मोहब्बत के खिलाफ लव जेहाद का जुनून

Love Jihad against the Love
-नासिरुद्दीन

हमारे समय के कुछ मशहूर शब्दों में एक ‘लव जिहाद’ भी है। इसी के पीछे-पीछे एक और शब्द भी उछला ‘किस ऑफ लव’। हालांकि ‘किस ऑफ लव’ को वह शोहरत हासिल नहीं हुई, जो ‘लव जिहाद’ को हासिल है। दोनों शब्दों के इस्तेमाल की शुरूआत दक्षिणी राज्यों से होती है। दोनों शब्दों का अपना खास इतिहास भी है। (Love Jihad against the Love)

‘लव जिहाद’ शब्द कहाँ से पैदा हुआ, पता नहीं। हालांकि करीब छह-सात साल पहले यह शब्द केरल में सबसे पहले सुनाई दिया। कई सालों तक यह केरल और कर्नाटक की सीमा में ही अटका रहा। करीब दो-तीन साल पहले यह बड़ी तेजी से देश के बाकी हिस्सों में फैल गया। उत्तर प्रदेश के पश्चिमी इलाके मुजफ्फरनगर में इसकी वजह से साम्प्रदायिक हिंसा भी हुई।

मीडिया में भी इसने अच्छी खासी शोहरत पा ली है। यों भी कह सकते हैं कि मीडिया ने इसे अपना लिया है। ‘लव जिहाद’ दो शब्दों से बना एक शब्द है। इसमें एक शब्द अंग्रेजी और दूसरा अरबी भाषा का है। दोनों अंग्रेजी क्यों नहीं या दोनों अरबी क्यों नहीं, यह सोचने वाली बात है। पहली झलक में लगता है कि‘लव जिहाद’ एक ऐसे मुहिम की बात कर रहा है, जो मोहब्बत के लिए है। यानी यह ‘मोहब्बत जिंदाबाद’ में यकीन रखने वाला मुहिम है। मोहब्बत के पैरोकारों की मुहिम है। ‘लव’ यानी प्यार! लेकिन जो बात ‘लव’ से कहने की कोशिश की जा रही है, वह बात प्यार या मोहब्बत में नहीं दिखती। अंग्रेजी शब्द होने के नाते ‘लव’ से पश्चिमी मूल्यों से जुड़ने की छवि बनती है। पश्चिमी कहते ही हमारा समाज जिस तरह की छवि बनाता है, वह क्या है? ऐसी चीजें जो ‘भारतीय संस्कृति’ के खिलाफ हैं। है न? यह छवि प्यार या मोहब्बत जैसे शब्द से नहीं लाई जा सकती है।

