आपकी चिट्ठियां

Letters to Uttara Mahila Patrika

उत्तरा का जुलाई-सितम्बर अंक प्राप्त हुआ। मैं नियमित रूप से उत्तरा पढ़ती हूँ, उत्तरा में प्रकाशित लेख बहुत सराहनीय हैं। इसका आवरण पृष्ठ बेहद आर्किषत होता है। इस अंक में डॉ. जया पाण्डे का लेख ‘महात्मा गाँधी और महिलाएँ’, राधा भट्ट की ‘मेरे दादाजी: जीवन कथा दो’, निर्मला सूरी की हमारी बीजी, कमल कुमार की शुरूआत कहानी, आशुतोष उपाध्याय द्वारा अनूदित मैडम क्यूरी आदि सभी लेख सराहनीय हैं। सभी रचनाओं की शैली अत्यन्त प्रभावशाली है। उत्तरा पत्रिका को पढ़कर बेहद सुखद अनुभूति होती है। अगले अंक की प्रतीक्षा रहेगी।
कल्पना पंत, पटेलनगर, देहरादून।
(Letters to Uttara Mahila Patrika)

उत्तरा के अंक नियमित मिल रहे हैं। हार्दिक आभार। अप्रैल-जून अंक में बहुत स्तरीय व ध्यातव्य सामग्री पढ़ी। अनिल कार्की की ‘एक बार ईजा’ कविता मुझे इतनी अच्छी लगी कि मैंने फेसबुक पर उसको फोटो सहित शेयर किया। बहुत लोगों ने पसंद किया। इसी अंक में उमा दीदी व हेमलता पंत द्वारा मनोज चंन्द्रन जी का साक्षात्कार इस अंक की उपलब्धि है। यह बातचीत बहुत महत्वपूर्ण इसलिए भी है कि इन वनाधिकारी जी ने देहरादून में नारी निकेतन केन्द्र में डेपुटेशन पर रहकर बहुत महिलाएँ (संवासिनी) जो उक्त केन्द्र में रह कर अवसाद ग्रस्त हो गयी थीं, उनकी व्यथा जानी, समझी। उनकी मदद किस परिश्रम पूर्वक की यह पढ़कर नतमस्तक हो गया हूँ। उन्होंने लगातार उनके बारे में इन्टरनेट का भी पूरा सहयोग लेकर उनको उनके पते पर सरकारी खर्चे में विदेश तक भिजवाया। बहुत हृदयस्पर्शी लगी यह बातचीत।
शशिभूषण बडोनी,

उत्तरा से मैं पिछले डेढ़ साल से परिचित हूँ। यूँ तो मैं इसके 4-5 अंक ही पढ़ पाई हूँ पर मुझे इस पत्रिका से अपना रिश्ता काफी पुराना सा प्रतीत होता है। मुझे पत्रिका में कविताएँ सबसे ज्यादा आकर्षित करती हैं। इसमें छपने वाले लेखों की भाषा-शैली मेरे ज्ञान के साथ-साथ मेरे शब्दकोश में भी वृद्धि करती है। जुलाई-सितम्बर 2019 के अंक में एफ्रैड लिवनी जी का लेख ‘मैं माँ नहीं हूँ और यह मुश्किल है’ मेरे अन्र्तमन को छू गया। जिसमें उन्होंने बताया कि एक माँ के महान होने के साथ-साथ एक औरत का नि:सन्तान या सन्तानमुक्त होना क्या है? और साथ ही अपनी परेशानियों का भी स्पष्ट उल्लेख किया है। मुझे इस बात का हर्ष है कि महिलाओं के जीवन से जुड़ी इस पत्रिका में अभिव्यक्ति देने वाले पुरुषों की संख्या स्त्रियों के समकक्ष है।
ज्योति आर्या, गरुड़, बागेश्वर

