समापन किस्त : जंग के खिलाफ मलाला

जुमा, 13 फरवरी 2009 : मौलाना फजलुल्लाह रोते रहे

आज मौसम बहुत अच्छा था। बहुत ज्यादा बारिश हुई और जब बारिश होती है तो मेरा स्वात और भी खूबसूरत लगता है। मगर सुबह जागते ही अम्मी ने बताया कि आज किसी ने रिक्शा ड्राइवर और बूढ़े चौकीदार को कत्ल कर दिया है। यहाँ अब जिन्दगी बद से बदतर होती जा रही है।

आस-पास के इलाके से रोजाना सैकड़ों लोग मिंगोरा आ रहे हैं जबकि मिंगोरा के लोग दूसरे शहरों की तरफ चले गए हैं। जो अमीर हैं, वह स्वात से बाहर गए हैं और जो गरीब हैं, वह यहाँ से कहीं और जा नहीं सकते।

हमने अपने तायाजाद भाई को फोन किया था कि वह इस अच्छे मौसम में अपनी गाड़ी में हमें मिंगोरा का चक्कर लगवाएँ। वह आया लेकिन जब हम बाहर निकले तो बाजार बंद था, सड़कें सुनसान थीं। हम कंबर के इलाके की तरफ जाना चाह रहे थे कि किसी ने बताया कि वहाँ एक बहुत बड़ा जुलूस निकला हुआ है।

रात को एफएम स्टेशन पर मौलाना फजलुल्लाह ने तकरीर की और वह देर तक रोते रहे। वह ऑपरेशन बंद होने का मुतालबा कर रहे थे। उन्होंने लोगों से कहा कि वह हिजरत न करें बल्कि अपने घरों में वापस आ जाएँ।

इतवार, 15 फरवरी 2009 : डरो मत यह अमन की फायरिंग है

आज पेशावर और गाँवों से मेहमान आए हुए थे। दोपहर को जब हम खाना खा रहे थे कि बाहर बहुत ज्यादा फायरिंग शुरू हुई। इतनी जबरदस्त फायरिंग मैंने इससे पहले कभी नहीं सुनी थी। हम सब डर गए, सोचा कि शायद तालिबान आ गए हैं। मैं भाग कर अब्बू के पास गई। उन्होंने कहा, ‘डरो मत यह अमन की फायरिंग है।’

अब्बू ने बताया कि आज अखबार में आया है कि कल हुकूमत और तालिबान के दरम्यान स्वात के बारे में अमन मुहायदा हो रहा है। इसलिए लोग खुशी से फायरिंग कर रहे हैं। लेकिन रात को जब तालिबान के एफएम पर भी अमन मुहायदा होने का ऐलान हुआ तो दोपहर से भी ज्यादा जबरदस्त फायरिंग हुई। क्योंकि लोग हुकूमत से ज्यादा तालिबान के ऐलान पर यकीन करते हैं।

जब हमने भी यह ऐलान सुना तो पहले अम्मी रोने लगी, फिर अब्बू, मेरे और दो छोटे भाइयों की आँखों से भी आँसू निकल गए।

आज मैं सुबह उठते ही बहुत ज्यादा खुश थी क्योंकि हुकूमत और तालिबान के दरम्यान अमन मुहायदा जो हो रहा था। आज हेलीकाप्टर की परवाज भी बहुत ज्यादा नीचे थी। मेरे एक कजन ने कहा कि जैसे-जैसे अमन आ रहा है वैसे-वैसे हेलीकाप्टर की परवाज भी नीचे हो रही है।

दोपहर को अमन मुहायदे की खबर सुनकर लोगों ने मिठाइयाँ बाँटीं। मेरी एक सहेली ने मुझे मुबारकबाद का फोन किया। उसने कहा कि अब उसे घर से निकलने का मौका मिलेगा क्योंकि वह कई महीनों से एक ही कमरे में बंद रही है। हम दोनों इस बात पर भी बहुत खुश थे कि शायद अब लड़कियों के स्कूल दोबारा खुल जाएँ।
(Malala Against War)

