मेरा हिन्दुस्तान

जिम कॉर्बेट

अब एण्डरसन के सामने अगली फरियाद पेश हुई। छेदी ने इलजाम लगाया कि कालू ने उसकी बीवी तिलनी को अगवा कर लिया है। छेदी की शिकायत यह थी कि करीब तीन हफ्ते पहले कालू ने तिलनी पर डोरे डालने शुरू किए थे मगर मेरे ऐतराज करने के बाद भी कालू अपने कदम बढ़ाता रहा और आखिरकार तिलनी मुझे छोड़कर कालू के साथ रहने चली गई। जब एण्डरसन ने पूछा कि कालू भीड़ में मौजूद है क्या, तो गोलाई में फैली भीड़ के दूसरे कोने पर बैठा एक आदमी उठ खड़ा हुआ और उसने कहा, “जी हुजूर, मैं कालू हूँ।” जब धान के बँटवारे पर बहस चल रही थी तब भीड़ में मौजूद औरतों और लड़कियों ने इसमें कोई रुचि नहीं ली थी क्योंकि यह मसला मर्दों से ताल्लुक रखता था और इसका फैसला उन्हीं को करना था लेकिन अगवा के इस मामले में उन्हें कितनी रुचि थी, यह उनके चेहरे से और उनकी तेज-तेज चलती सांसों से जाहिर हो रहा था।

जब एण्डरसन ने कालू से पूछा तो उसने यह तो स्वीकार किया कि तिलनी उसकी दी हुई झोंपड़ी में रह रही है लेकिन इस बात से उसने साफ इंकार कर दिया कि उसने तिलनी को अगवा किया है। जब उससे पूछा गया कि क्या वह तिलनी को उसके पति को लौटाने के लिए तैयार है तो कालू ने जवाब दिया कि तिलनी अपनी मर्जी से आई है और वो हरगिज उस पर दबाव डालकर उसके पति के पास जाने को नहीं कहेगा। “क्या तिलनी मौजूद है?” एण्डरसन ने पूछा। औरतों के झुंड से एक लड़की उठ खड़ी हुई और सामने आकर बहुत अदब से बोली, “मैं तिलनी हूँ। हुजूर का क्या हुक्म है?”

तिलनी अठारह बरस की खूबसूरत और भरे-भरे हाथ-पैरों वाली आकर्षक लड़की थी। उसके बाल कम से कम एक फुट ऊँचे जूड़े की शक्ल में, तराई की खास स्टाइल में बँधे हुए थे और आईसक्रीम के बड़े कोन जैसे दिख रहे थे। उसने सफेद पल्लू वाली काली साड़ी, लाल ब्लाउज और खूब घेरे वाला रंग-बिरंगा लहंगा पहना हुआ था। एण्डरसन ने उससे पूछा कि क्या उसने अपनी मर्जी से अपने पति को छोड़ा है तो उसने छेदी की तरफ इशारा किया और कहा, “हुजूर, आप देखिए उसको, वह कितना गंदा है। वह सिर्फ गंदा ही नहीं, भारी कंजूस भी है। दो साल से मैं उसकी बीवी हूँ और उसने मुझे न तो कभी कपड़े खरीद कर दिये हैं और न ही गहने।”

अपनी कलाइयों पर चाँदी की चूड़ियों को छूते हुए, अपने गले में पहने कांच की मोतियों वाली मालाओं पर उंगलियाँ फिराते हुए और कपड़ों की तरफ इशारा करते हुए उसने कहा, “ये जो कपड़े और गहने आप देख रहे हैं, मुझे कालू ने दिए हैं।” यह पूछने पर कि क्या वह वापस छेदी के पास जाना चाहेगी, उसने अपने सिर को जोरदार झटका दिया और कहा कि दुनिया में ऐसी कोई चीज नहीं जिसकी वजह से वह वापस छेदी के पास जाना चाहे।