इस शब्द में ‘जिहाद’ शब्द का इस्तेमाल भी बहुत सोच-समझकर किया गया है। ‘जिहाद’ सुनते ही ‘जिहादी’ याद आते हैं। ‘आतंक’ और ‘आतंकी’ याद आते हैं। ‘जिहाद’ या ‘जिहादी’ शब्द सुनते ही, ख़ास धर्म और उसके मानने वाले लोगों की छवि भी बनती है। ये छवियाँ कहीं से सकारात्मक नहीं होती हैं। अब इस परिप्रेक्ष्य में ‘लव जिहाद’ शब्द को देखें तो यह ‘लव का आतंक’ हुआ। इस लिहाज से देखा जाए तो ‘लव जिहाद’ नकारात्मक भाव पैदा करने के लिए इस्तेमाल किया जाना वाला शब्द है। वैसे, बेहतर है कि उन लोगों के विचार से ही इसके मायने निकाले जाएँ, जो इसका सबसे ज्यादा इस्तेमाल करते हैं। जितने बड़े पैमाने पर ये इसका इस्तेमाल करते हैं, इससे यह भी मानने में हर्ज नहीं कि इनकी ही झोली से यह शब्द निकला है। एक संगठन है, ‘हिन्दू जागृति समिति’। इसका काफी संसाधन ‘लव जिहाद’ पर लगा है। इसलिए इनकी राय काफी अहम मानी जा सकती है। समिति के मुताबिक, ‘हिन्दुओं और ईसाइयों के खिलाफ जिहादियों का एलान -ए- जंग है, ‘लव जिहाद’। आज वक्त की माँग है कि हिन्दू पूरी सावधानी बरतें ताकि हिन्दू महिलाएँ ‘लव जिहाद’ के शैतान के चंगुल में न फँस जाएँ। ‘लव जिहाद’ की साजिश को नाकाम करने के लिए एकजुट हों और आगे आएँ। हिन्दू लड़कियों के अमूल्य खजाने की हिफाजत कर अपनी सांस्कृतिक विरासत को बचाएँ। संघ का मुखपत्र माने जाने वाले ‘पांचजन्य’ में भी ‘लव जिहाद’ पर काफी विचार पसरा दिखता है। ‘पांचजन्य’ में छपे एक लेख के मुताबिक ‘लव जिहाद’ का मूल आशय यही है कि सीमा पार से जैश-ए-मोहम्मद एवं आंतरिक स्तर पर सिमी आदि संगठनों द्वारा हिन्दू लड़कियों के धर्मान्तरण के लिए मुस्लिम समुदाय की योजना के अनुसार प्रशिक्षित लड़कों को तैयार किया जा रहा है। उनका उद्देश्य होता है कि वे हिंदू लड़कियों को अपने प्रेम के झांसे में फांस कर शादी करें फिर उनका धर्मान्तरण करा दें।’ हिन्दू जागृति समिति’ ने ‘लव जिहाद’ पर एक किताब भी प्रकाशित की है। यह किताब हिन्दी, मराठी, अंग्रेजी, कन्नड़, गुजराती, ओड़िया, तेलुगू भाषा में मौजूद है। वे ‘लव जिहाद’ की कथित रूप से शिकार लड़कियों को बचाने और वापस हिन्दू धर्म में लाने का दावा करते हैं। समिति के दावे के मुताबिक ‘लव जिहाद’ का मकसद है, हिन्दू लड़कियों का इस्लाम में धर्म परिवर्तन कराकर, हिन्दूवंश का नाश करना। हिन्दू लड़कियों के साथ शादी करने के बाद ढेर सारी संतान पैदा कर इस्लाम का वंश-बेल बढ़ाना और बाद में आत्मघाती हमले के लिए उनका इस्तेमाल करना। शादी के बाद हिन्दू लड़कियों का जिहादी गतिविधियों और हथियारों की तस्करी में इस्तेमाल करना और आखिरकार पूरी दुनिया को इस्लाम में परिवर्तन कर देना। इससे कुछ बातें साफ हैं। इनके मुताबिक ‘लव जिहाद’ इस्लाम और मुसलमानों की एक सुनियोजित साजिश है। मुसलमान लड़कों को इस काम के लिए ट्रेनिंग दी जाती है। यह अंतर्राष्ट्रीय साजिश का हिस्सा है। मुसलमानों को ऐसा करने के लिए फतवे दिए जा रहे हैं। दुनिया को इसके जरिए इस्लाममय बनाने की साजिश है। ऐसा दावा करने वाले संगठन ज्यादातर हिन्दुत्ववादी विचारधारा के हैं और चंद केरल के कैथोलिक संगठन भी हैं। केरल में इसे ‘लव जिहाद’ के साथ ही ‘रोमियो जिहाद’ भी कहा जाता है। क्या वाकई में ऐसा है?
(Love Jihad against the Love)

