महिलाओं के लिए राष्ट्रीय नीति

इन्दु पाठक

आधी कही जाने वाली आबादी अर्थात ‘महिला’, प्रभाव व भागीदारी दोनों ही दृष्टि से सम्भवत: कभी भी उतनी शक्तिशाली नहीं रही हैं जितना कि उन्हें अपनी संख्या के अनुपात में होना चाहिए था। अनेक प्रकार की विषमताएँ व वंचनाएँ आज भी उसके हिस्से में दिखाई देती हैं। पितृसत्तात्मक व्यवस्था इस या उस बहाने उसे कमतरी का अहसास कराती रहती है। तो भी स्थितियाँ धीरे-धीरे बदल रही हैं। अपनी वंचनाओं/विषमताओं को स्वाभाविक रूप से स्वीकार करने वाली स्त्री अब अपनी स्वतंत्र पहचान की इच्छा करने लगी है। सामाजिक दृष्टिकोण व प्रतिक्रियाओं में धीरे-धीरे परिवर्तन आ रहा है तथा शासन के स्तर पर भी प्रयास शुरू हो चुके हैं।

महिला सशक्तीकरण की अवधारणा महिलाओं को समाज की मुख्य धारा में शामिल करने तथा उन्हें स्वयं देश की विकास प्रक्रिया का हिस्सा बनने की सिफारिश करती है। महिला सशक्तीकरण के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए उनमें ऐसी क्षमताओं का विकास होना आवश्यक है जिससे वे सामाजिक परिवर्तन की दिशा को प्रभावित कर सकने में सक्षम हों जो तभी सम्भव है जब कि सामाजिक, र्आिथक व राजनीतिक जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में उन्हें समान अवसर प्राप्त हों।

लगभग डेढ़ दशक पूर्व (2001) महिला सशक्तीकरण हेतु बनाई गई राष्ट्रीय नीति में महिलाओं के विकास हेतु अनेकों नीतिगत प्रस्ताव व रणनीतियाँ निर्धारित की गयी थीं। इस दौर में तकनीकी व सूचनातंत्र में हुए तीव्र परिवर्तन ने एक ओर महिलाओं के लिए नयी सम्भावनाएँ तथा अवसर उत्पन्न किए परन्तु साथ ही उन्हें नये प्रकार की चुनौतियों का सामना भी करना पड़ा है। विगत कुछ वर्षों में अनेक विरोधाभासी प्रवृत्तियाँ भी दिखाई दी हैं। लैंगिक समानता व अधिकारों की व्यापक स्वीकृति के पश्चात भी बलात्कार, महिलाओं की खरीद-फरोख्त तथा दहेज हत्या जैसे हिंसात्मक व्यवहारों की खबरों में भी  निरन्तर बृद्धि हो रही है। कार्य अवसरों में बृद्धि होने पर भी श्रम बाजार में उनकी सौदा शक्ति में कमी दिखाई देती है। शिक्षित व कैरियर के प्रति जागरूक महिलाएँ बड़ी संख्या में विभिन्न कार्यक्षेत्रों में प्रवेश कर अपनी पहचान बना रहीं हैं परन्तु आज भी महिलाओं की बड़ी संख्या असंगठित क्षेत्रों में कम वेतन पर कार्य करने को मजबूर है। एक कृषक के रूप में महिलाओं के योगदान में निरन्तर बृद्धि होने पर भी भूमि व अन्य परिसम्पत्तियों पर उनके अधिकारों का मुद्दा व्यवहार में जस का तस है। चिकित्सकीय सुविधाओं में बृद्धि के बावजूद भी उच्च मातृत्व मृत्यु दर, महिलाओं में कुपोषण व रक्ताल्पता जैसी स्थितियों का बना रहना सचमुच चिंता का विषय है। कैसी विडम्बना है कि आज विकास का प्रतीक बन चुका उन्नत सूचना तंत्र भी महिलाओं के प्रति होने वाली यौन प्रताड़ना व अनेक अपराधों का कारण बन रहा है। उक्त स्थितियों के परिप्रेक्ष्य में कहा जा सकता है कि लैंगिक समानता के लक्ष्य को प्राप्त करने तथा महिलाओं के सशक्तीकरण हेतु अभी बहुत कुछ किया जाना है।

