कविताएँ

सागर
जयमाला देवलाल

1

इतनी नदियों की चंचलता
इतना  असीमित जल,
न कोई विषाद
न कोई हलचल़…
कितना कुछ अपने अन्दर छुपा लिया है
फिर भी शान्त, सुन्दर और विराट़….
सागर तुम कितने महान हो।
तभी तो सूरज भी आ रहा है
झुक झुक कर तुमसे मिलने
और तुममें अपनी परछाई देख
बादल  भी मचल रहे हैं और सूरज भी।

2

तुम्हारी असीम गहराई
विस्तृत फैलाव
शान्त स्वभाव
हे उदधि!
क्या खारा होने के पीछे रहस्य है कोई?
कहीं ये तो नहीं कि
अगर मीठे हो जाओगे तो
पी लेगी ये दुनिया तुम्हें भी।
(Poems of Jaymala, Krishnachnadra and K kumar)

3

तुम्हारा बार-बार आना
अपने किनारों को गले लगाना
फिर लौट जाना,
फिर आना और जाना।
ये देखकर पहाड़ मायूस हो गए
कि इतने ऊँचे होकर भी
नहीं लगा पाते वे आसमान को गले।

4

सागर को देख
दिल सागर सा हो गया।
मचलते अरमान लौट गए
आँखों तक आते आते लहरों की तरह।
यादों को छिपा दिया गहराई में
सीपी के भीतर मोती की तरह।
कुछ नमीं जो निकल आई
जुबान को खारा सा लगा पानी की तरह।
बहुत उथल पुथल फिर भी शान्त
दिल सागर सा हो गया।

5

नदी अपनी सारी मिठास लिए
पहाड़ छोड़कर चली सागर से मिलने।
हर रुकावट से जूझती
राह बनाती, मचलती डोलती
लम्बा सफर तय करती
कि सागर का खारापन दूर कर देगी।
पर सागर से मिली तो
खुद खारी हो गयी।
अपना नाम तक भूल गयी
वो भी सागर बन गयी।
(Poems of Jaymala, Krishnachnadra and K kumar)

क्यों
कृष्णचन्द्र मिश्रा

जब मुझे बनाते वक्त
तुझे खुशी होती है
तो क्या ?
तब तेरा दिल नहीं दु:खता
मेरे जन्म के वक्त
देखकर
लटका दादी का मुख
दादा के चेहरे पर शिकन
पापा की बजट की चिंता
माँ की फिर वही बासी सी उबकाई
फिर बेटी हुई है …..
मुस्कुरा नहीं सकते
न वे खुशी मना सकते हैं।
मुझे जन्म देने वाले
क्योंकि
कसूर सिर्फ मेरा…..
मैं बिटिया बनकर जन्मी
कमी थी
बचपन में प्यार की
दुलार की, आहार की, संस्कार की
क्योंकि में बेटी थी…..
कभी माँ ने कहा-
(Poems of Jaymala, Krishnachnadra and K kumar)
तुम लड़की हो
कभी पापा ने
कभी भाई ने दिलाया एहसास
कि महसूस करो अपनी कमजोरी को
जो न थी मेरी
कोई हक ना था मेरा
घर की चीजों पर
क्योंकि जाना था मुझे
ससुराल
न यह घर मेरा था
न दूसरा हो सका
क्योंकि जानती हूँ
कि
कितना अधिकार मिला है
माँ को
ममता के नाम पर….
सास के ताने
बेटों की उपेक्षा
पति की आकांक्षा
और
बेटी की सहानुभूति
के सिवा…..
पता नहीं मुझे परिवार किसे कहते हैं
फिर भी  मुझसे अपेक्षा की जाती है
एक परिवार को चलाने की
कल के लिए
जो कल किसी ने देखा ही नहीं
उम्मीद करूँ भी तो क्या
पति से…..
उसकी झलक भी मिल जाती है कभी-कभी
(Poems of Jaymala, Krishnachnadra and K kumar)
पापा के व्यवहार में…..
क्या स्त्री विमर्श
केवल हम पर लिखने का नाम है ?
मैं तो यह समझ नहीं पाती कि
ये
स्त्री कौन है ।
कल फिर जन्मेगा कोई मुझसे भी
भाई जैसा गर्वीला
पापा जैसा घमंडी
दादा जैसा जिद्दी
और
पति जैसा पापी……
फिर उस दिन
प्रश्नचिन्ह लगेगा
मेरी
या तेरी
सत्ता पर
ईश्वर
(Poems of Jaymala, Krishnachnadra and K kumar)

अदालत
कमल कुमार

पितृ समाज की सुप्रीम अदालत में
दायर है मेरे विरुद्घ, कई आपराधिक केस,
मेरे पक्ष में सभी याचिकाएं, खारिज़ कर दी गई हैं,
अपने मुकद्दमें की वकालत, मैं स्वयं ही करूंगी।
भ्रूण हत्या से बच गई थी,
लड़की के जन्म का अंधेरा था।
तो भी, पल-पुस पढ़-लिख गई,
आज मैं सवालों से घिरी हूँ,
सवाल पूछे हैं –
(Poems of Jaymala, Krishnachnadra and K kumar)
सीता से, अहल्या से, गांधारी से,
अग्निपरीक्षा, गर्भावस्था में राज्य से निष्कासन,
अभिशाप कबूलकर प्रस्तर प्रतिमा बनना,
पतिव्रता बनकर आंखों पर पट्टी,
तुम्हारी नियति हमारी क्यों हो ?
हमारे अन्तस का उजास,
भीतर की तर्क शक्ति,
‘अपने होने’ की आस्था खंडित क्यों हो !
हम रचेंगी एक नया इतिहास,
सोशल मीडिया पर होंगी एकजुट,
बनेंगी नई ताकत,
औरत के विरुद्ध, अन्याय के खिलाफ,
तर्कहीनता, व्यक्तिहीनता,
उनके शोषण और दमन के विरुद्घ
आज की ‘अस्तित्ववान’
औरत के पक्ष में।
(Poems of Jaymala, Krishnachnadra and K kumar)

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