बात 2009 की है। कर्नाटक के एक शहर की एक लड़की सिलजा राज और एक लड़का असगर की मुलाकात होती है। मुलाकात बढ़ती है। दोनों एक-दूसरे को पसंद करने लगते हैं और साथ रहना चाहते हैं। सिलजा अपने पिता को अपनी पसंद के बारे में बताती है। वे उसका विरोध करते हैं। आखिरकार दोनों एक दिन कहीं चले जाते हैं। सिलजा के पिता बेटी को वापस लाने के लिए इधर-उधर हाथ-पाँव मारते हैं। अंग्रेजी अख़बार ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ की एक पड़ताल के मुताबिक कुछ ही महीनों में इन दोनों की शादी एक बड़ा मुद्दा बन गई। मुद्दा ‘लव जिहाद’ की साजिश तक पहुंच गया। लड़की के पिता ने कर्नाटक हाईकोर्ट में बेटी को पाने के लिए एक याचिका दायर की। उनका आरोप था कि उनकी बेटी ‘लव जिहाद’ की साजिश का शिकार हुई है। याद रहे, उस वक्त कर्नाटक में भाजपा सरकार थी और यह मामला कोर्ट में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े वकील लड़ रहे थे। ‘लव जिहाद’ के कथित साजिश के शोर के दबाव में हाईकोर्ट की खंडपीठ ने सन् 2009 के अक्टूबर में इसकी सीआईडी जांच के आदेश दे दिए। सीआईडी ने 2005 से 2009 के बीच ‘गायब’ 21 हजार 890 लड़कियों के मामले की जांच की। सीआईडी ने पाया कि इनमें से 229 लड़कियों ने दूसरे धर्म के लड़कों से शादी की थी लेकिन सिर्फ 63 मामलों में ही धर्म परिवर्तन हुआ था। इन 229 लड़कियों में 149 हिन्दू लड़कियों ने मुसलमान लड़कों से शादी की थी। 10 हिन्दू लड़कियों ने ईसाई से शादी की थी। 38 मुसलमान लड़कियों ने हिन्दू लड़कों से शादी की थी। 20 ईसाई लड़कियों ने हिन्दू से शादी की थी। एक मुसलमान लड़की ने ईसाई लड़के से शादी की थी। 11 ईसाई लड़कियों ने मुसलमान लड़कों से शादी की थी। यानी अपनी पसंद की शादी करने वाली या अपनी पसंद का पार्टनर चुनने वाली सभी धर्म की लड़कियां थीं। आबादी के मुताबिक उनकी संख्या कम या ज्यादा है, पर हैं सभी मजहब की लड़कियां। जांच के बाद सीआईडी इस नतीजे पर पहुंची कि सिलजा और असगर की शादी ‘लव जिहाद’ जैसी कथित साजिश का नतीजा नहीं है। सीआईडी ने दिसम्बर 2009 में हाईकोर्ट में पेश अपनी रिपोर्ट में साफ-साफ कहा कि हिन्दू या ईसाई लड़कियों को बहला-फुसलाकर मुसलमान लड़कों से शादी कराने और उन्हें इस्लाम में धर्म परिवर्तन कराने की संगठित साजिश न तो कोई संगठन कर रहा है न कोई व्यक्ति। लगभग दो साल पहले कर्नाटक हाईकोट ने ‘लव जिहाद’ की यह जांच भी बंद कर दी। सीआईडी की जांच से यह तो साफ हो गया कि विश्व हिन्दू परिषद, बजरंग दल, हिन्दू जागरण वेदिके, श्री राम सेने जैसे संगठनों के आरोप में दम नहीं था। इसके बाद यह मुद्दा वहां तो ठंडा पड़ने लगा लेकिन यह बाकी जगहों पर पैर पसारने लगा। यह तो कर्नाटक के ‘लव जिहाद’ साजिश का सच है। ऐसा ही सच बाकी जगहों का भी होगा। साजिश का सच एक और रूप में भी देखा जा सकता है।

