संगीत और फिल्मों का माहौल

Memoir of Uma Anant 5
-उमा अनन्त

सर्वपल्ली श्री राधाकृष्णन जी के साक्षात्कार के बाद बाबा से बातचीत ही न हो सकी। आज दोपहर में बाबा ने मुझे बुलाया और कहा, श्रीमती एम.एस. सुब्बालक्ष्मी का गायन सुनना है तो कल तैयार रहना। मैं कन्हैय्यालाल (अर्दली) को भेज दूंगा उसके साथ आ जाना। फिर बाबा ने कहा कि डॉ. राधाकृष्णन जी ने तुम्हें आशीर्वाद भेजा है। बाबा ने कहा कि उनके घर में पाँच बच्चों की शिक्षा का पूरा ध्यान रखा गया जबकि उनकी र्आिथक स्थिति बेहद खराब थी। बचपन में ही राधाकृष्णन जी को ट्यूशन भी लेनी पड़ती थी संस्कृत और फिलॉसोफी उनके पसंदीदा विषय थे। उन्होंने मद्रास, कलकत्ता, शिकागो, ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में अध्यापन कार्य भी किया।
(Memoir of Uma Anant 5)

डॉ. राधाकृष्णन का कहना था ‘भारतीय दर्शन’ की गहराई यूरोपीय देशों तक भी पहुँचनी चाहिए। इसी सोच से उन्हें विश्व के बड़े दार्शनिकों में पहचाना जाने लगा।

लेखिका

बाबा ने कहा ‘उमा, श्री राधाकृष्णन जी के मन में तुम्हारे लिए बहुत ही प्रशंसा की भावना रही। उन्होंने कहा, तुम्हारी बेटी की उम्र की लड़कियाँ सौन्दर्य प्रसाधन, फिल्मी हीरो-हिरोइन की बातें और गाने पसंद करती हैं और तुम्हारी बेटी पढ़ने की बात करती है। मेरी बातों को बहुत मनोयोग से सुन रही थी। पढ़ने के प्रति बेहद लगाव उसकी बातों से मिलता है, उससे बात करते-करते कितना समय निकल गया, मुझे पता ही नहीं चला। तुम वाकई भाग्यशाली हो जो तुम्हें इतना प्यारा परिवार मिला है।’

मेरा हृदय अपने पिता के प्रति कृतज्ञता से भर गया कि मेरे पिता मेरी भावनाओं का सम्मान करते हैं। मैंने उस दिन खुद को बहुत मजबूत पाया। माँ-बाप का संवाद बच्चों के मृतप्राय जीवन को नई स्र्फूित से भर सकता है। डॉ. राधाकृष्णन जी का ‘आशीर्वाद’ आजीवन मेरा मार्ग दर्शन करता रहा है।
(Memoir of Uma Anant 5)

कन्हैय्यालाल मुझे लेने उचित समय पर पहुँच गए। श्रीमती एम.एस. सुब्बालक्ष्मी के गायन में मुख्य अतिथि पं. जवाहरलाल नेहरू थे। मंच पर लकदक जरी के बार्डर की साड़ी, नाक में दोनों तरफ हीरे के लौंग और कानों में हीरे के टॉप्स सुब्बालक्ष्मी के व्यक्तित्व को चार चाँद लगा रहे थे। मीराबाई रचित कविताओं का शास्त्रीय संगीतबद्ध गायन हृदय को पुलकित कर रहा था। उस आनन्द का वर्णन शब्दों में असम्भव है। सभा में उपस्थित सभी श्रोतागण उस अनिवर्चनीय सुख का रसास्वादन कर रहे थे। ऐसा स्र्वािगक संगीत मन की सारी कलुषता धोने की सामथ्र्य रखता है। ऐसा ही सुख उस समय मैंने महसूस किया। संगीत के ऐसे ही दिग्गज संगीत की पूजा करते हुए अपना सम्पूर्ण जीवन र्अिपत कर देते हैं।