मंगल, 17 फरवरी 2009 : शहर की रौनक दोबारा लौट आई है

आज से मैंने इम्तेहानात की तैयारियाँ दोबारा शुरू कर दी हैं क्योंकि अमन मुहायदे के बाद लड़कियों के स्कूल दोबारा खुलने की उम्मीद पैदा हो गई है। आज मुझे ट्यूशन पढ़ाने वाली टीचर भी नहीं आईं क्योंकि वह किसी मँगनी में शिरकत करने गई थीं।

मैं जब अपने कमरे में आई तो मेरे दो छोटे भाई आपस में खेल रहे थे। एक के पास खिलौने वाला हेलीकाप्टर था और दूसरे ने कागज से बंदूक बनाई हुई थी। एक कह रहा था कि फायर करो, दूसरा फिर कहता पोजीशन सँभालो। मेरे एक भाई ने अब्बू से कहा कि ‘मैं एटम बम बनाऊँगा।’

आज स्वात में मौलाना सूफी मुहम्मद भी आए हुए हैं। मीडिया वाले भी ज्यादा तादाद में आए हैं। शहर में बहुत ज्यादा रश है। बाजार की रौनक वापस लौट आई है। खुदा करे कि इस दफे मुहायदा कामयाब हो। मुझे तो बहुत ज्यादा उम्मीद है लेकिन फिर भी अगर और कुछ नहीं हुआ तो कम से कम लड़कियों के स्कूल तो खुल जाएँगे।

बुध, 18 फरवरी 2009 : सहाफी के कत्ल से अमन की उम्मीद टूट गई

आज मैं बाजार गई थी, वहाँ बहुत ज्यादा रश था। लोग अमन मुहायदे पर बहुत खुश थे। आज बहुत अरसे के बाद मैंने बाजार में ट्रैफिक जाम देखा मगर रात को अब्बू ने बताया कि स्वात के एक सहाफी को नामालूम अफराद ने कत्ल कर दिया है। अम्मी की तबीयत बहुत खराब हो गई। हम सब की अमन आने की उम्मीदें भी छूट गईं।

जुमेरात, 19 फरवरी 2009 : हम अब जंग की नहीं अमन की बातें करेंगे

आज अब्बू ने नाश्ता तैयार करके दिया क्योंकि अम्मी की तबीयत कल से ही खराब है। उन्होंने अब्बू से गुल्ला भी किया कि उन्हें सहाफी की मौत की खबर क्यों सुनाई। मैंने छोटे भाइयों को कहा कि हम अब जंग की नहीं अमन की बातें करेंगे। आज पता चला कि हमारी हेडमिस्ट्रेस ने एलान किया है कि गर्ल्ज सेक्शन के इम्तेहानात मार्च के पहले हफ्ते में होंगे। मैंने भी आज से इम्तेहान की तैयारी मजीद तेज कर दी है।

सनीचर, 21 फरवरी 2009 : तालिबान ने लड़कियों के स्कूलों से पाबंदी उठा ली

स्वात में हालात रफ्ता-रफ्ता सही हो रहे हैं। फायरिंग और तोपखाने के इस्तेमाल में भी बहुत हद तक कमी आई है। लेकिन लोग अब भी डरे हुए हैं कि कहीं अमन मुहायदा टूट न जाए। लोग ऐसी अफवाहें भी फैला रहे हैं कि तालिबान के कुछ कमांडर इस मुहायदे को नहीं मान रहे हैं और कहते हैं कि हम आखिरी दम तक लड़ेंगे।

ऐसी अफवाहें सुनकर दिल धड़कने लगता है। आखिर वह ऐसा क्यों कर रहे हैं। वह कहते हैं कि हम जामिया हफसा और लाल मस्जिद का बदला लेना चाहते हैं लेकिन इसमें हमारा क्या कसूर है। जिन्होंने ये अपरेशन किया था उनसे ये लोग क्यों इंतिकाम नहीं लेते। अभी कुछ देर पहले मौलाना फजलुल्लाह ने एफएम पर एलान किया कि लड़कियों के स्कूल पर पाबंदी से मुतल्लिक अपना फैसला वापस लेते हैं। उन्होंने कहा कि लड़कियाँ इम्तेहानात तक जो सत्रह मार्च से शुरू हो रहे हैं स्कूल जा सकती हैं मगर उन्हें पर्दा करना होगा।

