आपकी चिट्ठियां

Letters to Uttara Mahila Patrika July-Sept 2019

उत्तरा अप्रैल-जून हाल ही में प्राप्त हुई। उत्तरा से सुखद अनुभूति के साथ कुछ पाने की उत्सुकता सदैव बनी रहती है। पत्रिका महिला उत्थान एवं सशक्तीकरण की प्रेरणा के साथ-साथ आंचलिक संस्कृति की ओर भी निहारती रहती है। इसके हर अंक में कुछ न कुछ मिल ही जाता है। यद्यपि पत्रिका में सभी लेख एवं कविताएँ पठनीय एवं प्रेरणास्पद हैं लेकिन श्री मनोज चन्द्रन जी का महिलाओं के उत्थान के प्रति किया गया प्रयास अत्यन्त सराहनीय है। काश! हमारे समाज के अन्य सक्षम अधिकारी वर्ग का ध्यान भी इस ओर जाता। इस अंक की कविता ‘एक बार फिर ईजा’ में पिरोये गये शब्दों ने ग्रामीण अंचल में अपनी इजा के साथ बिताये गये दिनों का साक्षात्कार करवा दिया। साथ ही मेरी दादी लेख ने ग्रामीण परिवेश में निवास करने वाली विभिन्न प्रतिभाओं की धनी दादियों के बीच बिठा दिया। काश उन दादियों का परिचय कराने वाला कोई होता तो वे कितना बता देती अपने विषय में। लेखों एवं आपकी चिट्ठियाँ के माध्यम से पुरुष वर्ग की नारी शक्ति के प्रति सदभावना का संकेत सुखद है। मैं इस पत्रिका के जन्म, शैशव एवं कैशौर्य से लेकर युवावस्था की दहलीज पर विराजमान होने तक की पाठिका रही हूँ। सदैव सुखद अनुभूति होती है। सम्पादक मण्डल एवं सभी सहयोगियों को धन्यवाद एवं बधाई। मंगलकामनाओं सहित, अगले अंक की प्रतीक्षा में।
पुष्पा पंत, मित्र कालोनी, हल्द्वानी।
(Letters to Uttara Mahila Patrika July-Sept 2019)

मैं नियमित रूप से उत्तरा पढ़ता हूँ और इसमें प्रकाशित लेखों को पसंद करता हूँ। इसका आवरण पृष्ठ हमेशा बहुत आकर्षक होता है और उत्तरा टीम की संवेदनशीलता को व्यक्त करता है। अप्रैल-जून 2019 के अंक के मुखपृष्ठ में छपी हुई फोटो और हरीश पाठक द्वारा एक अनोखे अंदाज में की गई परिकल्पना ने मुझे अन्दर तक छू दिया।
अजय रावत, नैनीताल।

‘उत्तरा’ के अंक बराबर मिलते रहते हैं। यूं तो रचनाओं का चयन, स्तर और व्यवस्थापन इतना अच्छा होता है कि जब तक मुख्य-मुख्य रचनाओं को एक बार पढ़ न लिया जाये तब तक इसे छोड़ने का मन नहीं करता। किन्तु प्रतिक्रिया देने में प्राय: आलस्य घेर लेता है। किन्तु आज मैं जनवरी-मार्च 2019 अंक में प्रकाशित दो रचनाओं पर अपनी प्रतिक्रिया देने से स्वयं को रोक नहीं पा रही हूँ। इनमें से एक है- सुश्री राधा भट्ट द्वारा लिखित आत्मकथा का अंश ‘जन्म कथा: जैसा ईजा ने सुनाया’ और दूसरी रचना है सुश्री उमा अनन्त का संस्मरण अंश ‘बिखरी हुई लाशों का शहर’।
(Letters to Uttara Mahila Patrika July-Sept 2019)

पहली रचना लगभग पचास वर्ष पूर्व के पहाड़ी ग्रामीण जीवन और एक सुसंस्कृत, संवेदनशील परिवार के रहन-सहन का सुन्दर चित्रण करती है। इस परिवार में ज्यातिषी की यह भविष्यवाणी कि नवजात शिशु को देखते ही उसके पिता यानी परिवार के सबसे बड़े एवं सबसे होनहार पुत्र की मृत्यु हो जायेगी, से आये भूचाल से विचलित परिवार के सदस्यों के मनोभावों के सांकेतिक चित्रों और बच्चे की माँ के मनोभावों और आखिर में परिवार की चिन्ताओं को दूर करने वाली दूसरे ज्योतिषी की भविष्यवाणी से परिवार में दौड़ी राहत की लहर का सन्तुलित और सहृदयतापूर्ण चित्रण अत्यन्त आकर्षक और प्रभावशाली है। समूचे परिवार का मजबूत ताना-बाना, परस्पर स्नेह अ‍ैर सम्मान का स्थाईभाव, शिशु के पिता का द्वन्द्वरहित व्यवहार और स्पष्ट एवं दृढ़ निर्णय अत्यन्त प्रभावित करता है। यह रचना ज्योतिष पर विश्वास जगाती भी है और उसके खतरे को भी इंगित करती है। राधा भट्ट जी की आत्मकथा का यह अंश, जो उसी बच्चे द्वारा लिखा गया है, जो स्वयं इस घटनाक्रम का केन्द्र बिन्दु है, अत्यन्त र्मािमक व हृदयस्पर्शी है। सुश्री उमा अनन्त जी के संस्मरण ने मंटो, इस्मत चुगताई, भीष्म साहनी, कृष्णा सोबती और न जाने कितने कथाकारों की रचनाओं में र्विणत आजादी और देश के विभाजन के समय के कड़वे सच को उघाड़ कर सामने खड़ा कर दिया। उस पीड़ा को कितना भी बयाँ किया जाये, वह कम नहीं होती और न ही उसे भूलने का मन होता है। अफसोस तो यह है कि यह सच न्यूनाधिक रूप में देश और दुनिया में बार-बार दोहराया जाता रहा है और दोहराया जा रहा है। इस क्रूर सत्य को पूरी सहृदयता के साथ बयाँ करने के लिए लेखिका को धन्यवाद देना चाहती हूँ। दोनों ही रचनाओं की शैली अत्यन्त प्रभावशाली एवं प्रवाहपूर्ण है।
राजकुमारी भट्ट, नैनीताल

अप्रैल-जून 2019 की उत्तरा मिली। मनोज चंन्द्रन का साक्षात्कार बहुत अच्छा लगा। ऐसे ऑफीसर भी हैं, विश्वास नहीं होता। साक्षात्कार की बहुत सहज और सरल शैली है। हर मुद्दे को उठाया गया है। हमें ऐसे ही अधिकारियों की आवश्यकता है। उत्तरा ने उनका साक्षात्कार कर व्यवस्थाओं की खामियों को उजागर किया है। स्मिता कर्नाटक की कहानी भी अच्छी है। कम संसाधनों में उत्तरा का निकलना एक बड़ी चुनौती है। उत्तरा अपने सभी साथियों से हर प्रकार के सहयोग की दरकार करती है। उत्तरा का निकलना हम सब की अस्मिता से जुड़ा है इसलिए यह कैसे लगातार निकलती रहे इस पर भी ध्यान देने और सुझाव देने की बराबर आवश्यकता है।
जया पाण्डे, रानीखेत
(Letters to Uttara Mahila Patrika July-Sept 2019)

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