मुम्बई के अपराध लोक की साम्राज्ञियाँ- किताब

मधु जोशी

2011 में प्रकाशित एस. हुसैन जैदी तथा जेम्स बॉर्जेस द्वारा लिखित पुस्तक माफिया क्वीन्स ऑफ मुम्बई के ”रानियों” शब्द के स्थान पर ”साम्राज्ञियां” शब्द प्रयोग करना अधिक उचित लगता है। वस्तुत: यह पुस्तक- जो दो पत्रकारों द्वारा लिखित विस्तृत सामाजिक दस्तावेज भी हैं और दिलचस्प किस्सागोई का उत्कृष्ट उदाहरण भी- मुम्बई के अंडरवल्र्ड में सक्रिय उन दिलेर महिलाओं के जीवन का लेखा-जोखा प्रस्तुत करती है जो एक समय में अपनी-अपनी अपराध की दुनिया की एकछत्र साम्राज्ञियां थीं। लेकिन जिनको इनके पुरुष सहर्किमयों के मुकाबले कम महत्व दिया जाता था। ऐसा भी नहीं कि इतिहास तथा साहित्य में इनके जैसी कद्दावर जरायम-पेशा महिलाएँ नहीं मिलती हैं। चाहे वह माताहारी, फूलनदेवी और सीमा परिहार हो या लेडी मैकबैथ, मदाम बोवरी और ऐना करैनिना, ऐसी महिलाओं के अनेक उदाहरण हैं जो अपने उद्देश्य की पूर्ति हेतु नियमों और कानूनों को एक झटके में परे धकेलने में नहीं हिचकिचाईं। माफिया क्वीन्स ऑफ मुम्बई ऐसी ही तेरह महिलाओं के जीवन पर प्रकाश डालती है, जिन्होंने विभिन्न क्षेत्रों और व्यवसायों में अंडरवल्र्ड में अपनी उपस्थिति दर्ज करायी। पुस्तक का उप शीर्षक स्टोरीज ऑफ वीमेन फ्राम द गैंगलैंड्स भी इस तथ्य को इंगित करता है कि यह उन महिलाओं के किस्से बखान करने वाली है, जिनकी अलग-अलग समय पर मुम्बई के अपराधी गिरोहों की रहस्यमय दुनिया के किसी छोटे-बड़े हिस्से के ऊपर पुख्ता पकड़ थी।

माफिया क्वीन्स ऑफ मुम्बई की भूमिका में लेखक बताते हैं कि नब्बे के दशक के उत्तरार्ध में अपराध-जगत के समाचार एकत्र करते हुए, ”महिला अपराधियों ने उन्हें सम्मोहित कर दिया और उन्हें समझ में आया कि अपने उद्देश्य की पूर्ति हेतु यह अधिक हिम्मती, तिकड़मी और घातक होती है।” इनके अनुसार उनकी पुस्तक महिला अपराधियों के जटिल दिमाग और मानसिकता को समझने का प्रयास है। लेखक यह भी दावा करते हैं कि ना तो उन्होंने अपराध और अपराधियों का महिमामण्डन किया है और न ही उन्हें एक कोरे पन्ने की तरह माना है। जिस पर खतरनाक पुरुष माफिया सदस्यों द्वारा अपनी मन-माफिक इबारतें लिखी गयी थीं। पुस्तक लिखने के लिए कोर्ट के कागजात, पुलिस के रिकार्ड, पुलिस इतिहासकारों, भरोसेमंद पत्रकारों, प्रमुख राष्ट्रीय समाचार पत्रों में प्रकाशित खबरों, रिश्तेदारों, पड़ोसियों, सेवानिवृत्त पुलिस र्किमयों और स्वतंत्र गवाहों के साक्षात्कारों की सहायता से तथ्यों का संग्रहण किया गया है।
(Mafia Queens of Mumbai)

सबसे पहले पाठकों की मुलाकात होती है, जैनल दरवेश गांधी अर्थात् जेनाबाई दारुवाली से। देश के विभाजन के समय जब जेना बाई के पति पाकिस्तान चले गये और उन पर अपने पांच बच्चों के लालन-पालन की जिम्मेदारी आ गई तो उन्होंने जीविकोपार्जन के लिए बासमती चावल की काला बाजारी शुरू कर दी। वर्धराजन मुदलियार नामक डॉन के सम्पर्क में आने के बाद वह शराबबन्दी के दौरान शराब की कालाबाजारी से जुड़ गईं और जल्द ही उनके इलाके डोंगरी में उनके नाम की तूती बोलने लगी। एक समय ऐसा भी था जब वह हाजी मस्तान, दाऊद इब्राहिम और पठान बन्धुओं सरीखे शक्तिशाली माफिया क्षत्रपों के निर्णयों को प्रभावित करने की क्षमता रखती थीं। वह पुलिस के लिए मुखबिरी भी करती थीं और 1993 में दंगों के उपरान्त अपनी बढ़ती उम्र और ढलते स्वास्थ्य के बावजूद उन्होंने डोंगरी स्थित अपने निवास स्थान चूना वाला र्बिंल्डग से पुलिस मुख्यालय तक हाथों में सफेद डंडा लेकर लड़खड़ाते कदमों से सैकड़ों की भीड़ की अगुवाई करते हुए शान्ति जुलूस निकाला था। उनके चारों तरफ बुने मिथकों में उनके पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई और तत्कालीन मुख्यमंत्री यशवन्त राय चह्वाण के साथ सम्पर्क का भी जिक्र होता है। चाहे हम जेना बाई के अचम्भित करने वाले जीवन से प्रभावित हों या न हों, इस बात में दो राय नहीं हो सकती है कि जेना बाई एक अत्यन्त बुद्धिमान, चतुर और हिम्मती महिला थी जिनका एक जमाने में जुर्म की दुनिया में बड़ा रसूख था।

