशियों की नाव में
छोटे से गाँव में
पेड़ों की छाँव में
छोटी सी क्यारी हो
जहाँ बछिया दुलारी हो
बिटिया के होंठों पर
हँसी इक प्यारी हो।
छप्पर पर बेल हो
बीजों में तेल हो
पसीने का दाम मिले
हर घर में खेल हो।
हर इक का मान हो
दिल में अरमान हो
औरत के हक का
जहाँ सबको ही भान हो
होली का फाग हो
गीतों में आग हो
अपने पराये का
ना कोई राग हो।
छोटे से गाँव में
पेड़ों की छाँव में
सब के ही साथ रहें
अपनी ही छाँव में।
(Poems of K joshi, S Pundir & H pathak)

पानी, हवा, आग

पानी
होता है बहुत पतला,
फिर भी काट देता है चट्टानें
हवा
हल्की होती है,
गिरा देती है भारी इमारतें भी
छोटी होती है बहुर्त चिंगारी
जला देती है मगर जंगलों को भी
पानी बनो
हवा बनो
और बनो आग
काट डालो रूढ़ियाँ
गिरा दो नफरत की दीवार,
और कर दो भस्म सपने लूटने वालों को।

लिखो बेटी

लिखने के लिए जरूरी नहीं
कलम और कागज
तुम लिख सकती हो
कील से खुरच कर
दीवार पर भी।
उंगली से लिखो मिट्टी में
बारिश चाहे कितनी ही बार धोए
तुम लिखना बार-बार
तुम पढ़ रही हो
जिन्दगी की किताब,
प्रश्न तुम्हें पूछने हैं
और उत्तर भी तुम्हें ही लिखने हैं।
लिखो बेटी
कलम न सही
ढूंढो एक कील
समय की खुरदुरी दीवार पर लिखने के
लिए
अपने सवाल
और जवाब भी।
और हो सके तो लिख डालो
कुछ तराने भी…!

कुछ कविताएं कमल दा के लिए

सुरेन्द्र पुण्डीर

एक

आयने-
सिर्फ  देखने के लिए
नहीं होते
होते हैं-
भीतर के अट्टहास को
पहिचानने के लिए।

दो

बादल-
तुम बता देना
बरसने से पहिले
अपने घर का पता
ताकि मैं
दर्ज करा सकूं
तुम्हारे खिलाफ
एक एफ.आई. आर।
(Poems of K joshi, S Pundir & H pathak)

तीन

जाना ही था
बता देते मुझे
क्यूं
टांकती मैं
जूडे़ में गुलमोहर।

चार

अजीब से वक्त में
सोकर उठा हूँ आज
न गुस्सा है
किसी के खिलाफ
न कोई तन्हाई है
तुम्हारे लिए
बस, एक अजीब सी
सिहरन बस गई है
मेरे भीतर।

पाँच

चुनो तो सही
एक रास्ता
इन सब से अलग रहने का
जिसमें
न खामोशी है
न कोई हलचल
न उदासी
बस-
बेचैनी को बांधने का
एक नया नायाब तरीका।

छह

बहती नदी की तरह
थक- सा गया हूँ मैं
चाहता हूँ
एक लम्बा आराम
सांसों से परे रहकर
सीखना चाहता हूं जीना।
(Poems of K joshi, S Pundir & H pathak)

अस्कोट-आराकोट यात्रा और कमल दा

हरीश पाठक

कमल दा!
क्या जल्दी थी?
क्यों किया आपने ऐसा?
प्रस्थान करने की
अभी तो आपके पास
बहुत खजाना पड़ा था
आपके मन में, कैमरे में
देखो,
आज कैमरा और फेसबुक भी उदास हैं
खैर,
उस खूंटे, सीढ़ी, रस्सी
और
स्वयं आपको ही पता होगा
क्यों किया आपने ऐसा?
मैं तो आपके साथ बिताये
अआअ 2014 की यात्रा की बात कर रहा हूं
सफेद दाड़ी
उजले मुंह में चश्मा
गोल टोपी
गले में लटका कैमरा
हाफ जैकेट
हाथ में लाठी
पीठ में छोटा पिट्ठू
उस पर लटका छोटा
स्लिीपिंग बैग
और
आपके वे सदाबहार जूते
बिर्थी से चल पड़े
रुग्वेरू धार की ओर
बहुत कठिन चढ़ाई है
इस चढ़ाई में आपके पूर्व यात्रा अनुभव सुनते-सुनते
हंसी-गपशप करते
पहुंच गये सब रुग्वेरू
आनन्द आ गया
(Poems of K joshi, S Pundir & H pathak)
जब
रुग्वेरू की मखमली घास में
लेट गये हम सब
वहीं मिली आपको
इण्टर में प्रथम आई लड़की
सिर में बोझा लिये
कैमरे में आपने कैद किया उसे
फिर उससे बतियाते रहे आप
ऐसे अवसर आप छोड़ते नहीं
फिर यकायक आप जोर से बोले
उठो रे चलो, आज नामिक पहुंचना है
नामिक पहुँचते-पहुँचते
थक गये, भीग गये
लेकिन बुलन्द था हौसला
और आप सभा में बोलते रहे
प्रात: हुए शम्भू पर्वत के दर्शन
नीचे शम्भू गाड़ का शोर
बिल्कुल हमारे सामने बर्फ से ढका
धूप में सुनहरा दिखता
आपने कैमरे में क्लिक किया
बोले, करो रे जल्दी भोजन
मास्साब ने बनाया है
तो बिना भोजन किये कैसे चलोगे
फटाफट करो, कहां है पण्डित
बुलाओ उसे
आज यात्रा कठिन है-
कीमू होते हुए
लाहुर जाना है
दो दिन की यात्रा एक दिन में होनी है
सबकी चिन्ता थी आपको
रात्रि बारह बजे लाहुर पहुंचते-पहुंचते
हम सभी थक चुके थे
आपको कुछ पुराने साथी मिल गये
हमेशा की तरह गप-शप करते
खिचड़ी खाकर सब सो गये
प्रात: निकल पड़े गांव को
खिड़की में हुक्का गुड़गुड़ाती
आमा और नाती का फोटो लेना
नहीं भूले आप
(Poems of K joshi, S Pundir & H pathak)
और
खेत में रस्सी के सहारे
दनेला खींचती दो महिलाएं भी
आपने डाल दी कैमरे में
चल पड़े फिर सब कर्मी को
कर्मी में रात अच्छी बीती
सुबह  स्कूल में
कम्र्याल जी को कैसे सुन रहे थे आप
जब वे जनसंख्या और जन्म-मृत्यु के बारे में बता रहे थे
आपने कुछ सवाल-जवाब किये
फिर उनकी एक बात पर
जोर का ठहाका लगाया
अगला पड़ाव
पिण्डर नदी पार कर
बदिया कोट
यहां रात काटी स्कूल में
सुबह सभा हुई, फिर आगे प्रस्थान
अगली यात्रा में
साथ नहीं रहे हम
आप समदर
हम भरड़काण्डे
अलग-अलग रास्ते बन गये
फिर घेस में ही हुई मुलाकात
यहां से आपने  विराम लिया यात्रा में
कुछ दिन का
आप थक गये थे
दवा भी खत्म हो गयी थी
सांस की तकलीफ के बाद भी
आपने बहुत धारें पार की
आपकी हंसी, हल्ला-शोर
और अनुभव
सदा याद रहेगा।
बीच-बीच में
आपका ये कहना
पै, हां, कौ गूंजता रहेगा़…..
हमारे आसपास
अगली यात्राओं में भी।
(Poems of K joshi, S Pundir & H pathak)

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