मैं ये सुनकर बहुत ज्यादा खुश हुई। मैं यकीन नहीं कर सकती थी कि ऐसा भी कभी हो सकेगा।
(Malala Against War)

इतवार, 22 फरवरी 2009 : ख्वातीन मार्केट सुनसान पड़ी थी

आज हम शापिंग करने के लिए ख्वातीन मार्केट गए। रास्ते में हमें बहुत ज्यादा खौफ महसूस हो रहा था क्योंकि तालिबान ने ख्वातीन की बाजारों में शापिंग करने पर पाबंदी लगा रखी है। हम मिंगोरा की चीना मार्केट गए जहाँ पर सिर्फ ख्वातीन की जरूरत की चीजें बिकती हैं। मार्केट में दाखिल होते ही हैरान हो गए कि वहाँ पर चंद ही ख्वातीन शापिंग करने आई थीं। पहले जब हम यहाँ आते थे तो ख्वातीन का इतना ज्यादा रश होता था कि वह एक-दूसरे को धक्का देकर अपने लिए रास्ता बनाती थीं। मार्केट में कुछ दुकानें बंद थीं और बाज पर लिखा हुआ था, दुकान बराए फरोख्त। और जो खुली भी थीं तो उनमें सामान कम पड़ा था और वह भी बहुत पुराना।

पीर, 23 फरवरी 2009 : स्कूल खुल गए

मैं आज उठते ही बहुत ज्यादा खुश थी कि आज स्कूल जाऊंगी। स्कूल गई तो देखा कुछ लड़कियाँ यूनिफार्म और बाज घर के कपड़ों में आई हुई थीं। असेंबली में ज्यादातर लड़कियाँ एक-दूसरे से गले मिल रही थीं और बहुत ज्यादा खुश दिखाई दे रही थीं।

असेंबली खत्म होने के बाद हेडमिस्ट्रेस ने बताया कि तुम लोग पर्दे का खुसूसी खयाल रखा करो और बुर्का पहन कर आया करो क्योंकि तालिबान ने लड़कियों के स्कूल जाने की इजाजत देने में ये शर्त भी रखी है कि लड़कियाँ पर्दे का खयाल रखें।

हमारी क्लास में सिर्फ बारह लड़कियाँ आई थीं क्योंकि कुछ स्वात से नकल मकानी कर चुकी हैं और कुछ ऐसी हैं जिन्हें उनके वालदैन खौफ की वजह से स्कूल जाने की इजाजत नहीं दे रहे हैं। मेरी चार सहेलियाँ पहले ही स्वात छोड़ कर जा चुकी हैं और आज एक और ने भी कहा कि वह लोग भी रावलपिंडी मुंतकिल हो रहे हैं। मैं बहुत खफा हुई और उनसे कहा भी कि अब तो वह रुक जाएँ क्योंकि अमन मुहायदा हो गया है और हालात भी आहिस्ता-आहिस्ता ठीक हो रहे हैं मगर वह कह रही थीं कि नहीं, हालात का कोई भरोसा नहीं।

मुझे बहुत दुख हुआ कि मेरी चार सहेलियाँ पहले ही जा चुकी हैं और सिर्फ एक रह गई थी, वह भी छोड़ कर जा रही है।

बुध, 25 फरवरी 2009 : मत उठाओ ताकि मौलाना फजलुल्लाह का कलेजा ठंडा हो सके

अम्मी बीमार हैं और अब्बू किसी मीटिंग के सिलसिले में स्वात से बाहर गए हुए हैं। इसलिए सुबह मैंने ही नाश्ता तैयार किया और फिर स्कूल गई। आज हमने क्लास में बहुत ज्यादा मस्ती की। वैसी खेले जैसे पहले खेला करते थे।