कुछ दिनों पहले ‘कोबरा पोस्ट’ और ‘गुलेल’ ने उत्तरप्रदेश, केरल और कर्नाटक में ‘लव जिहाद’ का सच जानने के लिए लम्बी खुफिया पड़ताल की। उन्होंने इस मुद्दे को उठाने वाले, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस), विश्व हिन्दू परिषद (विहिप),भारतीय जनता पार्टी(भाजपा) के नेताओं से ही जानने की कोशिश की कि आखिर ‘लव जिहाद’ क्या है। इन नेताओं की बातचीत कैमरे में क़ैद है। इन्होंने इसे ‘ऑपरेशन जुलियट’ का नाम दिया। इनकी पड़ताल से जो बातें निकलीं, वे हिन्दुत्ववादी संगठनों के दावों से एकदम उलट दिखती है। ‘कोबरा पोस्ट’ और ‘गुलेल’ के मुताबिक, (लव जिहाद के नाम पर).. हिन्दू-मुसलमान जोड़े को अलग करने में आरएसएस, वीएचपी, भाजपा के लोग लगे हैं। वे ‘लव जिहाद’ की कथित पीड़ित को बलपूर्वक बचाते हैं। जन समर्थन का दुरुपयोग कर पुलिस और स्थानीय प्रशासन पर दबाव डालकर ऐसी शादियों को खत्म कराने का काम करते हैं।

वे हिन्दू लड़कियों के साथ गायब होने वाले या शादी करने वाले मुसलमान नौजवानों के खिलाफ बलात्कार और अपहरण का फर्जी केस दायर करते हैं। मुसलमान लड़कों को फँसाने के लिए फर्जी दस्तावेज के जरिए लड़की को नाबालिग साबित करते हैं। अगर कोई हिन्दू महिला अपने प्रेमी या शौहर के खिलाफ बयान देने या उसे छोड़ने को राजी न हो तो वे उसे राजी करने के लिए भावनात्मक रूप से ब्लैकमेल करते हैं। उसके साथ जोर आजमाइश भी करते हैं। जिन लड़कियों को वे बचाने का दावा करते हैं, उनमें से किसी ने कभी उनसे यह कहकर मदद नहीं माँगी की वे कथित ‘लव जिहाद’ की पीड़ित हैं। इस पड़ताल से ‘लव जिहाद’ की सच्चाई बहुत हद तक सामने आ जाती है। यह भी बहुत हद तक पता चल जाता है कि साजिश कौन रच रहा है। वास्तव में ‘लव जिहाद’ के नाम पर दो समुदायों के बीच नफरत और टकराव पैदा करने के लिए इसका राजनीतिक इस्तेमाल किया जा रहा है। मुजफ्फरनगर का दंगा इसका सबसे बड़ा उदाहरण है।

