जश्ने आजादी और संगीत की बैठकें- संस्मरण

उमा अनन्त

देश विभाजन पर हुए दंगों की विकृति मेरे जहन को अन्दर तक झिंझोड़ती रहती। मेरे अन्दर तक कुछ ऐसा हिल गया था कि साते-सोते अजीब-अजीब सपने मुझे चीखकर जागने पर मजबूर कर देते। सपने में देखती कि बहुत सारे लाका कबूतर एक छोटे से द्वीप में जाकर छिप गये हैं परन्तु किसी ने उस पूरे के पूरे द्वीप को जला डाला है। उनकी फड़फड़ाहट से मेरी आँख खुल जाती और मैं पसीने-पसीने हो जाती। ऐसी कई यादें आँखों के सामने बार-बार नाचा करतीं। मुनव्वर सुल्तान और विल्कीस बेगम की बहुत याद आती।

जोगीबाड़ा स्थित बड़ी मामी का वह कमरा जिसमें कमरे के साइज का झालरदार पंखा था, याद आता, जिसकी डोरियाँ छत की कुंडियों से बँधी होती। मामी एक डोर को पाँव के अंगूठे में लपेट लेती। सोते समय भी उनके अंगूठे से बँधी डोर पंखा खींचती रहती और धीरी-धीमी हवा कमरे को ठंडक प्रदान करती रहती।

आखिरकार देश में 15 अगस्त की रात को आजादी मिलने की घोषणा कर दी गई। बाबा ने एक टैक्सी से पूरी दिल्ली हमें घुमाने की तैयारी कर ली। पूरी दिल्ली छोटे-छोटे नीले बल्बों से जगमगा रही थी। इंडिया गेट के छोटे-छोटे झाड़ीदार पेड़, गुब्बारे रोशनी से जगमगा रहे थे। राष्ट्रपति भवन, संसद और नई दिल्ली की सभी इमारतें, दुकानें एक भव्य नजारा उपस्थित कर रहीं थीं। ऐसा लगता था जैसे आकाश से सारे तारे उतर कर हमारे इस जश्न में शरीक होने जमीन पर आये थे। लाखों बलिदानों की ख्वाहिशें रंग लाई थीं। रात के बारह बजते ही पं. जवाहरलाल नेहरू का उद्गार, सरोजिनी नायडू की अंग्रेजी में पढ़ी कविता का रसास्वादन सदन में सभी उपस्थित लोग कर रहे थे। मुझे इस बात का बहुत गर्व है कि संसद में इस कार्यक्रम के प्रत्यक्षदर्शी मेरे पिता गंगा प्रसाद जी भी ड्यूटी पर उपस्थित थे। आकाश से छोटी-छोटी बूँदें भी देवताओं के आशीर्वाद स्वरूप तन और मन को भिगो रही थीं। सम्पूर्ण दिल्ली उजालों में नहाई हुई थी। मैं भाव विभोर थी कि आजादी के इस सुन्दर पर्व में मैं भी हिस्सा ले रही थी। माँ कह रही थी, आजादी सबसे बड़ा धर्म है, सबसे बड़ा मजहब है, सबसे बड़ा वरदान है।
(Memori by Uma Anant)

पिताजी के पार्लियामेंट, संसद मार्ग थाने में स्थानान्तरण के बाद हमने वहीं चार जयसिंह रोड पर आबंटित कोठी में रहना शुरू किया। मुझे राजापुर लेन के रघुमल आर्य, हायर सेकेण्डरी कन्या विद्यालय में दाखिला मिल गया।

हमारे साथ राष्ट्रपति माननीय डॉ. राजेन्द्र प्रसाद की दो पोतियाँ भी पढ़ती थीं। एक दिन उन्होंने कहा कि उनकी दादी ने कहा है कि अपनी मित्र को खाने पर लाओ। मैं राष्ट्रपति जी की पत्नी के निमंत्रण पर बेहद प्रसन्न थी। अगले दिन विद्यालय की छुट्टी होने पर राष्ट्रपति की गाड़ी राष्ट्रपति भवन तक ले गई। बैठने के लिये चौकी और भोजन हेतु ऊँची चौकी का प्रबन्ध था। हरे रंग की सूती छापे वाले वस्त्र पहनी महिला बड़े ही प्रेम से भोजन परोस रही थी। मैंने थोड़े से और बूँदी के रायते का आग्रह किया तो मेरी मित्र ने कहा, ये दादी हैं, राष्ट्रपति जी की पत्नी राजवंशी देवी। उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, बहुत सारे खानसामे होते हुए भी मैं अपने परिवार का भोजन स्वयं बनाना पसंद करती हूँ। मोटे-मोटे नयन-नक्श लगभग चारफुट की सूती धोती पहने वे अन्नपूर्णा का अवतार लग रही थीं।
(Memori by Uma Anant)

बाद में विद्यालय पहुँचने पर राष्ट्रपति जी की पोतियों ने बताया, दादा जी अपनी सभी उपलब्धियों का श्रेय दादी राजवंशी देवी को देते हैं। हमारे घर में महीने में एक बार पिता जी की बैठक भी लगती थी जिसमें महिलाओं का प्रवेश र्विजत था। इस बैठक में तीन व्यक्ति मुख्य थे, हरिजी, जिन्होंने अपना जीवन नेहरू जी को सर्मिपत कर दिया था। दूसरे व्यक्ति थे दिल्ली के शायर गुलजार देहलवी, जो अपनी शायरी से बैठक को गुलजार कर देते थे। तीसरे व्यक्ति अहमदजान थिरकवा।

भीतर के कमरों तक अहमदजान थिरकवा के तबले की थाप वातावरण को अपनी ध्वनि से तरंगित कर देती थी। कभी-कभी ऐसा प्रतीत होता था मानो सहस्रों प्रकाशपुंज वातावरण में फूट रहे हैं। घर के सभी सदस्यों को इन सबमें कोई रुचि नहीं थी। उन्हें पता था, जब-जब ये बैठकें होंगी, खाने का सामान जामा मस्जिद स्थित करीम की दुकान से लाया जाएगा। अहमदजान थिरकवा, गुलजार देहलवी और हरिजी की बैठक गंगा-जमुना-सरस्वती का संगम था। इन्हीं बैठकों में मुझे निरन्तर अहमदजान थिरकवा का तबला वादन सुनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। बाबा ने बताया कि ये फर्रुखाबाद घराने से थे। इसी घराने को चार-चाँद लगाने वाले अहमद थिरकवा थे।
(Memori by Uma Anant)

बाबा माँ को बता रहे थे कि अहमदजान थिरकवा कहते हैं कि तबला उत्साह जोर-जोर से पीटना निषिद्ध है। वे इतनी हल्की थाप से बजाते हैं कि कहीं उनके प्रिय थाप को कोई नुकसान न हो जाये। उसे प्यार से थपथपाते हैं, सहलाते हैं।

देश की आजादी के बाद जिन 6 पुलिस र्किमयों को उनकी ईमानदारी, निष्ठा और प्रतिबद्धता के लिये गोल्ड मैडल से अलंकृत किया गया, उनमें से एक मेरे पिताजी भी थे। गृहमंत्री, सरदार बल्लभ भाई पटेल जो उप प्रधानमंत्री थे, उनके कर कमलों से पुरस्कृत होना हमारे लिए गौरवपूर्ण था। इन 6 पुलिस कर्मियों पर हिन्दी दैनिक अखबार हिन्दुस्तान में न जिन्हें नींद सताती है न भूख शीर्षक से लेख भी लिखे गये।
क्रमश:
(Memori by Uma Anant)