प्लेटो : सार्वजनिक जीवन में स्त्री-प्रवेश

जया पाण्डे

प्लेटो ईसा पू. (428 ई.सा.-347 ई.पू. तक) तीसरी-चौथी सदी का यूनानी विचारक है। प्लेटो सुकरात का शिष्य था और प्लेटो का शिष्य था अरस्तू। सुकरात की मृत्यु का उस पर बहुत प्रभाव था। इस घटना ने उसकी दिशा बदल दी। उसने राजनीतिक जीवन में प्रवेश की बजाय चिन्तन की दुनिया में अपना जीवन लगा दिया। राजनीतिक सिद्धान्त के माध्यम से उसने अपने समय की राजनीतिक परिस्थितियों को बदल डालने का जिम्मा उठाया। अपने इसी चिन्तन के क्रम में उसने कई क्रान्तिकारी विचार दिए। प्लेटो एक मौलिक चिन्तक है, उसके विचार क्रान्तिकारी थे। वह व्यवस्था परिवर्तन का हिमायती है जबकि उसका शिष्य अरस्तू रूढ़िवादी। स्त्रियों के सम्बन्ध में उसके विचार अपने समय की स्त्रियों की स्थिति से बिल्कुल भिन्न हैं। प्लेटो व्यक्ति की स्वतंत्रता का हिमायती नहीं है लेकिन अगर स्वतंत्रता नहीं है तो स्त्री-पुरुष दोनों के लिए नहीं है। दोनों को ही राज्य के लिए अपना जीवन समर्पित करना है। स्त्री-पुरुष सम्बन्धों में यह यूनानी विचारक आधुनिक विचारों से भिन्न था। उस समय यूनानी सार्वजनिक जीवन पुरुष प्रधान था। बाजार, सभा और व्यायामशालाओं में पुरुष ही आपस में मिला करते थे। स्त्रियाँ घरों के भीतर रहती थीं और घर-गृहस्थी में काम करती थीं। उनका विवाह 15 साल की उम्र में हो जाया करता था। पति के अतिरिक्त वे किसी पुरुष को नहीं देख पाती थीं। विवाह राज्य की सेवा के लिए वैध संतान उत्पन्न करने का साधन मात्र माना जाता था और पत्नी उसका माध्यम। प्लेटो इस परम्परागत धारणा को स्वीकार कर लेता है कि विवाह बच्चे पैदा करने के लिए स्त्री-पुरुष का संयोग है पर वह यह नहीं मानता कि विवाह किसी तरह का धार्मिक संस्कार है या यह कि परिवार से किसी पवित्र अंतरंग समाज का जन्म होता है। दूसरी ओर वह स्त्रियों को अलग परदे में रखने की यूनानी प्रथा का विरोध करता है और चाहता है कि वे भी राज्य के मुक्त जीवन में उतरें और उसके सारे अधिकारों और कर्तव्यों में पूरा भाग लें।

यद्यपि प्लेटो का उद्देश्य राजनीतिक जीवन के सुधार से है परन्तु इस सुधार में वह स्त्रियों की भूमिका सुनिश्चित करता है, यह महत्वपूर्ण है।

प्लेटो की दृष्टि में शासन कार्य महत्वपूर्ण है इसलिए ज्ञानवानों को ही शासन का अधिकार होना चाहिए। राज्य के तीन वर्ग हैं- शासक वर्ग, सैनिक वर्ग और उत्पादक वर्ग। शासक वर्ग ज्ञान का, सैनिक वर्ग साहस का और उत्पादक वर्ग इन्द्रिय तृष्णा का प्रतीक है। शासक किस प्रकार ज्ञानवान बनेंगे या विवेक अर्जन करेंगे, इसके लिए वह जीवन पर्यन्त चलने वाली राज्य द्वारा नियंत्रित शिक्षा प्रणाली की बात करता है। शिक्षा के सम्बन्ध में यह महत्वपूर्ण तथ्य है कि वह स्त्री-पुरुष दोनों के लिए शिक्षा की व्यवस्था करता है। प्लेटो का विचार इस दृष्टि से तो संकीर्ण है कि वह उत्पादक वर्ग के लिए शिक्षा की व्यवस्था नहीं करता परन्तु इस दृष्टि से अपने युग में एक क्रान्तिकारी कदम कहा जा सकता है कि वह स्त्री-पुरुष दोनों के लिए शिक्षा की व्यवस्था करता है। क्योंकि उसके समय में स्त्रियों की दशा अच्छी नहीं थी और उसके शिष्य अरस्तू ने तो स्त्रियों को घर तक सीमित कर दिया। स्त्रियों को दासों की श्रेणी में रखा और उन्हें नागरिकता से भी वंचित कर दिया।  इसके विपरीत प्लेटो स्त्रियों को सार्वजनिक जीवन में लाना चाहता है। उसके अनुसार जिस तरह पुरुष शासक वर्ग, सैनिक वर्ग और उत्पादक वर्ग का निर्माण करेंगे, उसी प्रकार स्त्रियाँ भी शासक वर्ग, सैनिक वर्ग और उत्पादक वर्ग का निर्माण करेंगी। इसलिए शासक वर्ग और सैनिक वर्ग में आने वाली स्त्रियों के लिए भी राज्य शिक्षा की व्यवस्था करेगा।