इन्हीं स्थितियों के परिप्रेक्ष्य में एक ऐसी नयी नीति के निर्माण की आवश्यकता अनुभव की गयी जिसमें स्त्री-जीवन के सभी पक्षों को संबोधित किया जाय। महिला सशक्तीकरण के मार्ग में बाधक बन रही उदीयमान चुनौतियों को समझते हुए महिलाओं को उस सतत विकास प्रक्रिया का हिस्सा बनाया जा सके जिसे आज देश महसूस कर रहा है। इन्हीं उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए ‘महिलाओं के लिए राष्ट्रीय नीति 2016 का ड्राफ्ट तैयार किया गया है, जिसमें महिलाओं से संबंधित मुद्दों को सम्मिलित कर एक विस्तृत ‘नीति प्रपत्र’ बनाया गया है। यह नयी नीति एक ऐसे समाज की कल्पना करती है जिसमें महिलाएँ पूर्ण रूप से सक्षम हों तथा जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में समान रूप से सहभागिता करते हुए सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रिया को प्रभावित कर सकें।
(National Policy for Women)

नीति के प्रमुख उद्देश्य

महिला समानता व सशक्तीकरण के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए इस नीति में सम्मिलित किये गये मुख्य उद्देश्य इस प्रकार हैं।

1.     एक ऐसा अनुकूल सामाजिक-सांस्कृतिक, आर्थिक व राजनीतिक  वातावरण उत्पन्न करना जिसमें महिलाएँ अपने वैधानिक व स्वाभाविक मौलिक अधिकारों का उपभोग कर अपनी पूर्ण क्षमताओं को समझ सकें।
2.     सम्पूर्ण विकास प्रक्रिया तथा कार्यक्रमों के क्रियान्वयन में महिलाओं को शामिल करना।
3.     महिलाओं की स्वास्थ्य स्थिति को उनके सम्पूर्ण जीवन चक्र के परिप्रेक्ष्य में देखना।
4.     महिलाओं/लड़कियों हेतु सार्वभौमिक व गुणवत्तायुक्त शिक्षा की व्यवस्था कर उन्हें शिक्षा प्राप्ति हेतु प्रोत्साहित करना।
5.     अर्थव्यवस्था में महिला श्रम शक्ति में बृद्धि करना।
6.     सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक क्षेत्रों तथा साथ ही प्रशासनिक व निर्णय लेने वाली संस्थाओं में महिलाओं की समान सहभागिता हेतु प्रयास करना।
7.     सामुदायिक गतिविधियों में पुरुषों/लड़कों की सहभागिता व संलग्नता के द्वारा उनके सामाजिक दृष्टिकोण व मानसिकता में परिवर्तन लाना।
8.     लैंगिक रूप से संवेदनशील कानूनी-न्यायिक व्यवस्था का विकास करना।
9.     महिलाओं के प्रति होने वाले प्रत्येक प्रकार के हिंसात्मक व्यवहार को समाप्त करने के लिए संबंधित नीतियों, कानूनों, संस्थाओं व सामुदायिक गतिविधियों को मजबूती प्रदान करना।
10.  समाज के कमजोर व हाशिये पर रहने वाले वर्गों की महिलाओं का विकास व सशक्तीकरण करना।
11.  लैंगिक अंतराल को कम करने/समाप्त करने हेतु निगरानी, मूल्यांकन, आडिट तथा डेटा सिस्टम को अधिक मजबूत करना।

