हमारी दुनिया

News from the world of women
प्रशासनिक पदों पर महिलाएँ

असम के नलबाड़ी जिले में एक अलग ही इतिहास बन रहा है। यहाँ पहली बार नगर-प्रशासन, पुलिस और न्यायपालिका समेत कई महत्वपूर्ण प्रशासनिक पदों पर महिलाएँ नेतृत्व में हैं। स्कूल निरीक्षक, खाद्य, सामाजिक कल्याण और सूचनाधिकारी सहित दो दर्जन पदों पर महिलाएँ हैं। इनमें हाल ही में पूरबी कुँवर ने डिप्टी कमिश्नर का पद सम्भाला है। एस.पी. अमनजीत कौर, जिला परिषद की मुख्य कार्यकारी अधिकारी व जिला विकास कमिश्नर कृष्णा बरुआ, डिस्ट्रिक्ट एण्ड सेशन जज र्शिमला भुयान, असिस्टेंट सेशन जज हेमाक्षी ठाकुरिया बुरागोहिन, एडिशनल चीफ ज्यूडिशियल सबरीना भट्टाचार्य, ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट स्मृति रेखा भुयान और मुंशिफ रूबीना यास्मीन ने अपने-अपने क्षेत्र में मिसाल कायम की है। इसके अतिरिक्त जिले में चार रेवेन्यू महिला अधिकारी भी हैं। इनमें नलबाड़ी सदर में वनश्री डेका, घाघरापाड़ा में नन्दिता हजारिका, बानेकूची में शिल्पिका कलिता और बोर भाग में रितुपर्णा भद्रा राजस्व अधिकारी हैं। इन महिलाओं ने महिला सशक्तीकरण के उदाहरण के साथ ही इतिहास रचा। (News from the world of women)

डॉ. मंगला की कोरोना संजीवनी

भारतीय मूल की अमेरिकी चिकित्सक डॉ. मंगला लॉन्ग आईलैण्ड के ज्यूशि अस्पताल में साँसों से सम्बन्धित बीमारी की डॉक्टर हैं। उन्होंने इस कोरोना काल में कोरोना के मरीजों के इलाज का एक नया तरीका निकाला है, जो संजीवनी से कम नहीं है। उन्होंने कोरोना से पीड़ित एक व्यक्ति को उल्टा लिटाकर साँस लेने के लिए कहा और वह अधिक साँस ले पाया जिससे उसकी जिन्दगी बच गयी। उनके इस काम की तारीफ सोशल मीडिया पर भी हुई है और कई अन्य अस्पताल भी उनके इस तरीके को कोरोना के मरीजों के इलाज में अपना रहे हैं। इस तरह से साँस लेने से रक्त में ऑक्सीजन जाने की मात्रा 98 प्रतिशत तक बढ़ जाती है, जो मरीज रोज 16 घंटों तक वेंटिलेटर पर रहते थे, उनको पेट के बल लिटाने से लाभ मिला है। इसके बाद डॉ. मंगला का यह तरीका कई मरीजों की जिन्दगी बचाने में संजीवनी का काम कर रहा है।

कोरोना पीड़ितों को देवकी देवी का महादान

अपनी विरासत में मिली समाजसेवा से प्रेरित होकर गोपेश्वर के गौचर की रहने वाली देवकी देवी ने अपनी कुल जमा पूँजी व पति की पेंशन पीड़ितों के लिए प्रधानमंत्री राहत कोश में दान दे दी। वे रेशम विभाग में कार्यरत पति हुकुम सिंह व पिता स्व. अवतार् सिंह को अपनी अपनी प्रेरणा का स्रोत मानती हैं। उन्होंने दस लाख रुपये की धनराशि दान की। उनके इस काम की क्षेत्र के लोगों ने प्रशंसा की है। कोटा की सौ वर्षीय महिला लीलावती जैन ने भी अपने जीवनभर की पूँजी एक लाख छ: हजार रुपये प्रधानमंत्री राहत कोष में दान की है। वे अपने हाथ से दान करना चाहती थीं। उनकी इच्छा के लिए ए.डी.एम. सिटी, आर.डी. मीणा और सूचना जनसम्पर्क विभाग के उपनिदेशक हरिओम गुर्जर ने उनके आवास पर जाकर उनसे चैक प्राप्त किया।