आजकल हेलीकाप्टर भी ज्यादा नहीं आते और हमने भी फौज और तालिबान के बारे में ज्यादा बातें करना छोड़ दिया है। शाम को अम्मी, मेरी कजन और मैं बुर्का पहन कर बाहर गए। एक जमाने में मुझे बुर्का पहनने का बहुत शौक था लेकिन अब इससे तंग आई हुई हूँ क्योंकि मुझसे इसमें चला नहीं जा सकता।

स्वात में आजकल एक बात मशहूर हो गई है कि एक दिन एक औरत शटल कक बुर्का पहन कर कहीं जा रही थी कि रास्ते में गिर पड़ी। एक शख्स ने आगे बढ़ कर जब उसे उठाना चाहा तो औरत ने मना करते हुए कहा, ‘रहने दो भाई, मत उठाओ ताकि मौलाना फजलुल्लाह का कलेजा ठंडा हो जाए।’

हम जब मार्केट में उस दुकान में दाखिल हुए जिसमें अक्सर शपिंग करते हैं तो दुकानदार ने हँसते हुए कहा कि मैं तो डर गया कि कहीं तुम लोग खुदकश हमला तो करने नहीं आए हो। वह ऐसा इसलिए कह रहे थे कि इससे पहले एक-आध वाकया ऐसा हुआ भी है कि खुदकश हमलावर ने बुर्का पहन कर हमला किया है।
(Malala Against War)

जुमा, 27 फरवरी 2009 : अपने गाँव की याद रही है

आज स्कूल गई तो अपनी दो सहेलियों को देखकर इंतहा खुशी हुई। अपरेशन के दौरान दोनों रावलपिंडी चली गई थीं। इन्होंने बताया कि रावलपिंडी में अमन भी था और जिन्दगी की दीगर सहूलियात भी अच्छी थी मगह हम इंतजार कर रहे थे कि कब स्वात में अमन आएगा और स्कूल खुलेंगे ताकि हम वापस चले जाएँ।

आज हमारी एक टीचर मोटरवे के बारे में सबक पढ़ा रही थीं और वह मिसाल देने के लिए स्वात के चहार बाग के इलाके का नाम बार-बार लेती रहीं। मैंने पूछा – मैडम, आप बार-बार चहार बाग की मिसाल दे रही हैं, तो उन्होंने कहा कि मैं चहार बाग में रहती थी। वहाँ घर पर मोर्टार गोले लगे तो हम मिंगोरा मुंतकिल हो गए। अब अपने चहार बाग की बहुत याद आ रही है। इसलिए मेरी जबान पर इसका नाम आ जाता है। हमारे मुहल्ले से भी लोगों ने नकल मकानी की थी और आज एक पड़ोसी घर वापस आ गए।

पीर, 2 मार्च 2009 : दिन को मजदूर और रात को तालिब बन जाता है

हमारी क्लास में लड़कियों की तादाद रफ्ता-रफ्ता बढ़ रही है। आज सत्ताईस में से उन्नीस लड़कियाँ आई हुई थीं। नौ मार्च से इम्तेहानात शुरू हो रहे हैं। इसलिए हम ज्यादा वक्त पढ़ने में गुजारने की कोशिश करते हैं।

आज खवातीन के साथ चीना मार्केट गई थी और वहाँ मैंने खूब शॉपिंग की क्योंकि वहाँ एक दुकानदार अपनी दुकान खत्म कर रहा है। वह कम कीमत पर चीजें बेच रहा है। चीना मार्केट में ज्यादातर दुकानें अब बंद हो गई हैं।

आजकल मोर्टार गोलों की आवाजें भी खत्म हो गई हैं। लिहाजा रात को अच्छी तरह से सो जाते हैं। सुना है कि तालिबान अब भी अपने इलाकों में कार्रवाइयाँ करते हैं। वह बेघर होने वाले अफराद के लिए आने वाला इमदादी सामान भी लूट लेते हैं। मेरी एक सहेली ने कहा कि उसके भाई ने अपने एक जानने वाले को एक रात तालिबान के साथ गाड़ियों की तलाशी लेते हुए देखा तो हैरान हुआ। उसके भाई का कहना था कि यह लड़का सुबह को मजदूरी करता है और रात को तालिबान के साथ होता है। उसने कहा कि मैंने उससे पूछा कि मैं तो तुम्हें जानता हूँ, तुम तो तालिब नहीं हो फिर ऐसा क्यों कर रहे हो। उसने जवाब दिया कि सुबह को मजदूरी करके कमाता हूँ और रात को तालिबान के साथ होता हूँ तो अच्छा-खासा खर्चा निकल आता है और घर के लिए खाने-पीने की चीजें भी मिल जाती हैं।
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मंगल, 3 मार्च 2009 : अमन मुहायदा दरअस्ल जंग के दरम्यान का वफा है

