मेरी ऑटो मर्शडीज से कम नहीं

विजय लक्ष्मी

6 दिसम्बर 2012 को हुई दुर्घटना के बाद भी दिल्ली में कोई बहुत बदलाव नहीं आया है। वहाँ आज भी महिलाएँ असुरक्षित  हैं लेकिन फिरभी महिलाएँ  बाहर निकलती हैं, घर के काम से, पढ़ने, नौकरी करने…. व्यापार करने। सुनीता भी काम करती है, थोड़ा अलग-सा। वह दिल्ली में ऑटो चलाती है। किसी ग्लैमर से नहीं बल्कि जरूरत के चलते, उसे भी दिल्ली में डर लगता है, लेकिन फिर भी उसे अपने काम से प्यार है और वह उसे करती रहना चाहती है, आखिर वह दिल्ली की पहली ऑटो ड्राइवर जो है।

दिल्ली की सड़कों पर मैं आज भी महफूज महसूस नहीं करती
पिछले आठा सालों से मैं दिल्ली की सड़कों पर ऑटो चला रही हूँ। इस दौरान मेरे ऑटो में अच्छे लोग भी बैठे और कई बार गलत लोग भी मिल गए। शुरूआत में गलत किस्म के लोगों से निपटने में थोड़ी घबराहट होती थी। वे लोग हाथ दिखाते थे, मैं उनके हाव-भाव को समझकर ऑटो को आगे बढ़ा देती थी। कभी-कभार ऐसा भी हुआ कि कुछ लोग नशे में धुत ऑटो को रोक लेते थे और ऑटो में बैठकर मेरे साथ छेड़खानी करने की कोशिश करते। वक्त ने ऐसे लोगों से निपटना सिखा दिया। अब मैं अपनी ऑटो में चाकू, कैमरा और मिर्ची का पाउडर हमेशा रखती हूँ। ऑटो के कागजों के साथ सभी सम्बन्धित दस्तावेज भी रखती हूँ। ताकि पुलिस वाले मुझे खामखां तंग न करें। पहले पुलिस को देखकर हाथ पैर काँपते थे। मैं उनसे उलझना नहीं चाहती थी, लेकिन अब कुछ तो मुझे जानने भी लगे हैं। बावजूद इसके मैं दिल्ली की सड़कों पर महफूज नहीं महसूस करती हूँ।

जब पुलिस काँस्टेबल ने रख दिया मेरे कंधे पर हाथ
कई सालों से ऑटो चला रही हूँ। जितनी मुश्किलें गलत सवारी मिल जाने से होती है, उतनी ही मुश्किलें दिल्ली पुलिस ने भी खड़ी की हैं। ऑटो चलाते समय मैं हमेशा सफेद वर्दी में रहती हूँ। तो एक बार पुलिस वाले ने मेरे कंधे पर हाथ रख कर कहा कि ऑटो रोक, जब मैंने मुड़कर देखा तो पुलिस ने कंधे से हाथ तो हटा लिया लेकिन इस कृत्य के लिए माफी नहीं माँगी। उस पुलिस वाले ने तुरन्त पलटकर कह दिया कि चल ऑटो हटा यहाँ से….। कई बार पैसे न देने के कारण पुलिस ने तंग किया। एक बार राष्ट्रपति भवन में गार्डन फेस्टीवल के दौरान एक पुलिस वाले ने मेरे चेहरे पर तमाचा इसलिए जड़ दिया कि मैंने उसे रिश्वत नहीं दी। यह नजारा वहाँ मौजूद कुछ टीवी चैनलों ने अपने कैमरे में कैद कर लिया था। मीडिया वालों के सहयोग से पास के थाने में मामला दर्ज हुआ और उस पुलिस वाले को सस्पेंड कर दिया गया। पुलिस ने खूब तंग किया लेकिन मैं इन सब बातों से घबराई नहीं और अपना काम करती गई। अब तो हालात यह है कि जंतर-मंतर स्टेशन स्थित थाने में तैनात पुलिस वाले मुझे जान गए हैं।

चाहती हूँ कि दूसरी महिलाएँ भी इस क्षेत्र में आएँ
आठ साल पहले जब मैं ऑटो चलाना सीख रही थी, तब मेरे साथ ऑटो सीखने वाले सभी पुरुष थे। मुझे पहले पहल तो यह सब अजीब लगता था लेकिन धीरे-धीरे मुझे आदत पड़ गई। उस समय भी मैं चाहती थी कि मेरे साथ कुछ महिलाएँ भी ऑटो चलाना सीखें। उस वक्त ऐसा नहीं हुआ और आज भी ऐसा नहीं हो रहा है। मैंने कई बार कुछ महिलाओं को ऑटो चलाने के लिए प्रेरित किया लेकिन इसमें जोखिम ज्यादा देख उन्होंने अपने कदम पीछे खींच लिए। आज हालात यह है कि कोई भी महिला ऑटो चलाना नहीं चाहती। टैक्सी ड्राइवर के रूप में कई महिलाएँ आगे आई हैं। मैं चाहती हूँ कि सरकार महिलाओं के लिए सुरक्षित माहौल तैयार करे तो शायद इस क्षेत्र में भी महिलाएँ आएँ।

