मैं अपनी जिद से ठेकेदार बनी- लक्ष्मी देवी

प्रस्तुति : पुष्पा गैड़ा

(लक्ष्मी देवी नैनीताल जिले के ओखलकाण्डा के सुदूर क्षेत्र डालकन्या में एक दमदार व्यक्तित्व वाली महिला हैं। उनसे मेरी पहली मुलाकात जब हुई तो उनसे मिलकर बात करने की इच्छा हुई। जब पता चला कि वे इस क्षेत्र की एकमात्र सरकारी महिला ठेकेदार हैं तो एक दिन यों ही उनसे बातचीत की। बातचीत में महिला घर-गृहस्थी के कामों में दक्ष एक आम होने के साथ-साथ समाज में अपनी भूमिका निभाने वाली लक्ष्मी देवी के व्यक्तित्व के कई पहलुओं से मेरा परिचय हुआ। – पुष्पा गैड़ा)
(Laxmi Devi Interview)

अपने बारे में कुछ बताएँ।

मेरा जन्म डालकनिया में 1958-59 के बीच हुआ होगा, जन्म के बारे में निश्चित पता नहीं है। बताता भी कौन है। माता-पिता सीधे हुए। किसी ने बताया कि मंगसीर (नवम्बर-दिसम्बर) में पैदा हुई। परिवार में दादाजी, ताऊ-ताई उनके बच्चे और हम पाँच बहिनें, दो भाई हैं। एक की मृत्यु हो गयी थी। पिताजी के पास लगभग पच्चीस भैंसें थीं। उन्हें चराने के लिए भाबर ले जाते थे। वहाँ वे लकड़ी चिरान का काम करते थे। उससे घर का खर्च चलता था। परिवार के और लोग घास काटते थे।

आप कभी स्कूल गयीं?

नहीं, तब लड़कियों को कोई पढ़ाता भी नहीं था। गाँव में स्कूल नहीं था। डेफ्टा में एक प्रायमरी स्कूल था। 15 अगस्त को पिताजी के साथ वहाँ गई थी। उनसे स्कूल जाने के लिए कहा तो उन्होंने कहा कि चेली, तेरा पिता नहीं पढ़ पाया तू कहाँ पढ़ेगी। फिर घर में ही घास काटी और घर के अन्य काम किये।

तो फिर कभी पढ़ने की नहीं सोची आपने?

फिर शादी हो गयी। घर की जिम्मेदारियों के साथ पढ़ नहीं पायी। घर पर ही पति की मदद से अपने हस्ताक्षर करने सीखे।
(Laxmi Devi Interview)

आपका विवाह कब हुआ?

मेरा विवाह 15 वर्ष में हो गया था। विवाह के एक माह बाद पति पुलिस में भर्ती हो गये थे। पाँच साल बाद मैं भी उनके साथ गढ़वाल चली गयी थी। मेरे तीन बच्चे वहीं हुए। वहाँ पर एस.पी. की पत्नी ने स्टाफ की महिलाओं के लिए एक क्लब शुरू किया था। वहाँ मैंने कुर्सी बिनाई का काम सीखा। कुछ न कुछ सीखने का मन हमेशा ही था। जब बच्चे थोड़े बड़े हुए तो घर आकर खेती-बाड़ी का काम सम्भाला।

कितने बच्चे हैं आपके?

मेरे पाँच बच्चे हुए। दो लड़कियाँ व तीन लड़के। एक लड़की की शादी के बाद मृत्यु हो गयी थी।

आपने बच्चों को पढ़ाया?

हाँ, मेरे दो बेटे अध्यापक हैं। एक चार्टर्ड एकाउण्टैण्ट है। मैंने अपनी लड़कियों को भी पढ़ाया। उन्होंने पूरी पढ़ाई की। मेरी बेटी ने दो विषयों में एम.ए. किया है। हमारी लड़कियों को देखकर तो लोगों ने अपनी लड़कियों को पढ़ाया। मैं खुद भी लोगों से कहती थी कि अपनी लड़कियों को पढ़ाओ।

आप किस प्रकार की ठेकेदार हैं?

मैं सरकारी ठेकेदार हूँ। ग्रामीण क्षेत्र में जितनी भी सरकारी योजनाएँ आती हैं, उनका ठेका लेती हूँ।

ठेकेदार बनने की प्रेरणा कहाँ से मिली?

1987 से 1992 तक मैं ग्राम पंचायत सदस्य रही तो मैंने महसूस किया कि गाँव के हित में आयी योजनाओं का ठेका लेकर लोग गाँव के ही गरीबों को नहीं पूछते हैं। दो-चार लोगों को खिला-पिलाकर गरीबों का हक मारते हैं। ऐसे लोगों को सबक सिखाने के लिए मैंने ग्राम प्रधान का चुनाव लड़ा।
(Laxmi Devi Interview)

तो आप ग्राम प्रधान बनीं?

हाँ, बनीं। एक बार लोगों की सेवा करने की चाह थी। मैं चार बार ग्राम प्रधान के पद के लिए खड़ी हुई थी। पहली बार सभी चाहते थे कि मैं ग्राम प्रधान बनूं। घर से किसी ने विरोध नहीं किया परन्तु चचेरे ससुर का बेटा ही विपक्ष में खड़ा हो गया। वह तो नहीं जीता परन्तु मेरे वोट कट गये और मैं हार गई।

आप ग्राम प्रधान कब बनीं?