राष्ट्रीय महिला नीति के प्रमुख क्षेत्र 

राष्ट्रीय महिला नीति 2016 के ड्राफ्ट में महिलाओं से संबंधित जो प्रमुख मुद्दे उठाये गये हैं, उनमें महिलाओं के स्वास्थ्य, शिक्षा, आर्थिक स्थिति, शासन व निर्णय प्रक्रिया में उनके स्थान, महिलाओं के विरूद्ध होने वाले अपराध, पर्यावरण संबंधी स्थितियों आदि को शामिल किया गया है। साथ ही इस संबंध में उठने वाले तथा उदीयमान मुद्दों, सम्भावित कार्यात्मक नीतियाँ, कार्ययोजना आदि को भी नीति प्रपत्र में शामिल किया गया है। नीति प्रपत्र में सम्मिलित प्रमुख बिन्दु निम्नवत् हैं-

स्वास्थ्य

 इस राष्ट्रीय नीति में महिलाओं के स्वास्थ्य के साथ-साथ उनके लिए खाद्य सुरक्षा व पोषण संबंधी प्रावधानों का भी उल्लेख किया गया है। मातृत्व व शिशु मृत्यु दर में कमी लाना तथा प्रसवपूर्व स्त्री की मृत्यु से संबंधित मुद्दे प्रमुख विचारणीय विषय माने गये हैं। सभी क्षेत्रों विशेषकर दूरस्थ पिछड़े क्षेत्रों, भौगोलिक रूप से कठिन तथा प्राकृतिक आपदा से प्रभावित होने वाले क्षेत्रों के लिए स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं जैसे आशा, ए.एन.एम., आँगनवाड़ी कार्यकर्ता तथा प्रशिक्षित घरेलू दाइयों की क्षमता में बढ़ोत्तरी तथा सुरक्षित मातृत्व हेतु परिवहन व्यवस्था का प्रयास करने का प्रस्ताव है।

गर्भवती व स्तनपान कराने वाली महिलाओं के लिए विशेष कैम्पों के माध्यम से स्वास्थ्य व पोषण संबंधी शिक्षा का प्रावधान करना।

परिवार के नियोजन की जिम्मेदारी तथा संबंधित उपायों का केन्द्र मुख्यत: महिलाओं को माना जाता रहा है। नयी महिला नीति में संतान नियंत्रण का दायित्व पुरुष पर केन्द्रित करने तथा संबंधित उपायों को पुरुषों द्वारा अपनाने जाने को प्रोत्साहन देने की बात की गयी है।

महिलाओं की स्वास्थ्य स्थिति को मुख्यत: मातृत्व स्वास्थ्य के साथ जोड़कर देखा जाता रहा है। इस नीति में कहा गया है कि महिला स्वास्थ्य से संबंधित अन्य समस्याओं जैसे कैंसर, हृदय रोग, एच.आई.बी./एडस आदि पर ध्यान केन्द्रित करने के साथ-साथ वृद्घ महिलाओं की स्वास्थ्य समस्याओं पर भी विशेष ध्यान दिया जायेगा। राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य नीति (2014) में यह माना गया है कि सामाजिक विभेद, हिंसा व प्रताड़ना आदि के कारण महिलाएँ मानसिक अवसाद का शिकार होती हैं। महिला स्वास्थ्य के इस पक्ष पर भी ध्यान देने की बात कही गयी है। ‘मीनोपॉज’ के पश्चात महिलाओं पर पड़ने वाले शारीरिक व मानसिक प्रभावों के परिप्रेक्ष्य में भी महिला स्वास्थ्य को देखा जायेगा।
(National Policy for Women)

कमजोर वर्ग की महिलाओं को स्वास्थ्य बीमा योजना का लाभ दिलाने तथा ‘सेरोगेट’ माँ को भी गर्भावस्था के दौरान स्वास्थ्य संरक्षण व देखभाल के दायरे में लाने का प्रस्ताव है।

दूरदराज के इलाकों में रहने वाली कुपोषण का शिकार महिलाओं के लिए सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से सुरक्षित व पोषणयुक्त भोजन उपलब्ध कराना।