मेरे छोटे भाई को स्कूल जाना पसंद नहीं है। वह सुबह स्कूल जाते वक्त रोता है और वापसी पर हँसता है। लेकिन आज रोते हुए वापस आया तो अम्मी ने रोने की वजह पूछी। वह कहने लगा कि मुझे स्कूल से आते वक्त डर लग रहा था। जब भी कोई शख्स नजर आता तो मैं डर जाता कि कहीं वह मुझे अगवा न कर ले।

मेरा यह छोटा भाई अक्सर दुआ करता है कि ‘ए अल्लाह स्वात में अमन ले आना। अगर नहीं आता तो फिर अमरीका या चीन को यहाँ ले आना।’

स्वात में आज फिर तालिबान और फौज के दरम्यान लड़ाई हुई है। कुछ दिनों से ऐसे वाकयात हो रहे हैं। आज मैंने कई दिनों बाद पहली मर्तबा मोर्टार गोलों की आवाजें सुनीं। लोगों में फिर अमन मुहायदा टूटने का खौफ पैदा हो गया है। बाज लोग कहते हैं, ‘दरअस्ल अमन मुहायदा मुस्तिकल नहीं बल्कि यह जंग के दरम्यान वकफा है।’

बुध, 4 मार्च 2009 : तालिबान एफएम बंद होगा तो अमन आएगा

आज क्लास में उस्तानी ने पूछा कि तुम में से कौन-कौन तालिबान का एफएम सुनता है तो ज्यादातर लड़कियों ने कहा कि अब सुनना छोड़ दिया है। लेकिन कुछ लड़कियाँ अब भी सुन रही हैं। लड़कियों का खयाल था कि जब तक एफएम चैनल बंद नहीं होता तब तक अमन नहीं आ सकता।

तालिबान कहते हैं कि वह एफएम चैनल को दरस-ए-कुरआन के लिए इस्तेमाल करते हैं लेकिन कमांडर खलील इब्तदा में कुछ देर के लिए दरस-ए-कुरान देना शुरू कर देते हैं मगर आहिस्ता से मौजू बदल कर अपने मुखालफीन को धमकियाँ देना शुरू कर देते हैं। जंग, तशद्दुद और कत्ल के सभी एलानात एफएम से होते हैं।

आज हम जब रीसेस के दौरान क्लास से बाहर निकले तो फिजा में हेलीकाप्टर नजर आया। जहाँ हमारा स्कूल वाके है वहाँ पर हेलीकाप्टर की परवाज बहुत नीची होती है। लड़कियों ने फौजियों को आवाजें दीं और वह भी जवाब में हाथ हिलाते रहे। फौजी अब हाथ हिलाते हुए थके हुए मालूम हो रहे हैं क्योंकि ये सिलसिला गुजिश्ता दो सालों से जारी है।

पीर, 9 मार्च 2009 : तालिबान अब गाड़ियों की तलाशी नहीं लेते

आज से हमारे इम्तेहानात शुरू हो रहे हैं। लिहाजा उठते ही बहुत परेशान थी। अम्मी और अब्बू हमारे किसी रिश्तेदार की फातिहा ख्वानी के लिए गाँव गए हुए हैं। इसलिए आज मैंने खुद ही छोटे भाइयों के लिए नाश्ता तैयार किया।