‘लव जिहाद’ का हल्ला करने वाले हिन्दुत्ववादी संगठनों के आरोप से कुछ और अहम और बड़ी बातें निकलती हैं। हमारा पितृसत्तात्मक समाज स्त्रियों को संस्कृति और परम्परा के वाहक के रूप में भी देखता आया है। हमारे समाज में श्रेष्ठ होने के परदे में नफरत के विचार की एक मजबूत धारा है। यह धारा मानती और बताती है कि कुछ धर्म या जाति ‘पराए’ या ‘दुश्मन’ हैं। अब अगर कोई लड़की इन ‘पराए’ या ‘दुश्मन’ धर्म या जाति के लड़के को पसंद करती है या उसके साथ अपनी मर्जी से चली जाती है, तो यह धारा मानती है कि संस्कृति और परम्परा ही खतरे में पड़ गई या दूषित हो गई। इसे व्यक्तिगत और सामुदायिक पराजय के रूप में भी देखा जाता है। फिर इसी के इर्द-गिर्द नफरत की गोलबंदी की जाती है। यह गोलबंदी मर्दानगी को ललकार कर की जाती है। यह मर्दानगी, दूसरी सतह पर काम करती है। यही नहीं, पुरुष यह मानता आ रहा है कि स्त्री के सभी रूप, यानी मां, बहन, बेटी, पत्नी.़. उसके नियंत्रण में ही रहने चाहिए। इसके पीछे यह भी भावना काम करती है कि एक स्त्री आजाद इंसान के रूप में अपने फैसले नहीं ले सकती है। उसके बारे में फैसला लेने का काम कोई और करेगा। इसलिए जब कोई लड़की अपने जीवन साथी के बारे में फैसले लेती है तो उसके विरोध के लिए कई आयाम जोड़ दिए जाते हैं या उसके साथ जुड़ जाते हैं। यह पूरा हल्ला अंतर्धार्मिक शादियों या पसंद की शादी या पसंद का पार्टनर चुनने की आजादी के खिलाफ भी है। ‘लव जिहाद’ की कथित साजिश की पूरी मुहिम इस बात पर भी टिकी है कि लड़कियों को अपने पसंद का पार्टनर चुनने का हक़ नहीं है। अगर उन्होंने अपनी आजाद हैसियत दिखाई और अपनी जिंदगी का फैसला खुद लिया तो यह घर-परिवार-समाज को गवारा नहीं है। अगर उन्होंने अपना पार्टनर किसी और धर्म को मानने वाले को चुना तब तो यह कुछ लोगों के लिए नाकाबिले बर्दाश्त ही है। इस बात का सिरा इससे भी जुड़ता है कि समाज मान बैठा है कि लड़कियों की यौनिकता पर उसका खुद का नियंत्रण नहीं है। यह मूलत: घर-परिवार-समाज की ‘इज्जत’ है। अगर वे अपनी पसंद से पार्टनर चुनती हैं तो घर-परिवार-समाज की ‘इज्जत’कथित रूप से चली जाती है। ़.़ और जब पार्टनर दूसरे धर्म का हो तब घर-परिवार-समाज की इज्जत के साथ धर्म की इज्जत भी जुड़ जाती है। फिर लड़की की पसंद के खिलाफ गोलबंदी करना भी आसान हो जाता है। इसके खिलाफ हल्ला और हिंसा, वस्तुत: चयन का हक इस्तेमाल करने वालों को डराने के लिए भी है। ऐसी गोलबंदी, हल्ला और हिंसा मुजफ्फरनगर के बाद पिछले दिनों मेरठ में देखने को मिली थी। इस लिहाज से ‘लव जिहाद’ का मुद्दा कानून और संविधान के खिलाफ भी है।

अब थोड़ी बात ‘किस ऑफ लव’ के बारे में भी की जाए। ‘किस ऑफ लव’ का विचार ‘लव जिहाद’ से बिल्कुल उलट है। यह नौजवान लड़के-लड़कियों के मिलने-जुलने पर पाबंदी और निगरानी के खिलाफ केरल के कोच्चि शहर से शुरू हुआ। देखते ही देखते यह दिल्ली, कोलकाता, मुम्बई, हैदराबाद, चेन्नई में फैल गया। असलियत में यह पाबंदी की प्रतिक्रिया से उपजी विरोध की मुहिम है। केरल में पिछले कई सालों में ऐसी कई घटनाएं हुई, जिनमें सार्वजनिक स्थानों पर साथ बैठे, घूम रहे, रात में जा रहे, समुद्र तट पर मस्ती कर रहे लड़के-लड़कियों या अकेली लड़कियों पर संगठित रूप से हमले किए गए। कई मौकों पर पुलिस ने भी लड़के-लड़कियों को परेशान और गिरफ्तार किया। हमले में कुछ की जान भी गई और जख्मी भी हुए। ‘किस ऑफ लव’ की पृष्ठभूमि में ऐसी ही घटनाएं हैं। 2014 में एक स्थानीय चैनल ने एक रिपोर्ट प्रसारित की। रिपोर्ट के मुताबिक एक कैफे की र्पांिकग में लड़के-लड़कियाँ कथित रूप से ‘अनैतिक’ गतिविधियों में शामिल थे। इस रिपोर्ट के बाद भारतीय जनता युवा मोर्चा (भाजयुमो) के कार्यकर्ताओं ने कैफे में तोड़फोड़ की। इसी के विरोध में कोच्चि के नौजवानों ने ‘किस डे’ की घोषणा की। इन्होंने ‘किस ऑफ लव’ के नाम से फेसबुक पेज की शुरूआत की। देखते ही देखते यह पेज काफी चर्चित हो गया। दो नवम्बर 2014 को कोच्चि के मरीन ड्राइव पर कई नौजवान इकट्ठा हुए और प्यार पर पहरे के खिलाफ अपने गुस्से का इजहार किया। इस पूरे विरोध का स्वरूप अहिंसक था। ‘किस ऑफ लव’ के विरोध में शिवसेना, बजरंग दल, हिन्दू सेना, विहिप, भाजयुमो जैसे संगठन सड़क पर भी आए। इस तरह केरल के कोझिकोड में भी विरोध और टकराव के बीच ‘किस इन द स्ट्रीट’ का आयोजन हुआ। दिल्ली में नैतिकता के ठेकेदारों और प्यार पर पाबंदी के खिलाफ विश्वविद्यालय के कई विद्यार्थियों ने आरएसएस के मुख्यालय के बाहर प्रदर्शन किया। नैतिकता का पाठ पढ़ाने वाले और ‘किस ऑफ लव’ का विरोध करने वाले संगठनों का आरोप है कि नौजवान जोड़ों का साथ घूमना या प्यार के इजहार के लिए चुम्बन लेना, ये सब पश्चिमी संस्कृति की देन है। यह अनैतिक है और भारतीय संस्कृति के खिलाफ है। इससे भारतीय संस्कृति दूषित हो रही है।