शिक्षा

बालिका शिक्षा के प्रति माता-पिता की संवेदनशीलता में बृद्धि करके तथा सामुदायिक सहभागिता बढ़ाकर लड़कियों की शिक्षा में सुधार लाना व बालिकाओं की स्कूल पूर्व शिक्षा हेतु आँगनबाड़ी केन्द्रों को मजबूत बनाना नीति का लक्ष्य होगा।

शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 के अधिक प्रभावशाली क्रियान्वयन के लिए हर सम्भव प्रयास करने की बात इस नीति में कही गयी है।

किशोरी बालिकाओं के स्कूलों में पंजीकरण में बृद्धि के साथ-साथ स्कूलों में उनकी निरन्तर उपस्थिति को भी सुनिश्चित किया जायेगा। इस हेतु स्कूलों में बड़ी संख्या में महिला शिक्षकों की नियुक्ति तथा लड़कियों के लिए अलग शौचालयों की व्यवस्था को प्राथमिकता दी जायेगी। साथ ही कौशल विकास व रोजगारपरक प्रशिक्षण को पाठ्यक्रम में शामिल कर इस प्रशिक्षण में लड़कियों को प्राथमिकता दी जायेगी।

महिला श्रमिकों के कार्यस्थल के नजदीक उनके बच्चों के लिए शिक्षा की व्यवस्था करना।

महिलाओं को व्यवसायिक/वैज्ञानिक पाठ्यक्रमों में पंजीकरण करने हेतु प्रोत्साहित करने के लिए कार्य योजना तैयार करना तथा इस हेतु उनको वित्तीय सहायता देने के साथ ही उनके लिए र्कोंचग, होस्टल आदि की व्यवस्था करना।

ग्रामीण व दूरस्थ इलाकों में घर से स्कूल की अधिक दूरी लड़कियों के स्कूल में प्रवेश व उनकी निरन्तर उपस्थिति को बाधित करती है। अत: ऐसे स्थलों में उपयुक्त परिवहन व्यवस्था को विकसित करने के प्रयास की चर्चा भी की गयी है।

ऐसी महिलाएँ जिनकी शिक्षा प्राप्ति में व्यवधान आया हो, उनके कौशल विकास हेतु विश्वविद्यालयों व शैक्षिक संस्थानों को आनलाइन शैक्षिक पाठ्यक्रमों को प्रारम्भ करने हेतु प्रोत्साहित करना।

सूचना-संचार तकनीक में कुशलता आज विकास का मुख्य आधार बन गया है। इस प्रकार की शिक्षा तक पहुँचना व उसमें कुशलता प्राप्त करना तथा इस संदर्भ में ग्रामीण व नगरीय स्कूलों में विद्यमान विषमता को समाप्त करने के लिए सार्वजनिक-व्यक्तिगत सहभागिता के आधार पर कार्य करने का प्रस्ताव है।

आर्थिक स्थिति सम्बन्धी प्रावधान

नयी महिला नीति में महिलाओं की आर्थिक स्थिति को प्रोन्नत करने पर भी विशेष रूप से ध्यान केन्द्रित किया गया है। निर्धनता उन्मूलन कार्यक्रमों में महिलाओं की सहभागिता पर बल दिये जाने का प्रस्ताव है। इस हेतु लैंगिक आधार पर  निर्धनता की तुलनात्मक स्थिति तथा मजदूरी/वेतन में पाये जाने वाले अंतराल पर भी ध्यान दिया जायेगा। वित्तीय क्षेत्र में अधिकाधिक महिलाओं को सम्मिलित करने तथा विशेष रूप से निर्धन महिलाओं के लिए वित्तीय शिक्षा प्रारम्भ करने का प्रस्ताव है जिससे वे बचत, बीमा, पैंशन आदि योजनाओं तथा सरकार द्वारा प्रदान की जाने वाली सब्सिडी व आर्थिक लाभों को समझकर उनसे लाभान्वित हो सकें।
(National Policy for Women)