मेरा साइंस का पेपर बहुत अच्छा हुआ। दस सवालों में से आठ करने थे मगर मुझे दस के दस याद थे। जब घर वापस आई तो अम्मी अब्बू को घर में पाकर बहुत खुश हुई। अम्मी ने बताया कि वह तालिबान के जेर-ए-कंट्रोल इलाके से होकर गाँव गए थे। वहाँ तालिबान मुसल्लह नजर आ तो रहे थे लेकिन वह पहले की तरह गाड़ियों की तलाशी नहीं ले रहे थे।

मंगल, 10 मार्च 2009 : मौलाना शाह दौरान गाँव वापस गए

आज जब मैं स्कूल से वापस आ रही थी तो मेरी एक सहेली ने मुझ से कहा कि सर अच्छी तरह ढाँप कर जाओ नहीं तो तालिबान सजा दे देंगे। आज भी मिंगोरा के करीब कंबर के इलाके में सिक्योरिटी फोर्सेज पर फायरिंग हुई है।

तालिबान के एफएम चैनल पर तकरीर करने वाले मौलाना शाह दौरान भी आज अपने गाँव कंबर से वापस आ गए हैं। कहते हैं कि वहाँ के तालिबान ने उनका इस्तेकबाल किया। तालिबान ने अब भी लोगों से कहा है कि वह नमाजें पढ़ा करें और ख्वातीन पर्दे का खास खयाल रखें।
(Malala Against War)

बुध, 11 मार्च 2009 : बहुत अर्से बाद गाने सुने

आज का पेपर भी अच्छा हुआ और खुश हूँ कि कल छुट्टी है। आज मैंने और दो छोटे भाइयों ने चूजे खरीदे मगर मेरे चूजे को सर्दी लग गई है और बीमार हो गया। अम्मी ने उसे गर्म कपड़े में रख दिया है।

आज बाजार भी गई जहाँ बहुत ज्यादा रश था। कहीं-कहीं पर ट्रैफिक भी जाम था। पहले रात होते ही बाजार बंद हो जाता लेकिन अब रात देर तक खुला रहता है।

आज मैंने रेडियो ऑन किया तो हैरत हुई कि एक खातून प्रोग्राम कर रही थी और लोग फोन पर अपनी पसंद के गाने की फरमाइश कर रहे थे। अब्बू ने बताया कि यह हुकूमत का चैनल है। बहुत अर्से बाद मैंने रेडियो पर पश्तो के गाने सुने। दूर-दराज से लोग फोन करते हैं। एक लड़के ने तो बलूचिस्तान से फोन किया।

जुमेरात, 12 मार्च 2009 : जन्नत में हूरें अनीस का इंतजार कर रही हैं

मेरा दो दिनों से गला खराब है, लिहाजा अब्बू मुझे डॉक्टर के पास ले गए। वहाँ वेटिंग रूम में दो ख्वातीन भी बैठी हुई थीं और दोनों का ताल्लुक कंबर के इलाके से था। इन में से एक ने बताया कि उनके इलाके में अब भी तालिबान का कंट्रोल है। उन्होंने बाज लोगों को सजाएँ भी दी हैं। खातून ने अपने मुहल्ले के एक लड़के का वाकया भी सुनाया। उन्होंने कहा कि मुहल्ले में एक लड़का है, जिसका नाम अनीस है।

वह तालिबान का साथी था। एक दिन उसके तालिबान साथी ने उसे बताया कि उसने एक ख्वाब देखा है जिसमें जन्नत की हूरों ने उससे कहा कि ‘हमें अनीस का इंतजार है।’ खातून ने बताया कि यह बात सुनकर अनीस बहुत खुश हुआ और अपने वालदैन के पास गया और कहा कि हूरें उनका इंतजार कर रही हैं और वह खुदकश हमला करके शहीद होना चाहता है। माँ-बाप ने उसको इजाजत नहीं दी तो उसने कहा कि वह अफगानिस्तान जाकर जिहाद करना चाहता है।

खातून के बकौल घर वालों ने लड़के को इजाजत नहीं दी मगर लड़का घर से भाग गया और कल डेढ़ साल बाद स्वात के तालिबान ने उनके घर वालों को बताया कि अनीस स्वात में सिक्योरिटी फोर्सेज पर खुदकश हमले में हलाक हो गया है।
बीबीसी उर्दू से साभार
(Malala Against War)
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