कोरोना पीड़ितों के चेहरे पर मुस्कान बिखेरती हिता

15 वर्षीय हिता भारतीय मूल की युवती है, जो वाशिंगटन के पेन्सिलवेनिया के कोन्सटोगा हाईस्कूल में दसवीं की छात्रा है। कोरोना के कारण प्रतिबंध के चलते अस्पतालों में अलग-थलग पड़ गये बुजुर्गों के अकेलेपन को दूर करने व उनके चेहरे पर मुस्कान लाने के लिए हिता ने अनोखे प्रयोग किये हैं। वे बुजुर्गों को प्रेरणादायक खत, ड्राइंग बुक, रंग और पहेलियों से भरे तोहफे भेज रही है। उसका मकसद अस्पतालों में रह रहे बुजुर्गों के चेहरे पर मुस्कान लाकर उनके अवसाद को कम करना है। कोरोना के प्रतिबंधों के कारण वे अपने प्रियजनों से नहीं मिल सकते हैं। सामाजिक दूरी के कारण वे अपने कमरों से बाहर भी नहीं निकल सकते हैं तो समझा जा सकता है कि हिता का यह काम उन बुजुर्गों की जिन्दगी में कितनी उम्मीद जगाता है। हिता अपने कुछ दोस्तों के साथ मिलकर ब्राइटनिंग ए डेनाम का एक एनजीओ चलाती है।

महिला समूहों ने बनाए मास्क

लॉकडाउन में प्रदेश की महिला स्वयं सहायता समूहों से जुड़ी महिलाओं के रोजगार भी बन्द हो गए हैं। देहरादून की असहाय जनकल्याण सेवा समिति के सदस्यों ने इस संकट में भी अपने रोजगार के रास्ते ढूँढे हैं जिससे न केवल उनकी आर्कथिक स्थिति ठीक रहेगी बल्कि इस संकट में सरकार को भी सहयोग मिलेगा। इस समूह की महिलाओं ने मास्क बनाने का काम शुरू किया है। वे संक्रमण रोकने के लिए डबल लेयरमास्क का निर्माण कर रही हैं। इन मास्कों से महिलाओं की कमाई तो होगी ही साथ ही जरूरतमंदों को भी मुफ्त में मास्क उपलब्ध कराये जायेंगे। समूह की महिलाओं ने मास्क की कीमत भी कम रखी है।

जरूरतमंदों की आस डॉली

पचास वर्षों तक शिक्षा क्षेत्रों में अपनी सेवाएँ देने वाली डॉली संसाधन विहीन छात्राओं की आस बन रही है। वे इस काम में बिना किसी प्रचार के कई वर्षों से जुड़ी हुुई हैं। उन्होंने अपने घर के एक हिस्से को उन लड़कियों के लिए रखा है, जो उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए शहर आने में असमर्थ थीं क्योंकि उनकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। अब वे डॉली के घर में रहकर अपने सपनों को पूरा कर रही हैं। शिक्षा के क्षेत्र में रहते हुए भी डॉली ने अपनी कमाई का पचास प्रतिशत हमेशा आर्थिक रूप से कमजोर बच्चों की फीस, पुस्तक और कपड़ों के लिए दिया है। डॉली सरोजिनी नगर दिल्ली में प्रधानाचार्य के पद पर कार्यरत रहीं। जहाँ 14 वर्ष तक वे उन बच्चों की फीस देती रही जो र्आिथक रूप से कमजोर थे। 42 सालों से वे पुस्तक, कहानी और कविताएँ लिखने का भी काम कर रही हैं। वे कई सामाजिक संगठनों से भी जुड़ी हैं। साईं कॉलेज ऑफ पेरामेडिकल में निदेशक पद पर कार्य करने के दौरान तीन वर्ष तक उन्होंने वेतन नहीं लिया।