महिलाओं द्वारा घर के अंदर असीमित समय तक किये जाने वाले कार्य चूँकि अवैतनिक होते है, अत: उन्हें अर्थव्यवस्था में योगदान के रूप में मान्यता प्राप्त नहीं होती है। इस नवीन नीति में महिलाओं के इन घरेलू कार्यों के र्आिथक-सामाजिक मूल्यों को मान्यता देने तथा इन कार्यों में विद्यमान लैंगिक विषमता की जाँच के लिए सर्वेक्षण करने की बात कही गयी है।

आप्रवासी जनजातीय श्रमिकों के पंचायतों के माध्यम से पंजीकरण करने तथा विशेषकर घरेलू कार्यों में संलग्न आप्रवासी महिलाओं का पंजीकरण ‘असंगठित’ क्षेत्र सामाजिक सुरक्षा अधिनियम 2008 के माध्यम से करने व उनके हितों को सुरक्षित रखने के लिए विशेष प्रयास किये जाने का प्रस्ताव भी इस नीति में है।

कृषि कार्य में महिलाओं की बढ़ती सहभागिता को देखते हुए उन्हें किसान के रूप मेंं मान्यता देने, संसाधनों पर उनके नियंत्रण तथा इस क्षेत्र से जुड़े अन्य विभिन्न कार्यों जैसे मिट्टी संरक्षण हेतु प्रशिक्षण, सामाजिक वानिकी, डेयरी विकास, बागवानी, जैविक कृषि, पशुपालन, मुर्गीपालन, मछली पालन आदि का विस्तार इस रूप में किया जायेगा जिससे इस क्षेत्र में कार्यरत अधिकाधिक महिलाएँ लाभान्वित हो सकें। कृषि विकास योजनाओं में एक प्रशिक्षक के रूप में सफलतम महिला कृषकों की क्षमताओं का उपयोग किया जायेगा।  

अचल संपत्ति पर महिलाओं के अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए विद्यमान सम्बन्धित अधिनियमों के प्रावधानों का अधिक प्रभावशाली ढंग से क्रियान्वयन करने का प्रस्ताव भी है।

सामूहिक रूप से कृषि कार्य करने वाली महिलाओं के प्रोत्साहन हेतु उनके कृषि उत्पादों के संरक्षण, प्रसंस्करण व वितरण हेतु सुविधा प्रदान करने, महिला उत्पादकों की समिति बनाने, उनके उत्पाद के विक्रय हेतु परिवहन की व्यवस्था करने तथा इसके लिए उन्हें संस्थात्मक व आर्थिक सहयोग प्रदान किये जाने का प्रावधान भी इस नीति में किया गया है।

औद्योगिक क्षेत्र में कार्यरत महिलाओं के लिए अनुकूल कार्यदशाओं, समान वेतन, सामाजिक व व्यावसासिक सुरक्षा तथा स्वास्थ्य देखभाल आदि के लिए उपयुक्त नीतियों के निर्माण तथा उनसे सफल क्रियान्वयन का प्रस्ताव भी इस नीति में है। कौशल विकास व उद्यमिता के लिए 2015 में बनी राष्ट्रीय नीति के अनुरूप असंगठित क्षेत्र में कार्यरत महिलाओं के कौशल विकास का प्रयास किया जायेगा। महिलाओं की कार्यसहभागिता में बृद्धि तथा उनके प्रति होने वाली विषमताओं को समाप्त करने के लिए विभिन्न श्रम कानूनों का पुनरावलोकन किया जायेगा।