कोई ‘किस ऑफ लव’ से सहमत हो या न हो, पर एक बात यहाँ भी गौर करने लायक है। इसके विरोधी नौजवानों के प्यार के खिलाफ हैं। यह उसी विचार की उपज है, जिस विचार से ‘लव जिहाद’ निकला है। ये विचार लड़कियों की आजादी, उनके बेफिक्र घूमने-फिरने, उनकी पसंद के खिलाफ है। ये आजादी और चयन के हक के खिलाफ है। इनकी नैतिकता का सारा डंडा भारतीय दंड संहिता की धारा 294 के तहत अश्लीलता के नाम पर चलता है। हालाँकि इस कानून के मुताबिक यह साफ नहीं है कि अश्लीलता किसे कहा जाएगा। हर शख्स अश्लीलता की अपनी व्याख्या करने को आजाद है। इसी का फायदा नैतिकता के ठेकेदार भी उठाते हैं। यहाँ 2009 का दिल्ली हाईकोर्ट का एक फैसला याद करना जरूरी है। फैसले में कोर्ट ने कहा था कि चुम्बन लेना अश्लीलता के दायरे में नहीं आता है। कुल मिलाकर देखा जाए तो ‘लव जिहाद’ और ‘किस ऑफ लव’ का रिश्ता नौजवानों की जिंदगी से जुड़ा है। एक ओर ‘लव जिहाद’, उस जिंदगी को काबू में करने की मुहिम है तो दूसरी ओर ‘किस ऑफ लव’ उस नियंत्रण से मुक्ति की आवाज है। एक का आधार नफरत है तो दूसरे का प्यार। एक संविधान के मूल्यों के खिलाफ है तो दूसरा संविधान द्वारा दिए गए हकों के इस्तेमाल की छटपटाहट है।
(Love Jihad against the Love)

‘लव जिहाद’ का पूरा अभियान पितृसत्तात्मक हिन्दुत्ववादी ‘मर्दानगी’ तैयार करने का नमूना है। यह मर्दानगी नफरत फैलाती है। वक्त पड़ने पर अपनी ही जाति और धर्म की स्त्रियों के खिलाफ हिंसक होती है। दूसरे धर्म या जाति के खिलाफ हिंसक मर्दानगी की सामूहिक मानसिकता तैयार करती है। हिंसक मर्द बनाती है। ‘लव जिहाद’ के हल्ले के पीछे छिपी साजिश को अगर सामने न लाया गया तो यह समाज को बांटेगा। यह पार्टनर के चयन के हक खिलाफ होगा। सबसे बढ़कर स्त्री-पुरुष बराबरी के हक के खिलाफ खड़ा हो जाएगा। यह उस मर्दानगी के खिलाफ खड़ा हो जाएगा जो बराबरी और अ-हिंसा का पैरोकार है।
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