मेरे बड़े भाई कृष्णादा का योगदान मेरे जीवन में अभूतपूर्व स्थान रखता है। वे मुझे अंग्रेजी पढ़ाते थे। विभिन्न कवियों की व्याख्या सुनकर मैं अभिभूत हो जाती थी। मेरी अंग्रेजी की लेखनी उन्होंने ही सुधारी। वे ऑल इंडिया रेडियो व टेलीविजन में प्रोग्राम एक्सीक्यूटिव के पद पर आसीन थे। महादेव रोड नई दिल्ली में ऑडिटोरियम था, जहाँ टेलीकास्ट होने से पहले फिल्मों को देखा जाता था ताकि कहीं कटी-फटी हो तो पहले से उसे सुधारा जा सके। कृष्णा दा ने सत्यजित रे की फिल्म ‘सोनार कैलास’ दिखाई। इस फिल्म के वे निर्देशक थे। उनके निर्देशन में बनी एक फिल्म ‘खुदितो पाषाण’ भी एक कालजयी फिल्म थी। यह फिल्म श्री रवीन्द्रनाथ टैगोर की कहानी पर आधारित थी।

इसी छोटे सभागार में ऋत्विक घटक की कुछ फिल्में देखने का अवसर भी मिला- ‘अजांत्रिक’ एक अद्भुत फिल्म थी जिसका निर्देशन ऋत्विक घटक ने किया था।

फिल्म देखने के पश्चात भाई कृष्णा दा मेरे साथ बैठ कर फिल्म की चर्चा करते और उसके सूक्ष्म पहलुओं से अवगत कराते।

नई दिल्ली के जन्तर-मन्तर से सटा रिवोली सिनेमा कुछ चुनी हुई अंग्रेजी फिल्में सुबह नौ बजे प्रदर्शित करता था। भाई के साथ, ‘ए टेल ऑफ टू सिटीज’, ‘ऑलिवर ट्विस्ट’ ‘फार फ्रॉम द मैंडिज क्राउड’ आदि कई अच्छी फिल्में देखीं। शुरू में अंग्रेजी  संवाद अच्छी तरह समझ में नहीं आते थे। कृष्णा दा ने बताया, डायलॉग समझना है तो पात्र के ओठों पर, उच्चारण पर ध्यान केन्द्रित करो। धीरे-धीरे संवाद समझ में आने लगेंगे। धीरे-धीरे अभ्यास से मैं अंग्रेजी की फिल्में भी रुचि से देखने लगी थी। अंग्रेजी की अच्छी पकड़ के लिये मैंने रिवोली सिनेमा हॉल के बेहद नजदीक रीगल थियेटर भी था। वहाँ पृथ्वी थियेटर के नाटक प्रसिद्ध सितारवादक श्री रविशंकर के भाई उदयशंकर अपने नाट्य बैले (अल्मोड़ा स्थित नृत्य संस्था) देखने का भी सौभाग्य प्राप्त हुआ कभी-कभी नरगिस के लिए मध्यांतर में दर्शकों से रूबरू हुआ करते थे।

उन दिनों  फिल्मी हीरो-हिरोहन को देखने के लिये धक्का-मुक्की का पागलपन सिर पर चढ़ा नहीं होता था, दर्शक बहुत धैर्य से उनकी बात सुनना पसंद करते थे। आज सायंकाल बाबा बहुत ही खिन्न और खीज से परेशान थे। वे माँ से कह रहे थे, महात्मा गाँधी सिक्योरिटी वालों से सहयोग नहीं कर रहे हैं। प्रार्थना सभा में प्रवचन सुनने के लिये एकत्रित भीड़ की तलाशी के प्रस्ताव से गाँधी जी सहमत नहीं हैं। वे कहते हैं ‘‘कोई मुझे क्यों मारना चाहेगा?’’ पुलिस सिक्योरिटी बेहद चिन्ता ग्रस्त है। बापू के दृढ़ निश्चय को डिगाना बहुत कठिन है।
(Memoir of Uma Anant 5)

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