जेना बाई की तरह गंगू बाई काठेवाली को भी शुरूआत में गैर कानूनी गतिविधियों में धकेला गया था। कच्ची उम्र में गंगा हरजीवनदास काठियावाड़ी  रमणीक नाम के युवक के साथ गुजरात में अपने गाँव काठियावाड़ से भागकर मुम्बई आ गईं क्योंकि रमणीक ने उन्हें आश्वासन दिया था कि वह उन्हें फिल्मों में काम दिलायेंगे। मुम्बई पहुँचने के कुछ दिनों बाद रमणीक ने उन्हें कमाठीपुरा इलाके के एक ”पिंजड़े” (कोठे) की ”घरवाली” (मालकिन) को एक हजार रुपये में बेच दिया और यहाँ से आरम्भ हुआ यौनकर्मी के रूप में उनका जीवन। जब उन्हें समझ आया कि घर लौटने के सभी दरवाजे उनके लिए बंद हो चुके हैं तो वह इतनी लगन से अपने काम में जुट गईं कि शनै: शनै: पूरे इलाके में उनकी घाक जम गई। इसी बीच उन्होंने कुख्यात डॉन करीमलाल की कलाई में राखी बाँधकर उनका संरक्षण भी प्राप्त कर लिया। वह यौन व्यवसाय में जबरन फँसाई गईं उन लड़कियों की घर वापसी का इंतजाम करने लगीं जिनके लिए घर लौटने के रास्ते पूरी तरह से बंद नहीं होते थे। कमाठीपुरा की यौनर्किमयों की सुरक्षा और गरिमा के लिए वह सतत प्रयासरत रहीं। आजाद मैदान, मुम्बई में राजनीतिक दलों, एन.जी.ओ. तथा सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा आयोजित एक जनसभा में उन्होंने यौन व्यवसाय को कानूनी मान्यता प्रदान करने तथा यौन र्किमयों को संरक्षण और बेहतर सुविधा देने की पुरजोर वकालत की थी। यौनर्किमयों की माँगों के सिलसिले में उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से भी मुलाकात की। यौनर्किमयों के हित में किये गये उनके अनवरत प्रयासों के फलस्वरूप उनकी मृत्यु के उपरान्त कमाठीपुरा के लगभग सभी कमरों में उनके चित्र पाये जाते थे और इलाके के अनेक नुक्कड़ों और गलियों में उनके बुत लगाये गये थे।
(Mafia Queens of Mumbai)

इस पुस्तक में पाठकों की मुलाकात अशरफ खान नामक गृहिणी से भी होती है जो दाऊद इब्राहिम द्वारा अपने पति महबूब खान की हत्या का बदला लेने के लिए दाऊद के दुश्मन हुसैन उस्तरा की सहायता से, सपना दीदी नाम धारण करके, हथियारों के इस्तेमाल और मुठभेड़ में पारंगत लड़ाकों के गिरोह की सरगना बन जाती हैं। वह अपने अनुचरों की सहायता से शारजाह में क्रिकेट मैच के दौरान छातों, टूटी बोतलों आदि नुकीली चीजों से गोदकर दाऊद की हत्या करवाने की योजना बनाती हैं, लेकिन उनका ही एक भेदिया इसकी खबर दाऊद तक पहुँचा देता है और दाऊद अत्यन्त बर्बर और लोमहर्षक तरीके से गोलियों और चाकुओं से उसकी हत्या करवा देता है। यहाँ पाठकों की मुलाकात ड्रग्स के व्यवसाय में लिप्त ज्योति आदिरामलिंगम और महालक्ष्मी पापामणि तथा अपराध जगत के कुख्यात डॉन अबू सलेम के साथ लिस्बन में फर्जी पासपोर्ट के साथ पकड़ी गयी फौजियाबेग उर्फ सिने तारिका मोनिका बेदी से भी होती है। पुस्तक में अपराध लोक के सरदारों अरुण गावली, अश्विन नायक, राजेन्द्र सदाशिव निखल्जे उर्फ छोटा राजन और रवि पुजारी की पत्नियों आशा गाँवली, नीता नायक, सुजाता निखल्जे और पद्मा पुजारी की जुर्म की दुनिया में दखल अंदाजी का वृतान्त भी शामिल है। छोटा शकील नामक गैंगस्टर की साझेदारों समीम मिर्जा बेग उर्फ मिसेज पॉल और रूबीना सिराज सैय्यद उर्फ मौण्टी का विवरण भी पुस्तक में शामिल है। तरन्नुम खान नामक बार डांसर जिसको करोड़ों रुपये बेहिसाब धन के लिए गिरफ्तार किया गया था, जिसे उसने तथाकथित रूप से क्रिकेट के सट्टा बाजार और अन्य गैरकानूनी गतिविधियों से कमाया था, का भी इसमें जिक्र है। पुस्तक की अंतिम ”नायिका” है, छोटा राजन का दाँया हाथ कहलाये जाने वाले ओमप्रकाश उर्फू बबलू श्रीवास्तव द्वारा स्वयं अपराधी गतिविधियों के लिए प्रशिक्षित अर्चना बालमुकुन्द शर्मा उर्फ मनीशा अग्रवाल जो एक जमाने में उज्जैन में रामलीला में सीता के पात्र का अभिनय करती थी!