महिलाओं की आर्थिक स्थिति को उन्नत करने के लिए सेवा क्षेत्र में उनके लिए रोजगार के समान अवसर उपलब्ध कराने तथा कार्यस्थल पर अनुकूल संरचनात्मक सुविधाओं (शौचालय, आराम का कमरा, बच्चों की देखभाल की व्यवस्था आदि) की उपलब्धता सुनिश्चित करने का प्रयास किया जायेगा। साथ ही सूचना आधारित उद्योग दूरसंचार, साफ््टवेयर डिजाइन, कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग तथा बैंक, बीमा जैसे वित्तीय व नवीनतम सेवा क्षेत्रों में महिलाओं की सहभागिता को प्रोत्साहित किया जायेगा।

महिलाओं के विरुद्ध हिंसा

महिलाओं के विरूद्घ किया जाने वाला हिंसात्मक व्यवहार आज भी सामाजिक, पारिवारिक दायरे की एक सच्चाई है। इस सन्दर्भ में नई महिला नीति के कुछ प्रमुख प्रस्ताव इस प्रकार हैं-

बालिका भ्रूण हत्या, शिक्षा के अधिकार से वंचना, बाल विवाह, परिवार के अन्दर, सार्वजनिक स्थानों तथा कार्यक्षेत्र में महिलाओं के प्रति किया जाने वाला दुर्वव्यहार आदि महिलाओं के विरुद्घ होने वाली हिंसा के अन्तर्गत आता है। इस प्रकार के हिंसात्मक व्यवहारों का सामना कानूनों व अन्य कार्यक्रमों के द्वारा किया जायेगा।
(National Policy for Women)

बाल लिंगानुपात (0 से 6 आयु वर्ष) जो कि सामान्य की अपेक्षा कम है, को बढ़ाने का प्रयास किया जायेगा। इस हेतु पी.सी.पी.एन.डी.टी. अधिनियम 1994 को अधिक प्रभावशाली ढंग से लागू किया जायेगा।

देह व्यापार हेतु की जाने वाली महिलाओं व बच्चों की तस्करी की समस्या पर विशेष ध्यान देने, इस सम्बन्ध में जनसामान्य को जागरूक करने तथा इस हेतु न्यायिक प्रक्रिया को तीव्र व समयबद्घ करने का प्रयास किया जायेगा। न्यायिक पदों पर महिलाओं के प्रतिनिधित्व को बढ़ाया जायेगा।

राष्ट्रीय महिला नीति में शामिल अन्य मुद्दे

महिलाओं से सम्बन्धित प्रस्तावित नवीन नीति में अनेक ऐसे अन्य मुद्दों को भी शामिल किया गया है जो महिलाओं की स्थिति को प्रोन्नत करने व उनके सशक्तीकरण के सन्दर्भ में उपयोगी व अनिवार्य माने जा सकते हैं।

तकनीक का उपयोग महिलाओं हेतु एक ऐसे उपकरण के रूप में किया जायेगा जिससे उनके घरेलू कार्यभार में कमी आयेगी तथा उनकी रोजगार उन्मुखता में बृद्धि होगी। महिला विद्यार्थियों को विज्ञान व तकनीकी, सूचना व संचार के क्षेत्र में प्रशिक्षण प्राप्त करने हेतु प्रोत्साहित किया जायेगा।

प्रशासन व निर्णय प्रक्रिया में महिलाओं की सहभागिता बढ़ाने हेतु विधायिका, कार्यपालिका तथा न्यायपालिका जैसे सरकार के महत्वपूर्ण अंगों में उनकी उपस्थिति को बढ़ाने का प्रयास होगा। श्रम संघों, राजनैतिक दलों, व्यावसायिक संघो तथा व्यापारिक क्षेत्रों में महिलाओं की अधिकाधिक सहभागिता का प्रस्ताव किया गया है। यह भी कहा गया है कि प्रशासनिक प्रशिक्षण संस्थाओं में अध्ययनरत भावी प्रशासकों को इस प्रकार प्रशिक्षित किया जाय कि वे समाज में व्याप्त लैंगिक विषमता सम्बन्धी चुनौतियों का कुशलता व प्रभावपूर्ण ढंग से सामना कर सकें।

विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में स्वच्छ पेय जल व शौचालय की उपयुक्त व्यवस्था न हो पाने का प्रभाव मुख्यत: महिलाओं पर ही पड़ता है। इस नीति में कहा गया है कि महिलाओं हेतु शौचालयों का निर्माण घर के अन्दर या सामुदायिक स्तर पर किया जायेगा तथा सामुदायिक शौचालयों का संचालन व उनकी देखभाल का दायित्व महिलाओं को ही सौंपा जायेगा। भावी पेयजल योजनाओं को महिलाओं के जल संचय के कार्यभार को दृष्टि में रखकर डिजाइन किया जायेगा तथा पानी के बेहतर उपयोग के लिए महिलाओं को ‘वाटर मैनेजर’ के रूप में प्रशिक्षित किया जायेगा।

सूचना और संचार क्रान्ति के आज के दौर में महिलाओं को पत्रकारिता व मास मीडिया के विभिन्न पाठ्यक्रमों में प्रवेश हेतु प्रोत्साहित किया जायेगा। मीडिया में महिलाओं का किया जाने वाला चित्रण तथा प्रयुक्त की जाने वाली भाषा के सन्दर्भ में लैंगिक रूप से संवेदनशीलता बरतने की अपेक्षा की गयी है।

कमजोर व हाशिये पर रहने वाली महिलाओं, प्रवासी व एकाकी महिलाओं के लिए सामाजिक सुरक्षा के प्रावधानों को और अधिक मजबूत करने की बात भी प्रस्तावित नीति में है। घरेलू सेविकाओं द्वारा किये जाने वाले अधिक कार्य के लिए अतिरिक्त भुगतान, वार्षिक वैतनिक अवकाश, न्यूनतम वेतन तथा सुरक्षित कार्यदशाओं हेतु उपयुक्त कदम भी उठाये जायेंगे। महिलाओं की सामाजिक सुरक्षा के सन्दर्भ में मातृत्व लाभ अधिनियम 1961 के प्रावधानों के अधिक प्रभावशाली क्रियान्वयन की चर्चा भी की गयी है।
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क्रियान्वयन योजना

राष्ट्रीय महिला नीति के निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए केन्द्र व राज्य स्तरीय सहभागिता से एक वर्ष, पाँच वर्ष तथा पाँच वर्ष से अधिक की भी समयबद्घ तथा निश्चित परिणाम दे सकने वाली कार्ययोजना बनाने की बात कही गयी है। राष्ट्रीय स्तर पर नीति का क्रियान्वयन महिला व बाल विकास मंत्री के नेतृत्व में गठित एक कमेटी द्वारा किया जायेगा तथा राज्य स्तर पर मुख्यमंत्री के नेतृत्व में गठित समिति यह कार्य करेगी। क्षेत्र विशेष से सम्बन्धित उपसमितियों का भी गठन किया जायेगा जिसमें सम्बन्धित मंत्रालय/विभागों, राष्ट्रीय व राज्य स्तरीय महिला आयोग, समाज कल्याण बोर्ड, गैर सरकारी संगठन, वित्तीय संस्थान, कारपोरेट सैक्टर तथा सामाजिक कार्यकर्ताओं का प्रतिनिधित्व होगा। लैंगिक समानता और सामाजिक न्याय हेतु संवैधानिक व अन्तर्राष्ट्रीय प्रतिबद्घताओं को लागू करने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर महिला एवं बाल विकास मंत्रालय एक नोडल ऐजेन्सी के रूप में कार्य करेगा। महिलाओं से सम्बन्धित विभिन्न संस्थानों जैसे राष्ट्रीय व राज्य महिला आयोग, केन्द्रीय समाज कल्याण बोर्ड को अधिक शक्तिशाली बनाने तथा इनकी पुनर्संरचना हेतु पर्याप्त संसाधन उपलब्ध कराये जायेंगे। इस सन्दर्भ में पंचायतों तथा नगरीय स्थानीय निकायों की भूमिका को अधिक सशक्त किया जायेगा।