ड्राइविंग में महिलाएँ बेहतर

जर्नल इंजरी प्रिवेंशन में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार पुरुषों की तुलना में महिलाएँ गाड़ी चलाने में ज्यादा बेहतर होती हैं क्योंकि पुरुष खतरनाक तरीके से ड्राइविंग कर अपने साथ दूसरों की जान को भी खतरे में डालते हैं। शोधकर्ता के अनुसार यदि महिलाओं को ड्राइविंग के काम पर रखा जाय तो सड़कें काफी सुरक्षित होंगी। इस शोध के लिए चार बातों पर ध्यान केन्द्रित किया गया। जिसमें 2005 से 2015 के बीच चोट और यातायात के आँकड़े, यात्रा सर्वेक्षण के आँकड़े और जनसंख्या व लिंग के आँकड़े शामिल थे। जिसका निष्कर्ष यही निकला कि कार, वैन चलाने वाले पुरुषों को महिलाओं की तुलना में ज्यादा खतरा था। पुरुष ट्रक ड्राइवर के लिए जोखिम चार गुना, मोटरसाइकिल सवारों को दस गुना अधिक खतरा था। शोधकर्ता ने सुझाव दिया कि ड्राइविंग के पेशे में लैंगिक समानता पर विचार किया जाना चाहिए, जिससे वाहन से होने वाली दुर्घटनाओं में कमी आयेगी।

इंसानियत की बुनियाद

खाना इंसान की बुनियादी जरूरत है और यह भी यदि लोगों को न मिले तो इससे बदतर जिन्दगी क्या हो सकती है। एक माँ को अपने बच्चे सिर्फ इसलिए कत्ल करने पड़े कि वह उनको भूख से बिलखता नहीं देख सकी। इन सब हालातों को देखकर परवीन खातून इतनी दुखी हुई कि उन्होंने अपनी जिन्दगी से कुछ वादा कर लिया और वह वादा आज खानाघरके रूप में गरीब, असहाय लोगों के लिए किसी खुदा के घर से कम नहीं है। परवीन खातून का जन्म कराची के एक सम्पन्न खानदान में हुआ था। चार दशक पहले उन्होंने पत्रकारिता की पढ़ाई की। पी.इ.सी.एच.एस. कॉलेज से बी.ए. और कराची विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में एम.ए. की डिग्री हासिल की। उस वक्त इस विषय में पाकिस्तान में सोचना भी हिमाकत से कम न था। विवाह के बाद उनकी पत्रकारिता छूट गई परन्तु शौहर के रूप में डहें एक नेकदिल साथी मिला। चार-पाँच लोगों से शुरू करके आज खानाघर 3500 लोगों का पेट भरता है। पहले वह खुद के खर्च पर इसे चलाती थीं परन्तु लोगों की जरूरत बढ़ने पर उन्होंने रिश्तेदारों, दोस्तों से मदद लेनी शुरू की। 2009 में खानाघर की दूसरी ब्रांच खोली। कराची में छ: केन्द्रों पर यहाँ से पैक खाना भी भेजा जाता है।

खेती के लिए वैज्ञानिक भगवती

आम तौर पर कृषि कार्यों में पुरुषों का नाम अनायास जुड़ जाता है चाहे कृषि का अधिकतर काम महिलाओं के हिस्से आता है लेकिन राजस्थान के गाँव दांतारामगढ़ की भगवती देवी ने बदलते जमाने में यह मिथक भी तोड़ा है। भगवती देवी ने दीमकों से फसलों को बचाने के लिए एक अनोखा तरीका खोज निकाला। 2004 में उन्होंने देखा कि दीमक यूकेलिप्टस की लकड़ी को बड़े चाव से खा रहे हैं। तब दीमकों से  फसल को बड़ी मात्रा में नष्ट करने की समस्या थी। अचानक उनको विचार आया कि यदि फसलों के बीच में यह लकड़ी रख दी जाय तो फसल बर्बाद होने से बच जायेगी। उनका यह विचार काम आया और वाकई फसलों को उस बार दीमक ने न्यून मात्रा में नुकसान पहुँचाया। उनके खुद के इस अजीबोगरीब तरीके को खेत वैज्ञानिक सम्मानऔर 50 हजार रुपये के कृषि प्रेरणा सम्मानसे नवाजा गया। इन सम्मानों के अतिरिक्त वह भारत के अलावा विदेशी पाठ्यक्रम में भी आ चुकी हैं।

प्रस्तुति : पुष्पा गैड़ा