उत्तरा का जुलाई-सितम्बर 2019 अंक भिजवाने के लिये सविनम्र आभार। इस अंक का सम्पादकीय लेख सारर्गिभत एवं ज्ञानवद्र्धक है। वैसे तो इस अंक की सभी रचनाएँ उत्कृष्ट एवं स्तरीय हैं किन्तु राधा भट्ट की जीवन-कथा, जया पाण्डे की ‘महात्मा गाँधी और महिलाएँ’ तथा दीपक शर्मा की कहानी पारर्दिशता एवं अनुभूतियों की कलात्मकता के साथ-साथ सहज-संप्रेष्य है। उत्तरा न केवल पठनीय है, वरन् संग्रहणीय भी है। ऐसी उत्तम प्रस्तुति के लिए आपके साथ पूरे उत्तरा परिवार को साधुवाद।
सीताराम पाण्डेय, रामबाग चौरी, पो- रमणा, मुजफ्फरपुर
(Letters to Uttara Mahila Patrika)

मुझे उस वक्त बहुत खुशी हुई जब मुझे ‘उत्तरा महिला पत्रिका’ का अंक न. 108 मिला। हमारे एक कवि मित्र अक्सर कहा करते हैं कि समाज में जाागृति पैदा करने में, जनहित आन्दोलनों में और साहित्य के प्रचार-प्रसार में लघु पत्रिकाएँ बड़ी अहम भूमिका निभाती हैं। ‘‘उत्तरा महिला पत्रिका’’ देखकर मुझे उनकी बात पुष्ट होती हुई प्रतीत होती है। आपकी पत्रिका मैं पूरी नहीं पढ़ पाया हूँ। फिर भी मैंने ‘उत्तरा का कहना है’ के अन्तर्गत इसका सम्पादकीय, गौरी लंकेश पर सिद्धार्थ का लेख, मधु जोशी का लेख, ‘लड़कियाँ सक्षम हैं’, झारखण्ड की कवयित्री जसिन्ता से आपके पूरे सम्पादक मण्डल द्वारा की गई बातचीत ही पढ़ पाया हूँ। जो अभी तक नहीं पढ़ पाया हूँ उसे पढ़ने की उत्सुकता निरन्तर बनी हुई है। अत: बाकी बची सामग्री भी मैं निकट भविष्य में पढ़ लूंगा ऐसी आशा है। जितना पढ़ा है वह मेरे कवि मित्र की टिप्पणी को पुष्ट ही करता है। पढ़ी गई सामग्री में सबसे अच्छा मुझे गौरी लंकेश पर छपा लेख ही लगा। यह लेख गौरी लंकेश पर हिन्दी, अंग्रेजी आदि में लिखे गये अनेक लेखों से हटकर लगा। मैं आपकी पत्रिका नियमित पढ़ना चाहूंगा। इस पत्र के माध्यम से में यह भी सूचित करना चाहता हूँ कि मैं एक-दो दिन में उत्तरा का वार्षिक चंदा बैंक खाते में जमा करवा दूंगा। हालांकि मैं उत्तराखण्ड एक बार भी नहीं गया हूँ। फिर भी मुझे उत्तराखण्ड कई दृष्टिकोणों से अपने प्रदेश के सबसे नजदीक लगता है। उत्तरा के माध्यम से शायद मैं इसे और अधिक जान सकूँ।
रवि सिंह राणा, मंडी, हिमाचल

वर्षों पूर्व उत्तरा से मेरा परिचय लैंसडाउन में हुआ था और मुझे इस महिला पत्रिका की पाठिका बनने का गौरव प्राप्त हुआ। किसी कारणवश लम्बे अंतराल के पश्चात इस वर्ष उत्तरा के दो अंक जनवरी-फरवरी और अप्रैल-जून 2019 प्राप्त हुए। अपार हर्ष हुआ। मानो मेरी अपनी बिछुड़ी हुई कोई सहेली मिल गयी हो। तब से अब की उत्तरा में काफी निखार आ गया है। इसमें प्रकाशित उत्तरा का कहना है, कहानियाँ, लेख और कविताएँ सभी सामयिक, विचारोत्तेजक एवं प्रभावशाली हैं। जनवरी-मार्च 2019 में प्रकाशित ‘बेटियों की कुशल जानने का बहाना-कुण्डु’ ने ‘भिटौली’ की याद दिला दी। उत्तरा की उत्तरोत्तर प्रगति के लिए शुभकामनाएँ।
निरंजना जोशी, हल्द्वानी
(Letters to Uttara Mahila Patrika)

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