बीमारियों से भरे तराई के इस इलाके में रहने वाली इस जनजाति के लोगों की दो ही खूबियाँ हैं- शरीर की साफ-सफाई और औरतों की आजादी। हिन्दुस्तान के किसी और इलाके में कहीं भी लोगों के घर इतने बेदाग साफ-सुथरे नहीं होते जैसे कि यहाँ होते हैं और हिन्दुस्तान की किसी और हिस्से की किसी नौजवान में इतनी हिम्मत नहीं होती कि औरतों और मर्दों के इतने बड़े जमावड़े के सामने एक गोरे आदमी की मौजदूगी में ऐसे मामले में वह अपना पहलू सामने रख पाए।
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अब एण्डरसन ने छेदी से पूछा कि क्या उसे कुछ कहना है तो छेदी ने जवाब दिया “हुजूर, आप हमारे माई-बाप हैं। मैं आपके पास इंसाफ के लिए आया था और यदि माई-बाप मेरी बीवी को मेरे पास लौटने के लिए मजबूर नहीं करना चाहते तो मैं मुआवजे का दावेदार हूँ” एण्डरसन ने पूछा कि तिलनी का मुआवजा कितना होना चाहिए। छेदी का जवाब था, “मैं डेढ़ सौ रुपये का दावा करता हूँ।” जमावड़े के हर कोने से आवाजें उठनी लगीं- “बहुत ज्यादा माँग रहा है”, “कुछ हिसाब तो होना चाहिए”, “इस लायक तो नहीं है तिलनी।”

अब एण्डरसन ने कालू से पूछा कि क्या वो डेढ़ सौ रुपये मुआवजा देने के लिए तैयार है तो कालू ने कहा, “तिलनी की जो कीमत माँगी जा रही है वो बहुत ज्यादा है। पूरे गाँव को मालूम है और मुझे मालूम है कि जब छेदी तिलनी को लाया था तो उसने सिर्फ सौ रुपये कीमत चुकाई थी। यह कीमत तिलनी के लिए तब दी गई थी जब वह ‘नई’ थी। अब चूंकि बात वो नहीं बची है इसलिए मैं पचास रुपये का हर्जाना अदा कर सकता हूँ।”

भीड़ तुरन्त दो हिस्सों में बँट गई। कुछ कालू की तरफदारी कर रहे थे तो कुछ छेदी की। कुछ का मानना था कि माँगी गई कीमत बहुत ज्यादा है और बाकी का कहना था कि दी जा रही कीमत बहुत कम है। आखिरकार, मुद्दे के हर पहलू पर तब तक बहस हुई जब तक कि तर्क-वितर्क बहुत नाजुक पहलुओं को न छूने लगे। ये सब चल रहा था और तिलनी के खूबसूरत चेहरे पर छाई मुस्कान मानो जाहिर कर रही थी कि मैं सब समझती हूँ। एण्डरसन ने तिलनी की कीमत पचहत्तर रुपये तय कर दी और कालू को आदेश दिया कि वह रकम छेदी को चुका दे। कालू ने अपना कमरबंद खोला और उसमें से एक डोरीदार बटुआ निकालकर एण्डरसन के पैरों के पास जमीन पर पलट दिया। बटुए में से चाँदी के बावन कलदार निकले। कालू के दो दोस्त आगे आए और उन्होंने तेईस कलदार और मिलाकर रकम पूरी कर दी। छेदी को पैसा गिनने के लिए कहा गया। जब वो पैसा गिनकर बोला कि रकम दुरुस्त है, उसी वक्त मेरी निगाह एक औरत पर पड़ी जो कि गाँव की तरफ से बहुत धीरे-धीरे आ रही थी। उसकी चाल से जाहिर हो रहा था कि उसे चलने में बहुत दर्द हो रहा है। यह औरत भीड़ से कुछ दूर हट कर बैठ गई थी। जब पैसों की गिनती हो चुकी तो वह उठ खड़ी हुई। खड़े होने में भी उसे जाहिरा तौर पर तकलीफ हो रही थी। वह बोली, “मेरा क्या होगा हुजूर?” एण्डरसन ने पूछा के तुम कौन हो तो उसने जवाब दिया “माई-बाप, मैं कालू की बीवी हूँ।”

वो लम्बी और मजबूत काठी वाली औरत थी लेकिन उसकी चम्पई रंगत से पूरा खून निचुड़ा हुआ मालूम होता था। उसकी तिल्ली बहुत ज्यादा बढ़ी हुई थी जिसकी वजह से उसका शरीर बहुत बेढंगा लग रहा था और उसके पैरों में भारी सूजन थी। तराई का श्राप कहलाने वाले मलेरिया ने उसकी यह हालत बना रखी थी।