प्लेटो मानता है कि स्त्री-पुरुष जैविक दृष्टि से भिन्न हैं लेकिन जैविक दृष्टि से भिन्न होने का मतलब यह नहीं है कि वे पुरुष से अन्य किसी दृष्टि से कमतर हैं। स्त्री-स्त्री में अन्तर हो सकता है और यह पुरुष-पुरुष के बीच भी है। कोई स्त्री अधिक बुद्धिमान है कोई नहीं, यह अन्तर पुरुष-पुरुष के बीच भी होता है।
(Plato: Women’s entry into public life)

प्लेटो यह नहीं मानता कि स्त्री-पुरुष में कोई भेद है। नारी पुरुष से केवल एक बात में भिन्न है- वह जननी है और सारी बातों में वह पुरुष जैसी है। उसमें वही क्षमताएँ होती हैं जैसी पुरुष में होती है। पर उसमें शक्ति नहीं होती। प्लेटो की दलील है कि किसी एक बात में भेद हो तो उसे और बातों में भेद का आधार बना लेना मूर्खता है। स्त्रियों की प्रकृति में ऐसा कोई भेद नहीं है जो राजनीतिक जीवन में उनके योगदान में असर डाले।

शिक्षा का असर प्रभावी रहे, इसके लिए प्लेटो परिवार व सम्पत्ति के साम्यवाद की व्यवस्था करता है। इसका मतलब है, शासक व सैनिक वर्ग के स्त्री-पुरुष न तो सम्पत्ति रखेंगे, न ही परिवार। व्यक्तिगत सम्पत्ति व परिवार दोनों ही व्यक्ति में मेरे-तेरे की भावना पैदा करते हैं और यह शासक और जन-सेवा के बीच बाधा बनती है। परिवार संस्था की समाप्ति के पीछे प्लेटो का उद्देश्य स्त्रियों की दशा में सुधार से भी सम्बद्ध है। परिवार स्त्रियों को घर की चहारदीवारी तक सीमित रखता है और स्त्रियों की क्षमता चौके-चूल्हे में ही बर्बाद हो जाती है।  यह प्लेटो का कथन है। उसका विचार था कि स्त्रियों को घर की चहारदीवारी के भीतर रखने का परिणाम सिर्फ यही नहीं होता कि उनका विकास रुक जाता है बल्कि यह भी होता है कि राज्य अपने आधे सदस्यों की सेवा से हाथ धो बैठता है। पुरुष तो बहुमुखी प्रतिभा के आदर्श की सिद्धि में लगे रहते हैं जबकि स्त्रियों का कार्य समाज और गृहस्थी तक सीमित हो जाता है।  इसी बात से प्लेटो की गहरी अन्तर्दृष्टि दिखायी देती है। सार्वजनिक जीवन में कम प्रवेश से कैसे स्त्रियों का विकास रुकता है, यह अभी तक हमारे नीति नियन्ता नहीं जानते हैं। प्लेटो को संज्ञान है कि आधी आबादी का सार्वजनिक जीवन में प्रवेश न होने से राज्य को उनका लाभ नहीं मिल पाता। ईसा पूर्व तीसरी-चौथी सदी में यह कहना कि स्त्रियों की योग्यता का लाभ समाज को मिलना चाहिए, यह बिन्दु हमारे सुधारकों को बहुत बाद में समझ में आया।   

सम्पत्ति व परिवार के साम्यवाद के संदर्भ में सन्तानोत्पत्ति को पशु जगत से जोड़ते हुए प्लेटो कहता है कि अच्छी नस्ल के पुरुषों का अच्छी नस्ल की स्त्रियों से संसर्ग होना चाहिए ताकि राज्य के हित में सच्चरित्र नागरिक पैदा हो सकें। पैदा होने के पश्चात राज्य ही इन नागरिकों के भरण-पोषण का दायित्व लेंगे। माता-पिता अपनी सन्तान को पहचान तक न सकेंगे। यह अवैज्ञानिक तर्क माता को अपनी सन्तान से दूर करना एक अस्वाभाविक उपाय है पर इसके पीछे भी उद्देश्य यह है कि स्त्रियाँ पारिवारिक दायित्वों से मुक्त होकर सार्वजनिक जीवन में भाग ले सकेंगी। आज के भारत में भी जब सार्वजनिक जीवन में भारतीय महिलाएँ पदार्पण कर रही हैं तब भी घर के प्रबन्ध का दायित्व उनके ही हाथों में है। यह बात दीगर है कि उन्होंने साबित कर दिया है कि वे घर और बाहर दोनों ही सम्भाल सकती हैं। पर इस दोहरे दायित्व की चिन्ता से वे अधिक तनावग्रस्त हो गई हैं। जिसके असर का अध्ययन नहीं किया जा रहा है।

प्लेटो के विचारों से हम पूर्णतया सहमत तो नहीं हो सकते परन्तु स्त्री-महत्ता स्थापित करने की दृष्टि से उसके दो विचार स्त्री-विमर्श के लिए मार्गदर्शीय अवश्य रहेंगे- 1. स्त्रियों का सार्वजनिक जीवन में प्रवेश समाज और स्त्री दोनों के लिए लाभकारी है तथा 2. पुरुष की तुलना में शारीरिक शक्ति कम होने के कारण यह मान लेना कि स्त्री पुरुष से कमतर है, गलत है।

प्लेटो के ये  दो विचार उस युग के विचार हैं जब स्त्रियों को घर की चहारदीवारी तक सीमित रखा जाता था।
(Plato: Women’s entry into public life)
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