महिलाओं से सम्बन्धित विद्यमान कानूनों का पुनरावलोकन कर उन्हें उभरती नवीन आवश्यकताओं के अनुरूप अधिक प्रभावशाली बनाने तथा उनमें संशोधन का प्रयास किया जायेगा। सभी विवाहों के पंजीकरण को अनिवार्य करने के लिए ठोस उपाय करने तथा इसकी आवश्यकता व उपयोगिता का व्यापक प्रसार किया जायेगा। मातृत्व लाभ अधिनियम का लाभ असंगठित क्षेत्र में कार्यरत महिलाओं को देने के लिए इसे अधिक मजबूत किया जायेगा। कानूनी अधिकारों के प्रति महिलाओं के ज्ञान के स्तर तथा उनकी जागरूकता में बृद्धि के लिए सूचना-संचार तकनीक के अधिकाधिक प्रयोग का प्रस्ताव है।

राष्ट्रीय महिला नीति 2016 के प्रपत्र के गहन अध्ययन से स्पष्ट होता है कि इसमें महिलाओं के जीवन के लगभग सभी आयामों को समेटने की कोशिश की गयी है। महिलाओं की स्वास्थ्य, शिक्षा, आर्थिक प्रस्थिति व इस सन्दर्भ में उनके द्वारा उच्चतम लक्ष्यों को प्राप्त कर सकने के अवसरों की सम्भावना पर विस्तृत चर्चा की गयी है। विज्ञान व तकनीक का महिलाओं के जीवन में महत्व तथा शासन व निर्णय प्रक्रिया में उनकी भागीदारी का प्रभाव स्पष्ट करते हुए इन क्षेत्रों में उनको अधिकाधिक प्रोत्साहित करने का प्रयास करने की बात की गयी है। नीतिगत प्रपत्र स्वयं में अत्यन्त प्रभावशाली माना जा सकता है तथा महिला सशक्तीकरण के लक्ष्य को प्राप्त करने के एक सशक्त दस्तावेज के रूप में उसे स्वीकार भी किया जा सकता है।

परन्तु मुख्य मुद्दा है इसके सफल क्रियान्वयन का जिसके अभाव में इतना सशक्त दस्तावेज भी अपने लक्ष्य तक शायद ही पहुँच सकेगा। इस हेतु परिवार व समुदाय को इतना संवेदनशील बनाना होगा कि ये संस्थायें पितृसत्तात्मक व्यवस्था के नकारात्मक प्रभाव को समझकर लैंगिक विषमता को समाप्त करने की आवश्यकता अनुभव करें तथा इस प्रस्ताव के क्रियान्वयन में अपना योगदान दें। शासन के स्तर पर भी इसे गंभीरता से लेना होगा अन्यथा अन्य अनेक कार्यक्रमों की भाँति ही यह भी एक लिखित दस्तावेज मात्र बनकर रह जायेगा। इस हेतु शासन को भी लैंगिक रूप से संवेदशील होना होगा। जैसा कि इस नीतिगत प्रपत्र में भी कहा गया है कि सामाजिक जीवन के सभी पक्षों के सन्दर्भ में लैंगिक आधार पर तुलनात्मक डेटाबेस बनाकर उन क्षेत्र विशेषों की पहचान की जा सकती है जिनमें महिलाएँ अधिक विषमता का सामना कर रही हैं तथा तदनुरूप अपने प्रयासों को सही दिशा प्रदान कर सकते हैं। जो भी हो, एक लम्बे अन्तराल के पश्चात, नवीन स्थितियों के अनुरूप महिला राष्ट्रीय नीति की पुनर्संरचना करना शासन के स्तर पर एक महत्वपूर्ण व उपयोगी कदम कहा जा सकता है तथा इसकी सफलता हेतु सभी को अपने-अपने स्तर पर प्रयास करना चाहिए।
(National Policy for Women)

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