इन महिलाओं के संदर्भ में मैट डैनियल्स लिखते हैं कि, ”ये वे चंद महिलाएँ हैं जिन्होंने निडर होकर अपना जीवन जिया और माफिया क्वीन्स ऑफ मुम्बई इनकी साहसी मनोवृत्ति का गुणगान करती है।” पुस्तक की प्रशंसा होने के साथ  इसकी आलोचना भी हुई है। जहाँ कुछ समीक्षाएँ इसे निम्न स्तरीय रोमांचक साहित्य की श्रेणी में शामिल करती हैं, वहीं अल्पना चौधरी के अनुसार कुछ भागों में यह महीला जीवन की त्रासदियों का, उत्तेजना पैदा करने के उद्देश्य से, चटकारे ले-लेकर बखान करती है। इन तथ्यों में कुछ हद तक सच्चाई तो है लेकिन यह बात भी सच है कि, जैसा प्रशान्त बी. अपने ब्लॉग में लिखते हैं, ”माफिया क्वीन्स ऑफ मुम्बई नारित्व का भयावह चेहरा प्रस्तुत करती है।” इस बात को भी नकारा नहीं जा सकता है कि यद्यपि हिन्दी सिनेमा ने ”गॉड मदर” संतोरबेन जडेजा और ”हसीना पार्कर” सरीखी नेत्रियों का यदा-कदा चित्रण किया है, साहित्य और इतिहास में इनके जीवन और इनकी गतिविधियों पर रोशनी कम ही डाली गई है। इस तथ्य को रेखांकित करना भी आवश्यक है कि इन जैसी महिलाएँ, ढूँढने पर सिर्फ मुम्बई ही नहीं, देश के अन्य हिस्सों में भी मिल जायेंगी।
(Mafia Queens of Mumbai)

वस्तुत: पुस्तक की विशिष्टता यही है कि ना यह कटु सत्य से मुँह मोड़ती है, न यह इन अपराधी सरगनाओं को महज सताई-प्रताड़ित-असहाय-दुखियारी बेचारियों के रूप में चित्रित करती है और न ही यह इनका रोमांटीकरण और महिमामण्डन करके इन्हें महामानवी नायिकाओं के रूप में प्रस्तुत करती है। इसके अलावा यह इनके कार्यों, रवैये, अपराधों और उनके दुष्प्रभावों पर किसी भी तरह से पर्दा डालने का प्रयास भी नहीं करती है। यह सिर्फ पूरी सहानुभूति और साफगोई के साथ उन महिलाओं की कहानियाँ कहती है जिन्हें समाज, साहित्यकारों और इतिहासकारों द्वारा समान्यत: नजरअंदाज कर दिया है। यह भी सच है कि इन महिलाओं का जीवन महिला अधिकारों और सशक्तीकरण से जुड़े एक ऐसे पक्ष की सच्चाई को भी आईना दिखाते हैं। जिनसे मुँह मोड़कर हम सजग नागरिकों की तरह नहीं, अपितु रेत के ढेर के तले मुँह छुपाने वाले शुर्तुमुर्गों की तरह व्यवहार करेंगे। फिल्मकार विशाल भारद्वाज इस तथ्य को रेखांकित करते हुए पुस्तक की प्रस्तावना में लिखते हैं- ”तो मैं गर्व के साथ आपका इन सुन्दर, दयालु तथा चालाक योद्धा रानियों की दुनिया में स्वागत करता हूँ। जिन्होंने उस काँच की दीवार को तोड़ा जिसे निर्मम मर्दानगी का अभेज्ञ दुर्ग कहा जाता है।” यही इस पुस्तक की विशेषता है और वही इस पुस्तक की चर्चा करने के लिए सर्वोचित दृष्टिकोण है।
(Mafia Queens of Mumbai)

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