इस औरत ने थकी-थकी और भावहीन आवाज में बताना शुरू किया “अब चूंकि कालू ने दूसरी बीवी कर ली है तो मैं बेघर हो जाऊँगी। मेरे कोई रिश्तेदार भी इस गाँव में नहीं हैं। मेरे शरीर की हालत भी अच्छी नहीं है कि कुछ काम करके अपनी जिंदगी चला सकूं। न तो कोई मेरी देखभाल करने वाला है और न ही कोई मेरे मुँह में निवाला डालने वाला है। मैं तो ऐसे ही मर जाऊँगी।” अपने पल्लू से उसने अपना चेहरा ढक  लिया और बगैर आवाज किए रोन लगी लेकिन उसकी जोरदार सिसकियाँ बीमारी से कमजोर हुए उसके शरीर को हिला रही थीं और आँसू उसके चेहरे से होते हुए उसके आँचल को भिगो रहे थे।

अब मामले ने ऐसा मोड़ ले लिया था जो किसी ने नहीं सोचा था। इस मोड़ ने एण्डरसन के लिए भी बड़ी दिक्कत पैदा कर दी थी क्योंकि पूरी सुनवाई के दौरान कहीं यह जिक्र ही नहीं आया था कि कालू की पहले से ही बीवी मौजूद है।
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इस औरत के विलाप से पूरी भीड़ में छाया सन्नाटा तब टूटा जब लोगों की निगाह बहुत देर से खड़ी तिलनी पर पड़ी। वह अब तेजी से इस औरत की तरफ बढ़ रही थी। नजदीक पहुँचकर अपनी नौजवान और मजबूत बाँहों में कालू की पहली पत्नी को जकड़ लिया और बोली, “मत रोओ, मत रोओ बहन। और ये मत कहो कि तुम बेघर हो। कालू ने जो नई झोंपड़ी मेरे लिए बनाई है, तुम उसमें रहोगी मेरे साथ। मैं तुम्हारा ध्यान रखूंगी। मैं तुम्हारी देखभाल करूंगी और जो कुछ भी कालू मुझे देगा उसका आधा हिस्सा मैं तुम्हें दूंगी। इसलिए चुप हो जाओ। रोओ मत और मेरे साथ चलो। मैं तुम्हें अपनी झोंपड़ी में ले चलती हूँ जो कि अब से हम दोनों की है।”

जैसे ही तिलनी और बीमार औरत वहाँ से रवाना हुईं, एण्डरसन उठ खड़े हुए और जोर से आवाज के साथ रूमाल से नाक साफ करते हुए बोले कि लगता है पहाड़ी पर से आती ठंडी हवा से मुझे कमबख्त जुकाम हो गया है। आज की कार्रवाई यहीं खत्म की जाती है। पहाड़ी पर से आती ठंड़ी हवा का यही असर यहाँ मौजूद बाकी सब लोगों पर भी वैसा ही हुआ जैसा कि एण्डरसन पर। सभी को एकदम जुकाम हुआ और सभी को अपनी नाक साफ करने की जरूरत पड़ी थी। लेकिन अभी कार्रवाई पूरी नहीं हुई थी- छेदी एण्डरसन के पास पहुँचा और अपनी दरख्वास्त वापस माँगी। कागज वापस हाथ में आने पर उसने उसकी चिन्दी-चिन्दी   उड़ा दी और उसने पहचत्तर कलदारों वाली अपनी पोटली जेब से बाहर निकालकर खोल ली और बोला, “कालू और मैं एक ही गाँव के हैं और अब उसके पास खिलाने के लिए दो मुँह हो गए हैं। उनमें से एक को खास किस्म की खुराक की जरूरत है। मैं समझता हूँ कि कालू को पैसे की जरूरत मुझसे कहीं ज्यादा है। मैं आपसे इजाजत चाहता हूँ कि कालू को यह रकम वापस कर दूँ। मेहरबानी करके मुझे इजाजत दें।”

लालफीताशाही के पहले के जमाने में एण्डरसन और उनके पहले के अफसर दौरा करते हुए ऐसे सैकड़ों नहीं, हजारों मामले निपटाते थे जिनमें दोनों तरफ इंसाफ मिलने की पूरी तसल्ली होती थी- बगैर एक भी पैसा खर्च किए। अब लालफीता आ गया है और ऐसे सब मामले कचहरी में जाते हैं जहाँ फरियादी और मुद्दई दोनों का खून अच्छे से निचोड़ा जाता है और जहाँ दुश्मनी के बीज इस ढंग से बोए जाते हैं कि हर रोज नए मुकदमे पैदा होते हैं। फायदा सिर्फ वकीलों को होता है। गरीब, सीधे-सादे, ईमानदार और मेहनतकश इंसानों के हाथ आती है सिर्फ बरबादी।
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