दूसरी बार फिर चुनाव लड़ा और 2003 में मैं ग्राम प्रधान बनी। लोगों ने सहयोग किया। मेरे कामों को देखते हुए लोगों ने तीसरी बार भी चुनाव लड़ने के लिए कहा परन्तु विपक्ष में बिरादरी के ही लोग खड़े हो गये तो मैं हार गई। चौथी बार फिर चुनाव लड़ा फिर हार गई तो फिर ठेकेदारी का काम शुरू किया।

आपने ठेकेदारी ही क्यों की, समाज सेवा तो किसी और तरीके से भी की जा सकती थी।

जब मैं ग्राम प्रधान थी तो सिंचाई विभाग से काम आया था। मैंने वह काम अपने बिरादरी के ठेकेदार को देना चाहा तो सभी ने कहा कि काम गाँव के ही व्यक्ति को मिलना चाहिए। तो वह काम सलैक्शन टैण्डर द्वारा मुझे मिल गया। मैंने वह काम जिस ठेकेदार को दिया उसने मुझे पूछा तक नहीं। वह 2.5 लाख का टैण्डर था। उस दिन से मैंने ठान लिया कि मैं जिन्दा रहूंगी तो एक बार इस डालकन्या में ठेकेदार बनकर दिखाऊंगी। चाहे काम ज्यादा मिले या कम। तब से मैं अपनी जिद से ठेकेदार बन गयी।

तो फिर ठेकेदारी के काम मिले आपको?

क्यों नहीं, काम मिले। पहली बार दो लाख का काम किया। दूसरी बार 2.5 लाख का काम मिला। फिर मेरे कामों को देखकर काम मिलते ही रहे।
(Laxmi Devi Interview)

ठेकेदारी का काम कहाँ से मिला और कैसे मिलता था?

सिंचाई विभाग से। ठेकेदारी का बॉण्ड अपने नाम किया। जिसमें से 5 प्रतिशत काम अन्य ठेकेदारों को दिया। बाकी अपने नाम से किये। सिंचाई विभाग के अतिरिक्त अन्य योजनाओं का भी काम करवाया है। ठेका लेने के लिए सभी ठेकेदार आपस में बैठक कर तय करते थे कि कौन-सा काम किसको मिले। कभी-कभी टेण्डर भी पड़ते थे। सांसद निधि, शिक्षा विभाग से भी काम मिले।

आप स्वयं इन बैठकों में जाती थीं?

हाँ, मैं खुद जाती थी। अभी भी मैं खुद ही बैठकों में जाती हूँ। ये बैठकें हल्द्वानी सिंचाई विभाग के ऑफिस में होती हैं।

क्या इन बैठकों में कोई और महिला ठेकेदार भी होती हैं?

वैसे तो एक और महिला ठेकेदार है पर उन्हें मैंने कभी बैठकों में नहीं देखा।

क्या-क्या काम करवाये हैं आपने?

ग्राम-प्रधान रहते हुए स्वजल परियोजना की पहल की अपने गाँव के लिए। अन्य गाँव के लोगों ने विरोध किया तो मैंने कहा कि लिखकर दो कि मैं यह पानी अपने यहाँ नहीं ला सकती। रास्ता और पानी कोई नहीं रोक सकता है। बाद में उन्होंने वह लाइन खराब कर दी तो जलागम योजना के तहत दूसरी लाइन डलवाई। सिंचाई के लिए डालकन्या व तुषराड़ क्षेत्र में कैनाल बनवाए। तुषराड़ और गरगड़ी में पाइप लाइन का काम किया। गधेरों में पुल बनवाया। देवनगर का स्कूल मैंने स्वीकृत करवाया। पनखाल, डेफ्टा, बैड़ा में आँगनबाड़ी खुलवाई। भोलापुर के प्रायमरी के ध्वस्त विद्यालय के जीर्णोद्धार का काम किया। कई विद्यालयों में शौचालय भी बनवाए। आजकल पी.डब्ल्यू.डी. का सीसी मार्ग बनाने का ठेका लिया है। हालांकि काम किसी और को दिया है। मैं बीच-बीच में देखने जाती हूँ। जे.ई. व अन्य विभागीय अफसर भी निरीक्षण के लिए आते हैं। और भी छोटे-मोटे काम करती रहती हूँ।
(Laxmi Devi Interview)

अभी भी आप ठेकेदारी का काम करती हैं?

हाँ, कभी-कभी कर पाती हूँ अब। पिछले महीने ही अपना नवीनीकरण करवाया है। हालांकि अब ज्यादा रुचि नहीं रही। घर के कामों में व्यस्तता रहती है। खेती-बाड़ी की ओर ज्यादा रुझान है पर ठेकेदार बनकर दिखा तो दिया। जिद्द ही सही।

तो अब क्या कर रही हैं?

कुछ समय पहले मेरी रुचि को देखते हुए कसियालेख के नारायण सिंह बिष्ट जी द्वारा मुझे एक नर्सरी के लिए दो लाख की सब्सिडी दी गई है। दो बार इसी काम में प्रशिक्षण के लिए श्रीनगर गढ़वाल भी गयी थी। वहाँ से 40 हजार का तेज पत्ते का बीज खरीदकर नर्सरी बनाई व पौधे क्षेत्र के लोगों को दिये। उन्हें भी तेज पत्ते की खेती के लिए प्रेरित किया। आज इस क्षेत्र में कई लोगों ने तेज पत्ते के पौधे लगाये हैं। पहले मैं ऐसे ही मनमाने दाम पर पौधे देती थी। अब 20 रुपये का दाम तय किया है।
(Laxmi Devi Interview)