जब मेरे ऑटो में बैठीं चेरी ब्लेयर, शीला दीक्षित और गुल पनाग
ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर की पत्नी चेरी ब्लेयर ने भी मेरे ऑटो में बैठकर मुम्बई के समंदरों के किनारे की सैर की है। उनके लिए खास तौर पर मेरा ऑटो बुक किया गया और मुझे मुम्बई बुलाया गया। चेरी ब्लेयर मेरे काम से बेहद प्रभावित हुईं और उन्होंने मुझे टिप भी दी। मुम्बई के उस दौरे के कारण मैंने भी मुम्बई दर्शन कर लिया। मुम्बई से कई बार लोग दिल्ली मेरी कहानी जानने के लिए आते हैं। चूँकि राजधानी में पहली और अकेली महिला ऑटो ड्राइवर हूँ तो मुझे कई बार महत्वपूर्ण कार्यक्रमों में भी बुला लिया जाता है। एक बार दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित भी मेरे ऑटो में फिरोजशाह कोटला मैदान तक गईं थी। उन्होंने मेरे मीटर के अनुसार भुगतान भी किया था और मेरा हौसला भी बढ़ाया था। वहीं, अभिनेत्री गुल पनाग ने मुझसे ऑटो चलाना सीखा। वे मेरे काम से बेहद प्रभावित हुईं और मेरे पास सामने की सीट पर बैठ गईं और बोलीं सुनीता अब मुझे भी ऑटो चलाना सिखा दे। गुल पनाग ने मेरे साथ कनॉट प्लेस का पूरा चक्कर लगाया।
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गैंगरेप के बाद भी दिल्ली में कुछ नहीं बदला
बसंत बिहार गैंग रेप की घटना ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया है। मैं भी उस मुहिम से जुड़ी हुई थी। मैंने भी जंतर-मंतर पर धरना प्रदर्शन किया। निर्भया के जाने के बाद देश में जो लहर उठी और महिला संगठन ने जिस तरह से इस मामले को उठाया काबिले तारीफ कदम था। दु:ख की बात है कि उस घटना के बाद पुलिस की सक्रियता जरा भी नहीं दिखाई देती। पुलिस महिलाओं के प्रति संवेदनशील नहीं है। कई पुलिस वाले आज भी गाली से बात करते हैं। तो मेरे हिसाब से जब तक पुलिस में महिलाओं के प्रति आदर भाव नहीं होगा तब तक कोई भी महिला पुलिस स्टेशन जाने से कतराती रहेगी। मेरा ही उदाहरण ले लो, कई बार कोई छेड़खानी कर देता है लेकिन मैं उन्हें डाँट-डपटकर मामला वहीं रफा-दफा करने की कोशिश करती हूँ। मुझे लगता है कि अगर मैं पुलिस के पास मामला लेकर गई तो मेरा वक्त भी बर्बाद होगा और पुलिस भी मुझे तंग करेगी।

आठ साल पहले ऑटो सीखने का विचार आया
करीब आठ साल पहले सोच रही थी कि मैं क्या करूँ जिससे मेरे घर की रोजी-रोटी चल सके। मेरे परिवार में हम दो बहनें और माता-पिता हैं। दिल्ली के मालवीय नगर स्थित एक झुग्गी में हम रहते हैं। जब हम दस साल पहले दिल्ली आए तो हमारे पास न छत थी, न ही रोजी-रोटी कमाने का कोई जरिया। मजदूरी कर लिया करते थे। मैंने दसवीं तक पढ़ाई की थी। कोई मेरे पिताजी को ऑटो सीखने की बात कर रहा था, लेकिन मेरे पिताजी ऑटो चला पाने में असमर्थ थे। पता नहीं मेरे दिमाग में यह बात बैठ गई कि मैं ऑटो सीख लूँ तो मुझे ऑटो चलाने का परमिट मिल जाएगा। इस तरह मैंने सरकार की ओर से शुरू ऑटो ड्राइविंग स्कूल में दाखिला ले लिया। वहाँ से मैंने लाइसेंस और परमिट हासिल कर लिया और एक ऑटो लोन पर ले लिया। ऑटो लेने भर से मेरी जिन्दगी में सब कुछ नहीं बदल गया। उस ऑटो के लोन की किश्त चुकाने के लिए मुझे दिन-रात मेहनत करनी पड़ी। आज मैं अपना दूसरा ऑटो लेने का मन बना रही हूँ लेकिन अभी तक मुझे कोई महिला ऑटो ड्राइवर नहीं मिली।

सुनीता विलियम और किरण बेदी जैसी इज्जत नहीं मिलती
मैं मेहनत से ऑटो चलाती हूँ लेकिन जो सम्मान मुझे समाज से मिलना चाहिए था वह नहीं मिला। मैंने लीक से हटकर काम करते हुए ऑटो चलाना शुरू किया और आज मैं इस काम से ही अपना घर सम्भाल रही हूँ। इस सबके बावजूद मुझे दुख है कि समाज मुझे वह सम्मान नहीं देता जिसकी मैं हकदार हूँ। देश की पहली महिला एस्ट्रोनॉट सुनीता विलियम के बारे में लोग बहुत बातें करते हैं, किरण बेदी के बारे में भी लोग बहुत बातें करते हैं लेकिन मुझसे कोई ठीक से बात भी नहीं करता।

मेरा ऑटो मेरे सुख-दु:ख का हिस्सेदार
मेरे लिए ऑटो किसी मर्सीडीज से कम नहीं है। यह मेरे लिए कामधेनु गाय की तरह है। इसी से मुझे पहचान मिली और मेरा घर चलता है। मैं दूसरा ऑटो लेने का मन बना रही हूँ तो भी इसी के भरोसे। इसने मेरे हर दु:ख-सुख में साथ दिया है। इसलिए जब भी मुझसे कोई कहता है कि तुम इसे बेचकर टैक्सी चलाना सीख लो तो मैं उन्हें यही जवाब देती हूँ कि मेरा ऑटो मेरे लिए मर्सीडीज है।
अनसूया से साभार
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